वो तीन मुद्दे जिन्हें बाबा साहेब ने बताया हिंदू-मुस्लिमों के बीच झगड़े की असल वजह।
प्रदीप सिंह।
देश के अलग-अलग राज्यों में रामनवमी के मौके पर निकले धार्मिक जुलूसों पर हमला हुआ। मध्य-प्रदेश के खरगोन में हुआ, गुजरात के हिम्मतनगर, खमबाटा और गांधीनगर में हुआ और झारखंड के लोहरदग्गा में हुआ। केवल जुलूस पर पथराव ही नहीं हुआ बल्कि उसके बाद मंदिरों में भी तोड़फोड़ की गई।इससे पहले हिंदू कैलेंडर के नव वर्ष के मौके पर राजस्थान के करौली में हमला हो चुका है। यह कोई नई घटना नहीं है। यह पहली बार नहीं हो रही है- और न आखिरी है। हिंदू त्योहारों के समय यह आम बात है- चाहे वह दुर्गा पूजा के समय दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन हो, सरस्वती पूजा का मौका हो या गणेश चतुर्थी का।
धार्मिक जुलूसों पर हमला क्यों
हिंदुओं का जो धार्मिक जुलूस निकलता है उसमें गाने बजते हैं। अगर वह मस्जिद के आसपास से या मुस्लिम आबादी वाले इलाके के आसपास से या उसके बीच से निकलता है तो उस पर हमला होता ही है।यह सिलसिला कम से कम सौ सालों से चल रहा है और आने वाले अगले सौ-दो सौ सालों तक चलता रहेगा। यह नहीं रुकने वाला है क्योंकि मुस्लिम समुदाय को पता है कि हिंदू डरपोक हैं, दबाव में आ जाते हैं। जिस देश की 80 फीसदी आबादी एक समुदाय की हो उसको अपने त्योहार मनाने की आजादी न हो, उसको अपने त्योहार पर खुशी मनाने की आजादी न हो, उसके लिए यह तय किया जाए कि किस इलाके से जुलूस निकलेगा और किस इलाके से नहीं। इतना ही नहीं, अगर हिंदू त्योहार के आसपास कोई मुस्लिम त्योहार है या इस तरह का उनका कोई आयोजन है तो उस समय हिंदुओं के कार्यक्रम को रोक दिया जाता है। यह किसी एक प्रदेश की बात नहीं है, देश के सभी प्रदेशों में ऐसा हो रहा है। उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल में यह रुका है। मैं फिर कह रहा हूं कि यह रुकने वाला नहीं है।
हिंदुओं की कमजोरी
यह जो कुछ हो रहा है वह हमारी आपकी कमजोरी के कारण हो रहा है। कमजोरी से मेरा मतलब यह नहीं है कि आप तलवार उठा लीजिए, हथियार उठा लीजिए या झगड़ा करना चाहिए। आप अपने अधिकार के प्रति सजग तो रहिए- उसके लिए खड़े तो रहिए- उसके लिए अडिग तो रहिए। और किसी से नहीं तो मुस्लिम समाज से ही सीखिए कि कैसे वे अपनी बात पर अड़ते हैं और उसको मनवाते हैं। जो भी राजनीतिक दल सत्ता में हो सब उसे मानने पर मजबूर होते हैं क्योंकि वह वोट बैंक है। आप वोट बैंक नहीं हैं और आपमें वह हिम्मत भी नहीं है। आप संगठित भी नहीं हैं। आप बंटे हुए हैं। बंटा हुए समाज का क्या होता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। रामनवमी पर जो कुछ हुआ अगर इस तरह की घटनाओं को सुनकर आपको दुख हुआ हो, तकलीफ हुई हो तो उसे छोड़ दीजिए। सोशल मीडिया पर आकर दुख जताना, गुस्सा जताना, गाली-गलौज करना- इससे कुछ नहीं होने वाला।
वो तीन मामले जिन पर होता है हिंदू-मुस्लिम तनाव
जब तक आप जमीन पर अपने पैर जमा कर खड़े नहीं होंगे तब तक कुछ नहीं होने वाला। यह बात मैं नहीं कह रहा हूं। यह बात आज से कम से कम पांच दशक पहले देश के संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कही थी। उनकी किताब है “पाकिस्तान एंड पार्टीशन ऑफ इंडिया”। उसमें उन्होंने लिखा है कि 20वीं सदी के पहले दो दशक और उसके बाद से- तीन मुद्दों पर हिंदू-मुस्लिम के बीच तनाव होता रहा है- दंगे होते रहे हैं। अपनी किताब में उन्होंने जो लिखा उससे ऐसा लगता है कि आज की परिस्थिति, आज के वातावरण को देखकर कोई यह बात कह रहा है।
इन तीन मुद्दों में से पहला है गौ हत्या। गौ हत्या का हिंदू विरोध करते हैं इसलिए मुसलमान गौ हत्या करता है। हज करने जाने वाला कोई भी हज यात्री वहां जाकर गाय की बलि नहीं देता है लेकिन हिंदुस्तान में गाय की बलि दी जाएगी। कुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय की बलि दी जानी चाहिए, इसके बावजूद दी जाती है।
दूसरा मुद्दा उन्होंने बताया जिसकी चर्चा मैंने ऊपर की है कि मस्जिद के सामने से या मुस्लिम इलाके से धार्मिक जुलूस निकालना और उसमें संगीत बजाना- यह मुसलमानों को पसंद नहीं है। इसलिए आप देखिए कि जिला प्रशासन से लेकर नीचे तक और राज्यों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक इस बात की कोशिश होती है कि जो वैकल्पिक रूट हैं वहां से डायवर्ट करके जुलूस को ले जाया जाए। अगर कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं है और मुस्लिम इलाके से जुलूस को गुजरना ही है तो उस समय कोई नारा नहीं लगेगा, कोई संगीत नहीं बजेगा, चुपचाप निकल जाए तो शायद हमला न हो। इस बात का पुलिस बंदोबस्त किया जाता है। इस शर्त पर जुलूस निकालने की मंजूरी मिलती है।
नजीर बन सकता है मद्रास हाई कोर्ट का फैसला
धार्मिक जुलूस निकालने पर मद्रास हाई कोर्ट का एक फैसला आया है। इस मुद्दे पर सुधार के कदम उठाने वाला यह इतना बड़ा फैसला है कि इस फैसले के आधार पर देश में कानून बनना चाहिए। मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में बड़े साफ तौर पर कहा कि अगर इस तरह की मांगों को तरजीह दी गई, इस तरह की मांगें मानी गईं तो आप मान कर चलिए कि देश को अराजकता में जाने से कोई रोक नहीं सकता। हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया तमिलनाडु के एक छोटे से इलाके के मामले को लेकर, जहां 90 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है। वहां कुछ हिंदू रहते हैं। साल में दो बार उनके समारोह होते हैं। उस दौरान वे गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकालते हैं। जुलूस निकालने पर प्रशासन ने रोक लगा दी। इसके समर्थन में मुसलमान कोर्ट चले गए और स्थायी रूप से इस पर रोक लगाने की कोर्ट से मांग की। उनकी इस मांग को खारिज करते हुए अदालत ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि उस कस्बे का धार्मिक जुलूस हर उस इलाके से गुजरेगा जहां मस्जिद है। जुलूस में संगीत बजेगा और गाना बजाने से कोई रोकेगा नहीं। साल में जितनी बार उनका समारोह होगा- हर बार ऐसा करना होगा।
लेकिन ऐसा क्यों होता है कि जुलूस निकलता है तो उस पर हमला जरूर होता है, यह कौन सी मानसिकता है। अभी रोजा चल रहा है। रामनवमी के मौके पर रोजेदारों ने हमला किया। हमला करने वाले अक्सर वे लोग होते हैं जो धर्म को मानने की बात करते हैं, जो ईमानदार मुसलमान होने की बात करते हैं। ये लोग इसलिए जुलूस पर पथराव करते हैं कि उसमें गाना बजता है। यह उनको पसंद नहीं है, इसलिए नहीं बजना चाहिए। और कोई आपत्ति नहीं है उनको। उनकी आपत्ति यही होती है कि हिंदुओं का जुलूस निकालना उन्हें पसंद नहीं है- हिंदुओं की मांग कि गौ हत्या नहीं होनी चाहिए यह उन्हें पसंद नहीं है।
धर्म परिवर्तन
तनाव का तीसरा मुद्दा जो डॉ. अंबेडकर ने बताया वह धर्म परिवर्तन का है। धर्म परिवर्तन हिंदू-मुस्लिम संबंध के बीच की सबसे बड़ी समस्या है। इन तीनों बातों को उन्होंने समस्या बताया और उनका निष्कर्ष आप जानेंगे तो आप चौंक जाएंगे। अगर आपने इस बारे में उनके विचार को पहले से पढ़ा है तो आपको पता होगा। डॉ. अंबेडकर ने कहा कि इन तीनों मुद्दों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि हिंदू और मुसलमानों का देश अलग-अलग होना चाहिए। ये कभी एक साथ नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि 1926 से लगातार दंगे होते रहे हैं इन मुद्दों पर। उन्होंने पश्चिम बंगाल का उदाहरण दिया। वहां धार्मिक जुलूस मस्जिद के पास से गुजरा तो उस पर हमला हो गया- 14 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए। इसी तरह के दंगे पंजाब में हुए, यूनाइटेड प्रोविंस में हुए। यह सिलसिला तब से चल रहा है और आज तक रुका नहीं है। इसकी वजह उन्होंने यह बताई कि दरअसल मुसलमान हिंदुओं की कमजोरी का फायदा उठाते हैं।जिस बात पर हिंदू ऐतराज जताते हैं उसी पर मुसलमान जोर देते हैं। हिंदुओं की मांग को मानने को वह तब तैयार होते हैं जब हिंदू उनको बहुत सारी छूट देने को तैयार होते हैं। यह जो मानसिकता है कि पहले हमारी मांग इतनी थी- अब यह हो गई- यह पिछले 100 साल से चल रहा है। यह कोई सुनी सुनाई बात नहीं है बल्कि संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर के शब्द हैं जो उन्होंने अपनी किताब में लिखे हैं।
जो इस्लामिक देशों में नहीं होता वो होता है भारत में
एक दूसरा उदाहरण देते हुए डॉ. अंबेडकर ने कहा कि जितने भी इस्लामिक देश हैं उनमें कहीं भी ऐसा नहीं है की मस्जिद के बाहर कोई संगीत नहीं बज सकता। वहां उस पर कोई रोक नहीं है लेकिन सिर्फ भारत में ऐसा होता है। क्यों होता है? इसलिए कि हिंदू ऐसा चाहते हैं। और हिंदू ऐसा चाहते हैं तो उसका विरोध होना चाहिए… उसका विरोध होगा तो सरकार झुकेगी। यह सिलसिला पिछले 75 साल से देख रहे हैं। ऐसी मांग होती है और सरकार उस पर झुकती है। बात यहीं तक नहीं है। मुसलमानों को तो बिल्कुल दोष नहीं देना चाहिए। इसके लिए दोषी सिर्फ और सिर्फ हिंदू हैं। सेक्युलर हिंदू क्या बोल रहे हैं आप उस पर ध्यान दीजिए। आपकी समस्या की जड़ वहां है- मुसलमान नहीं हैं। ऐसे हिन्दुओं की बड़ी तादाद है। किसी का नाम नहीं लेना चाह रहा मैं। वो कह रहे हैं कि यह सब जो हो रहा है यह हिंदुओं की वजह से हो रहा है। आखिर मस्जिद के सामने से हिंदू जुलूस क्यों ले जाते हैं? गाना क्यों बजाते हैं? ऐसा करेंगे तो उनके साथ वही होगा जो हो रहा है। इस तरह की बात मुस्लिम समाज से कम से कम सार्वजनिक रूप से नहीं आई… मन में उनके भले ही हो- वे कर भी रहे हैं- लेकिन इसको जस्टिफिकेशन मिल रहा है सेक्युलर और लिबरल हिंदुओं से। वे कह रहे हैं कि आप जाइए ही मत।
यह सिलसिला देखिए। हर मामले में जहां हिंदू पीड़ित है वहां उसी को जिम्मेदार ठहराया जाता है। वो चाहे कश्मीरी पंडितों का मामला हो, गोधरा कांड की बात कर लीजिए- यही कहा जाता है कि वे खुद ही जिम्मेदार हैं। आप कोई भी मुद्दा उठाकर देख लीजिए। 1993 का मुंबई का दंगा देख लीजिए- कहा गया कि अयोध्या में विवादित ढांचा गिर गया इसलिए हुआ यह दंगा। हर दंगे का एक जस्टिफिकेशन आता है- और वह सबसे पहले आता है सेक्युलर हिंदुओं की ओर से। इस समय यह नैरेटिव बनाया जा रहा है कि देश में मुसलमानों पर बड़ा अत्याचार हो रहा है। अगर इस देश को बचाना है तो मुसलमानों को बचाना होगा।अब आप समझिए कि आप कहां खड़े हैं, किस स्थिति में हैं और आपकी हालत क्या है। अगर आपको अपने बारे में, अपने भविष्य के बारे में, अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना है तो पहले आपको इन सेक्युलर हिंदुओं का विरोध करना चाहिए। जब तक आप इनका विरोध नहीं करेंगे तब तक आपका रास्ता नहीं खुलेगा। मांग पर अड़ जाने के बाद कंसेशन देने की जो आदत है, उसने एक देश बनवा दिया। अगर अभी भी हम यही करते रहे तो देश के कई टुकड़े होंगे। देश उसी ओर बढ़ रहा है। जिस तरह से ये घटनाएं हो रही हैं उसकी एक पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। यह कब तक होगा किसी को नहीं पता- लेकिन हम निश्चित रूप से उसी दिशा में बढ़ रहे हैं। अगर हम खुद नहीं सुधरे तो फिर टूटने के लिए तैयार रहें।