प्रदीप सिंह।

ज्ञानवापी का मसला जिस तरह से शुरू हुआ और जिस तरह से आगे बढ़ रहा है- यह सनातन धर्म के लिए बहुत ही शुभ संकेत है। आने वाला समय बताएगा कि यह कितनी बड़ी घटना थी। आज वर्तमान में इस बात का अहसास न हो कि इसका महत्व कितना बड़ा है लेकिन आने वाले समय में जब पलट कर आप देखेंगे तब आपको महसूस होगा कि आपने इतिहास बनते हुए देखा। इस इतिहास को बनाने में जिन लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है मैं उनसे आपका परिचय करवाऊंगा। लेकिन इससे पहले उन लोगों के बारे में बताना जरूरी है जिन्हें इस इतिहास के बनने से बहुत तकलीफ हो रही है, खासतौर से हिंदू द्रोहियों को। इसमें मैं मुसलमानों को नहीं रखता क्योंकि वे अपने धर्म के लिए लड़ते हैं। मगर हिंदुओं में एक वर्ग ऐसा है जो हिंदू धर्म के प्रति विद्वेष का भाव रखता है- द्रोह करता है। इसका मैं एक छोटा सा उदाहरण दूंगा।

हिंदू धर्म के प्रति इतनी हिकारत

Video team denied entry, Gyanvapi survey stalled | India News - Times of India

21 मई, 2022 के ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ अखबार के संपादकीय पेज का पहला संपादकीय अगर आपने पढ़ा है- और नहीं पढ़ा है तो पढ़ना चाहिए- आपको पता चलेगा कि आपके हमारे बीच में कैसे लोग हैं जो हिंदू धर्म के प्रति इतनी हिकारत का भाव रखते हैं। इसके विरोध में वे अपनी सीमा भी लांघ जाते हैं और अदालत की अवमानना करने से भी नहीं चूकते। ये सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच को बता रहे हैं कि उनको क्या करना चाहिए था। आप अंदाजा लगाइए कि सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जजों को यह बताने की कोशिश की जा रही है संपादकीय के जरिये कि उनको क्या करना चाहिए। इस संपादकीय का शीर्षक है- “कोर्टिंग डिले”… और उप शीर्षक है- “सुप्रीम कोर्ट शुड हैव एंडेड ज्ञानवापी मैटर।” यानी शुक्रवार 20 मई को इस मामले की जो सुनवाई हुई सुप्रीम कोर्ट को उसी दिन इस मामले को खत्म कर देना चाहिए। इसे डिस्ट्रिक्ट जज के पास भेजने की जरूरत ही नहीं थी। संपादकीय के मुताबिक, दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को यह मामला सुनना ही नहीं चाहिए था। शुरू में ही इसे खारिज कर देना चाहिए था। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि जो मुस्लिम पक्ष है वह संविधान के साथ खड़ा है। उसकी बात मान लेनी चाहिए थी और हिंदू पक्ष की बात नहीं सुननी चाहिए थी। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सिस्टम में इन तत्वों की पहुंच, इनका प्रभाव कितना ज्यादा है। ये इस देश के इलीट वर्ग और जो देश से बाहर के लोग हैं उनके बीच नैरेटिव सेट करते हैं। भारत विरोधी जितना अभियान चलता है उसकी शुरुआत यहीं से होती है। उनके लिए इस बात का कोई मतलब नहीं है कि जिसको मस्जिद कहा जा रहा है वहां से शिवलिंग निकल रहा है। उनके लिए इस बात का भी कोई मतलब नहीं है कि वहां हिंदू धर्म के दूसरे प्रतीक मिल रहे हैं। सब कुछ जानते हुए, सामने नंगी आंखों से जो दिखाई दे रहा है उसको भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं- केवल और केवल मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए।

हरिशंकर और विष्णु जैन

In Limelight for Gyanvapi, Meet Father-Son Advocate Duo Fighting to 'Reclaim' Lost Temples of India

ज्ञानवापी के नायकों में सबसे पहले स्थान पर हैं हरिशंकर जैन और विष्णु जैन। ये दोनों पिता-पुत्र पेशे से वकील हैं। जो लोग वकालत करते हैं वे अपने पेशे को तरजीह देते हैं। लेकिन ये पिता-पुत्र ऐसे हैं जिन्होंने अपने पेशे से ज्यादा अपने धर्म को तरजीह दी है। हरिशंकर जैन 27 मई,1954 को पैदा हुए और 1976 से उन्होंने वकालत शुरू कर दी। पहले निचली अदालत में- फिर लखनऊ के हाई कोर्ट में- उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में। इसी तरह से उनके बेटे विष्णु जैन 9 अक्टूबर,1986 को पैदा हुए और 2010 से प्रैक्टिस करने लगे। हरिशंकर जैन ने जो पहला बड़ा केस लड़ा वह है अयोध्या के राम जन्मभूमि का। राम जन्मभूमि की जो लीगल टीम थी उसके लगातार सदस्य रहे हरिशंकर जैन और फिर उनके बेटे 2010 से उस लीगल टीम में रहे। ये लोग 102 मुकदमे लड़ रहे हैं और सभी सनातन धर्म के पक्ष वाले मुकदमे हैं। जब अयोध्या का मामला चल रहा था तब बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की ओर से इनको प्रस्ताव आया था कि आपको बहुत बड़ी फीस देंगे, दूसरी सुविधाएं मिलेंगी, आप हमारी तरफ से लड़िए। इन्होंने मना कर दिया। ये अयोध्या का केस लड़े हाई कोर्ट में, फिर सुप्रीम कोर्ट में। इसको ये अपने लिए सम्मान और गर्व की बात मानते हैं। इसे ये अपनी जीत या हार से तय नहीं करते हैं बल्कि अपने कारण (कॉज) से तय करते हैं कि यह अच्छा काम था, या बुरा काम था। यही दोनों मथुरा का भी केस लड़ रहे हैं। यही लोग वक्फ बोर्ड का जो एक्ट है 1995 का और 2013 में जो उसमें संशोधन हुआ, उसके खिलाफ भी लड़ रहे हैं। इन्होंने प्लेसेस ऑफ वरशिप के जून 1991 के एक्ट को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी हुई है।

भगवान राम संवैधानिक संपत्ति

सभी जानते हैं कि अयोध्या मामले की कानूनी लड़ाई में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जीत हुई। कोर्ट ने तमाम तरह के निर्देश दिए। लेकिन उसका एक सबसे महत्वपूर्ण पक्ष- जिसकी वजह से हिंदुओं के पक्ष में फैसला देने में कोर्ट को आसानी हुई, खासतौर से सुप्रीम कोर्ट को- वह यह था कि 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद अयोध्या में पूजा अर्चना बंद हो गई थी। हरिशंकर जैन को यह मालूम था कि अगर ऐसा नहीं होगा तो हमारा दावा कमजोर हो जाएगा और इसे साबित करना मुश्किल हो जाएगा। वे इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच गए और कहा कि रामलला की पूजा अर्चना और उनका दर्शन रोज होना चाहिए। उसका आधार उन्होंने यह बनाया कि भगवान राम संवैधानिक संपत्ति हैं। संविधान की जो मूल प्रति है उसके हर पन्ने पर भगवान राम की फोटो है। लगातार 10 दिन तक इस मामले पर सुनवाई चली और वे केस जीते। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह माना कि भगवान राम कंस्टीट्यूशनल एंटिटी हैं। उनके दर्शन, उनकी पूजा को रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने आदेश दिया कि तत्काल प्रभाव से उनकी पूजा-अर्चना और दर्शन शुरू किया जाए। यह ऐसा मुद्दा है जो पढ़ने-सुनने में भले बड़ा न लगे लेकिन इसने केस को हिंदुओं के पक्ष में करने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सनातनी के तौर पर समर्पित

दोनों पिता-पुत्र का कमिटमेंट देखिए-विष्णु जैन ने मध्य प्रदेश में एक बार एक भाषण में बताया कि भारतीय सभ्यता-संस्कृति और सनातन धर्म से जुड़े हुए इन मुद्दों की ओर उनकी रूचि कैसे बढ़ी और कैसे इसमें आए। एक बार उनके पिता को दिल्ली में कोर्ट में ही अस्थमेटिक अटैक आया। उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि उनके पास वेंटिलेटर नहीं है और इनकी हालत बहुत खराब है। इनको सेप्टिसीमिया हो गया है। इनके बचने की उम्मीद बहुत कम है। ये विचार चल रहा था कि क्या किया जाए, इनको किसी और अस्पताल में शिफ्ट किया जाए या नहीं किया जाए। तभी हरिशंकर जैन ने बेटे को बुलाया और कहा कि लखनऊ का जो मस्जिद वाला केस है- जिस पर हमारा दावा है कि इसे मंदिर तोड़कर बनाया गया है- उसमें कोर्ट को जवाब भेज देना नहीं तो वह केस खारिज हो जाएगा। हम केस हार जाएंगे। विष्णु जैन को लगा कि जो व्यक्ति मरने के करीब है, डॉक्टर जवाब दे चुके हैं उसको अपनी जिंदगी की नहीं बल्कि इस बात की चिंता है कि हिंदुओं का पक्ष कमजोर न पड़ जाए। उन्होंने कहा कि मैं भी आज की युवा पीढ़ी की तरह सोचता था कि अच्छी जीवनशैली होनी चाहिए, पैसा होना चाहिए, पैसा कमाना चाहिए। हम एडवोकेट जनरल बन कर सरकारी सुविधा का भोग कर सकते थे। उस दिन से मेरी जिंदगी बदल गई। उस दिन ये समझ में आया कि ये काम जो हम कर रहे हैं, जो मेरे पिता कर रहे हैं यही हमारे जीवन का ध्येय होना चाहिए। इसलिए ये पिता-पुत्र वकील के तौर पर नहीं एक सनातनी के तौर पर समर्पित हैं। इन्होंने अपना पूरा जीवन एक तरह से समर्पित कर रखा है। दोनों अच्छे वकील हैं, दोनों अच्छी फीस लेकर बड़े-बड़े मुकदमे लड़ सकते हैं लेकिन वे ज्यादातर मामले ऐसे ही लेते हैं। इसीलिए इन्होंने श्रृंगार गौरी का केस लेने का फैसला किया। ज्ञानवापी के नायकों में इन दोनों पिता-पुत्र को मैं सबसे ऊपर रखता हूं। सनातन धर्म को मानने वालों को इन्हें शत-शत प्रणाम करना चाहिए।

वो पांच महिलाएं

ज्ञानवापी मामला: ये हैं वो पांच महिलाएं, जिनकी याचिका ने देश को हिला कर रख दिया, जानिए एक साथ आने के पीछे है किसकी सोच

 

 

अगले नायक या कहें कि नायिकाएं पांच महिलाएं हैं। इनमें से चार बनारस की ही रहने वाली हैं और एक दिल्ली की हैं। ये महिलाएं अक्सर काशी विश्वनाथ मंदिर, संकट मोचन मंदिर और दूसरे धार्मिक सम्मेलनों में जाती रहती थी। इनकी आपस में मुलाकात होती रहती थी। इन्होंने अपनी मां-दादी से श्रृंगार गौरी की पूजा के बारे में सुना था कि उनकी पूजा करने पहले अक्सर जाया जाता था, अब साल में एक बार जाने को मिलता है। उन्होंने तय किया कि उन्हें इसके लिए कुछ करना चाहिए। ये महिलाएं हरिशंकर जैन के पास गईं और उनसे बात की तो वे तुरंत यह केस लड़ने को तैयार हो गए। इन पांच महिलाओं में एक हैं मंजू व्यास- जो हैं तो लखनऊ की लेकिन शादी बनारस में हुई है तो बनारस में ही रहती हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास ही इनका घर है। इनके पति की कपड़ों की दुकान थी जो अधिग्रहण की वजह से बंद हो गयी और अब वे दूसरा कुछ काम करते हैं। दूसरी महिला हैं रेखा पाठक, तीसरी हैं लक्ष्मी देवी, चौथी हैं सीता साहू और पांचवी हैं राखी सिंह। इन्होंने17 अगस्त, 2021 को तय किया कि एक केस फाइल करना चाहिए। लक्ष्मी देवी बनारस के ही सूरजपुर में रहती हैं। सीता साहू बनारस के चेतगंज में रहती हैं और राखी सिंह दिल्ली की हैं। इन महिलाओं ने भारत के इतिहास में एक नया मोड़ ला दिया ज्ञानवापी की सच्चाई को सामने लाकर। हम आप पीढ़ियों से यह जानते थे लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था। उस सच्चाई को इन्होंने सबके सामने ला दिया। अगर इन्होंने याचिका दायर न की होती तो ज्ञानवापी का सच छुपा रहता और कभी कोई मानने को तैयार नहीं होता। भगवान शंकर का अपमान इसी तरह से होता रहता। जिस तरह से वजू खाने में शिवलिंग का होना और उसमें हाथ-पैर धोना,थूकना इससे बड़ा हिंदू धर्म का कोई अपमान नहीं हो सकता। यह सालों से नहीं सदियों से हो रहा है। इससे आप अंदाजा लगाइए कि हिंदू धर्म के जो द्रोही हैं, जो इनका बचाव करने वाले हैं वही असली विलेन हैं। मैं मुसलमानों को उस तरह से विलेन नहीं मानता जैसा हिंदू द्रोहियों को मानता हूं।

रवि दिवाकर और अजय मिश्रा

Gyanvapi Mosque Verdict: Judge Ravi Kumar Diwakar Expresses Concerns About Family's Safety

तीसरे नायक हैं बनारस के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर। दलित समुदाय से आते हैं, लखनऊ के रहने वाले हैं। लखनऊ से ही पढ़ाई लिखाई की है। 2009 में सिविल जज (जूनियर) के रूप में नियुक्त हुए थे। इनकी पहली पोस्टिंग आजमगढ़ में हुई थी। उसके बाद ट्रांसफर होते-होते यहां पहुंचे। इन्होंने साहस दिखाया उस मुकदमे को सुनने का और उस पर आदेश देने का। उनका एक वाक्य बरसों बरस और सदियों तक गूंजता रहेगा हिंदू धर्म के मानने वालों के दिलो-दिमाग पर। उन्होंने कहा कि “ताला खोलना पड़े तो खोलो, तोड़ना पड़े तो तोड़ो लेकिन सर्वे तो होगा।” उनके आदेश पर सर्वे हुआ और उसके बाद सच और तथ्यों की ऐसी बाढ़ आई जिसमें सारे विरोधी नैरेटिव एक तरह से दब गए। मुस्लिम पक्ष के पास कोई तर्क नहीं बचा है और द्रोही हिंदुओं के पास बौखलाहट के सिवा कुछ नहीं बचा है। टाइम्स ऑफ इंडिया का वह संपादकीय जिस सज्जन ने लिखा होगा, उसे पढ़ते समय मुझे लगा कि शायद वह लिखते समय अपने बाल भी नोच रहा होगा कि यह कैसे हो रहा है। इनको समझ में नहीं आ रहा है कि क्या हो रहा है और देश कैसे बदल रहा है।

चौथे नायक हैं अजय मिश्रा। अजय मिश्रा पहले कोर्ट कमिश्नर थे जिनको अब इस आधार पर हटा दिया गया है कि उन्होंने कुछ जानकारियां लीक कर दी। इस पर उन्होंने कहा कि इस बात से मैं बहुत दुखी हूं, मेरे साथ धोखा हुआ है। लेकिन उन्होंने सनातन धर्म के लिए बड़ा काम किया है। उन्होंने अपने प्रोफेशन पर सनातन धर्म को महत्व दिया है। उन्होंने जो जानकारी दी उसी जानकारी के आधार पर देश भर में यह माहौल बना है। सनातन धर्म के मानने वालों के मन में उत्साह, गर्व, खुशी का माहौल बना है। उन्हें उनके इस योगदान के लिए इतिहास हमेशा याद रखेगा। भले ही उन्हें कोर्ट कमिश्नर पद से हटा दिया गया हो- भले ही उनको इस बात का दुख हो रहा हो। लेकिन उनका योगदान सनातन धर्म हमेशा याद रखेगा।

अन्य कोर्ट कमिश्नर

पांचवें नायक के रूप में दूसरे कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह और अन्य को रखता हूं। जिस श्रद्धा भाव से, जिस तन्मयता से इन लोगों ने अदालत के आदेश के मुताबिक रिपोर्ट तैयार की, वह रिपोर्ट इस देश के इतिहास को बदलने वाली होगी। इस ऐतिहासिक रिपोर्ट में जो तथ्य आए हैं उसको काटना किसी वकील के लिए संभव नहीं है। मस्जिद पक्ष के पास बचाव का अब एक ही रास्ता है कि इस मामले की सुनवाई नहीं होनी चाहिए क्योंकि 1991 का जो प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट है वह इसकी इजाजत नहीं देता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले की सुनवाई में कहा कि यह कानून किसी धार्मिक स्थल की पहचान तय करने से नहीं रोकता है। इससे स्पष्ट हो गया है कि ये केस मस्जिद पक्ष वाले हार चुके हैं। कानून की अदालत से फैसला जब भी आए, ये ज्ञानवापी के ऐसे नायक हैं जिनके बारे में हमें जानना चाहिए। हमें उनका सम्मान करना चाहिए। समाज में नायक ऐसे ही बनते हैं जो अपने समर्पण के कारण स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के लिए, धर्म के लिए काम करते हैं। उन्हीं को लोग याद करते हैं, लंबे समय तक याद रखे जाते हैं।