प्रदीप सिंह।
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किए हुए 8 साल हो गए हैं। उससे पहले वे 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। 20 साल किसी के भी जीवन में छोटा कालखंड नहीं होता। इसके बावजूद आज तक भारत का प्रबुद्ध वर्ग, जिसे लेफ्ट-लिबरल बिरादरी कहा जाता है- जो खुद को ईलीट, इस समाज का ड्राइवर, समाज का बौद्धिक वर्ग मानता है- उसने आज तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वीकार नहीं किया है। जब मैं स्वीकार करने की बात कर रहा हूं तो वोट या राजनीति की बात नहीं कर रहा हूं। देश के आम लोगों ने तो उन्हें हाथों-हाथ लिया है। जो उनकी लोकप्रियता है, विश्वसनीयता है, स्वीकार्यता है- वह एक तरह से अलग है। इसके अलावा दुनिया के बड़े-बड़े देशों में जो उनका सम्मान है- बड़े देशों से मेरा मतलब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली जैसे विकसित देशों से है- उन्हें हमारे देश का प्रबुद्धवर्ग हिकारत की नजर से देखता है।

इतना तवज्जो क्यों

उसको लगता है कि यह हो कैसे रहा है और हो क्यों रहा है। वह समझ ही नहीं पा रहा है कि ये विकसित देश जो वर्ल्ड लीडर्स हैं, नरेंद्र मोदी को इतना तवज्जो क्यों दे रहे हैं, उनकी इतनी पूछ क्यों है। यह किसी भी तरह से उनको स्वीकार नहीं है। स्वीकार करना तो दूर वे नफरत,हिकारत, विरोध,खीझ जितने भी नकारात्मक भाव आपके मन में आते हैं उन सब को जोड़ दीजिए और उसका जो संग्रह है वो उनके मन में है। एक छोटी सी ताजा घटना है जिससे आपको समझ में आएगा कि उनकी मानसिकता क्या है। प्रधानमंत्री अभी हाल ही में तीनदेशोंकी यात्रा से लौटे हैं जिसमें एक देश डेनमार्क भी था। डेनमार्क की महारानी ने उनके सम्मान में राजकीय भोज दिया। इससे जुड़ा एक छोटा वीडियो आया। उसमें दिख रहा है कि डेनमार्क की महारानी और नरेंद्र मोदी बैठे हुए हैं और उनके सामने की टेबल पर अलग-अलग तरह की कटलरी रखी हुई है। एक सज्जन हैं जो शायद महिला हैं, टि्वटर हैंडल पर उनके नाम से ऐसा ही लगता है। रूपा गुलाब नाम है उनका। उन्होंने जो कमेंट किया है वह इस देश केबुद्धिजीवी वर्ग का भाव है। उनके मन में जो नफरत है उसका प्रतीक है। रूपा गुलाब ने अपने ट्वीट में लिखा है कि यह जो टेबल पर कटलरी रखी हुई है उसका इस्तेमाल कैसे करना है, यह मोदी को पता है क्या?उनमें यह जोअहम का भाव है, श्रेष्ठता का भाव है, यह जो भाव है कि हम जानते हैं कि वेस्टर्न स्टाइल की चीजों का कैसे इस्तेमाल होता है, गांव से निकला हुआ एक गरीब आदमी, चाय बेचने वाला जिसकी मां बर्तन मांज कर अपना पेट पालती थी, बच्चे पालती थी, उसका बेटा क्या जानेगा कि कटलरी का इस्तेमाल कैसे होता है।

खुद को श्रेष्ठ समझने की मानसिकता

यह देश के प्रधानमंत्री, देश के सबसे लोकप्रिय नेता के बारे में देश के एक प्रबुद्ध नागरिक की राय है। ट्विटर हैंडल पर दिए अपने परिचय में उन्होंने खुद को लेखक बताया है। उन्होंने कौन सी किताब लिखी है मालूम नहीं। उन्होंने इसके आगे जो परिचय दिया है उससे समझ में आ जाएगा कि उनकी मानसिकता किस तरीके की है। उन्होंने लिखा है- आजादी प्रोबायोटिक जनता पार्टी, आजादी फ्रॉम बायगोटरी जनता पार्टी। ये बीजेपी के लिए है। अगला वाक्य है- आई एम टू सेक्सी फॉर बायगोटरी एंड वाइल हिंदुत्व। उन्हें हिंदुत्व से भी समस्या है, बीजेपी से भी समस्या है, मोदी से भी समस्या है, दरअसल, इस देश की संस्कृति से समस्या है। जब आप कटलरी को लेकर प्रधानमंत्री के बारे में सवाल उठाते हैं तो आप इस देश के 135 करोड़ लोगों का अपमान करते हैं। देश की आबादी का शायद एक फीसदी भी हिस्सा ऐसा नहीं होगा जो कांटे, छुरी, चम्मच से खाना खाना जानते होंगे। रोजमर्रा की जिंदगी में उसका इस्तेमाल करते होंगे। हम सब लोग हाथ से खाना खाते हैं। इसका क्या वैज्ञानिक आधार है, इसका क्या फायदा है वो सब बातें छोड़ दीजिए। मेरा कहना है कि अंग्रेज चले गए लेकिन अपनी मानसिक औलादें छोड़ गए हैं। वे उसी मानसिकता में जी रहे हैं। उनके लिए कटलरी से खाना खाना, कटलरी का इस्तेमाल करना आना- यह श्रेष्ठता का सूचक है। यह आपके विकसित होने का सूचक है और यह आपके समाज में सम्मान पाने का सूचक है। अगर आप ये नहीं जानते हैं तो आप हंसी के पात्र हैं, आपका उपहास होना चाहिए, आपको बेइज्जत किया जाना चाहिए। इससे आप अंदाजा लगाइए कि ये लोग कितनी गिरी हुई मानसिकता के हैं।

हर बात पर सवाल

ये कोई एक व्यक्ति की बात नहीं है। चूंकि यह ट्वीट दिख गया इसलिए मैंने इसका जिक्र किया। ऐसे हजारों की संख्या में हैं जो आठ साल से दिन-रात ये सोच रहे हैं कि मोदी को कैसे हटाया जाए, वे क्यों नहीं हट रहे हैं। अब तो उनकी नाराजगी धीरे-धीरे इस देश के गरीब मतदाताओं से ज्यादा होने लगी है कि वे क्यों उनको जिता रहे हैं। आप देखिए कि जब से वे प्रधानमंत्री बने हैं लगातार उनकी शिक्षा को लेकर, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर, उनके शुरुआती जीवन को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कितना पढ़े हैं, कौन सी पढ़ाई की है, कौन सी डिग्री ली है। आपने कभी सुना है कि उन्होंने कभी पूछा हो कि इंदिरा गांधी कहां तक पढ़ी थी, राजीव गांधी कहां तक पढ़े थे। इंदिरा गांधी ने 11वीं पास भी की थी या नहीं। राजीव गांधी पायलट बने इसलिए यह मान लेना चाहिए कि उन्होंने 12वीं तो पास किया ही होगा। संजय गांधी कहां तक पढ़े थे। राजीव गांधी, संजय गांधी और इंदिरा गांधी का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि इंदिरा गांधी देश के पहले प्रधानमंत्री की बेटी थीं। विदेश भेजा गया पढ़ने के लिए। पैसे, सुविधा और अवसर की कमी नहीं थी। राजीव गांधी और संजय गांधी के नाना देश के पहले प्रधानमंत्री और मां देश की तीसरी प्रधानमंत्री थीं। उनके बेटों की शिक्षा का ये हाल है। आज ठेला चलाने वाले, कूड़ा उठाने वाले के बच्चे आईएएस, आईपीएस, इंजीनियर बन रहे हैं। क्या आप उनका सम्मान इसलिए नहीं करेंगे कि वे गरीबी से उठ कर आए हैं? वे सोने-चांदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए हैं क्या आप इसलिए सवाल उठाएंगे?

गांधी परिवार को लेकर क्यों नहीं उठाते सवाल

Here is a look at the discrepancies in Sonia Gandhi and Rahul Gandhi's educational details in their election affidavits over the years

क्या इतने दशकों में किसी ने पूछा कि सोनिया गांधी की शिक्षा कहां तक हुई है? जो प्रधानमंत्री नियुक्त कर रही हैं,प्रॉक्सी सरकार चला रही हैं, उनकी शिक्षा कितनी है इसके बारे में किसी ने सवाल किया क्या? क्या राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा की डिग्री को लेकर किसी ने सवाल किया क्या? नहीं करेंगे, क्योंकि वेईलीट हैं। इस देश के प्रबुद्ध वर्ग के लोग हैं, वे सोसायटी की क्रीम हैं। उन पर सवाल उठाना दकियानूसी है, यह आपका द्वेष है, यह आपकी कम बुद्धि होने का प्रमाण है,यह आपके पूरी तरह से विकसित न होने और असभ्य होने का प्रमाण है। इनके बारे में सवाल मत उठाइए। अभी कुछ दिनों पहले मैंने एक छोटा सा वीडियो देखा। राहुल गांधी वायनाड गए थे। वह अक्सर पॉवर्टी टूरिज्म पर निकलते हैं और किसी गरीब के यहां खाना खाने चले जाते हैं। उनको कभी आपने देखा है हाथ से खाना खाते हुए? समझ में आता है कि 50 साल से ऊपर का व्यक्ति जो भारत में पैदा हुआ, भारत में ही पला-बढ़ा उसको हाथ से खाना खाना नहीं आता। दाल-चावल हाथ से उठाते हैं तो आधा गिर जाता है। पता चलता है कि वो हाथ से खा नहीं पा रहे हैं, इसकी आदत नहीं है उन्हें। किसी ने उनका मजाक उड़ाया। बुद्धिजीवी और लेफ्ट-लिबरल बिरादरी का जो ये इकोसिस्टम है यह दृश्य देखकर लहालोटहो जाता है कि देखिए भई, राजा हाथ से खाना खा रहा है। कितना बड़ा उपकार कर रहा है गरीब पर। गरीब को मान लेना चाहिए कि वह धन्य हो गया, उसका जीवन धन्य हो गया कि उसकी कुटिया में महाराज पधारे और उन्होंने हाथ से खाना खाया। यह फर्क है इस देश की सोच में। एक ये वर्ग है और एक इस देश का बहुमत है। इसमें किसी जाति, धर्म, क्षेत्र, वेश, भाषा का कोई फर्क नहीं है।

जो कभी मास्को में बारिश होने पर यहां छाता खोल लेते थे….

PM Modi speaks to Putin, discusses evacuation of Indian students from Kharkiv | Latest News India - Hindustan Times

ये कुछ अंग्रेजीदां हैं जो सिस्टम की नाजायज उपज हैं। उनको इस सिस्टम ने पाला-पोसा, भ्रष्ट किया। वे इस भ्रष्टाचार के इस कदर आदी हो चुके हैं कि जैसे मछली को पानी से निकाल दीजिए वैसे ही वे सत्ता के संरक्षण से वंचित होने के बाद महसूस कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि उनकी दुनिया उजड़ गई है। किसने उजाड़ी है, किसी प्रबुद्ध व्यक्ति ने नहीं बल्कि एक आम आदमी ने, जो चाय बेचता था, जो कमरे में झाड़ू लगाता था, जो नेताओं के लिए कुर्सी लगाता था, वह देश और दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं के साथ बैठ रहा है। उसका सम्मान बहुत से बड़े नेताओं से ज्यादा है। दुनिया उसके पीछे है। बड़े-बड़े देश कह रहे हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहें तो फलां समस्या हल हो सकती है। रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस के पक्ष में खड़े होने के बाद भी किसी की भारत की आलोचना की हिम्मत नहीं हुई। लेकिन हमारे देश का जो बुद्धिजीवी वर्ग है वह पुतिन के खिलाफ इसलिए हो गया कि मोदी उनका समर्थन कर रहे हैं। इसमें कम्युनिस्ट भी शामिल है। वो लेफ्टिस्ट जो कभी मास्को में बारिश होती थी तो यहां छाता खोल लेते थे, वे कम्युनिस्ट भी पुतिन की आलोचना कर रहे हैं। आपको याद होगा कि फ्रांस में जब पहली बार मैक्रों राष्ट्रपति पद का चुनाव जीते थे तब क्या खुशी थी, किस तरह के बधाई संदेश जा रहे थे। चाहे राहुल गांधी हों,अरविंद केजरीवाल हों, तमाम नेता हों, सबको यही लग रहा था कि एक लेफ्ट लिबरल बिरादरी का आदमी आगे आया है, अब मोदी की आलोचना करने में ज्यादा आसानी होगी। इसके बाद वहां एक मैगजीन शार्ली हैब्दो में छपी कार्टून को लेकर जो बवाल हुआ औरमैक्रों ने जिस तरह के कदम उठाए इस्लामिक आतंकवाद को लेकर, उन्हीं लोगों की जुबान में ताला लग गया। मैक्रोंफिर से जीते हैं लेकिन इस बार एक भी बधाई संदेश इन लोगों का नहीं गया।

मोदी की ताकत

Prez Macron dials PM Modi, gets support on action against terror and radicalisation | Latest News India - Hindustan Times

उन लोगों को यह भी तकलीफ है कि मोदी और मैक्रों की दोस्ती क्यों है। उनकी नजर में मैक्रों बुरे हैं क्योंकि वे मोदी को अपना दोस्त मानते हैं और मोदी उनको अपना दोस्त मानते हैं। देश में ही नहीं बल्कि देश से बाहर भी जो मोदी को पसंद करेगा वह विलेन है, उसकी आलोचना होनी चाहिए, उसका विरोध होना चाहिए। जो मोदी का विरोध नहीं करता है वह तिरस्कार के काबिल है। जो मोदी का विरोध करता है उनकी नजर में उससे बड़ा देशभक्त कोई और नहीं है। उससे बड़ा उनकी नजर में जनतंत्र का रखवाला कोई नहीं है। इनको ये समझ में नहीं आता है कि देश के प्रधानमंत्री को कटलरी या दूसरे मामलों में किस तरह से बाहर जाने पर विदेशी मेहमानों के साथ इंटरेक्ट करना है, इन सबके लिए एक टीम होती है जो ब्रीफ करती है। और नहीं भी करती हो, नहीं भी मालूम हो, अगर मोदी को कटलरी का इस्तेमाल करना नहीं आता है- तो यह उनके खिलाफ कैसे हो जाता है। मोदी किसी अंग्रेज की औलाद तो हैं नहीं या किसी अंग्रेज के दत्तक पुत्र या उनका परिवार कोई राज परिवार तो रहा नहीं है। और न ही इस देश को लूटने वाला नेता रहे हैं। इसलिए उनकी आलोचना हो रही है। यही मानसिकता इस देश के लोगों में उन्हें लोकप्रिय बनाती है। लोगों को लगता है कि यह हमारा आदमी है, हमारे बीच का है, हमारे जैसा हमारी ही जैसी परिस्थितियों से निकलकर आगे बढ़ा है, इसका साथ देना चाहिए और इसको ताकत देनी चाहिए। मोदी की ताकत यही लोग हैं। ये बुद्धिजीवी, ये लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम अपना सिर फोड़ ले तब भी मोदी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता है जब तक इस देश का आम आदमी मोदी के साथ मोदी के समर्थन में खड़ा है।