प्रदीप सिंह ।
16 मई, 2022 का दिन भारत, विश्व और सनातन धर्म के इतिहास के लिए एक खास दिन है। इस दिन बाबा मिल गए। मुझसे किसी ने पूछा कि कौन बाबा मिल गए, तो मैंने कहा कि पूरे ब्रह्मांड में एक ही बाबा हैं, बाबा विश्वनाथ। बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद में जो सर्वे का काम चल रहा था, वहां मौजूद तालाब से बाबा विश्वनाथ का शिवलिंग बरामद हुआ है। यह 12 फुट 8 इंच व्यास का शिवलिंग है। इसकी ऊंचाई के बारे में अभी जानकारी नहीं मिली है। पंप लगाकर रात भर तालाब से पानी निकाला गया। इसके बाद बाबा प्रकट हुए। सदियों की प्रतीक्षा पूरी हुई। भगवान नंदी धूप, बरसात और सर्दी झेलते रहे इस इंतजार में कि बाबा एक दिन प्रकट होंगे, बाबा मिल गए। मिले अदालत द्वारा कराए गए सर्वे के कारण।
जिस तालाब से यह शिवलिंग निकला वह मस्जिद में नमाज पढ़ने आने लोगों के वजू का स्थान है। नमाज पढ़ने से पहले यहां हाथ-पैर धोने का काम होता था। ये जो कहानियां थीं उस समय की- कि जब औरंगजेब की सेना ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण किया तो बाबा विश्वनाथ के जो पुजारी थे-वे शिवलिंग लेकर तालाब में कूद गए थे- यह अब सच साबित होता नजर आ रहा है। इतिहासकारों द्वारा इसे अब तक किंवदंती बताया जाता रहा, इसे झूठी कहानी बताई गई और औरंगजेब को सेक्युलर बताने की लगातार कोशिश होती रही- खासकर उन इतिहासकारों द्वारा जो कांग्रेस सरकारों द्वारा पल्लवित-पुष्पित रहे, जो उनकी कृपा पर पलते रहे। वे एक तरह से कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के इतिहासकार थे। उन्होंने इस देश के इतिहास को विकृत करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। उनसे भी यह नहीं कहा गया कि औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर का विध्वंस नहीं कराया था। औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर और कृष्ण जन्म स्थान मथुरा का मंदिर तुड़वाया था। इन इतिहासकारों ने औरंगजेब के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताया। ये वो लोग हैं जो पूरे इतिहास में मुगलों और मुसलमानों के शासन को सेक्युलर बताने, इस देश के हित में बताने में कोई कोर कसर नहीं रखते। रोमिला थापर हों या केएम पणिक्कर हों- इन सब ने लिखा है औरंगजेब के इस मंदिर को तोड़ने के बारे में। उन्होंने जो कहानियां बताई हैं, वो बढ़ा-चढ़ा कर बताई है।
प्रमाण को झुठलाने का ‘प्रमाण’ खोजने की कोशिश
ये भी मानते हैं मंदिर तोड़े गए। फिर भी इस देश का मुस्लिम समाज- खासतौर पर मैं कठमुल्लों की बात कर रहा हूं, उनके ठेकेदारों की बात कर रहा हूं और इस समाज के बुद्धिजीवियों की बात कर रहा हूं- उन्होंने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया। आज भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। पहले इस सर्वे का पुरजोर विरोध हुआ, अब शिवलिंग मिलने के बाद असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं कि कयामत तक ज्ञानवापी मस्जिद रहेगी। उन्हें शर्म आनी चाहिए ऐसा बयान देते हुए। सवाल यह है कि जिस बात के प्रमाण हैं उसको कैसे झुठला सकते हैं। जब काशी विश्वनाथ मंदिर और अयोध्या की बात आई थी तब सैयद शहाबुद्दीन ने कहा था कि मुसलमान किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल को तोड़कर मस्जिद नहीं बना सकते क्योंकि शरीयत में इसकी मनाही है। इसका जवाब उस समय अरुण शौरी ने दिया था। अरुण शौरी ने मनगढ़ंत कहानी बना कर जवाब नहीं दिया था। उन्होंने मशिरी आलम गिरी का उदाहरण देकर कहा था। इसमें मुस्लिम इतिहासकारों का ही वर्णन है। इसमें लिखा है कि 2 सितंबर, 1669 को औरंगजेब के दरबार में खबर आई कि बादशाह के हुक्म के मुताबिक काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ दिया गया। अब इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा। लेकिन प्रमाण तो चाहिए नहीं। प्रमाण को झुठलाने का प्रमाण खोजने की कोशिश होती है।
बनाई गई मनगढ़ंत कहानियां
प्रमाण को किस तरह से झुठलाने की बचकानी कोशिश होती है, इसका एक उदाहरण देता हूं। मुगल क्रॉनिकल के हिसाब से ही मुगलों ने हजारों मंदिर तुड़वाए। केवल औरंगजेब ने ही नहीं तुड़वाए, सभी मुगल और मुस्लिम शासकों ने यह काम किया। अब आप देखिए कि कैसे उस विध्वंस का बचाव करने की कोशिश हुई। काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस पर केएम पणिक्कर लिखते हैं कि दरअसल, औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर इसलिए तुड़वा दिया क्योंकि बनारस के जो पंडित थे और जो सूफी विद्रोही थे उनका गठजोड़ हो गया था। उस गठजोड़ को तोड़ने के लिए मंदिर तुड़वा दिया गया। अब आप समझिए कि किस हद तक ये लोग गए यह बताने के लिए कि औरंगजेब ने जो किया वह बिल्कुल तर्क सम्मत था। वह उसके राज्य के नियमों के बिल्कुल मुताबिक था। यह कहते हुए उनकी जुबान कांपी भी नहीं। जबकि हकीकत में यह वह दौर था जब मुसलमानों से गठजोड़ की बात तो दूर, पंडित उनकी छाया से भी दूर रहते थे। उसका छुआ हुआ पानी नहीं पीते थे। उनसे कोई संपर्क नहीं रखते थे। ऐसे में इतिहासकार केएम पणिक्कर कह रहे हैं कि सूफियों और पंडितों के बीच गठजोड़ था। अपनी इस बात के लिए उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया। यह बात वह किस आधार पर कह रहे हैं, इसका साक्ष्य क्या है, क्या तथ्य है ऐसा कुछ उन्होंने नहीं बताया। उनको तो औरंगजेब को सिर्फ सेक्युलर साबित करना था।
बिना साक्ष्य वाली कहानियां
मंदिर तोड़ने को लेकर कई कहानियां सुनाई जाती हैं। औरंगजेब जब बंगाल जा रहा था तो उनके साथ जो हिंदू राजा थे उन्होंने कहा कि अगर हम बनारस में रात्रि विश्राम करें तो हमारी रानियां काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन कर लेंगी। रानियां काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन करने गई तो एक रानी गायब हो गई। पंडितों ने उनका अपहरण कर लिया था। उसके बाद इसका बड़ा विरोध हुआ। राजाओं ने तो कुछ नहीं किया लेकिन औरंगजेब ने मंदिर अशुद्ध हो गया इसलिए गिरवा दिया। पहली बात तो यह है कि मंदिर अगर अशुद्ध हो जाए तो उसके शुद्धिकरण की सनातन धर्म में बाकायदा एक व्यवस्था है, विधि-विधान है। दूसरी बात, अगर रानी के साथ ऐसा हुआ तो राजाओं में कोई नाराजगी नहीं हुई। ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता है और औरंगजेब ने इसके लिए मंदिर तुड़वा दिया। तीसरी बात, इतिहास में इस बात का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि औरंगजेब बंगाल की ओर जा रहा था। अगर मान लीजिए कि जा रहा था तो उसके साथ जो राजा चल रहे थे तो क्या युद्ध में राजा अपनी रानियों को लेकर जाते थे। इस तरह की मनगढ़ंत कहानियां बनाई गई।
एक और कहानी आपको बताता हूं। यह कहानी सुनाई ओडिशा के राज्यपाल रहे बीएन पांडे ने जो कांग्रेसी नेता रहे। उन्होंने कहा कि दरअसल जिस रानी का अपहरण हुआ था वह जब मिल गई तो उन्होंने कहा कि औरंगजेब की सेना ने मेरी जान बचाई है, मेरी इज्जत बचाई है, इसलिए इस मंदिर को जो गिराया जा रहा है उसकी जगह मस्जिद बनना चाहिए।
औरंगजेब को सहिष्णु दिखाना मकसद
लोगों ने बीएन पांडे से पूछा कि आपके पास इस बात का प्रमाण क्या है तो उन्होंने कहा कि पट्टाभि सीतारमैया ने अपनी किताब में यह लिखा है। फिर यह हुआ कि वह किताब खोजी जाए। उस किताब में क्या लिखा है सीतारमैया ने और इसके क्या प्रमाण हैं। सीतारमैया ने लिखा है कि उनको लखनऊ के एक मौलवी मिले जिन्होंने कहा कि मेरे पास एक चिट्ठी है जिसमें ये बातें लिखी गई हैं। सीतारमैया ने उनसे कहा कि वो चिट्ठी मुझे दे दीजिए लेकिन चिट्ठी देने से पहले ही उनकी मौत हो गई। इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि औरंगजेब बनारस होकर बंगाल जा रहा था। इसके बावजूद ये कहानियां इसलिए गढ़ी गई कि औरंगजेब को सहिष्णु दिखाना था। यह दिखाना था कि औरंगजेब ने अगर काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़ा, मथुरा का कृष्ण जन्म स्थान का मंदिर तोड़ा तो उसके पास उसके वाजिब कारण थे और वह सही था। अगर तोड़ दिया तो उसका पुनर्निर्माण भी तो होना चाहिए, इसका जिक्र ये लोग कभी नहीं करते। जब सनातन धर्म के लोग इसकी मांग करते हैं तो कहा जाता है कि कयामत तक यह मस्जिद रहेगी।
सर्वे में मिले शिवलिंग को अदालत ने बताया बड़ा प्रमाण
बनारस की अदालत ने शिवलिंग मिलते ही उस इलाके को सील करने का आदेश दे दिया है। सिर्फ इस बात की इजाजत मिली है कि नमाज के लिए अगर मुसलमान जाना चाहें तो सिर्फ 20 मुसलमान जा सकते हैं। सीआरपीएफ को वहां सुरक्षा के लिए लगा दिया गया है। अदालत ने कहा है कि सर्वे में जो कुछ भी मिला है उसकी सुरक्षा और उसका संरक्षण हो। इस सर्वे के खिलाफ मस्जिद पक्ष के लोग सुप्रीम कोर्ट गए हैं जहां इसकी सुनवाई हो रही है। अदालत में क्या होता है, सुप्रीम कोर्ट में क्या होता है वह एक बात है लेकिन वास्तविकता यह है कि बाबा मिल गए। काशी विश्वनाथ मंदिर का जो मूल शिवलिंग था वह मिल गया है। सैकड़ों साल बाद भी सही सलामत है काले पत्थर का यह भव्य शिवलिंग। अदालत ने कहा है कि यह बहुत बड़ा प्रमाण है, इसको बचा कर रखा जाना चाहिए। मतलब, जहां ज्ञानवापी मस्जिद है काशी विश्वनाथ का पुराना मंदिर वहीं पर था। इस बात से कौन इन्कार कर सकता है कि मुगलों और मुस्लिम शासकों ने एक-दो मंदिर ही नहीं तुड़वाए, हजारों की संख्या में तुड़वाए।
यह कहें कि काशी विश्वनाथ भारत के लोगों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है, तो गलत नहीं होगा। यह उत्तर और दक्षिण को जोड़ता है। पूरब और पश्चिम को जोड़ता है। आप अगर बनारस जाएं तो वहां आपको देश के हर हिस्से से आने वाले लोग मिलेंगे। दक्षिण से आने वालों की संख्या तो सबसे ज्यादा मिलेगी क्योंकि दक्षिण में भगवान शिव की आराधना सबसे ज्यादा होती है। मैं फिर कह रहा हूं कि बाबा मिल गए हैं। सनातन धर्म के लिए 16 मई की तारीख बहुत ही अहम तारीख है। और आखिर में, काशी तो अविनाशी है, यहां एक ही सरकार चलती है और वह है डमरू वाले की सरकार। डमरू वाले को पानी में डुबो दिया गया था। अब वह अवतरित हो गए। 16 मई को बाबा विश्वनाथ के अवतरण का भी दिवस मान लें या कहें कि पुनर्अवतरण का दिवस है। इसलिए सनातन धर्म के मानने वालों के लिए यह बहुत बड़ा दिन है और इस दिन को कभी भूलना नहीं चाहिए। यह संयोग ही है कि 2014 लोकसभा चुनाव के परिणाम भी 16 मई को ही आए थे और भगवान शिव की नगरी काशी से सांसद चुने गए नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने।