डॉ. संतोष कुमार तिवारी।

गीता प्रेस की मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ का प्रत्येक वर्ष के प्रारम्भ में एक विशेषांक निकलता है। इस विशेषांक की पाठकों को प्रतीक्षा रहती है। ‘कल्याण’ का वर्ष 2023 का विशेषांक है: दैवी सम्पदा अंक। ‘कल्याण’ के प्रत्येक विशेषांक तथा अन्य साधारण अंकों में सत्य और आध्यात्म की अनुभूति होती है।

वर्ष 1926 में ‘कल्याण’ का प्रकाशन शुरू हुआ था। तब से अब तक विभिन्न विषयों पर विशेषांक निकल चुके हैं।  इनमें से पचास से अधिक ऐसे विशेषांक हैं जिनकी मांग आज भी लगातार बनी रहती है, और समय-समय पर इनका पुनर्मुद्रण किया जाता है। ‘कल्याण’ के 75 वर्ष पूरे होने पर वर्ष 2001 में निकाले गए विशेषांक का विषय था: आरोग्य अंक। तब से अब तक अरोग्य अंक 27 बार पुनर्मुद्रित हो चुका है। आरोग्य अंक का संवर्धित संस्करण आठ सौ पृष्ठों से अधिक का है। वर्ष 1954 में प्रकाशित  संक्षिप्त-नारद-विष्णुपुराण अंक भी आठ सौ पृष्ठों का था।

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‘कल्याण’ के लगभग सभी विशेषांक पाँच सौ या उससे अधिक पृष्ठों के हैं। जैसे कि 1948 में निकाला गया नारी अंक लगभग  आठ सौ  पृष्ठों  का था। पहली बार जब यह प्रकाशित हुआ था तब इसकी एक लाख छह हजार प्रतियाँ छपी थीं।  बाद में अब तक नारी अंक 17 बार पुनर्मुद्रित हो चुका है।

आज के इंटरनेट, मोबाइल और सोशल मीडिया के युग में गंभीर पाठकों की संख्या तेजी से घटी है, फिर भी ‘कल्याण’ की मांग लगातार बनी हुई है। इस बात से यह पता चलता है की अब भी गम्भीर पाठकों की एक अच्छी ख़ासी संख्या है।

दैवी सम्पदा की चर्चा श्रीमद्भगवद्गीता में की गयी है

दैवी और आसुरी सम्पदा की चर्चा श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 16 में की गयी है। दैवी सम्पदा के 26 प्रमुख गुण हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 16 में कुल 24 श्लोक हैं।

श्रीभगवानुवाच
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति: ।

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥16.1॥

भावार्थ:

श्री भगवान बोले- भय का सर्वथा अभाव अर्थात निर्भयता, अन्तःकरण अर्थात मन की शुद्धता, ज्ञान के लिये योग में दृढ़ स्थिति, सात्त्विक दान, इन्द्रियों को वश में रखना, यज्ञ, स्वाध्याय, कर्तव्य-पालन के लिये कष्ट सहना और शरीर-मन-वाणी की सरलता।॥16.1॥

 

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्याग: शान्तिरपैशुनम्।

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम् ॥16.2

भावार्थ:

अहिंसा, सत्यभाषण, क्रोध न करना, अन्तःकरण में राग-द्वेष न होना, चुगली न करना, प्राणियों पर दया करना, सांसारिक विषयों में न ललचाना, अन्तःकरण की कोमलता, अकर्तव्य करने में लज्जा, कपालता का अभाव। ॥16.2॥

तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहो नातिमानिता ।

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥16.3

भावार्थ:

तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धि, वैर-भाव का न होना और सम्मान को न चाहना अर्थात इस चक्कर में न रहना कि लोग आपका सम्मान करें (किसी भी प्रकार के सम्मान पाने से दूर रहना); हे अर्जुन! ये सभी दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं। ॥16.3॥

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च ।

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ॥16.4॥

भावार्थ:

हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा वाले व्यक्ति के लक्षण हैं॥16.4॥

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।

मा शुच: सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥16.5॥

भावार्थ:

दैवी सम्पत्ति मनुष्य को निर्भयता और मुक्ति प्रदान करराती है। आसुरी सम्पत्ति उसको डर, चिन्ता और बन्धन में जकड़ती है। हे पाण्डव! तुम दैवी-सम्पत्ति को प्राप्त हुए हो, इसलिये तुम कोई शोक (चिन्ता) मत करो।॥16.5॥

स्वामी रामसुखदसजी के विचार

 

स्वामी रामसुखदसजी (1904-2005) अपनी पुस्तक ‘गीता प्रबोधनी’ में लिखते हैं कि जीव के एक ओर भगवान हैं और दूसरी ओर संसार है। जब वह भगवान के सम्मुख होता है तब उसमें दैवी-सम्पत्ति आती है और जब वह संसार के सम्मुख होता है तब उसमें आसुरी-सम्पत्ति आती है।

दूसरों के सुख के लिये कर्म करना अथवा दूसरों का सुख चाहना ‘चेतनता’ है, और अपने सुख के लिये कर्म करना अथवा अपने लिये सुख चाहना, ‘जड़ता’ है। भजन-ध्यान भी अपने सुख के लिये करना, अपने लिये सम्मान-आदर प्राप्त करने के लिये करना ‘जड़ता’ है। ‘चेतनता’ से दैवी-सम्पत्ति आती है और ‘जड़ता’ से आसुरी-सम्पत्ति आती है।

स्वामी रामसुखदसजी अपनी पुस्तक ‘गीता प्रबोधनी’ में आगे लिखते हैं कि अभिमान आसुरी-सम्पत्ति का मूल है। अभिमान के कारण मनुष्य को दूसरों की अपेक्षा अपने में विशेषताएं दीखने लगती हैं-यह आसुरी-सम्पत्ति है। अभिमान होने के कारण दैवी-सम्पत्ति भी आसुरी-सम्पत्ति की वृद्धि करने वाली बन जाती है।

सोलहवां अध्याय संक्षेप में

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संक्षेप में कहें तो श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय के पहले से तीसरे श्लोक तक दैवी सम्पदा प्राप्त व्यक्तियों  के लक्षणों की चर्चा है। पाँचवें में दैवी सम्पदा मुक्ति-मार्ग और आसुरी को बन्धन-मार्ग  बतलाया गया है; साथ ही अर्जुन को दैवी सम्पदा से युक्त पुरुष कहा गया है। सातवें से बीसवें श्लोक तक आसुरी प्रकृति वाले व्यक्तियों  के  दुर्गुण, दुराचार और उनकी दुर्गति का वर्णन है। इक्कीसवें श्लोक में आसुरी सम्पदा का मुख्य कारण  काम, क्रोध और लोभ को बतलाया गया है। बाईसवें श्लोक में काम क्रोध और लोभ से छूटे हुए साधक को निष्काम भाव से दैवी सम्पदा के साधनों द्वारा परमगति की प्राप्ति बतायी गयी है। तेईसवें श्लोक में कहा गया है कि जो पुरुष शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है वह न तो सिद्धि को  प्राप्त होता है न परम गति को और न सुख को ही। चौबीसवें श्लोक में शास्त्रानुकूल कर्म करने की प्रेरणा दी गयी है।

‘कल्याण’ पत्रिका की शुरुआत कैसे हुई

दिल्ली में अप्रैल 1926 में आयोजित मारवाड़ी अग्रवाल सभा के आठवें अधिवेशन में घनश्यामदास बिड़ला (1894-1983) ने भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार (1892-1971) को अपने विचारों व सिद्धांतों पर आधारित एक पत्रिका निकालने की सलाह दी थी। गीताप्रेस के संस्थापक श्री जयदयाल गोयन्दका (1885-1965) की सहमति से 22 अप्रैल 1926 को इस पत्रिका का नाम ‘कल्याण’ रखना  निश्चित हुआ। इसी वर्ष भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार के सम्पादकत्व में ‘कल्याण’ का पहला अंक मुम्बई से प्रकाशित हुआ। दूसरे वर्ष में ‘कल्याण’ का विशेषांक भगवन्नाम अंक गोरखपुर से प्रकाशित हुआ। और तब से यह पत्रिका गीता प्रेस गोरखपुर से ही निकल रही है।

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‘कल्याण’ के विशेषांकों की सूची

1927 भगवन्नाम–अंक,  1928 भक्त-अंक, 1929 श्रीमद्भगवदगीता अंक,   1930 रामायणांक, 1931 श्रीकृष्णांक, 1932 ईश्वरांक, 1933 शिवांक,  1934 शक्ति-अंक, 1935 योगांक, 1936 वेदान्त-अंक, 1937 संत-अंक, 1938 मानस-अंक, 1939 गीता-तत्वांक, 1940 सधानांक, 1941 भगवतांक, 1942 संक्षिप्त महाभारतांक, 1943 संक्षिप्त वाल्मीकि-रामायणांक, 1944 संक्षिप्त पद्मपुराणांक, 1945 गो-अंक, 1946 संक्षिप्त मार्कन्डेय-ब्रह्मपुराणांक, 1947 संक्षिप्त ब्रह्मपुराणांक, 1948 नारी-अंक, 1949 उपनिषद्-अंक, 1950 हिन्दू-संस्कृति-अंक, 1951 संक्षिप्त स्कन्दपुराणांक, 1952 भक्त-चरितांक, 1953 बालक-अंक, 1954 संक्षिप्त-नारद-विष्णुपुराण अंक, 1955 संत-वाणी अंक, 1956 सत्कथा अंक, 1957 तीर्थांक, 1958 भक्ति-अंक, 1959 मानवता-अंक, 1960 संक्षिप्त देवीभागवत-अंक, 1961 संक्षिप्त योगवसिष्ठ-अंक, 1962 संक्षिप्त शिवपुराण अंक, 1963 संक्षिप्त ब्रह्म वैवर्त्त पुराण अंक, 1964 श्रीकृष्ण-वचनामृत अंक, 1965 श्री भगवन्नाम-महिमा और प्रार्थनांक, 1966 धर्मांक, 1967 श्री रामवचनामृत अंक , 1968 उपासना-अंक, 1969 परलोक और पुनर्जन्मांक, 1970 अग्निपुराण अंक, 1971 गर्ग संहिता अंक, 1972 श्रीराम अंक, 1973 श्रीविष्णु-अंक, 1974 श्री गणेश-अंक, 1975 हनुमान-अंक, 1976 श्रीभगवत्कृपा-अंक , 1977 संक्षिप्त वाराह पुराण, 1978 सदाचार अंक, 1979 श्री सूर्यांक, 1980 निष्काम कर्मयोग अंक, 1981 भगवतत्वांक, 1982 वामन पुराण (सानुवाद), 1983 चरित्र निर्माण अंक, 1984 मत्स्यपुराणांक (पूर्वार्ध), 1985 मत्स्यपुराणांक (उत्तरार्ध), 1986 संकीर्तनांक, 1987 शक्ति-उपासना-अंक, 1988 शिक्षा-अंक, 1989 पुराण-कथांक, 1990 देवतांक, 1991 योगत्वांक, 1992 संक्षिप्त भविष्य-पुराण, 1993 शिवोपासनांक, 1994 श्रीरामभक्ति-अंक, 1995 गोसेवा-अंक, 1996 धर्मशास्त्रांक, 1997 कूर्मपुराण (सानुवाद), 1998 भगवल्लीला-अंक 1999 वेद-कथांक,  2000 संक्षिप्त गरुड़ पुराण, 2001 आरोग्य अंक (संवर्धित संस्करण), 2002 नीतिसार-अंक, 2003 भगवत्प्रेम-अंक, 2004 व्रतपर्वोत्सव-अंक, 2005 देवीपुराण (महाभागवत) शक्तिपीठांक, 2006 संस्कार-अंक, 2007 अवतार-कथांक, 2008 देवीभागवतांक  (पूर्वार्ध), 2009, देवीभागवतांक (उत्तरार्ध), 2010 जीवनचर्या अंक, 2011 दान-महिमा अंक, 2012 लिंगमहापुराणांक, 2013 भक्तमाल अंक, 2014 ज्योतिषतत्वांक, 2015 सेवा अंक, 2016 गंगा अंक, 2017 शिवमहापुराण अंक (पूर्वार्ध), 2018 शिवमहापुराण अंक (उत्तरार्ध), 2019 श्री राधामधाव अंक, 2020 बोध कथा अंक, 2021 श्री गणेशपुराण अंक , 2022 कृपानुभूति अंक । 

महात्मा गांधी के साथ आत्मीय संबंध

महात्मा गांधी (1869-1948) के साथ श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ‘भाईजी’ के आत्मीय संबंध थे। बापू के सुझाव को मानते हुए ‘कल्याण’ में कभी कोई बाहरी विज्ञापन नहीं छापा जाता है।

वर्ष 1927 में ‘कल्याण’ का जब भगवन्नामांक निकलने वाला था, तब महात्मा गांधी के बारे में एक  प्रसंग भाई जी ने लिखा है:

सेठ जमनालालजी को लेकर मैं बापू के पास गया, रामनाम पर कुछ लिखवाने के लिये। बापूने हँसकर कहा – ‘जमनालालजी को साथ क्यों लाये हो। क्या मैं इनकी सिफ़ारिश मान कर लिख दूँगा। तुम अकेले ही क्यों नहीं आये?’ सेठजी मुस्कराये। मैंने कहा – ‘बापूजी, बात तो सच है, मैं इनको इसीलिये लाया था की आप लिख ही दें।‘ बापू हंसकर बोले, ‘अच्छा इस बार माफ करता हूँ, आइन्दा ऐसा अविश्वास मत करना। फिर कलम उठायी और तुरंत नीचे संदेश लिख दिया –

‘नाम की महिमा के बारे में तुलसीदासजी ने कुछ भी कहने को बाकी नहीं रक्खा है। द्वादश मन्त्र, अष्टाक्षर इत्यादि सब इस मोहजाल में फंसे हुए मनुष्य के लिये शान्तिप्रद हैं। इसमें कुछ भी शंका नहीं है। जिससे जिसको शान्ति मिले, उस मन्त्र पर वह निर्भर रहे। परन्तु जिसको शान्ति का अनुभव ही नहीं है और शान्ति की खोज में है, उसको तो अवश्य राम-नाम पारसमणि बन सकता है। ईश्वर के सहस्त्र नाम कहे जाते हैं, इसका अर्थ यह है की उसके नाम अनन्त है। इसी कारण ईश्वर नामातीत और गुणातीत भी है। परन्तु देहधारी के लिये नाम का सहारा अत्यावश्यक है और इस युग में मूढ़ और निरक्षर भी रामनामरूपी एकाक्षर मन्त्र का सहारा ले सकता है।  वस्तुत: ‘राम’ उच्चारण की दृष्टि से एकाक्षर ही है और ओंकार में और राम में कोई फर्क नहीं है। परन्तु नाम-महिमा बुद्धिवाद से सिद्ध नहीं हो सकी है, श्रद्धा से अनुभवसाध्य है।‘

(भाईजी: पावन स्मरण, द्वितीय संस्करण, गीतवाटिका प्रकाशन, गोरखपुर, पृष्ठ संख्या 542 से उद्धृत) 

अमिताभ बच्चन के पिताजी का पत्र

Harivansh Rai Bachchan Hindi Kavita Tab Rok Na Paaya Main Ansoo - जिसके पीछे पागल होकर मैं दौड़ा अपने जीवन-भर - हरिवंशराय बच्चन - Amar Ujala Kavya

‘कल्याण’ और गीता प्रेस की पुस्तकें अपनी प्रामाणिकता के लिए प्रसिद्ध है।

बिग बी अमिताभ बच्चन के पिताजी डॉ हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) जब राज्यसभा के सदस्य थे, तब उन्होंने 9 दिसंबर 1964 को श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ‘भाईजी’ को एक पत्र लिखा:

पूज्य भाईजी

चरणों में प्रणाम

आशा है आप स्वस्थ-प्रसन्न हैं। …

एक बात और पूछनी थी।

क्या गीता प्रेस से हनुमानजी का कोई जीवन चरित छपा है? … सुविधा से उत्तर दें। आशा है पूज्य बाई स्वस्थ हैं। उनके और आपके श्री चरणों में तेजी का और मेरा प्रणाम।

विनीत

हरिवंश राय बच्चन

बाद में वर्ष 1975 को कल्याण का हनुमान-अंक प्रकाशित हुआ।

(बच्चन जी का उपरोक्त पत्र श्री अच्युतानन्द मिश्र द्वारा संपादित पुस्तक ‘पत्रों में समय-संस्कृति’ के पृष्ठ संख्या 52 से उद्धृत है। प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन, दिल्ली)

 ‘कल्याण’ का वार्षिक शुल्क

gitapress.org की website पर ‘कल्याण’ का वार्षिक शुल्क 250 रुपये दिखाया गया है। इसमें विशेषांक तथा वर्ष के अन्य 11 साधारण अंकों का मूल्य और भारत में साधारण डाक से भेजने का खर्च शामिल है। जो ग्राहक भारत में रजिस्टर्ड पोस्ट से विशेषांक और साधारण अंक मंगाना चाहें उनके लिए उनके लिए यह वार्षिक शुल्क 450 रुपये है।

वर्ष 2023 का वार्षिक शुल्क अभी निर्धारित नहीं हुआ है।

सदस्यता शुल्क के लिए व्यवस्थापक, कल्याण कार्यालय, पो. गीता प्रेस, गोरखपुर – 273005 से सम्पर्क किया जा सकता है। Online सदस्यता हेतु gitapress.org पर Kalyan या Kalyan Subscription option पर क्लिक करें। Email: kalyan@gitapress.org फोन: 9235400242

अब ‘कल्याण’ के मासिक अंक  gitapress.org या book.gitapress.org पर नि:शुल्क भी पढ़े जा सकते हैं।

(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)