#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी।

रोमन सम्राट मार्कस आरेलियस  (Marcus Aurelius) विश्व के सफलतम सम्राटों में से एक रहा है। भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1878-1972) के अनुसार:

“राजा जनक के बाद इस संसार में दो प्रसिद्ध राज-ऋषि हो चुके हैं एक तो भारतवर्ष के सम्राट अशोक और दूसरे रोम साम्राज्य के मार्कस आरेलियस। मार्कस ने सम्राट अशोक के प्रायः 400 वर्ष बाद ईस्वी सन् 161 से अपने देहांत के वर्ष सन् 180 तक राज्य शासन किया।”

मार्कस ने स्वयं को समझाने के लिए समय-समय पर कुछ छोटी-छोटी टिप्पणियां लिखीं:

“सत्य को छोड़कर प्राप्त की गई वस्तु से आनंद नहीं मिल सकता। जिस वस्तु से तुम्हारे गौरव को बट्टा लगता हो उससे दूर रहो। घृणा, विरोध भाव, ढोंग, इत्यादि छोड़ दो। जिस भोग को तुम दूसरों से छिपकर दीवार या पर्दे की आड़ में भोगते हो, उससे सच्चा आनंद कैसे प्राप्त हो सकता है?”

“शारीरिक बल से भले ही तुम्हें कोई जीत ले किंतु शील, विनय, सहिष्णुता और अक्रोध में तुम्हें किसी से नहीं हारना चाहिए।”

“क्षमा मनुष्य का धर्म है।”

तब प्रिंटिंग प्रेस नहीं था

50+ Marcus Aurelius Quotes & Deep Questions from Meditations | Sloww

मार्कस आरेलियस 20 वर्ष तक रोम का सम्राट रहा। वह बहुत सफल राजा था। उसने स्वयं को  समझाने के लिए एक डायरी में जो छोटी-छोटी बातें लिखीं थीं, वे कहीं प्रकाशित करने के लिए नहीं लिखी थीं। उन दिनों कोई प्रिंटिंग प्रेस नहीं होता था। बाद में सन् 1450 के आसपास जब दुनिया में पहला प्रिंटिंग प्रेस बना,  तब कुछ वर्षों बाद किसी की  निगाह मार्कस आरेलियस की उस छोटी सी डायरी पर पड़ी  जिसमें उनके प्रेरणाप्रद  विचार लिखे थे । फिर उसे  पुस्तक रूप में छपाया गया। वह पुस्तक रोमन भाषा में थी। बाद में उसका अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। धीरे-धीरे भगवद्गीता की तरह वह पुस्तक विश्व की उत्कृष्ट पुस्तकों में से एक मानी गई। उस पुस्तक का अंग्रेजी से तमिल में अनुवाद प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने किया था। तमिल उनकी मातृभाषा थी। और तमिल से हिंदी में अनुवाद उनकी पुत्री लक्ष्मी देवदास गांधी ने किया। लक्ष्मी देवदास गांधी  महात्मा गांधी के पुत्र  देवदास की पत्नी थीं।

आत्म चिंतन का सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशन

हिंदी में उस पुस्तक का अनुवाद बहुत अच्छा है।  एक सौ से कम पृष्ठों  वाली इस हिंदी पुस्तक का नाम है ‘आत्मचिंतन’। यह सस्ता साहित्य मंडल नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है। ‘आत्मचिंतन’  देश के तमाम रेलवे स्टेशनों पर स्थित सर्वोदय साहित्य  के स्टालों पर उपलब्ध है। मैंने यह पुस्तक वर्ष 2003 में  सर्वोदय साहित्य स्टाल से दस रुपये में खरीदी थी।

सन् 1949 में हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशन

सस्ता साहित्य मंडल द्वारा इस पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व इसे हिंदुस्तान टाइम्स नई दिल्ली ने वर्ष 1949 को प्रकाशित किया था। तब इसका मूल्य मात्र एक रुपए था। शायद हिंदुस्तान टाइम्स इस पुस्तक का प्रकाशन इसलिए कर पाया था क्योंकि महात्मा गांधी के पुत्र देवदास गांधी हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक थे।

इंटरनेट पर भी उपलब्ध

 

हिंदुस्तान टाइम्स से प्रकाशित आत्म चिंतन पुस्तक इंटरनेट पर फ्री में उपलब्ध है। और इसे कोई भी पढ़ सकता है या डाउनलोड कर सकता है। इसका इंटरनेट लिंक है:

Aatm Chintan Book
https://epustakalay.com/book/58227-aatm-chintan-by-chkravarti-rajgopalacharya-marcus-aurelius/

राजगोपालाचारीजी की अन्य पुस्तकें और उनका मातृभाषा प्रेम

C Rajagopalachari: Biography of the first Governor-General – Pakka Patriot

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने कुछ अन्य पुस्तकें भी लिखी जैसे कि ‘महाभारत-कथा’ ‘दशरथ-नंदन श्रीराम’, आदि। राजगोपालाचारीजी ने यह पुस्तकें अपनी मातृभाषा तमिल में ही लिखीं। सबको अपनी मातृभाषा से प्यार तो होना ही चाहिए। बाद में श्री राजगोपालाचारीजी की पुस्तकों का हिंदी, अंग्रेजी तथा कुछ अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ।
मार्कस आरेलियस की पुस्तक आत्म चिंतन में लगभग वही सब बातें कही गई हैं जो भगवद्गीता में भी हैं।

राजगोपालाचारीजी की पुस्तकों का प्रधान उद्देश्य

श्री राजगोपालाचारीजी का पुस्तकों के लिखने के पीछे एक ही प्रधान उद्देश्य होता था- भारतवासियों में ज्ञान और शांति की वृद्धि हो तथा सबके ह्रदय पवित्र बनें।
(लेखक झारखण्ड केंद्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)