तैयार रहिए नौतपा में तपने के लिए।
शिवचरण चौहान।
23 और 24 मई को आए आंधी तूफान और बरसात की ठंडक से खुश मत होइए! अभी तो भयंकर गर्मी के दिन शेष है। 25 मई से 2 जून तक नौतपा लगेगा। सूर्य रोहिणी नक्षत्र में आ जाएगा और धरती के बहुत करीब होगा। इससे धरती में भयंकर गर्मी पड़ेगी, तपन होगी जलन होगी। बहुत पुरानी कहावत है:
तपे मृगसिरा बिलखें चार। वन , बालक औ भैंस, उखार।।
तेज गर्मी के कारण इन चार को बहुत कष्ट होता है। जंगल को- मनुष्य सहित सभी जीव धारियों के बच्चों को- दूध देने वाली भैंस को- और गन्ने के खेत को। तेज गर्मी इन्हें झुलसा देती है।
मृग के सिर के प्रकार के तारे
आसमान में मृग के सिर के प्रकार के तारे दृष्टिगोचर होते हैं यही मृगशिरा नक्षत्र है, जिसे मार्गशीर्ष भी कहते हैं। मृगसिरा की 40 दिन की गर्मी के बीच 9 दिन नौतपा के कहलाते हैं। इस वर्ष 25 मई से 2 जून तक नौतपा तपेगा। तेज आंधी पानी आएंगे और कभी उत्तर प्रदेश बिहार सहित कई मैदानी इलाकों में शिमला जैसा मौसम हो जाएगा, अगले ही दिन सूरज की किरणें फिर धरती को झुलसाने लगेंगी। ऐसा मौसम 8 जून तक रहेगा। ऐसा ज्योतिष शास्त्र कहता है और भारतीय मौसम विज्ञानी भी यही बात बता रहे हैं। मृगसिरा नक्षत्र के बाद सूर्य आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करेगा और तब बरसात की संभावना बनेगी। इसलिए 8 दिन तक भयंकर गर्मी के लिए तैयार रहिए। जिस दिन आंधी पानी आने से मौसम खुशगवार हो तो उसका मज़ा लीजिए किंतु अगले दिन की गर्मी के लिए तैयार रहिए।
खतरनाक संकेत
अब तो जलवायु परिवर्तन का प्रकोप पृथ्वी पर साफ साफ दिखाई देने लगा है। इस वर्ष 2022 में नीम के पेड़ पर फूल तो बहुत आए किंतु गल्हे नहीं आए। नीम में चैत में फूल आते हैं और मई-जून में फल। फल को गल्हे कहा जाता है। नीम के फल गल्हे जामुन के फल के आकार के होते हैं और आषाढ़ -सावन में बरसात होने पर पककर पीले रंग के हो जाते हैं। फिर डाल से टपक कर जमीन में गिर जाते हैं। नीम के फल गल्हे धरती की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। मिट्टी को कीटाणु रहित करते हैं। भूमि के अंदर का पानी स्वच्छ करते हैं। मलेरिया रोग को फैलने से रोकते हैं। किंतु इस बार मार्च में 45 डिग्री तक पारा चले जाने के कारण नीम में फूल तो आए किंतु सूरज की तेज गर्मी के कारण नीम के फूल झुलस कर असमय जमीन पर गिर गए। मधुमक्खियां कम होने के कारण फूलों में परागण भी ठीक से नहीं हो पाया। इस कारण उत्तर प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में नीम में 30 प्रतिशत से भी कम फल आए हैं। पूसा के वैज्ञानिक भी इसे जलवायु परिवर्तन का संकेत मान रहे हैं। यह स्थित बहुत खतरनाक है। नीम के पेड़ हर -गांव में बहुतायत से लगे हुए हैं। नीम कृमि नाशक है इसलिए जहां नीम के पेड़ होते हैं वहां मच्छर और मलेरिया कम फैलता है। अन्य रोग भी नियंत्रण में रहते हैं। नीम के पत्ते, छाल और फल बहुत उपयोगी होते हैं। इससे आयुर्वेद में अनेक दवाएं बनाई जाती हैं।
आम के बौर/ मंजरिया झुलसीं
जलवायु परिवर्तन के कारण पड रही तेज धूप के कारण आम के बौर/ मंजरिया झुलस गई और इस वर्ष आम के पौधों में 40 प्रतिशत ही फल आए हैं। इस बार तरबूज में मिठास नहीं आई है। विदेशी किस्म के तरबूज भारत की जलवायु के अनुकूल नहीं पाए गए। तेज गर्मी के कारण रांची में लीची के पौधे के फूल झुलस गए थे। इस कारण लीची की पैदावार कम हुई है। तेज गर्मी के कारण ही इस वर्ष गेहूं की फसल समय से पहले पक गई और उसके दाने कमजोर पड़ गए।
जेठ आधा बीतने को है। 30 मई को बरगदही अमावस्या है। वट सावित्री व्रत इसी दिन किया जाता है। जेठ माह की तेज धूप के कारण गश खाकर बरगद के पेड़ से सत्यवान गिरे थे और सावित्री ने उनका सिर अपनी अपनी गोद में रखा था।
जेठ की भीषण दोपहरी/ छांव को छाया नहीं है/ प्यास खुद प्यासी गिलहरी। इस बार तो चैत ,वैशाख बहुत गर्मी पड़ी और पारा 40 से 45-47-49 तक जा पहुंचा। फलों के राजा आम के पेड़ और फलों की रानी लीची की वृक्षों में मंजरियां तेज धूप के कारण कुम्हला गए। आम के बौर तेज धूप के कारण खराब हुए तो लीची की मंजरिया सूख गईं। लीची के फूलों में पराग बहुत होता है इस कारण मधुमक्खियां आती है किंतु तेज धूप के कारण लीची के फूल सूख गए और मधुमक्खियां मरने लगीं। वैज्ञानिक इसका कारण तेज धूप बता रहे हैं।
जब जलवायु परिवर्तन का कोई संकट नहीं था तभी कबीर ने बहुत पहले ही कह दिया था: ‘अति का अधिक न बोलना अति की अधिक न चूप। अति का अधिक न बरसाना अति की अधिक न धूप।’
अति हर हर चीज की खराब होती है इसीलिए अत्यधिक धूप चिरई चुन गुन कीट, पेड़ पौधों, लता, विटप ,पशु, मनुष्य सभी को झुलसा दे रही है।
कभी जगह-जगह प्याऊ खुलवाए जाते थे। अब 20 रूपये की पानी की बोतल खरीदो- पानी का पाउच खरीदो। प्याऊ की परंपरा लुप्त हो गई।
निरखि दुपहरिया जेठ की
कभी बिहारी ने कहा था: “निरखि दुपहरिया जेठ की छाहों चाहति छांह”… अब तो जेठ की सुबह ही छांव ढूंढ रही है। आगे क्या होगा राम जाने! ईरान से गर्म हवाएं पाकिस्तान होकर भारत आने लगी हैं। बीकानेर से लेकर रांची तक धूल के बगूले उठ रहे हैं। गर्म हवाओं के डकूर आसमान तक धूल उड़ा ले जा रहे हैं। ताल तलैया का पानी सूख गया है। नदियां सिसक सिसक कर रो रही हैं। लू पलाश की फुनगियों पर नृत्य कर रही है। टिटहरी प्यास से व्याकुल होकर चोंच खोले हुए नदी में पड़ी हुई है।
‘सूर्य ने/ जगत तपोवन सा कियो/ पी रही जल स्वयं प्यासी झील/ झुलस गई है देह सब, झुलस गया है रूप/ मौसम दुर्वासा हुआ शापित को पोखर कूप।’
इसलिए अभी एक-दो दिन के मौसम परिवर्तन से खुश मत होइए कि मैदान पहाड़ बन गए हैं शिमला जैसी ठंडक आ गई है। अभी तो गर्मी बहुत झुलसाएगी, रुलाएगी। आम का पना पीजिए पुदीना डालकर। दोपहर में दही की लस्सी अथवा दही के साथ खाना खाइए। धूप में कम से कम निकलिए वरना लू लग सकती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)