भड़भूंजे की भट्टी बने गांव शहर खेत खलिहान।
शिवचरण चौहान।
पूरे उत्तर भारत में सूरज अंगारे बरसा रहा है। गांव शहर खेत खलिहान सब भड़भूंजे की भट्टी बने हुए हैं। अप्रैल जाते जाते पारा 45-46 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया है। ऊपर से बिजली कटौती कोढ़ में खाज साबित हो रही है। उत्तर भारत में लू चल रही है । फिल्म का एक गीत याद आ रहा है- घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही रस्ते में है उसका घर। …अब उसका घर कितनी दूर है यह तो पता नहीं किंतु रास्ते में ही लू का कडा पहरा लगा है। जो घर से बाहर निकला उसके गाल पर लू के गरम तमाचे पड़ना तय है।
दक्षिण भारत की भी हालत ठीक नहीं है। सन 1901 के बाद से इतनी गर्मी कभी नहीं पड़ी जितने 2022 में मार्च से अप्रैल तक पड़ी है। रात में 3 बजे का तापमान भी 30 से 32 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं आ रहा है। आधा वैशाख बीत गया। वैशाख की अमावस्या भी बीत गई, सूर्य ग्रहण भी हो गया- किंतु गर्मी में कोई अंतर नहीं आया।
लोहे के तवे जैसी तप रही धरती
नदी नाले तालाब जोहड, झीलें तक सूख गई हैं। ‘पंछी नदिया पवन के झोंके…’ एफएम पर बजता है तो चुभती जलती गर्मी की सांसत से मन को क्षण भर के लिए कुछ मानसिक राहत का अहसास होता है। हैंडपंप का पानी बहुत नीचे चला गया है और रिबोर किए जा रहे हैं ताकि हैंडपंप से पानी निकलता रहे। भूगर्भ जल सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों का कहना है कि जमीन के नीचे पानी का स्तर लगातार गिर रहा है- इस कारण यह समस्या विकराल होगी। सूरज में सौर तूफान आने की संभावना है। यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है।
पाकिस्तान से लेकर भारत तक सारी धरती लोहे के तवे जैसी तप रही है। दोपहर में गर्म हवाएं चल रही हैं। जीव जंतु बेहाल हैं। पंछी और जानवर छाया और पानी खोज रहे हैं। कहीं भी चैन नहीं मिल रहा। घरों में लगे पंखे और कूलर गर्मी के कारण हांफ़ रहे हैं। एसी राहत नहीं दे पा रहा है। लगता है अभी से मृगसिरा नक्षत्र आसमान में भ्रमण कर रहा। नौतपा तपा रहा है। लोक कवि घाघ याद आ रहे हैं- तपे नौतपा बिलखें चार। वन,बालक औ भैंस उखार।।
नौ दिन की भयंकर गर्मी का नाम है नौतपा। 15 दिन की गर्मी का नाम है मृगसिरा। इन दिनों इतनी भयंकर गर्मी पड़ती है कि जंगलों में आग लग जाती है। बच्चे (बालक ) रात दिन रोते रहते हैं। दूध देने वाली भैंस तालाब में लेटी रहती है और गन्ने के खेत जलने लगते हैं। केले की खेती सूख जाती है।
शत्रु भी भूल गए शत्रुता
ग्रीष्म ऋतु में जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो नौ दिन के नौतपा शुरू हो जाते हैं। रात में मृग ( हिरण) के सिर की तरह तारे आसमान में दिखाई देने लगते हैं। पशु पंछी जीव जंतु मनुष्य सभी बेहाल हो जाते हैं।
कविवर बिहारी लाल ने जेठ ( जून) की कड़ी धूप से परेशान होकर लिखा था- बैठी रही अति सघन बन/ पैठि सदन तन मांह। निरखि दुपहरी जेठ की/ छाहों चाहति छांह।।
छाया को जब गहरे वन में भी छाया नहीं मिली तो छाया मनुष्य के शरीर के भीतर बैठ गई। जेठ की दुपहरी इतनी जल रही है कि छांह भी छांव ढूंढ रही है।
बिहारी का दूसरा दोहा भी देखिए- कहलाने एकत बसत/ अहि,मयूर,मृग,बाघ। जगत तपोवन सों कियो/ दीरघ, दाघ, निदाघ ।।
प्रचंड गर्मी के चलते शत्रु भी अब शत्रुता भूल गए हैं। तभी तो सांप और मोर तथा हिरण और बाघ एक साथ एक ही वृक्ष की छाया के नीचे बैठे हैं। भीषण गर्मी ने उनसे शत्रुता भुलवा दी है।
कविवर बिहारी ने राजाओं से बहुत सा धन प्राप्त किया था। बिहारी राजाओं की तरह रहते थे और पालकी में चलते थे। उनके पंखा झलने के लिए एक दर्जन नौकर चाकर थे। फिर भी जेठ यानी जून की गर्मी से इतना परेशान हुए कि श्रृंगार सौंदर्य के दोहे लिखने वाला कवि भी गर्मी के कोप के दोहे लिखने लगा- कौन आज अब घर से निकले, लू के चांटे पड़ें करारे’ दोहे लिखने लगा।
तब जानेव बरखा के आशा
गर्मी होते ही इतनी प्रचंड है कि सभी इससे डरते हैं। बसंत के बाद वैशाख और जेठ के दो महीने ग्रीष्म ऋतु के होते हैं। इन दो महीनों में एक-एक दिन काटना बहुत मुश्किल हो जाता है। शरीर से पसीना बहता है- कंठ सूख जाता है- और तन पर घमौरियां निकल आती हैं। इसलिए ग्रीष्म में सावन की फुहारों की लोग कामना करते हैं।
किसानों के कवि घाघ ने लिखा है- जो जेठ में तपे निराशा। तब जानेव बरखा के आशा।।
यदि जेठ माह में यानी जून में नौतपा में भीषण गर्मी पड़े और मृगसिरा में एक बूंद भी पानी ना बरसे तो समझना चाहिए इस साल आषाढ़ में अच्छी बरसात होगी और किसान खुशहाल होगा।
बिगड़ा दुनिया का पर्यावरण
पिछले कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया का पर्यावरण बिगड़ा हुआ है। खतरनाक रूप से जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। कभी जाड़े में गर्मी और कभी गर्मी में जाड़ा पड़ने लगता है। फसल सिंचाई के समय मौसम सूखा निकल जाता है और फसल कटाई के समय झमाझम पानी बरसने लगता है। विश्व में जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम के कारण मनुष्य का जीवन खतरे में पड़ गया है। पिछले कई वर्षों से अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में बहुत ज्यादा तूफान आने लगे हैं। ये तूफान मनुष्य के लिए खतरे का संकेत हैं। कभी इतनी अधिक ठंड पड़ती है कि लगता है हिमयुग आ गया और कभी इतना पानी बरसता है कि बादल फट जाते हैं। तो कभी प्रचंड गर्मी के कारण आसमान से आग बरसने लगती है।
दरवाजे तक आ पहुंचा विनाश…
ऋतु चक्र के कारण ही भारत में छह ऋतुएं होती हैं। अब ऋतु चक्र में बहुत बदलाव होने लगे हैं। हमारी हवा और पानी विषैला हो गया है। हम कृत्रिम ऑक्सीजन और बोतलबंद पानी पर आश्रित हो गए हैं। यह मनुष्य जीवन के लिए खतरनाक संकेत है। जलवायु परिवर्तन के कारण ही महमारियां आती हैं। मनुष्य ने विकास के कारण अपने लिए विनाश के रास्ते खोल लिए हैं। दुनिया की सरकारें जलवायु परिवर्तन के कारण बहुत चिंतित हैं। रूस और यूक्रेन का युद्ध भी जलवायु बिगाड़ रहा है। अब सरकार को ही नहीं हमें सबको जलवायु परिवर्तन के खतरनाक संकेतों को समझ लेना चाहिए और अभी से ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे हमारा पर्यावरण सही रहे और जलवायु परिवर्तन ना हो। अगर ऋतु चक्र कायम रहेगा तो हम आप, जीव जंतु और सारी दुनिया सुरक्षित है… वरना विनाश तो दुनिया के दरवाजे तक आ ही गया है। हमें अब जागना होगा, सावधान रहना होगा और कुछ करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)