प्रदीप सिंह।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब तक किसी को पता नहीं था कि विदेश नीति के बारे में वह क्या जानते हैं, उनकी कितनी समझ है। किसी को इसका कोई अंदाजा नहीं था। मगर प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस तरह से उन्होंने देश की डिप्लोमेसी चलाई है वह अभूतपूर्व है। यह केवल मैं उनकी प्रशंसा के लिए नहीं कह रहा हूं, आप दुनिया के किसी भी डिप्लोमेट से पूछ लीजिए वे इस बात की तस्दीक करेंगे। जिस तरह से उन्होंने काम किया है और जिस तरह से अलग-अलग ताकतों को उन्होंने साधने का काम किया है,चीन की घेरेबंदी के लिए जिस तरह से परस्पर विरोधी ताकतों को साथ लाने का काम किया है वह अभूतपूर्व है। सीमा पर जो हुआ वह सबको पता है लेकिन उसके अलावा दुनिया भर में चीन की घेरेबंदी कर रहे हैं।
चीन की घेराबंदी
चीन का जो वन बेल्ट वन रोड का प्रोजेक्ट है उसको पटरी से उतारने की पूरी कोशिश की और कह सकते हैं कि यह कोशिश लगभग कामयाब होने वाली है। पहले तो भारत इस प्रोजेक्ट में शामिल नहीं हुआ जिससे इसका भाव वैसे ही गिर गया। उसके बाद जो देश कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं उनका हश्र देखकर दूसरे देश सोच रहे हैं। तीसरी बात, मोदी की विशेषता यही है कि वह कभी किसी लकीर को छोटा करने की कोशिश नहीं करते हैं, हमेशा बड़ी लकीर खींचने की कोशिश करते हैं। चीन नया ट्रेड रूट बना रहा है तो उसका जवाब क्या हो सकता है? उसको रोकना या उसमें अड़चन डालना तो उसे परेशान करने की रणनीति का एक हिस्सा है लेकिन जो सकारात्मक चीज है उनकी डिप्लोमेसी का वह यह है कि उससे छोटा ट्रेड रूट- जो ज्यादा सुविधाजनक हो। भारत, यूरोप, रूस और बाकी आसपास के देशों के लिए ट्रेड का नया रूट मोदी के प्रयासों से बन चुका है। इस रूट से पहला कंसाइनमेंट जून में आ चुका है जिसमें 24 दिन लगे। पहले ज्यादा समय लगता था। ईरान में भारत जो रेल नेटवर्क बना रहा है वह साल- डेढ़ साल में पूरा हो जाएगा। उसके बाद यह समय 24 दिन से घटकर 10 दिन हो जाएगा। भारत का माल सीधे यूरोप पहुंचेगा और यूरोप का यहां। क्वार्ड के बारे में आपको मालूम है जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं। यह पेसिफिक ओसियन के लिए है, चीन को समुद्र में घेरने के लिए। चीन की घेरेबंदी की लिए जो भी गठबंधन बना रहे हैं उसमें भारत का पक्ष या फिर कहें कि भारत की आवाज सबसे ज्यादा बुलंद है।
देशहित सर्वोपरि
क्वार्ड के बारे में- खासकर अमेरिका और जो बाइडेन के बारे में- पहले एक बात समझ लीजिए। अमेरिका, खासकर जो बाइडेन जितना चीन विरोधी दिखते हैं- उतने हैं नहीं। उनके बेटे का चीन में बिजनेस इंटरेस्ट है। एक सीमा के बाद वे चीन का विरोध नहीं करेंगे। साथ ही, वह जितने भारत के समर्थक और दोस्त दिखते हैं- उतने हैं नहीं। भारत को हर जगह काटने की, छांटने की, नुकसान करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं जो बाइडेन और उनका एडमिनिस्ट्रेशन। लेकिन नरेंद्र मोदी पर इन सब बातों का कोई असर नहीं है। उन्होंने दरअसल अमेरिका और जो बाइडेन को घेर रखा है। क्वार्ड में ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत एक तरफ हो जाते हैं। अमेरिका के लिए इनकी मर्जी के खिलाफ कोई भी रुख अख्तियार करना लगभग असंभव जैसा है। यही वजह है कि रूस के मुद्दे पर क्वार्ड की बैठक में चर्चा तक नहीं हुई। जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरुआती दिनों में था उस समय अमेरिका और पूरा यूरोप रूस के विरोध में थेऔर चाहते थे कि भारत रूस का विरोध करे लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि जो हमारे देश हित में होगा वह करेंगे। हम रूस से तेल खरीदेंगे- क्योंकि हमको एनर्जी सिक्योरिटी चाहिए- क्योंकि हमको सस्ता तेल चाहिए और वह हमें रूस से मिल रहा है। भारत ने तमाम दबावों के बावजूद रूस का विरोध करने, उससे संबंध तोड़ने की कोई कोशिश नहीं की। बल्कि भारत ने जो कदम उठाए हैं उससे यूरोपीय देशों और अमेरिका ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं उनका असर भोथरा हो गया है। अमेरिका चाहता था कि क्वार्ड की बैठक में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पास हो लेकिन मोदी ने पास नहीं होने दिया। ऑस्ट्रेलिया और जापान को उन्होंने जो समझाया वे समझ गए। यहां तक कि उसका जिक्र तक नहीं हुआ। अब आप सोचिए कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच में क्वार्ड की बैठक हुई और उस बैठक में उसका कोई जिक्र तक नहीं हुआ। यह मोदी की डिप्लोमेसी का असर है। लेकिन यह छोटी बात है- हालांकि, यह बहुत बड़ी कामयाबी है- लेकिन मोदी जो कर रहे हैं उसको देखते हुए यह छोटी बात है।
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चीन का प्रभाव कम करने का पैंतरा
वे एक नया क्वार्ड बना रहे हैं या कहें कि बना लिया है। इस क्वार्ड में भारत, इजराइल, यूएई और अमेरिका हैं। अमेरिका को घेरकर ये तीनों इसमें लेकर आए हैं। यह क्वार्ड पश्चिम एशिया के लिए है। वैसे इसका नाम I2 U2 है। I2 मतलब Israel और India… U2 मतलब यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका (USA) और यूनाइटेड अरब अमीरात (UAE)। इसमें सऊदी अरब नहीं है जबकि सऊदी अरब और यूएई दोस्त हैं। इस क्वार्ड का दो लक्ष्य है। चीन को व्यापारिक रूप से घेरना, व्यावसायिक रूप से ट्रेड रूट के मामले में चीन के असर को और उसके प्रभाव को कम करना। यह सब जानते हुए कि अमेरिका भारत का हर कदम पर अंदरखाने विरोध करता है, भारत ने उसे इसलिए इसमें शामिल किया है कि कतर इसमें बाधा डाल सकता है। कतर को मैनेज करने के लिए अमेरिका को रखा गया है। अमेरिका रहेगा तो कतर ज्यादा चूं-चपड़ नहीं करेगा। 13 से 16 जुलाई के बीच जो बाइडेन इजराइल, सऊदी अरब और पश्चिम एशिया के कुछ अन्य देशों का दौरा करेंगे। इसी 13 से 16 जुलाई के बीच में इस पश्चिम एशिया के क्वार्ड की पहली बैठक होनी है। इन चारों देशों को मालूम है कि चीन की नजर पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान पर है। अफगानिस्तान में चीन को रोकने के लिए यह ग्रुप बनाया गया है। इसमें अमेरिका का भी इंटरेस्ट है- इजराइल और यूएई का भी है- भारत का तो है ही। चारों देश अपने राष्ट्रीय हित के तहत इस ग्रुप से जुड़े हैं। चारों चीन के खिलाफ हैं। इसमें अगर कभी कोई समस्या खड़ी करेगा तो वह अमेरिका हो सकता है लेकिन अफगानिस्तान के मामले पर नहीं होगा। अफगानिस्तान में अपनी भूमिका फिर से अमेरिका भी चाहता है।
नया ट्रेड रूट बनाना
भारत के डिप्लोमेट अफगानिस्तान पहुंच गए, इसका अमेरिका, यूरोप और चीन सहित दूसरे देशों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। सबके लिए यह एक तरह का झटका था। भारत और यूएई के बीच मुक्त व्यापार है। भारत और यूरोपीय संघ के बीच कभी भी मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। बातचीत अंतिम चरण में हैं। भारत और ये देश मिलकर एक ट्रांस मेडिटरेनियन लिंक बनाना चाहते हैं। इससे भारत का माल खाड़ी देशों के अलावा यूरोपीय देशों तक आसानी से पहुंच सकेगा। इसकी आधारशिला और इसकी बातचीत की शुरुआत अक्टूबर 2021 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने की थी। तब उन्होंने इन सभी देशों की यात्रा की और सबसे बातचीत की। बातचीत जब कामयाब होती दिखी उसके बाद प्रधानमंत्री और राष्ट्राध्यक्षों के स्तर पर बातचीत हुई। भारत ने इसके जरिए एक नया ट्रेड रूट बनाने का काम शुरू किया है। इसका नाम रखा गया है इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्टेशन कॉरीडोर। यह रूस के पीटर्सबर्ग से अजरबैजान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान के चाबहार पोर्ट से होते हुए मुंबई के न्वाब शेवा पोर्ट पर सामान लेकर आएगा। इस रूट के बन जाने से, खासतौर से भारत ईरान में जो रेल नेटवर्क बना रहा है वह जैसे ही पूरा होगा तो फिर 10 दिन में सामान पहुंच जाएगा भारत- और भारत से इन देशों को। यह ट्रेड रूट चीन के लिए सबसे बड़ा झटका है। उसका जो वन बेल्ट वन रोड का प्रोजेक्ट है उसको बड़ा झटका लगने वाला है इस रूट से। इस रूट से भारत का यूरोपीय और खाड़ी देशों से व्यापार में बड़ी मात्रा में बढ़ोतरी होने वाली है। इससे इंटरनेशनल ट्रेड बढ़ेगा, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट बढ़ेगा। भारत के लिए माल ढुलाई सस्ती हो जाएगी और समय भी कम लगेगा।
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विश्व में बढ़ाया भारत का मान
यह सब कुछ मोदी कर रहे हैं जिसकी चर्चा आपने कहीं नहीं सुनी होगी। केवल उनके विरोधियों से यह सुना होगा कि मोदी घूमने के लिए विदेश जाते हैं। एक साल में इतनी जगह गए, दो साल में इतने देशों की यात्रा की। उनको समझ में नहीं आता है कि मोदी जब विदेश जाते हैं तो राष्ट्र हित का, राष्ट्र के विकास का कोई न कोई एजेंडा लेकर जाते हैं। पिछले महीने जी-7 देशों के सम्मेलन में आपने देखा होगा कि नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति चलकर पीछे से आए और उनके कंधे पर हाथ थपथपाया और फिर पलटकर देखा मोदी ने, उसके बाद बाइडेन से हाथ मिलाया। इस दृश्य की कल्पना क्या आपने 2014 से पहले कभी की थी। अमेरिका के राष्ट्रपति की यह स्थिति होगी भारत के प्रधानमंत्री के सामने, इसकी कभी आपने कल्पना की थी। मोदी डिप्लोमेसी के क्षेत्र में जो कर रहे हैं, जिस तरह से चीन को घेरने का काम कर रहे हैं, जिस तरह से पाकिस्तान को तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग कर दिया है… अब भारत और पाकिस्तान की बात एक साथ नहीं होती है। कोई पाकिस्तान की बात नहीं करता है। पाकिस्तान के बारे में भारत जो बात बोलता है वह बात मानी और सुनी जाती है। विकासशील देश होने के बावजूद विकसित देशों के बीच में भारत की आवाज सबसे प्रभावी ढंग से सुनी और मानी जाती है। भारत को लेकर- खास तौर से प्रधानमंत्री मोदी को लेकर- विश्व के नेताओं की राय है कि मोदी अगर चाहें तो बड़ी से बड़ी समस्या सुलझा सकते हैं। रूस से युद्ध शुरू होने से पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा था कि अगर मोदी जी चाहें तो यह युद्ध रुक सकता है। यह विश्वास है मोदी की क्षमता में। इससे पहले भी आप सुन ही चुके होंगे फिलस्तीनी नेताओं को कि अगर मोदी चाहें तो इजराइल और फिलिस्तीन में समझौता हो सकता है।
भारत के प्रति नजरिया बदला
किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई भी विवाद हो उसको सुलझाने में मोदी का महत्व, उनकी बात का महत्व सबसे ज्यादा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो विश्व व्यवस्था बदली उसमें अब भारत का स्थान बहुत ऊंचा है। यह सिर्फ और सिर्फ मोदी की कूटनीति के कारण है- उनकी विदेश नीति के कारण है। उन्होंने अपने दोनों कार्यकाल में विदेश मंत्री का चयन बड़ी सूझबूझ और समझदारी के साथ किया जो उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकें, उनकी बात और उनकी इच्छा, उनका जो लक्ष्य है उसको समझ कर काम कर सकें। मेरा मानना है कि एस जयशंकर इस देश के इतिहास के सबसे अच्छे विदेश मंत्री साबित होंगे। एस जयशंकर की जो समझ है अंतरराष्ट्रीय विषयों की- राजदूत रह चुके हैं, विदेश सचिव रह चुके हैं, जिस तरह का उनका अनुभव है, जिस तरह लो प्रोफाइल में रहकर काम करते हैं, जिस तरह से रिजल्ट ओरियेंटेड काम करते हैं, उनका और मोदी का जो तालमेल है- यह उसी का नतीजा है कि आपको इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे हैं। कूटनीति के क्षेत्र में भारत ने जितनी बड़ी प्रगति पिछले कुछ सालों में हासिल की है उतनी प्रगति कभी नहीं की। भारत का जो सम्मान बढ़ा है, जो इज्जत बढ़ी है उसका सबसे बड़ा असर अप्रवासी भारतीयों पर पड़ा है। जिस देश में वे रहते हैं वहां उनके प्रति लोगों का नजरिया बदला है, भारत के प्रति नजरिया बदला है। इससे भारत के विकास पर सीधा असर पड़ने वाला है। इससे भारत में ज्यादा से ज्यादा विदेश निवेश आएगा। कोरोना के दौरान भी भारत ऐसा देश रहा जहां सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। ये ऐसे ही नहीं आया, यह मोदी के प्रयासों से आया।
जब भी नरेंद्र मोदी के बारे में आपके मन में आलोचना या निराशा का भाव हो तो ये भी सोचिएगा कि वे क्या कर रहे हैं और किस माहौल में कर रहे हैं। कितने विरोध और किस तरह की परिस्थिति में कर रहे हैं- इस पर भी ध्यान दीजिएगा। सरकार के बारे में आलोचनात्मक दृष्टि से सोचने में कोई बुराई नहीं है बल्कि कई बार तो यह अच्छा होता है लेकिन मोदी के सामने जो चुनौतियां हैं, खासतौर पर घरेलू स्तर पर, उन पर भी विचार कीजिएगा कि किस तरह से कदम-कदम पर उनका रास्ता रोकने की कोशिश होती है। मोदी की डिप्लोमेसी का आपको आगे चलकर और भी बड़ा स्वरूप देखने को मिलेगा।