लोकतंत्र पसन्दीदा व्यवस्था नहीं, अराजकता है स्वभाव।
प्रमोद जोशी।
पिछले 75 साल से पाकिस्तान को एक ऐसी लोकतांत्रिक सरकार का इंतजार है, जो पाँच साल चले। 75 साल में बमुश्किल 23 साल चले जम्हूरी निज़ाम में वहाँ 28 वज़ीरे आज़म हुए हैं। अब जो नए बनेंगे, वे 29 वें होंगे। इमरान सवा साल और अपना कार्यकाल पूरा कर लेते तो ऐसा कर पाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री होते।
डगर कठिन
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां की हत्या हुई। उनके बाद आए सर ख्वाजा नजीमुद्दीन बर्खास्त हुए। फिर आए मोहम्मद अली बोगड़ा। वे भी बर्खास्त हुए। 1957-58 तक आने-जाने की लाइन लगी रही।
वास्तव में पाकिस्तान में पहले लोकतांत्रिक चुनाव सन 1970 में हुए। पर उन चुनावों से देश में लोकतांत्रिक सरकार बनने के बजाय देश का विभाजन हो गया और बांग्लादेश नाम से एक नया देश बन गया।
कट्टरपंथी हवाओं का श्रेय जिया उल हक को
सन 1973 में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि शायद अब देश का लोकतंत्र ढर्रे पर आएगा। ऐसा नहीं हुआ। सन 1977में जनरल जिया-उल-हक ने न केवल सत्ता पर कब्जा किया, बल्कि ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को फाँसी पर भी चढ़वाया। आज पाकिस्तान में जो कट्टरपंथी हवाएं चल रहीं हैं, उनका श्रेय जिया-उल-हक को जाता है। देश को धीरे-धीरे धार्मिक कट्टरपंथ की ओर ले जाने में उस दौर का सबसे बड़ा योगदान है।
लोकतांत्रिक बनाम फौजी सरकार
पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि वहाँ जब भी लोकतंत्र आया तो उसे चलने नहीं दिया गया। इसके विपरीत जितनी बार वहाँ फौजी सरकार आई न्यायपालिका ने उसे कभी गैर-कानूनी नहीं बताया। युसुफ रज़ा गिलानी को पद से हटाने का आदेश देने वाली अदालत में मुख्य न्यायाधीश इफ्तिकार चौधरी समेत अनेक जज ऐसे थे, जिन्होंने परवेज़ मुशर्रफ की फौजी सरकार को वैधानिक करार दिया था।
लोकतंत्र को गलत छोर से पकड़ा
पाकिस्तानी समाज ने शुरू से ही लोकतंत्र को गलत छोर से पकड़ा। यों भी माना जाता है कि यह अंग्रेजी-राज की व्यवस्था है, हम इसे लोकतंत्र मानते ही नहीं। लोकतंत्र वहाँ की पसंदीदा व्यवस्था नहीं है और अराजकता वहाँ का स्वभाव है।
इस समय भी देखें, तो वहाँ बड़ी संख्या में लोग संसद के बहुमत और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महत्वपूर्ण मान ही नहीं रहे हैं। उन्हें लगता है कि सब बिक चुके हैं और इमरान खान को हटाने के पीछे अमेरिका का हाथ है। नई सरकार को ‘इम्पोर्टेड सरकार’ का दर्जा दिया गया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से)