#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी।

आम तौर से यह समझा जाता है कि कोई संत या साधू अपना अनुभव हिन्दी में लिखेगा। परन्तु एक संत थे श्रीनारायण स्वामीजी। उनसे ऋषिकेश में सन् 1930 में गीता प्रेस की हिन्दी मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ के आदि सम्पादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार (1892-1971) की भेंट हुई। पोद्दारजी ने उनसे कल्याण के लिए अपने अनुभव लिखने का आग्रह किया। सन् 1930 में किया था। पहले तो वह अपना अनुभव लिखने को तैयार ही नहीं थे। परन्तु पोद्दारजी के अधिक आग्रह करने पर उन्होंने कहा कि मैं उर्दू में लिखूंगा। पोद्दारजी ने कहा ठीक है उर्दू में ही लिख दीजिये।

श्रीनारायण स्वामीजी ने व्यावहारिक बातें लिखीं

अपने अनुभवों में श्रीनारायण स्वामीजी ने बहुत सी व्यावहारिक बातें बताईं। नींद कैसे कम करें, परस्त्री प्रेम से कैसे बचें, जीह्वा पर संयम कैसे किया जाए, आदि। उन्होंने सत्य के अपने प्रयोग भी लिखे।

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श्रीनारायण स्वामीजी के बारे में पोद्दारजी के विचार

उनके बारे में श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी ने लिखा:“कुछ दिनों पूर्व साधु-संग-लाभ के लिए मैं ऋषिकेश गया था। वहाँ स्वर्गाश्रम में ‘श्रीनारायण स्वामीजी’ के दर्शन हुए। आप अमीर-घराने में पैदा हुए एक उच्चशिक्षित पुरुष हैं। इस समय निरन्तर श्री ‘नारायण’नाम का जप करते हैं, चौबीसों घण्टे मौन रहते हैं। केवल सवा दो घण्टे सोते हैं। अपने पास कुछ भी संग्रह नहीं रखते। कमर में एक डोरी बांध रखी है, उसी के सहारे टाट के टुकड़े का कौपीन लगाए रहते हैं। भगवान् और भगवत्-प्रेम की बातें होते ही आपके नेत्रों से अश्रुपात होने लगते हैं। इस समय रात को आप ‘विनयपत्रिका’सुना करते हैं। … (ऐसे वक्त) आपके चेहरे पर प्रेम के जो भाव प्रकट होते हैं वे देखने ही योग्य होते हैं। हमलोगों के अनुरोध करने पर आपने अपने जीवन की कुछ बातें रात को मानसिक भजन में से समय निकाल कर उर्दू में लिखने की कृपा की। आपने लिखकर बताया कि ‘इसमें जो कुछ भी साधन लिखे गए हैं, वे सब मैं अपने जीवन में कर चुका हूँ या कर रहा हूँ। इसमें ऐसी कोई बात नहीं लिखी गई है जिसका मुझे स्वयं अनुभव न हो। आपके उर्दू लेख को हिन्दी में आपके सामने ही होशियारपुर के एडवोकेट लाला अयोध्याप्रसादजी और बुलंदशहर के पं हरिप्रसादजी ने मुझको लिखवा दिया था।”

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा लिखी: सत्य के प्रयोग। लेकिन सत्य के प्रयोग करने वाले वह विश्व के अकेले व्यक्ति नहीं थे। ऐसे अन्य व्यक्ति भी हुए हैं, परन्तु उन्हें कोई नहीं जनता। ऐसे ही एक व्यक्ति थे श्रीनारायण स्वामीजी। उनके अनुभव और व्यावहारिक ज्ञान को गुमनामी से निकाल कर जनता के सामने लाने का प्रयास गीता प्रेस के हिन्दी मासिक ‘कल्याण’ के सम्पादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी ने सन् 1930 में किया था।

विवेकानन्द ने क्या कहा

Swami Vivekananda: The monk for every Indian | Mint

विवेकानन्द ने एक बार कहा था कि यदि तुम्हें किसी व्यक्ति का चरित्र समझना हो, तो यह मत देखो कि उसने कौन-कौन सी बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। … तुम यह देखो कि वह अपने छोटे-छोटे सामान्य कार्य कैसे करता है; ये वे बातें हैं जो तुम्हें उस व्यक्ति के चरित्र के बारे में बताती हैं। … बुद्ध और ईसा मसीह जिन्हें हम जानते हैं उन महानतम लोगों की तुलना में दूसरे दर्जे के नायक थे जिन्हें यह विश्व नहीं जनता। हर देश में ऐसे सैकड़ों अज्ञात नायक हुए हैं जोकि अपना काम चुपचाप करके चले जाते हैं। वे चुपचाप रहते हैं और चुपचाप चले जाते हैं। … गौतम बुद्ध के जीवन को यदि हम देखें तो वह यह लगातार कहते रहे कि वह पच्चीसवें बुद्ध हैं। इसके पहले जो चौबीस बुद्ध हुए उनको इतिहास में कोई नहीं जानता, हालांकि जिन पच्चीसवें बुद्ध को इतिहास जानता है उनकी नींव तैयार करने का कार्य इन चौबीस गुमनाम बुद्ध लोगों ने किया था। (द लाइफ आफ विवेकानन्द ऐंड द यूनिवर्सल गास्पेल, लेखक: रोम्यां रोलां, प्रकाशक: अद्वैत आश्रम, कोलकाता, 23वां पुनर्मुद्रण, सितम्बर 2006 पृष्ठ 167-168)

श्रीनारायण स्वामीजी ऐसे ही एक गुमनाम और अज्ञात नायक थे। उनके लेख का लाभ गृहस्थ भी उठा सकते हैं।

श्रीनारायण स्वामीजी ने अपने लेख में सत्य, तप, दया, दान के बारे में चर्चा की है। अपने छोटे से लेख में उन्होंने यह बताया है कि कोई व्यक्ति कैसे इन सद्‌गुणों को प्राप्त कर सकता है। इन सद्‌गुणों की प्राप्ति के लिए कुछ साधन गृहस्थों के लिए कठिन है, परन्तु कुछ का लाभ गृहस्थ भी उठा सकते हैं।

एक सन्त का अनुभव

श्रीनारायण स्वामीजी का यह लेख ‘कल्याण’के मई 1931 के अंक में ‘एक सन्त का अनुभव’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। अपने लेख में आपने लिखा:

बोलने में जितना जल्दी कहा जा सकता है, लिखने में उसकी अपेक्षा बहुत अधिक समय लगता है। भगवत्भक्त श्री जयदयालजी (गीता प्रेस के संस्थापक) और श्रीमान हनुमान प्रसाद पोद्दार संपादक ‘कल्याण’ की प्रेरणा से इस पापी जीवने गृहस्थाश्रम और त्याग अवस्था में भजन एवं दूसरे साधनों का जो अनुभव करके किया है, वह लिखता हूं। भक्तजन जो इसको पढ़ें, भूल न जाएं, याद रखें और प्रेम से अभ्यास करें। इस दास ने रात के समय अपना भजन बंद करके अमूल्य समय इसके लिखने में व्यय किया है।

भीख कैसे मांगू, गुरू कैसे मिले

इस शरीर का चैत्र शुदी 15 तारीख 20 अप्रैल सन् 1880 ई. को कायस्थ माथुर कुल के अमीर घराने और संभ्रांत वंश में मुरादाबाद में जन्म हुआ था, इस वंश के पूर्वज बादशाह के यहां किसी प्रांत में दीवान थे। तीव्र वैराग्य होने पर गृहस्थी छोड़ते समय यह ख्याल हुआ कि भीख कैसे मांगेंगे, बहुत शर्म मालूम होगी। दूसरी बात यह है कि गुरु मिलना चाहिए।

इसी ख्याल में था कि भगवान ने एक साधू को मेरे पास भेजा, उन्होंने कहा ‘बद्रीनारायण से आए हैं।’ उनसे मैंने बातचीत की तो कहा कि ‘हमारे पास एक ऐसी जड़ी है, जिसके रोज खाने से भूख नहीं लगती। राई के दाने के बराबर रोज सुबह के वक्त जीभ पर रखकर इसका रस उतारा जाए। गरम बहुत है, बद्रीनारायण में पैदा होती है।’ फिर कहा कि ‘यह बात किसी से कहना नहीं, कहोगे तो इसका फल जाता रहेगा।‘

जड़ी बूटी जिससे भूख नहीं लगती

जड़ी लेकर मैं बहुत खुश हुआ और दूसरे रोज ही रवाना होकर हरिद्वार आया। जो सामान पास था, दे दिया और त्याग करके ऋषिकेश आ गया। सात रोज तक वह जड़ी खाता रहा, बिलकुल भूख नहीं लगी। पर शरीर बहुत कमजोर हो गया था, बैठने उठने की ताकत भी नहीं रही थी और भजन में भी विक्षेप पड़ता था। इस कारण उसको छोड़ दिया और यह समझकर कि भिक्षा करना साधु का धर्म है, क्षेत्र में जाकर भिक्षा मांग लाता और गंगा-किनारे बैठ कर खा लेता।

गुरू बिना सन्यास कैसा

अब दूसरा ख्याल हुआ करता था कि गुरु की बहुत तलाश की, अब तक नहीं मिले, गुरू बिना सन्यास कैसा? इसलिए यह निश्चय किया कि इस शरीर को गंगाजी में डाल कर छोड़ देना चाहिए। इसी ख्याल में था कि एक दिन रात को स्वप्न में मानो पहाड़ के ऊपर मैं खड़ा था कि उसी समय साधु-भेष में भगवान आए और कहा कि ‘तुम्हारे गुरु बद्रीनारायण हम हैं। एक कौपीन और एक कंबल मुझको देकर कहा कि ‘नारायण’ ‘नारायण’ कहो, परमहंस हो जाओ।’ इसके बाद फिर कुछ नहीं देखा मैं खुश होकर ऋषिकेश से गंगोत्री केदारनाथ होता हुआ बद्रीनारायण पहुंचा और वहां गुरुमहाराज के दर्शन किए। फिर स्वप्न में आज्ञा हुई कि चारों धाम करके नर्मदा-किनारे जाकर भजन करो। गुरु महाराज की आज्ञानुसार चारों धाम करके नर्मदा-किनारे पहुंचा और भजन संख्या धीरे-धीरे बढ़ाता रहा एवं जो साधन नीचे लिखे हैं, करता रहा।

पूर्व के जीवन अथवा गृहस्थ-आश्रम के हालात से अब मुझको नफरत हो गई है, और दूसरे कारण भी हैं इसलिए उनको लिखना मैं पसंद नहीं करता। क्षमा चाहता हूं। यही मेरा जीवन-चरित्र है और मेरी धारणा ही उपदेश है। परमहंस-भेष को आज तक सात वर्ष दो महीने चौबीस दिन हुए हैं।

भगवान् ने श्रीमद्भागवत में निम्नलिखित चार खंभे धर्म के बतलाए हैं : 1-सत्य, 2-तप, 3-दया और 4-दान।

इन चारों के बारे में श्री नारायण स्वामीजी ने अपने अनुभव लिखे। उनके कुछ अंश इस प्रकार हैं:

सत्य बोलने के साधन

मौन धारण करना : गृहस्थी के कार्यों में जो अधिक समय न मिले तो सुबह के वक्त भी स्नान करने के बाद दो चार घंटे तक तो पूजन पाठ करने में मौन अवश्य रखना चाहिए।

कम बोलना : आजकल वृथा भाषण करने का बहुत रिवाज है इसको छोड़ना। जरूरत के वक्त बात करना, या ज्ञानचर्चा करना हो तो बोलना। (यदि कोई गृहस्थ इसका अभ्यास कर ले, तो वह अध्यात्म की पहली सीढ़ी तो चढ़ ही लेगा।)

एकांत : संबंधियों या दोस्तों से कम मिलना घर में जाकर भी अलग कमरे में बैठना और कोई धार्मिक पुस्तक देखना या जगत् की असत्यता पर विचार करना।

अखबार कभी नहीं देखना : दुनिया भर की खबरें मालूम होने से व्यर्थ बातों में मन की इस स्फुरणा बढ़ती है, दूसरों को वह खबरें सुनाने में झूठ सच बोलना पड़ता है। बेकार वक्त खराब होता है। धार्मिक अखबार देखने में कभी हर्ज नहीं।

वचन निभाना : किसी को वचन देना तो सोच कर देना और उसे जरूर पूरा करना। जैसे आपने किसी से कहा कि मैं शाम को पांच बजे अमुक स्थान पर मिलूंगा तो अवश्य पांच बजे से दो-चार मिनट पहले ही वहां पहुंच जाना चाहिए।

सोने से पहले क्या करें : रात को सोते वक्त या विचार करना चाहिए कि आज सुबह से इस समय तक मैं कहां-कहां झूठ बोला और मैंने कौन-कौन से पाप किए। सोते वक्त तक का इतिहास मस्तक में ला कर मन को, बुरे कर्म, जो आज किए हैं, कल न करने के लिए बहुत समझाना, ऐसा करने से झूठ बोलने और बुरे कर्म करने में रुकावट होगी। ऐसा करने में चार छह दिन तो आलस्य मालूम होगा फिर अभ्यास हो जाने पर बहुत आनंद आएगा।

उपर्युक्त साधन करने से सत्य बोलने का अभ्यास बहुत जल्दी हो जाएगा।

सत्य बोलने वाले को वचन-सिद्धि की प्राप्ति : बारह वर्ष तक सत्य बोलने वाले की वचन-सिद्धि हो जाती है। सत्य बोलने से बुरे कर्म होने बंद हो जाते हैं। चिंता कम हो जाती है। सब कर्म नीति और शास्त्र के अनुसार होने लगते हैं। दुनिया के लोग उसकी बहुत इज्जत करते हैं, उसकी बात पर विश्वास करते हैं। व्यापार में सत्य बोलने से बहुत लाभ होता है। सत्य बोलने वाले पर भगवान खुश होते हैं, और उसकी सहायता करते हैं।

सत्य बोलने से यदि किसी अवसर पर नुकसान या तकलीफ भी हो जाए तो उसे सहन करना चाहिए। कलयुग का स्वरूप असत्य है। इसलिए आजकल झूठ अधिक फलीभूत होता दिखता है परन्तु उसका परिणाम बहुत बुरा है।

झूठ से यहां तक बचना चाहिए कि छोटे-छोटे बच्चों को भी झूठी बातों से खुश नहीं करना चाहिए, बल्कि घर के सब लोगों को रोज सत्य बोलने का उपदेश करना चाहिए। मुझे पापी जीव को सत्य बोलने से बहुत लाभ पहुंचा है और हमेशा यह दास सत्य का सम्मान करता है।

‘सत्य बोलो’ : यह शब्द कागज पर बड़े अक्षरों में लिखकर सोने बैठने खाने और स्नान करने की जगह पर लगा देना चाहिए। नजर पड़ने पर बात याद आती रहेगी। यह साधन बहुत अच्छा है। यदि किया जाएगा, तो घर के सब आदमी-नौकर वगैरह सभी सत्य बोलने लगेंगे।

तप करने के साधन

योगाभ्यास और भजन यह दो मुख्य साधन ही तक करने के बतलाए गए हैं।

योगक्रिया : प्राणायाम आदि साधन बहुत अच्छे और प्राचीन हैं महात्मा लोग सदा से करते आए हैं पर मैंने यह क्रिया आज तक कभी नहीं की। इसलिए मुझको इसका कुछ भी अनुभव नहीं है केवल इतना जानता हूं कि इस कलियुग के समय में यह साधन बहुत कठिनता से होता है और बहुत से विघ्न पड़ने के कारण पूरा नहीं हो पाता।

भजन : यह साधन दो प्रकार से होता है। एक माला से, दूसरा बिना माला से, जिसको अजपा-जाप कहते हैं। भजन के साथ सत्य बोलना निहायत जरूरी है। भजन करने का सबसे पहला साधन माला है। मन के लिए यह कोड़ा है। जब तक माला हाथ में घूमती रहेगी, भजन होता रहेगा। माला से भजन की संख्या भी मालूम होती रहती है। छोटी माला हर समय हाथ में रखे, जिससे चलते फिरते भी भजन होता रहे। शरमाने की जरूरत नहीं है। यह तो मनुष्य मात्र का धर्म ही है। चलते फिरते ध्यान नहीं होगा तो कुछ हर्ज नहीं, सुबह-शाम ही हो जाए तो बहुत है। एक साधन यह है कि कपड़े की थैली बनाकर हाथ उसके अंदर रखे और माला हर समय फेरता रहे। यह साधन भी बहुत अच्छा है, मथुरा-वृंदावन में अधिक देखने में आता है।

(जो लोग शुद्ध हृदय से भगवन्नाम लेने का निरन्तर अभ्यास बनाए रखते हैं, वे डिप्रेशन अर्थात अवसाद की बीमारी से बचे रहते हैं।)

अजपा-जाप गृहस्थों के लिए कठिन : अजपा-जाप करने वाले माला नहीं रखते हैं। 1- भगवन्नाम का उच्चारण नामका करते हैं। थोड़ी आवाज भी निकले, जिससे सुमिरन बंद न हो और साथ ही ध्यान भी लगा रहना चाहिए। 2- कण्ठ से जाप हो। 3- हृदय से जाप हो। 4- नाभि से श्वास के साथ जाप हो।

जीह्वा से एक वर्ष, कंण्ठ से दो वर्ष, हृदय से दो वर्ष, और नाभि से सात वर्ष, अर्थात इस प्रकार बारह वर्ष तक भजन करने से मनुष्य मोक्षस्वरूप हो जाता है और उसे साक्षात्कार होता है यानी जागृत-अवस्था में भगवान् सम्मुख आकर दर्शन देते हैं।

महात्मा रामदास जी ने अपने दासबोध-नामक ग्रंथ में लिखा है कि यदि मनुष्य तेरह अथवा चौदह कोटि जाप नामका करें तो भगवान् दर्शन देते हैं। ये महात्मा बड़े सिद्ध हुए हैं। उनके वचनों पर विश्वास करना चाहिए।

अजपा-जाप करने से चार वर्ष के अंदर यह संख्या पूरी हो जाती है। मुझको इसका अनुभव हो चुका है। परम दयालु प्यारे नारायण ने इस दास या गुलामों के गुलाम पर कृपा करके नर्मदा-किनारे गुजरात के चांदोद नामक स्थान में दर्शन दिए थे। पहले छम-छम की आवाज आई। फिर विमान आया, जिसको चार पार्षदों ने उठा रखा था। भगवान उतरकर कहने लगे ‘नारायण नारायण’ ‘इसका अर्थ यह हुआ कि नारायण आए हैं। फिर कहा कि ‘बद्रिकाश्रम चलो, वहां जाकर भजन करो, तुम्हारी यहां से बदली हो गई।’ इस साधन के करने से इस दास को तीन वर्ष छह माह चौबीस दिन में भगवान् के दर्शन हुए थे।

एक मौनी महात्मा की जटायु मृत्यु

दया

जैन मत में तो ‘अहिंसा परमो धर्मः’ इसी एक बात का साधन कहा है। 1. जीव मात्र की रक्षा करना। 2. नीचे गर्दन झुका कर चलना। 3. जहां तक हो सके इस शरीर के कारण किसी को दुःख न देना। 4. किसी को भी दुखी देखकर हृदय में दया लाना, हो सके तो किसी प्रकार की सहायता करना। 5. किसी भी जीव को जहां तक हो सके नहीं मारना। गोस्वामी जी ने कहा है: ‘तुलसी आह गरीब की कभी न खाली जाए।’

गरीब को कभी न सताना : इसका साधन यह है कि गरीब लोग जो मजदूरी वगैरह का काम करते हैं, उनसे काम लिया जाए तो दो चार पैसे मजदूरी के ज्यादा देना, जिससे उनका मन दुःख न पावे। और गरीब लोगों को कभी न सताना। यह साधन गृहस्थी में भी अच्छी तरह होता है।

दान

दान करते समय योग्य या अयोग्य पुरुष का ख्याल मन में न लाकर गृहस्थ का धर्म समझकर साधु ब्राह्मण गरीब अभ्यागत अनाथ को देना। विद्या दान सबसे बड़ा बतलाया गया है इसलिए विद्यालयों में सहायता करनी चाहिए।

आत्मभाव से मछली, चींटी, कुत्ते, कौवे, गो, बंदर, घर में रहने वाली चिड़ियां और दूसरे पक्षी या कबूतर बगैरह को अन्न दान अवश्य करना चाहिए। इनको खिलाने से बहुत पुण्य होता है। इस तरह का अन्नदान करने से इस दास का बहुत को बहुत लाभ मिला है। पूरा अनुभव किया है।

अपने लेख में श्री नारायण स्वामी ने अन्य कई विषयों पर भी अपने अनुभव लिखे।

भगवत्प्रेम के लक्षण

श्री नारायण स्वामी लिखते हैं: “प्रेम बढ़ाने के लिए नारायण-कृपा की बहुत जरूरत है। इसलिए इस दास ने बहुत काल तक भगवान् से प्रेम बढ़ाने के लिए प्रार्थना की। तब प्यारे नारायण ने कुछ कृपा की। जब तक नेत्रों से जल-धारा न चले, भगवत्प्रेम नहीं कहा जा सकता और यही एक भक्ति का खास अंग है।”

जीह्वा पर संयम कैसे हो

श्री नारायण स्वामीजी लिखते हैं: “यह इंद्रिय बड़ी प्रबल है। मन के बाद दूसरा नंबर इसी का है। इसका साधन (मैंने) इस तरह किया था कि शाम के वक्त बाजार में जाना और फल-मिठाई वगैरह बहुत-सी चीजें देखना, पर लेना नहीं, मन चाहे जितना भी कहे। मकान पर भी घरवाले चाहे जितनी चीजें मंगवा कर रखें, खाना ही नहीं, त्याग कर देना। मामूली साधारण सात्विक-भोजन करना। मीठे-फीके का कोई स्वाद जबान पर नहीं लेना। ऐसा अभ्यास करते-करते जीव्हा-इंद्रिय वश में हो जाती है। यह साधन कठिन है, पर करने वालों को नहीं। इस दास ने गृहस्थाश्रम में ही धीरे-धीरे कर लिया था।”

समय की पाबन्दी

श्री नारायण स्वामीजी लिखते हैं: “समय की पाबंदी के लिए चौबीस घंटे का प्रोग्राम बनाकर उसके अनुसार चलना पड़ता है। मैंने किसी पुस्तक में देखा था कि एक बड़ा अमीर अक्लमंद आदमी यूरोप में था, उसने मरते समय अपने घरवालों को यह वसीयत की थी की थी कि जो कुछ रुपए और इज्जत मैंने पैदा की है, वह इस कारण से है कि मैंने अपनी जिंदगी में वक्त की बहुत कद्र की है। यह शब्द मेरी कब्र पर लिखवा देना कि ‘Time is money in the world’ ‘दुनिया में समय ही संपत्ति है।’

जब से यह मालूम हुआ, यह दास समय की बहुत कद्र करता था, और अब भी करता है। वक्त की पाबन्दी करने से लोक-परलोक दोनों का काम ठीक चलता है। अपने जीवन का एक मिनट भी कभी फजूल न खोना चाहिए।“

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पर-स्त्री प्रेम से कैसे बचें

श्री नारायण स्वामीजी लिखते हैं: “पर-स्त्री को आंख उठाकर नहीं देखना। मल मूत्र, हाड़-मांस का फोटो फौरन् सामने खड़ा कर देने से अभ्यास करते-करते घृणा पैदा हो जाती है और यह पाप कर्म फिर कभी नहीं होता है।“

श्री नारायण स्वामीजी के लेख पर पुस्तक

श्री नारायण स्वामीजी के लेख को बाद में सन् 1931 में गीता प्रेस ने एक बाइस-चौबीस पेज की छोटी सी पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया था। तब इसका मूल्य एक आना था अर्थात आज के लगभग छ्ह पैसे के बराबर था। सन् 2003 तक यह ग्यारह बार पुनर्मुद्रित हो चुकी थी और इसकी लगभग बावन हजार प्रतियाँ बिक चुकी थीं। गुजराती भाषा में इस पुस्तक का अनुवाद श्री रामकृष्ण सेवा समिति, अहमदाबाद, ने सन् 1940 में प्रकाशित किया था। हिन्दी और गुजराती दोनों भाषाओं में यह पुस्तक आज इन्टरनेट पर उपलब्ध है और इसे कोई भी मुफ्त में डाउनलोड करके पढ़ सकता है।

The Kalyana-Kalpataru: Rama Number (An Old and Rare Book) | Exotic India Art

इस पुस्तक को हिंदी में पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:

https://archive.org/download/in.ernet.dli.2015.400229/2015.400229.Ek-Sant.pdf

उर्दू में लिखे गए श्री नारायण स्वामीजी के लेख का अंग्रेजी अनुवाद बाद में गीता प्रेस की अंग्रेजी मासिक ‘कल्याण-कल्पतरु’ (The Kalyana-Kalpataru) के volume 1 number 6 (जून 1934) में भी प्रकाशित हुआ था। ‘कल्याण-कल्पतरू’ का यह अंग्रेजी अंक गीता सेवा ट्रस्ट (www.GitaSeva.org) ऐप को डाउनलोड कर फ्री में पढ़ा जा सकता है।

(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)