प्रदीप सिंह।
यह झारखंड में हो क्या रहा है! ऐसा लग रहा है जैसे राजनीति की गंगा उल्टी बह रही है। समझना मुश्किल है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भाजपा के साथ हैं- या भाजपा के खिलाफ हैं। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देवघर दौरा इस तरह के कई सवाल खड़े कर गया।
इस पुष्पवर्षा का ‘मकसद’
हेमंत सोरेन की सरकार संकट में है। उनकी विधानसभा की सदस्यता खतरे में है और वह जानी है ऐसा लगभग तय है। सोरेन के आसपास के लोग, उनके रिश्तेदार- अधिकारी सबके खिलाफ ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स की रेड हो चुकी है- जांच चल रही है- हाईकोर्ट से भी जांच के आदेश की पुष्टि हो गई है। यह सब कुछ होने के बावजूद हेमंत सोरेन जिस तरह से मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर रहे थे- कोऑपरेटिव फेडरेलिज्म की बात कर रहे थे कि अगर केंद्र सरकार का ऐसा ही सहयोग मिलता रहा- अगर इसी तरह से केंद्र और राज्य की सरकारें मिलकर काम करती रहीं- तो वह दिन दूर नहीं जब झारखंड देश के अग्रणी राज्यों में से एक होगा। इतना ही नहीं, देवघर के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे जो दिन-रात हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ बोलते थे, सोरेन सरकार उन पर आरोप लगाती थी, वह मंच पर मौजूद थे- और हेमंत सोरेन उनकी प्रशंसा कर रहे थे।
संकट कुर्सी से ज्यादा पार्टी का
सोरेन ने कहा कि हम सब ने मिलकर 2010 में देवघर में हवाई अड्डे का सपना देखा था। आज वह सपना प्रधानमंत्री के कुशल नेतृत्व में साकार हो रहा है। 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने ही शिलान्यास किया था और आज वही उद्घाटन भी कर रहे हैं। यह दृश्य पर आज तक आपको उस राज्य में देखने को मिलता है जहां गठबंधन सरकार में भाजपा और दूसरा दल शामिल हों। यहां कांग्रेस और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के हेमंत सोरेन की सरकार है। और कांग्रेस भी इस पर एतराज नहीं कर रही है। बाद में जब इस पर सवाल उठा तो कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों ने कहा कि यहां झारखंड की मेहमान नवाजी की संस्कृति है। सवाल उठता है कि यह ‘संस्कृति’ आज ही क्यों याद आई? इससे पहले क्यों नहीं याद आई? इसके पीछे की पृष्ठभूमि समझिए। हेमंत सोरेन को साफ़ दिखाई दे रहा है कि उनकी सरकार जा रही है। अब पार्टी (झामुमो) बचेगी या नहीं इसकी चिंता है। यही संकट कई लोगों के सामने आ रहा है। यह वही संकट है जो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के सामने है। सोरेन को लग रहा है कि उनकी विधानसभा की सदस्यता गई तो उनके लिए पार्टी बचा कर रखना बहुत कठिन हो जाएगा।
याददाश्त की वापसी
तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को समर्थन देने पर फैसला करने से पहले वह अपनी पार्टी की बैठक में नहीं गए- पार्टी के नेताओं से मिलकर फैसला नहीं हुआ। इस पर फैसला करने के लिए वह दिल्ली आए और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले। अमित शाह से मिलने के बाद उनको अचानक याद आया- या कहिए उनकी स्मृति जागी और याददाश्त वापस आ गई… उन्होंने कहा कि द्रौपदी मुर्मू तो झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं, आदिवासी समाज से आती हैं, हमारी पार्टी आदिवासी समाज का विरोध कैसे कर सकती है। आदिवासी समाज से एक महिला राष्ट्रपति भवन पहुंच रही है तो उसका समर्थन हम कैसे नहीं करेंगे। यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। राजग द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा के बाद भी सोरेन कांग्रेस, यूपीए और बाकी विपक्षी दलों के साथ थे। तब उन्हें याद नहीं आया कि द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं।
कुछ तो ‘पका’ है शाह से मुलाकात में
यह जो अचानक हेमंत सोरेन को आदिवासियों के हित का, प्रधानमंत्री की सदाशयता का, कोऑपरेटिव फेडरेलिज्म का और बीजेपी के नेताओं के प्रशंसा का इलहाम हुआ है- इसका रहस्य समझना थोड़ा मुश्किल है। मुश्किल इसलिए कि जब किसी के सरकार जाने वाली हो, उसकी सरकार और पार्टी पर संकट हो- तो विरोधी पर हमले तेज हो जाते हैं। यह पहला मामला मैं देख रहा हूं कि जहां सरकार जाने वाली है- पार्टी भी खतरे में है और बहुत से लोगों का जेल जाना तय नजर आ रहा है- ऐसे में विरोधी पर किसी आक्रमण या आलोचना के बजाए प्रशंसा हो रही है। इसका मतलब है कि हेमंत सोरेन और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात में कोई ना कोई फैसला हुआ है- कोई सौदेबाजी या समझौता हुआ है। वह समझौता क्या है यह तो आने वाले समय में पता चलेगा लेकिन इतना तय है कि झारखंड में एक नई तरह की राजनीति हो रही है। वह राजनीति है कि जिसके खिलाफ चुनाव लड़े और जिसके विरोध में हैं उसकी प्रशंसा हो रही है। लेकिन राज्य में सरकार भाजपा के विरोधी दल कांग्रेस के साथ है। तो दोनों में हेमंत सोरेन कैसे तालमेल बिठा पाएंगे और कब तक बिठा पाएंगे- सवाल इसी बात का है।
क्या उद्धव से ज्यादा समझदार हैं सोरेन?
हेमंत सोरेन जो राजनीति खेल रहे हैं उससे क्या लगता है। क्या उद्धव ठाकरे के मुकाबले में वह ज्यादा समझदार निकलेंगे। उद्धव ठाकरे के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है- ना उनके खिलाफ ईडी की जांच चल रही है। ना इनकम टैक्स की रेड हुई है- ना सीबीआई जांच कर रही है। न तो उनका सदस्यता का कोई मामला इलेक्शन कमीशन में है- न ही हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ कोई मामला चल रहा है। लेकिन हेमंत सोरेन के खिलाफ यह सब कुछ हो रहा है… और उस पर भी वह बीजेपी की प्रशंसा कर रहे हैं। हालाँकि इससे पहले सोरेन और अन्य विपक्षी दल केंद्र सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह अपने विरोधियों को डराने और खत्म करने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। ऐसे में यूपीए के एक घटक दल और उनकी गठबंधन सरकार के साथी (झामुमो) का केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री की प्रशंसा करना चौंकाने वाला तो है। लेकिन भारत की राजनीति में बहुत कुछ चौंकाने वाला हो रहा है- बहुत सी नई चीजें हो रही हैं…तो एक यह भी सही।