प्रदीप सिंह।
लालू प्रसाद यादव और उनके 17 ठिकानों पर 20 मई को सीबीआई ने छापेमारी की है। ये छापे पटना, दिल्ली, उनके गृह नगर गोपालगंज, भोपाल और कुछ अन्य जगहों के उनके ठिकनों पर मारे गए हैं। सीबीआई ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है। लेकिन क्या हुआ है- किस सिलसिले में हुआ है- इसकी जानकारी मैं आपको दे रहा हूं। लालू प्रसाद यादव जब रेल मंत्री थे तो उन्होंने रेल भर्ती घोटाला किया था। इस घोटाले में हुआ यह कि उन्होंने जिनको रेलवे में नौकरी दिलाई, बदले में बतौर रिश्वत उनसे उनकी जमीन अपने नाम, अपने परिवार वालों के नाम, अपने करीबी लोगों के नाम करवा ली। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों की भी भर्ती में उनसे जमीन ले ली। यह मामला ऐसा है जिसमें बहुत ज्यादा सुबूत जुटाने या उसे मिलाने की जरूरत नहीं है। नौकरी मिली है यह रिकॉर्ड में है- उनकी जमीन ट्रांसफर हुई है यह रिकॉर्ड में है- जिन लोगों ने जमीन दी है वे बोलने को तैयार हैं यह रिकॉर्ड में आ जाएगा। इसलिए माना जा रहा है कि यह ओपन एंड शट केस है।
सीबीआई ने पहले शुरुआती जांच की और उसके बाद एफआईआर दर्ज की। एफआईआर दर्ज करने के बाद छापेमारी हुई है। 20 मई की सुबह 5:30 बजे पटना के सीबीआई ऑफिस से झारखंड के नंबर वाली गाड़ियों से टीम निकली और राबड़ी देवी के सरकारी आवास पर पहुंच कर छापेमारी शुरू कर दी। इसी के साथ 17 अन्य जगहों पर छापेमारी की कार्रवाई शुरू हो गई। लालू प्रसाद इस समय दिल्ली में अपना इलाज करा रहे हैं। उनके बेटे तेजस्वी यादव लंदन में छुट्टी मना रहे हैं। इस पर तंज किया है जीतन राम मांझी ने। उन्होंने कहा है, “घर का भेदी लंका ढाए और मौके पर विदेश उड़ जाए”। उन्होंने एक आशु कविता बनाकर यह कहा है। उन्होंने उनके विदेश जाने की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाया है। मगर मुद्दा यहां लालू यादव के भ्रष्टाचार के मामले का नहीं है। चारा घोटाले में उन्हें अभी जमानत मिली है और यह नया केस शुरू हो गया है। इसका राजनीतिक असर क्या होगा, अभी उसकी बात कर रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर इसका जो असर होगा उसकी बात बाद में करेंगे लेकिन उसके अलावा बिहार की राजनीति पर जो असर होगा उसकी बात पहले करते हैं।
पगहा तोड़ने की कोशिश करते रहते हैं नीतीश
नीतीश कुमार की एक राजनीतिक खासियत है। वे जहां रहते हैं, थोड़े-थोड़े समय पर वहां से निकलकर पगहा तोड़ने की कोशिश करते हैं। गाय, बैल, भैंसों को जिस रस्सी से बांधा जाता है उसे पगहा कहते हैं। वो चाहे महागठबंधन में हों, चाहे एनडीए में हों, कुछ समय बाद उनको लगने लगता है कि अब निकलना चाहिए। बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव के बाद से उनकी बेचैनी बढ़ रही है। उनको लगता है कि अब यहां से निकलना चाहिए। वे जिस तरह से तेजस्वी यादव की इफ्तार पार्टी में शामिल हुए, अपने यहां इफ्तार में उन्हें बुलाया, वह सब एक जरिया था भाजपा को यह संदेश देने का कि हमने राजद के साथ एक खिड़की खोल ली है। आप हमें रोक लो नहीं तो हम जा रहे हैं। उनका अंदाज हमेशा यही होता है। भोपाल के अगर आप हैं या कभी भोपाल गए हों या वहां के दबंगों की लड़ाई के बारे में सुना हो तो उससे इस बात को समझने में आपको ज्यादा आसानी होगी। वहां दोनों पक्ष लड़ाई के लिए आमने सामने आते हैं और उनका नेता अपने समर्थकों से बोलता है कि हमें रोक लो नहीं तो आज कुछ हो जाएगा। दूसरे पक्ष का नेता भी अपने समर्थकों से यही कहता है। दोनों तरफ के समर्थक उन्हें रोक लेते हैं और कुछ नहीं होता है। यह सिलसिला लगातार चलता रहता है। कहते हैं कि एक बार ऐसा हुआ कि दोनों पक्षों के समर्थकों ने मिलकर तय किया कि इस तमाशे को खत्म करना चाहिए। अगली बार दोनों ओर के समर्थकों ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की और उसी दिन से यह तमाशा खत्म हो गया।
इफ्तार पार्टी से भाजपा को दिया था संदेश
नीतीश कुमार की भी यही आदत है। जब एनडीए में थे तो 2013 में बाहर चले गए। तब उन्होंने संदेश दिया कि रोक लो। कैसे रोक लो- नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मत बनाओ- तो हम रुक जाएंगे। बीजेपी ने कहा कि ठीक है आप निकल जाइए। तो वे निकल गए। फिर उसके बाद महागठबंधन में गए तो तेजस्वी यादव से कहा कि आईआरसीटीसी घोटाले पर बयान दो नहीं तो हम जा रहे हैं, उन्होंने कहा कि ठीक है चले जाइए। वे वहां से भी निकल गए। अब फिर से एनडीए से निकलने की कोशिश कर रहे हैं। यह इफ्तार पार्टी कोई सामान्य बात नहीं थी। यह राजनीतिक संदेश देने का उनका तरीका था। वे बीजेपी को एक संदेश देने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उनको यह पता नहीं है कि मौजूदा भारतीय जनता पार्टी अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की भारतीय जनता पार्टी नहीं है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की भारतीय जनता पार्टी है। इनके सामने इस तरह की धमकी चलने वाली नहीं है। ये आपसे निकलने को नहीं कहेंगे बल्कि आपको धक्का दे देंगे। इसलिए प्रधानमंत्री ने यह काम किया है कि ये जो खिड़की उन्होंने खोली थी उस खिड़की को बंद कर दिया और उस पर पहरा लगा दिया।
रास्ते बंद… जाएं तो जाएं कहाँ
लालू प्रसाद यादव के परिवार के खिलाफ ये जो नई जांच चल रही है,उसका आरोप तो काफी पुराना है। इस जांच से नीतीश कुमार के लिए राजद की तरफ अब कदम बढ़ाना कठिन हो गया है। भाजपा की जो चिंता थी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कि राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार थोड़ा इधर-उधर कर सकते हैं, सौदेबाजी की कोशिश कर सकते हैं, उसका रास्ता प्रधानमंत्री ने बंद कर दिया है। अब उनके लिए मुश्किल यह हो गई है कि जाएं तो जाएं कहां। अब बीजेपी के साथ रहना उनका प्रारब्ध बन गया है। इस जांच के बाद से मुझे लगता है कि उनके लिए राजद का रास्ता एक तरह से बंद हो गया है। अब जो राजनीतिक स्थिति बनने वाली है उसमें राजद का क्या भविष्य होगा, इसका आप अंदाजा लगा सकते हैं। लालू प्रसाद यादव के जेल जाने का जो असर हुआ वो आप देख रहे हैं। अगर नीतीश कुमार 2013 में महागठबंधन में न गए होते और 2015 में लालू यादव से मिलकर चुनाव नहीं लड़ा होता तो शायद आरजेडी आज वहां पर होती जहां उत्तर प्रदेश में आज बहुजन समाज पार्टी है। लेकिन वह अतीत की बात है। अभी वर्तमान की बात करते हैं। नीतीश कुमार के जाने का रास्ता प्रधानमंत्री ने बंद कर दिया है और सीबीआई का पहरा लगा दिया है। यह तो बात हुई नीतीश कुमार की। असली मामला तो इसका राजनीतिक असर बड़ा होना है और वह आरजेडी पर होना है।
फंस सकते हैं तेजस्वी
नीतीश कुमार आईआरसीटीसी घोटाले की जांच करवाना चाहते थे। वह इसलिए कि उसमें तेजस्वी यादव फंसे थे। वे आरजेडी के भविष्य के नेता हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी की जो सीटें बढ़ी हैं उससे यह संदेश गया है कि तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत को पूरी तरह से स्थापित कर दिया है। वे उसके वारिस बन चुके हैं। अब अगर तेजस्वी यादव के खिलाफ जांच होती है और उनको 2 साल से ज्यादा की सजा हो जाती है तो उनके चुनाव लड़ने का मामला हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। इसके साथ ही उनका राजनीतिक करियर भी खत्म हो जाएगा। यही वजह है कि तेजस्वी यादव ने भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री के साथ एक खिड़की खोल रखी है कि एक सीमा के बाद हम आपके खिलाफ नहीं जाएंगे। ये सब ऐसी बातें हैं जिनका कोई सबूत नहीं होता। मैं उस मंत्री का नाम नहीं लूंगा लेकिन जो बिहार की राजनीति को जानते हैं उन सब लोगों को मालूम है कि मामला क्या है। तेजस्वी यादव इस समय लंदन में छुट्टी मना रहे थे और उसके परिवार के लोगों के घरों पर छापेमारी हो रही थी। बड़ी बहन मीसा भारती, बड़े भाई तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव- तीनों के बीच समीकरण बदलता रहता है। उनकी कभी पटती नहीं है। मीसा भारती को इसलिए भी तरजीह मिलती है कि वह सबसे बड़ी हैं, पहली संतान हैं। इसके अलावा इस समय लालू प्रसाद यादव दिल्ली में मीसा के घर ही रह रहे हैं जो उनको राज्यसभा सदस्य के नाते मिला हुआ है। इसलिए मीसा की चलती है और वह परिवार में थोड़ा दबंगई से अपनी बातें भी मनवा लेती हैं।
बढ़ेंगी लालू परिवार की मुश्किलें
चर्चा यह भी चल रही थी कि मीसा भारती को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। यह बात तेजस्वी यादव को कतई मंजूर नहीं है। पिछले दिनों पार्टी की पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक हुई। उसमें तेजस्वी यादव पटना में रहते हुए भी नहीं गए। इससे आप अंदाजा लगा लीजिए कि परिवार के अंदर क्या चल रहा है। लालू परिवार के अंदर भारी झगड़ा चल रहा है। कोई एक दूसरे को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। ये जो नया केस दर्ज हुआ है, इसकी जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी उसकी आंच लालू प्रसाद यादव के परिवार को राजनीतिक रूप से झुलसाने के लिए काफी है। अभी चारा घोटाले से उनकी मुक्ति हुई नहीं है और यह नया केस शुरू हो गया है। इसके अलावा आईआरसीटीसी का केस भी अगर शुरू हो गया तो लालू परिवार की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। उस मामले में भी जमीन का लेन-देन हुआ है। उसे एक कंपनी के नाम पर ट्रांसफर किया गया। लालू प्रसाद के जो करीबी एक सांसद हैं उनकी कंपनी के नाम पर ट्रांसफर किया गया। फिर एक नई कंपनी बनाकर उसे ट्रांसफर कर दिया गया लालू प्रसाद यादव के परिवार को। इन सबके दस्तावेजी प्रमाण हैं। वह मामला भी ऐसा ही है जिसको ओपन एंड शट केस कहा जा सकता है। उसमें भी किसी बड़ी जांच की जरूरत नहीं है। कैसे-कैसे पैसा ट्रांसफर हुआ उसकी पूरी चेन मौजूद है।
भरभरा रहा भ्रष्टाचार का साम्राज्य
लालू प्रसाद यादव ने जो भ्रष्टाचार का साम्राज्य खड़ा किया था वह रेत के महल की तरह भरभरा कर गिर रहा है। उनको जेल जाना पड़ा और राजनीति से बाहर होना पड़ा। अब वही संकट उनके परिवार के दूसरे सदस्यों पर आने वाला है। अगर दूसरे सदस्यों का भी हश्र यही हुआ तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि राजद का हश्र क्या होगा। राजद का मतलब है लालू प्रसाद यादव का परिवार। लालू यादव ने पार्टी में सेकेंड रैंक लीडरशिप कभी पनपने नहीं दी। इसमें वे अकेले नहीं हैं। जितनी परिवारवादी पार्टियां हैं सब में आप देख लीजिए कि सेकेंड रैंक लीडरशिप को हमेशा दबाया गया ताकि वह उभरने न पाए। जो परिवार का राजनीतिक वारिस है वही आगे रहे, वही आगे दिखे। अगर वह कमजोर है तो उसको आगे बढ़ाने के लिए उससे बड़ी लकीर खींची न जाए। अगर किसी लकीर के बड़ी होने की संभावना है तो उसको छोटा कर दिया जाता है। किसी भी परिवारवादी पार्टी का नाम ले लीजिए, वहां आपको यही ट्रेंड दिखाई देगा।
सीबीआई की छापेमारी को महज एक और जांच मत समझिए, भ्रष्टाचार का एक और मामला मत समझिए। इसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम आने वाले हैं। बिहार की राजनीति को पूरी तरह से बदलने वाला यह कदम हो सकता है। अगर भर्ती घोटाला और आईआरसीटीसी घोटाला दोनों में लालू परिवार के लोग जेल चले गए तो आप समझ लीजिए कि बिहार में आरजेडी का खेल खत्म है। फिर क्या होगा इस बारे में अभी कयास ही लगाया जा सकता है। लेकिन फिलहाल दो चीजें हुई हैं। लालू प्रसाद का परिवार राजनीतिक रूप से भारी संकट में है और नीतीश कुमार के उधर जाने की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं।