दिनेश पाठक।

दिल दहलाने वाली खबर लखनऊ से आई और मुझे अंदर तक झकझोर गयी। 10वीं के छात्र ने अपनी माँ को घर के अंदर गोलियों से छलनी कर दिया। शव के साथ तीन दिन तक बना रहा। बहन को भी धमका कर घर में रखे रहा। दुर्गन्ध उठने पर सेना में तैनात जेसीओ पिता को झूठी कहानी के जरिये सूचना दे दी। शुरूआती विवेचना में हत्या के पीछे माँ का ऑनलाइन गेम खेलने से रोकना है। घटना निश्चित दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन हमें सतर्क भी करती है।

कैसे करें बच्चों का लालन-पालन

समाज को झकझोरती है। आखिर कैसे करें बच्चों का लालन-पालन? क्या है ऐसी समस्याओं का समाधान? यह किशोर सुधार गृह चला जाएगा। कानूनी दाँव-पेंच चलेगा और कुछ दिन बाद हम सब इस हादसे को भूल जाएँगे। यहाँ दोषी कौन है, क्यों है, ये हो सकता था, वो हो सकता था आदि-आदि लिखकर मैं मरहूम माँ या सेना में तैनात जेसीओ पिता को दोषी नहीं ठहरा सकता क्योंकि वे तो अपनी समझ से अपना बेस्ट दे ही रहे थे। लेकिन यह तय है कि चूक हुई है। मसलन, घर में लाइसेंसी हथियार रखा था तो उसकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। अगर होते तो बच्चे को भला कैसे मिलता? बच्चा माँ पर गुस्सा करता है। हथियार उठाता है। घर में उसे कारतूस भी मिल जाता है। उसे या तो वह खुद लोड करता है या तो उसमें कारतूस पहले से लोड होता है। दोनों ही सूरत किसी भी घर में सदस्यों की सुरक्षा के लिए खतरनाक है। इस घर का रिजल्ट सामने है।

अगर बच्चे को गेम की लत लगी तो क्या एक दिन में? शायद नहीं। गेम खेलने में इंटरनेट और बेहतरीन स्मार्ट फोन या लैपटॉप कहाँ से आया? स्वाभाविक है, पैरेंट्स ने ही दिलाया। सारी सुविधाएँ देने के बाद क्या बच्चे पर पैरेंट्स की उतनी नजर थी, जितनी होनी चाहिए। शायद नहीं। और यह हादसा हो गया। एक हँसता-खेलता परिवार टूट गया। बिखर गया। बच्चों के सिर से माँ का आँचल और पति के लिए पत्नी का असमय जाना किसी भी परिवार के लिए असामान्य घटना है। पूरी की पूरी गृहस्थी उजड़ गयी। उम्मीदें टूट गयीं। संभावनाएं समाप्त हो गयीं।

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मैं उस माँ को नमन करते हुए, पिता के प्रति विनम्र भाव रखते हुए कहना चाहता हूँ कि बच्चों का लालन-पालन उस स्वादिष्ट मसालेदार सब्जी बनाने की प्रक्रिया की तरह होती है जिसे हम बड़े चाव से अपने और अपनों के लिए बनाते हैं। ऐसी सब्जी के लिए सामान्य सा नियम है। धीमी आँच पर कड़ाही चढ़ाएं। तेल डालें। फिर हींग, जीरा, मेथी, लहसुन, प्याज का तड़का डाल दें। जब रंग सुनहरा हो जाए तो मसाला डालें और फिर धीमी ही आँच पर तब तक भूनें जब तक कि मसाला तेल न छोड़ दे। फिर सब्जी डालें और मद्धम आँच पर उसे धीरे-धीरे मसाले के साथ मिलाएँ। कुछ देर यह प्रक्रिया चलने दें। इस पूरी प्रक्रिया में आपके हाथ से कल्छी छूटनी नहीं चाहिए। जरा सी चूक हुई नहीं कि सब्जी बेस्वाद हो सकती है।

जैसे ही आपको लगे कि सब्जी और मसाले मिल गए हैं, आपस में इनका रिश्ता गहरा हो गया है तो इसमें आवश्यकता के मुताबिक पानी, नमक डालकर आँच तनिक तेज कर दें। नजर रखें कि कड़ाही में उबाल तो आये लेकिन सब्जी का रस बहने न पाए। ऐसा हुआ तो भी स्वाद पर नकारात्मक असर पड़ेगा। यह नियम गैस चूल्हे पर भी लागू है, इन्डक्शन पर भी लागू है और अगर गलती से कहीं आपके घर में मिट्टी-लकड़ी का चूल्हा है तो उस पर भी लागू है। हम सब इस बात से परिचित हैं कि आजकल हर घर में मौजूद कुकर में बनी सब्जी में वह स्वाद नहीं होता जो ऊपर बनाई गयी विधि से मिलता है।

कहीं पैसों का प्रदर्शन तो कहीं अत्याधुनिक दिखने का दबाव

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बस, बच्चों का लालन-पालन भी कुछ कड़ाही में बनने वाली मसालेदार सब्जी की तरह ही किया जा सकता है। गारंटी फिर भी आप नहीं ले सकते कि बच्चा सही रास्ते पर ही जाएगा लेकिन सम्भावना इस बात की है कि बेपटरी नहीं होगा।

आजकल हम कहीं भौतिकवाद में, कहीं पैसों के प्रदर्शन में तो कहीं अत्याधुनिक दिखने के दबाव में बच्चों को दे तो सब कुछ रहे हैं लेकिन बंद कुकर की तरह सारी सुविधाओं के साथ कमरे में छोड़ दे रहे हैं। फिर भाप निकलने की जगह न मिलने की वजह से कई बार कुकर फटने के हादसे हम सबने सुने हैं। जानते हैं क्यों? अरे क्या मूर्खतापूर्ण सवाल मैं पूछ रहा हूँ। आप सब जानते हैं कि अगर कुकर की सीटी और भाप निकलने के रास्ते की सफाई नहीं की गयी तो हादसे तय हैं।

बच्चों को सुविधाएं जरुर दें, लेकिन…

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ठीक इसी तरह बच्चों को सुविधाएं दें। जरुर दें। लेकिन उन्हें कमरे रुपी कुकर में न छोड़ें। कड़ाही में सब्जी की तर्ज पर बचपन को पकने दें। उन पर नजर रखें। उस कमरे में अनिवार्य रूप से जाएँ जहाँ बच्चा सोता / सोती है। पढ़ाई की जगह जरुर विजिट करें। समय-समय पर बस्ता, आलमारी, बिस्तर की जाँच-पड़ताल भी करते रहें और अंतिम बात यह कि बच्चों के साथ समय जरुर गुजारें। उनसे आज की दिनचर्या पूछें और कल का प्लान भी। दोस्तों के बारे में बात करें और पढ़ाई की योजना पर भी। और हाँ, दो-चार प्रेरक किताबें अपने आसपास रखें। बच्चे वही करते हैं जो बड़ों को करते हुए देखते हैं। अगर आप गीता, रामचरित मानस, कुरआन, बाइबिल पढेंगे तो प्रबल सम्भावना है कि बच्चों की रूचि भी इसमें जाग जाए। अगर स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसी हस्तियों को पढेंगे तो संभव है कि आपके बच्चे भी उन्हें पढ़ना शुरू कर दें।

कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप कितने व्यस्त हैं? थोड़ी कमाई कम कर दें लेकिन प्लीज व्यस्तता का बहाना न बनाएँ और बच्चों को समय जरुर दें। उन्हें सही राह दिखाने का मात्र यही एक रास्ता है। मोबाइल, इंटरनेट का उपयोग तो हम सब कर ही रहे हैं। इसके उपयोग-दुरुपयोग को भी हम सब आसानी से देख पा रहे हैं। और हाँ, बच्चे केवल परिवार के नहीं, देश के भी भविष्य हैं। इनका बेपटरी होना, हादसों को दावत देना है। मुझे उम्मीद है कि आप ऐसा कदापि नहीं करेंगे।

(लेखक पेरेंटिंग एक्सपर्ट हैं)