शिवचरण चौहान।
पहली अप्रैल को सारी दुनिया में अप्रैल फूल डे यानी मूर्ख दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोग एक दूसरे को बेवकूफ बनाकर आनंदित होते हैं। किसी दूसरे व्यक्ति को मूर्ख बनाना और फिर आनंद लेना यह भारतीय परंपरा कभी नहीं रही है। मूर्ख बना कर किसी का मजाक उड़ाना पश्चिम देशों की परंपरा में शामिल है। फर्स्ट अप्रैल फूल डे की परंपरा पश्चिमी देशों से भारत आई है। यह पाश्चात्य परंपरा है। इस वर्ष रूस यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया के अधिकांश देशों में फूल डे नहीं मनाया जाएगा। शांति की प्रार्थना की जाएगी। पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण करने वाले भारतीय हिंदुस्तान में एक दूसरे को मूर्ख बना कर मौज लेते हैं। हिंदी फिल्मों में भी अप्रैल फूल बनाया जैसे गाने मिलते हैं।

परंपरा नहीं बनने दिया इसे

जब नारद बने रामायण की उत्पत्ति के लिए कारण

ऐसा नहीं है कि मूर्ख बनाने की बातें भारतीय संस्कृति में नहीं मिलती- किंतु इसे श्रेयष्कर नहीं माना गया। इसे परंपरा नहीं बनने दिया गया। हमारे यहां होली का भी त्यौहार है जिसमें खूब हंसी मजाक और आनंद होता है किंतु किसी को बेवकूफ बनाकर हंसना मना है। भारत के ग्रंथों, पुराणों में कथा मिलती है कि भगवान विष्णु ने मोहग्रस्त नारद को मूर्ख बनाया था। नारद ने एक राजकुमारी से शादी करने के लिए भगवान विष्णु से उनके जैसा सुंदर रूप मांगा था। भगवान विष्णु ने नारद को अपने जैसा सुंदर रूप देने का वचन देकर उन्हें वानर का रूप दे दिया था। शादी के स्वयंवर में नारद के बंदर रूप को देखकर सभी को बहुत हंसी आई थी। जब नारद को पता चला कि भगवान विष्णु ने उन्हें मूर्ख बना दिया है तो वह नाराज हो गए और भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि जिस तरह नारी वियोग में हम बहुत परेशान हुए उसी तरह आपको भी अपनी पत्नी के वियोग में वन वन भटकना पड़ेगा। भगवान विष्णु ने अपनी गलती मान कर नारद का शाप स्वीकार कर लिया था। पर इस को परंपरा नहीं बनने दिया। कोई दिन नहीं निश्चित किया कि मूर्ख बनाया जाएगा। दूसरों को मूर्ख बनाने के उदाहरण भारतीय पुराणों से लेकर इतिहास में खूब मिलते हैं। आजकल नेता जनता को खूब मूर्ख बनाता है। राजनीति में मूर्ख बनाने की परंपरा रोज ही चल पड़ी है। वोट देने के बाद लोगों को पता चलता है कि नेताओं ने उन्हें मूर्ख बना दिया।

लोमड़ी ने मुर्गे को मूर्ख बनाया और…

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फूल डे यानी मूर्ख दिवस 1 अप्रैल को मनाने की परंपरा यूरोप से भारत आई और सारी दुनिया में फैल गई। कहते हैं सन 1392 में फ्रांसीसी लेखक ज्योंफ्री चासर ने ‘कैंटरवरी टेल्स’ नामक कहानियों की किताब लिखी थी। जिसमें ‘फीस्ट आफ नन’ में एक लोमड़ी मुर्गे को मूर्ख बनाती है। तभी से लोग मूर्ख दिवस मनाने लगे। दूसरी कथा के अनुसार किंग रिजल्ट सेकंड ने बोहेमिया कीनी से शादी की थी। लोगों ने उनकी शादी की तारीख 32 मार्च बताई। चूंकि मार्च में 32 तारीख नहीं होती इसलिए 1 अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य कथा के अनुसार 25 मार्च से रोमन कैलेंडर शुरू होता था। नया वर्ष शुरू होता था। भारत का नया वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है। बाद में सन 1582 में पोप ने एक जनवरी से रोमन नववर्ष की शुरुआत प्रारंभ की। तब यूरोपीय देशों में कुछ लोग 1 जनवरी से नया वर्ष मनाते थे और कुछ लोग 25 मार्च को नया वर्ष मनाते थे। जो लोग 25 मार्च को नया वर्ष मनाते थे उन्हें मूर्ख कहा जाता था। 25 मार्च से 1 अप्रैल तक नए वर्ष की छुट्टी होती थी। इस कारण 1 अप्रैल को अप्रैल फूल डे यानी मूर्ख दिवस मनाया जाने लगा।
आज पूरी दुनिया में फर्स्ट अप्रैल को फुल डे मनाया जाता है। अब ना तो कोई मूर्ख बनना चाहता है और ना मूर्ख बनाना चाहता है फिर भी अनेक लोग एक दूसरे को मूर्ख बनाते हैं। फर्स्ट अप्रैल के दिन जिसको मूर्ख बनाया जाता है वह बुरा नहीं मानता। मूर्ख बनाए जाने पर लोग नाराज ना हों और विवाद न हो जाए इसका ख्याल रखा जाता है।

अप्रैल फूल बनाया

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भारत में प्राचीन कथाओं में एक कथा है कि एक लोमड़ी ने अपने मित्र सारस को खीर खाने का न्योता दिया था और थाल में खीर परोस कर खुद सारी खीर खा गई थी और चोंच वाला सारस कुछ ही खीर के खा पाया था। सारस ने धूर्त लोमड़ी को सबक सिखाया और खीर खाने लोमड़ी को अपने घर बुलाया। सारस ने सुराही में खीर बनाई जिसे लोमड़ी खा ही नहीं पाई और सारी खीर सारस खा गया। इस तरह पहले लोमड़ी ने सारस को और फिर सारस ने लोमड़ी को मूर्ख बनाया था।
सन 1515 में जर्मनी के लिले हवाई अड्डे पर एक बड़ा सा बम देखा गया। बम देखकर लोग इधर-उधर भागने लगे पर बहुत देर बाद जब बम नहीं फटा तो फिर लोग उसके पास आए तो देखा वह एक बड़ा सा फुटबाल था जिस पर- अप्रैल फूल बनाया- लिखा हुआ था।

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दुनिया में जब से अप्रैल फूल मनाने की परंपरा शुरू हुई है न जाने कितने लोग मूर्ख बने हैं और बनाए गए हैं। हर साल अप्रैल फूल डे के किस्से पता चलते रहते हैं। कुछ देशों में तो कागज की मछली बनाकर किसी व्यक्ति के पीठ में चिपका दी जाती है और उसे पता भी नहीं चलता। जब लोग अप्रैल फूल कहते हैं- तब पता चलता है कि वह अप्रैल फूल बन गया। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में 1 अप्रैल को दोपहर तक ही फूल डे मनाने की परंपरा है। दोपहर के बाद मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। अंग्रेजी के कई अखबार अप्रैल फूल डे पर अपने विशेषांक भी निकालते हैं। भारत में होली पर पत्र पत्रिकाएं अपने विशेषांक निकालती रही हैं। रेडियो टेलीविजन चैनलों पर होली के कार्यक्रम खूब होते हैं। पर अप्रैल फूल बनाने के कार्यक्रम भारत में सार्वजनिक तौर पर नहीं किए जाते हैं। यद्यपि बाजारों दफ्तरों और घरों में एक दूसरे को मूर्ख बना कर लोग आनंदित होते हैं।

जीवन से विलुप्त होती जा रही हंसी

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19वीं शताब्दी में भारत में अप्रैल फूल बनाने की परंपरा शुरू हुई। कुछ भारतीय साहित्यकार, कवि, लेखक मूर्ख दिवस अपनी तरह से मनाते हैं। घोघा बसंत, टोपा सम्मेलन, गदहा सम्मेलन 1 अप्रैल के आसपास ही किए जाते हैं जिनमें हास्यमयी उपाधियां दी जाती हैं। वरिष्ठ पत्रकार और कवि श्याम कुमार करीब बीस इक्कीस सालों से अलग-अलग शहरों में गदहा सम्मेलन कराते आए हैं, जो बहुत लोकप्रिय हुए हैं। लोग एक दूसरे के नाम के आगे हास्य रस प्रधान उपाधियां लिखकर रात में लोगों के घरों के दरवाजे पर चिपका आते हैं और सुबह लोग ठहाका मार कर हंसते हैं।
दूसरे को मूर्ख बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसे मूर्ख बनाया गया है वह बुरा ना माने और उसे शुद्ध हास्य मानकर मौज ले- तभी मूर्ख दिवस की सार्थकता है। आज दिनो-दिन निराशा, हताशा, अवसाद, विषाद, संत्रास बढ़ते जा रहे हैं। लोगों के जीवन से हंसी विलुप्त होती जा रही है। कई जगह तो हास्य योग चलाया जाता है ताकि लोग खुलकर हंस सकें और अनेक रोगों से निजात पा सकें। हंसी एक संजीवनी औषधि है जो निशुल्क मिलती है पर दुर्लभ होती जा रही है।