1988 में बोफोर्स दलाल क्वोत्राचि के स्विस बैंक के गुप्त खाते का नंबर तक नहीं छप सका?
सुरेंद्र किशोर।
मैं ‘जनसत्ता’ में छपी अपनी पुरानी रपटों को उलट रहा था। मुझे वी.पी.सिंह के 4 नवंबर, 1988 के पटना भाषण की अपनी रिपार्टिंग मिली। याद आया कि तब क्या-क्या हुआ था।
वी.पी. सिंह ने उस भाषण में स्विस बैंक के एक खुफिया खाते का एक नंबर बताया था। आरोप लगाया कि उस खाते में बोफोर्स की दलाली के पैसे जमा हैं। पूर्व रक्षा मंत्री ने यह भी चुनौती दी कि यदि खाता नंबर गलत हुआ तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।
खबर किसने रोकी… किसने रुकवाई?
यह खबर ‘जनसत्ता’ में तो Swiss bank Account number ke sath पहले पेज पर छपी। पर अन्य अखबारों में? मुझे बताया गया कि Account no. कहीं और नहीं छपी। यदि कहीं छपी हो तो कोई फेसबुक फ्रेंड अब भी मुझे संदर्भ देकर बता दें। मैं अपनी अधूरी जानकारी को पूरा कर लूंगा।
क्या तब वह खबर रोक दी गई?… किसने रोकी?… किसने रुकवाई?… या उन दिनों की मीडिया ‘गोदी मीडिया’की भूमिका में थी?
हां, एक बात का पता मुझे बाद में चला। एक न्यूज एजेंसी ने 4 नवंबर को ही उस खाता नंबर के साथ वी.पी. सिंह का भाषण जारी किया था। पर उस खबर को बाद में ‘किल’ कर दिया गया। ऐसा ऊपरी दबाव में हुआ? या खुद एजेंसी के मुख्यालय ने अपने विवेक से काम किया? यह पता नहीं चल सका।
खाता नंबर की सच्चाई
बोफोर्स ने जिन प्रतिनिधि कंपनियों को भुगतान किया,उससे संबंधित कागजात की फेसीमाइल काॅपी मैं इस पोस्ट के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं। उसमें भी वही खाता नंबर लिखा हुआ है जिसकी चर्चा वी.पी.सिंह ने पटना में की थी। जब सी.बी.आई.ने बोफोर्स दलाली सौदे की जांच शुरू की तो उसे भी वही खाता नंबर मिला था।
आज क्या नहीं छप रहा पर कुछ लोगों के लिए आपातकाल जैसे हालत
नरेंद्र मोदी के शासन काल में कोई कह रहा है कि चौकीदार चोर है, तो वह भी छप रहा है। कोई- इमरान मसूद- जन सभा में खुलेआम कह रहा है कि मोदी को बोटी -बोटी काट देंगे। फिर भी कुछ लोगों के लिए आज इस देश में आपातकाल जैसी स्थिति है। मीडिया पर अघोषित सेंसरशिप है। ‘गोदी मीडिया’ के जुमले का आए दिन इस्तेमाल हो रहा है। पर सवाल है कि जब एक अवैध आर्म्स दलाल के बैंक खाते का नंबर तक नहीं छपने दिया गया, आज के जुमलेबाजों के लिए तब आपातकाल जैसा हालात कैसे नहीं थे? तब की मीडिया स्वतंत्र थी या किसी की गोदी में थी? ऐसे ही दोहरा मापदंडों के कारण देश के अधिकतर जुमलेबाजों की बातों को अधिकतर लोग नजरअंदाज ही करते जा रहे हैं।
ऐसा नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार कोई गलती नहीं करती। पर जो गलती वह करती है, सबूतों के साथ उसको मीडिया में पूरा स्थान दो। पर, उसने जो गलतियां नहीं कीं,उसके लिए भी दोषी ठहराओगे तो वह काम सिर्फ अपनी साख की कीमत पर ही करोगे।
जो कहते हैं ‘2G’, ‘बोफोर्स’ में क्या मिला
आज भी कुछ लोग यदाकदा यह कहते रहते हैं कि ‘‘बोफोर्स घोटाले की जांच में क्या मिला?’’ … ‘‘टू जी में क्या मिला?’’ टू जी का मामला तो दिल्ली हाईकोर्ट में अब भी लंबित है। किंतु बोफोर्स केस को रफा-दफा करने की कहानी यहां पढ़ लीजिए। वैसे बोफोर्स मामले में भी एक अपील सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
सन 2019 के नवंबर में आयकर विभाग ने मुम्बई स्थित बोफोर्स दलाल विन चड्ढ़ा के फ्लैट को 12 करोड़ 2 लाख रुपए में नीलाम कर दिया। विन चड्ढ़ा के परिजन ने इस नीलामी का विरोध तक नहीं किया।
मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्व काल में आयकर न्यायाधिकरण ने कह दिया था कि बोफोर्स की दलाली के मद में 41 करोड़ रुपए क्वात्रोचि और विन चड्ढ़ा को मिले थे। याद कीजिए, राजीव गांधी लगातार कहते रहे कि बोफोर्स सौदे में कोई दलाली नहीं ली गई। प्रणव मुखर्जी ने तो यहां तक कह दिया था कि बोफोर्स मामला मीडिया के दिमाग की उपज था।
किसने खुलवाया क्वात्रोचि का जब्त खाता
सी.बी.आई. ने स्विस बैंक की लंदन शाखा में बोफोर्स की दलाली के पैसे का पता लगा लिया था। वह पैसा क्वात्रोचि के खाते में था। उस खाते को गैर कांग्रेसी शासन काल में सी.बी.आई. ने जब्त करवा दिया था। पर बाद में मनमोहन सरकार ने अपने एक अफसर को लंदन भेजकर उस जब्त खाते को खुलवा दिया। क्वात्रोचि को भारत से भाग जाने दिया गया। लंदन बैंक के अपने खाते से पैसे भी क्वात्रोचि ने निकाल लिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख लेखक की वॉल से)