यह राम के बारे में अपयश फैलाने के उद्देश्य से रचा गया षड्यंत्र
-कुमार विश्वास
उत्तर रामायण (उत्तर कांड) बाद में कुछ शरारती लोगों द्वारा श्रीराम को दलित-आदिवासी और स्त्रीविरोधी दिखाकर समाज में उनकी छवि खराब करने के लिए लिखी गई। इसमें शंबूक वध और सीता परित्याग जैसी घटनाएं जबरन जोड़ी गई हैं। यह महर्षि वाल्मीकि की रचना नहीं है। यह राम के बारे में अपयश फैलाने के उद्देश्य से रचा गया षड्यंत्र है।
ये दोनों भाई राम-लक्ष्मण और राम तो विशेष रूप से सीता के साथ ऐसा करेंगे यह नहीं हो सकता। यह क्यों नहीं हुआ था और क्यों आपके मन में भ्रांति आई इसका निराकरण मैं कर दूंगा पर पहले मैं आपको कुछ और बताना चाहता हूं। वाल्मीकि रामायण में सात कांड हैं और चौबीस हजार श्लोक हैं। और ऐसा माना जाता है इनमें से अधिकांश प्रक्षिप्त हैं जो वाल्मीकि ने लिखे ही नहीं। आप कहेंगे कि लिखे नहीं फिर कैसे वे रामायण में हैं। मैं 650 कविताएं रोज व्हाट्सएप पर देखता हूं जो मेरे नाम से घूमती हैं। और वो मेरी लिखी नहीं हैं। कुछ भी कूड़ा लिखो नीचे महादेवी वर्मा या गालिब लिख दो और उसे व्हाट्सएप पर वायरल कर दो… फैल गया! व्हाट्सएप एक विश्वविद्यालय है जहां से ग्रेजुएट होने के लिए अक्ल से पैदल होने के अलावा और किसी और योग्यता की आपको आवश्यकता नहीं है।
वाल्मीकि रामायण में जब दोनों भाई राम-लक्ष्मण अहिल्या से मिलने गए तो उन्होंने वहां जाकर जो पहला काम किया वह था अहिल्या के चरण स्पर्श। अहिल्या के चरण स्पर्श करके राम ने यह घोषणा कर दी कि अहिल्या नामक मां पाप से मुक्त है। इंद्र पापमुक्त है तो यह मां भी पापमुक्त है इसलिए इसके चरण स्पर्श करता हूं। श्रीराम बालि का वध करते हैं रूपा (सुग्रीव की पत्नी) के अपहरण के कारण।
एक प्रसंग है वाल्मीकि रामायण में जब वनगमन होने लगता है तो सीता भी वन जाने के लिए विलाप करती हैं। तर्क देती हैं कि मैं राजभवन से निकलूंगी तुम्हारे मार्ग के कंकड़-पत्थर साफ करूंगी। राम बहुत समझाते हैं उन्हें और जब नहीं मानती हैं तो उन्हें साथ ले जाने का उपक्रम करते हैं। इसी दृश्य में जो टिप्पणी आती है उसमें राम कहते हैं कि वन छोड़ो मेरे लिए तो स्वर्ग भी तेरे साथ जाए बिना संभव नहीं है। ऐसा कहने वाला राम क्या सीता का निर्वासन कर सकता है। फिर यह हुआ क्यों? इस प्रश्न का जवाब है कि जो उत्तर कांड बाद में जोड़ा गया वाल्मीकि रामायण में वह महर्षि वाल्मीकि की कृति ही नहीं है। राम की महिमा को भंग करने के लिए ऐसी योजना बनाई गई कि उसमें दो चार ऐसी बातें डाल दो जिससे राम की आदिवासी-दलित विरोधी और स्त्रीविरोधी छवि बने। तो इसमें दो चार बातें ऐसी जोड़ी गर्इं सीता परित्याग से लेकर शंबूक वध तक जिससे राम के चरित्र के प्रति समाज में शंका पैदा हो। उत्तर कांड में ऐसी कम से सौ बातें हैं जिन्हें पढ़कर आपको लगेगा कि इसे अलग से जोड़ा गया है। वनगमन के दौरान जब राम वनवास जाने को तैयार होते हैं तो माता कैकयी राम, लक्ष्मण और सीता को कोपीन (तपस्वी का वस्त्र) देती हैं। जब कैकयी ने माता सीता को कोपीन दिया तो गुरु वशिष्ठ नाराज हो गए, ‘वनवास राम का हुआ है, तपस्वी के वस्त्र सीता को क्यों? लेकिन जब कुटिलता छाती है तो आप चाहते हैं कि सामने वाले का और उत्पीड़न हो। सीता वह वस्त्र ले लेती हैं लेकिन उन्हें वह पहनना नहीं आता। तो उस समय जहां मांएं, भाई, गुरु वशिष्ठ मौजूद हों, ऐसी सभा में राम ने वह काम किया जो केवल प्रेम करने वाला पति ही कर सकता है। वे स्वयं आगे बढ़े और सीता को अपने हाथों से वस्त्र पहनाया।
तस्यास्तत्त क्षिप्रमागत्य रामौ धर्मवृतां वर:।
चीरम बबंध सीताया: कौशेयस्य उपरि स्वयं।।
वाल्मीकि जी लिख रहे हैं कि राम ने सीता को स्वयं वस्त्र पहनाया। जो आदमी अपनी पत्नी के सार्वजनिक अपमान को अपनी छाती पर झेलता हो वह अपनी पत्नी तो किसी के कहने पर जंगल भेज देगा?… कैसी मूर्खतापूर्ण बात है। और सीता भी ऐसी नहीं हैं कि कोई भी निर्वासन दे दे तो चली जाएंगी। यह सब उत्तर रामायण की कथा है जो बाद के लोगों ने जोड़ी है। आप उत्तर कांड पढ़ लीजिए वह वाल्मीकि का कथन ही नहीं है, वाल्मीकि की शैली ही नहीं है। मैं तो तमाम कहूंगा आप वाल्मीकि रामायण को वहां से पढ़िए जहां से यह कहानी शुरू हुई है, जहां से यह झूठ शुरू हुआ है कि सीता का निर्वासन दिया गया। यह कहानी कभी नहीं थी। यह बाद में जोड़ी गई है।
आप उत्तर कांड की भाषा पढ़िए वह वाल्मीकि की भाषा ही नहीं है। हमारे कविता-शायरी के मंचों पर कुछ लोग उस्तादों से गजल लिखवाकर ले आते हैं। यह तमाम लोगों को पता है। उर्दू के शायर मलिकजादा जावेद एक शेर है, उत्तर कांड पढ़ते समय वह मुझे कई बार याद आता है-
जो दूसरों से कहलवा के गजल लाते हैं/ जबां खुले तो तलफ्फुस में मात खाते हैं।
साफ दिखता है कि उत्तर कांड उनकी रचना ही नहीं है। इसी से विचारपूर्वक बालकांड का तृतीय और चतुर्थ सर्ग लिखा गया ताकि उत्तर कांड की वैधता दिखाई दे।
तो अब से कोई आपसे पूछे कि ‘सीता का निर्वासन हुआ’ तो आप उससे कहिएगा कि ‘भाई, सीता का कभी निर्वासन नहीं हुआ।’ वाल्मीकि उस समय जीवित थे जब उन्होंने यह कहानी लिखी। वाल्मीकि ने जीवनी लिखी है। वाल्मीकि ने उसे समाप्त कर दिया युद्ध कांड पर। युद्ध कांड में उन्होंने कहा, ‘इस प्रकार राजा राम ने ग्यारह हजार वर्ष तक राज्य किया।’ जब एक बार बात कह दी तो कथा वहीं समाप्त हुई।
वाल्मीकि ने योग बल से देखा। और वाल्मीकि तो अपने आश्रम में ही देख रहे हैं सीता को, राम को। हमें याद रखना चाहिए कि उत्तर कांड में दो प्रसंग शंबूक वध और सीता परित्याग- राम को दलितों, आदिवासियों और स्त्री का विरोधी दिखाने के लिए षड्यंत्रपूर्वक जोड़ी गई है। यह षड्यंत्र उन लोगों ने किया जिनकी भारतीय संस्कृति के आचार-विचार में आस्था नहीं थी। इस तरह उत्तर कांड में जो कुछ भी है वह राम के बारे में अपयश फैलाने के उद्देश्य से लिखा गया है।