प्रदीप सिंह।
पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक बयान आया जिसमें उन्होंने कहा कि आबादी में धार्मिक असंतुलन अच्छा संकेत नहीं है, यह नहीं होना चाहिए। उनके इस बयान पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया तो कुछ ने विरोध। भारतीय जनता पार्टी या किसी की भी ओर से जब ऐसी बात आती है या धार्मिक आधार पर जनसंख्या में असंतुलन की बात होती है तो इसे सांप्रदायिक चश्मे से देखा जाता है। माना जाता है कि यह हिंदू-मुसलमान का मामला है, मुसलमानों की आबादी बढ़ने से हिंदुओं को क्यों परेशानी होनी चाहिए, यह स्वाभाविक है। कोई आंकड़े देता है कि आबादी बढ़ने की रफ्तार कम हो गई है, तो कोई कहता है कि कुछ सालों में जनसंख्या नियंत्रण हो जाएगा। आबादी पर निंयत्रण के लिए तो कानून बनाने की जरूरत नहीं है। दरअसल, ये सारी पेशबंदी ऐसे कानून को रोकने के लिए है।
देश की एकता और अखंडता से जुड़ा मुद्दा
अब आप देखिए कि असदुद्दीन ओवैसी या दूसरे मुस्लिम धार्मिक नेता जिस तरह से बोल रहे हैं, कांग्रेस पार्टी या दूसरे विपक्षी दलों के नेता जो बोल रहे हैं उन सबकी चिंता यही है कि मुसलमान उनसे नाराज न हो जाए इसलिए बोलो। मेरी नजर में और बहुत सारे दूसरे लोगों की नजर में, जो अबादी में धार्मिक असंतुलन का मुद्दा उठाते हैं वह सांप्रदायिक मुद्दा नहीं है। वह हिंदू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध और जैन का मुद्दा नहीं है। बात सिर्फ यह नहीं है कि किसकी आबादी कितनी बढ़ गई या किसकी कितनी घट गई। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मुद्दा देश की एकता और अखंडता से जुड़ा हुआ है। अगर यह धार्मिक असंतुलन बना रहा और इसी तरह से बढ़ता रहा तो आप निश्चित मानिए कि देश की एकता और अखंडता पर इससे बड़ा कोई खतरा नहीं हो सकता है। बाहर का दुश्मन उतना बड़ा खतरा पैदा नहीं कर सकता जितना घर के अंदर का है। फिर भी इसके बारे में सोचने समझने के लिए हम तैयार नहीं हैं।
सनातन धर्म की परंपरा में अन्न को ‘ब्रह्म’ माना गया है और ‘अन्न दान’ सबसे बड़ा दान माना गया है। pic.twitter.com/qNCFdIenRa
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) July 14, 2022
तेज हो रही मुस्लिम आबादी बढ़ने की वृद्धि दर
सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के जितेंद्र बजाज की एक अध्ययन रिपोर्ट आई है। उन्होंने 2011 की जनगणना का अध्ययन करके कुछ बातें रखी हैं। अध्ययन के मुताबिक, डेमोग्राफी में जो यह बदलाव आ रहा है, ये जो असंतुलन आ रहा है यह गंभीर चिंता का विषय है। यह सामान्य बात नहीं है। इसको यूं ही टाला नहीं जाना चाहिए। उन्होंने आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट में कहा है कि आजादी के बाद से हर दशक में मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। उनके मुताबिक, बात यह नहीं है कि आबादी बढ़ रही है बल्कि आबादी बढ़ने की रफ्तार बढ़ रही है। मुस्लिम आबादी बढ़ने की जो वृद्धि दर है उसमें बढ़ोतरी हो रही है, चिंता का विषय यह है। इसकी वजह से असंतुलन पैदा हो रहा है। आजादी के बाद से आबादी में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ता जा रहा है। हिंदू रिलिजिनियस यानी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन की संख्या घटती जा रही है। आजादी के समय साढ़े तीन करोड़ मुसलमान थे और साढ़े 36 करोड़ हिंदू रिलिजिनियस। आज स्थिति यह है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक, आबादी में हिंदुओं का प्रतिशत पहली बार 80 प्रतिशत से घटकर 79.8 प्रतिशत पर आ गया है। नई जनगणना में इस आंकड़े के नीचे जाने की पूरी संभावना है। ये आंकड़े कई बार लोगों की आम धारणा को एक तरह से साबित करते हैं, उन्हें प्रमाणित करते हैं। 1981 से 1991 के बीच में मुसलमानों की आबादी बढ़ने की वृद्धि दर हिंदुओं की तुलना में काफी तेज रही। इस दौरान देश की जनसंख्या में मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर 50 फीसदी से भी ज्यादा रही। आपको याद होगा कि इसी दौरान घुसपैठियों की सबसे बड़ी संख्या आई। आनी तो 1971 या उससे पहले से शुरू हो चुकी थी। इन 10 सालों में घुसपैठ काफी बढ़ी। अध्ययन के मुताबिक, यह लगातार तीसरा दशक है जब मुस्लिम आबादी 0.8 फीसदी या उससे ज्यादा बढ़ी है।
घुसपैठ और धर्मांतरण भी बड़ी वजह
इसके अलावा एक दूसरा उदाहरण भी देता हूं। सनातन धर्म पर जो हमला हो रहा है आबादी का, वह एक तरफा नहीं- दोतरफा है। मुस्लिम आबादी स्वाभाविक रूप से तो बढ़ ही रही है, धर्मांतरण और घुसपैठ के कारण भी बढ़ रही है। साथ ही, ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण के कारण भी देश में यह असंतुलन पैदा हो रहा है। मुश्किल यह है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा जो धर्मांतरण किया जा रहा है उसका सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है। जनगणना में भी वही आंकड़ा उपलब्ध है जिसमें धर्मांतरण करने वालों ने यह माना है कि उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। अरुणाचल प्रदेश का एक उदाहरण देखिए। अरुणाचल प्रदेश नया ईसाई बहुल राज्य बनने वाला है। 2001 की जनगणना से पहले अरुणाचल प्रदेश में ईसाई धर्म को मानने वालों की आबादी 19 फीसदी थी। 2002 से 2011 के बीच में यह 30 फीसदी हो गई। इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई। हो सकता है कि ये इत्तेफाक हो या फिर मेरा पूर्वाग्रह हो सकता है, याद कीजिए 2001 से 2011 के बीच के वर्षों को जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है। सोनिया गांधी 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और 2004 में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार बनी। उसके बाद से ईसाई मिशनरियों के काम में बहुत बड़े पैमाने पर तेजी आई। उनका पैसा बाहर से आने का सिलसिला भी तेज हुआ जिसको रोकने का प्रयास मोदी सरकार पिछले 8 साल से कर रही है। हर ऐसे छेद को भरने की कोशिश हो रही है लेकिन वह पूरी तरह से खत्म हो गया है, ऐसा दावा नहीं किया जा सकता।
ईसाई मिशनरियों से भी खतरा
समस्या यह है कि दलित और आदिवासी इलाकों में ये जो धर्मांतरण ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे हैं उसके बारे में ज्यादा पता इसलिए नहीं चलता है कि मिशनरियों ने क्रिप्टो क्रिश्चियन का एक नया कॉन्सेप्ट निकाला है। इसके तहत आप ईसाई धर्म स्वीकार कर लीजिए लेकिन कागज पर या कहीं किसी को बताइए नहीं। दलितों और आदिवासियों को आरक्षण मिलता है इसलिए आरक्षण का लाभ उठाने के लिए किसी को यह मत बताइए कि आपने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। जैसे ही आरक्षण से वंचित होने की बात आप करेंगे वे ईसाई धर्म स्वीकार करने से मना कर देंगे। उनको ईसाई धर्म स्वीकार करने के लिए अतिरिक्त लाभ का लालच दिया जाता है कि तुम किसी को बताओ नहीं और आरक्षण का लाभ लेते रहो। सरकारी योजनाओं की जो सुविधाएं हैं वह लेते रहो और ईसाई धर्म स्वीकार करने के कारण जो तुम्हें लाभ मिलेगा वह लेते रहो। उस लाभ में तीन चीजें मुख्य रूप से होती हैं। एक तो आर्थिक प्रलोभन दिया जाता है, दूसरा उनके बच्चों को मिशनरी स्कूलों में एडमिशन और तीसरा, जो मिशनरी संस्थाओं के अस्पताल हैं उनमें सस्ता या मुफ्त में इलाज किया जाता है। ये तीन प्रलोभन हैं जिनके आधार पर इनको बहलाया फुसलाया जाता है और धर्म परिवर्तन कराया जाता है। इसमें थोड़ी कमी आई है जब से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस क्षेत्र में उतर कर आदिवासी इलाकों और दलित बस्तियों में इस तरह की सुविधाएं देने का काम शुरू किया है। मगर यह सिलसिला रुक नहीं रहा है। पंजाब के बारे में मैंने आपको बताया था कि वहां कितनी तेजी से धर्मांतरण बढ़ रहा है। एसजीपीसी (सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी) की नींद अब खुली है। अब वे कह रहे हैं कि हम अभियान चलाएंगे जागरूकता का कि लोग ईसाई धर्म स्वीकार न करें और सिख धर्म न छोड़ें।
भारत पर डेमोग्राफी हमले के बढ़े आसार
इसका नतीजा यह है कि भारत पर डेमोग्राफी का बहुत बड़ा हमला होने वाला है और इसके आसार नजर आने लगे हैं। अभी बिहार में पीएफआई के जो लोग पकड़े गए हैं और उनसे जो साहित्य-किताबें मिली हैं उसके आधार पर यह बात सामने आई है कि उनका लक्ष्य 2047 तक यहां फिर से इस्लामी राज्य स्थापित करना है। इससे आपको उनके इरादे का पता चल जाएगा। मैं क्यों कह रहा हूं कि यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है- इसके दो कारण हैं। एक, पुराना अनुभव। देश का बंटवारा क्यों हुआ, सिर्फ इसलिए हुआ कि अविभाजित भारत के मुसलमानों ने कहा कि हम हिंदुओं के साथ नहीं रहना चाहते हैं। हमारे लिए अलग देश की व्यवस्था की जाए, हमको अलग देश दिया जाए। उनको वह देश मिल गया लेकिन आबादी की अदला- बदली नहीं हुई। भारत धर्मनिरपेक्ष देश बन गया और पाकिस्तान इस्लामी देश बन गया। धर्मनिरपेक्ष देश बनने की कीमत भारत आज चुका रहा है। धर्मनिरपेक्ष बनने में कोई समस्या नहीं है लेकिन इसके साथ जो मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति आई उसने देश का कबाड़ा किया है। दूसरा कारण है, सोया हुआ सनातन धर्म का सिपाही, सनातन धर्म को मानने वाले। एक ही उदाहरण दूंगा। वैसे तो हजारों-लाखों उदाहरण हैं लेकिन सिर्फ एक उदाहरण दूंगा। कांची कामकोठी पीठ हिंदू धर्म के लिए कितना महत्वपूर्ण है यह बताने की जरूरत नहीं है। कांची के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को दीपावली से एक दिन पहले 11 नवंबर, 2004 को हत्या के झूठे केस में गिरफ्तार किया गया। पूरे देश में कहीं से भी यह आवाज नहीं उठी कि यह गलत हो रहा है। कोई हिंदू संगठन या किसी ने भी नहीं बोला। तमिलनाडु में तो यह नहीं ही हुआ, तमिलनाडु के बाहर भी नहीं हुआ। इससे आप अंदाजा लगाइए। आखिरकार अदालत से वे बरी हुए लेकिन उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। हमारे शंकराचार्य को झूठे आरोप में जेल भेज दिया जाए और हम चुपचाप उसको बर्दाश्त करते रहें।
मजारों और दरगाहों पर क्यों जाते हैं
इतना ही नहीं, हम मजारों और दरगाहों पर चादर चढ़ाते हैं, इसके लिए जिम्मेदार कौन है? कोई सरकार है- या फिर मुसलमान है? मैं नहीं मानता कि इसके लिए मुसलमान जिम्मेदार है या कोई आतंकवादी संगठन जिम्मेदार है। इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम और आप जिम्मेदार हैं। आप दरगाहों और मजारों पर क्यों जाते हैं चादर चढ़ाने। हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की, मंदिरों की कमी है क्या? आपके अड़ोस-पड़ोस में कोई मंदिर नहीं है क्या? ये जो समस्या है दरअसल जनसंख्या में धार्मिक आधार पर असंतुलन की, वह धीरे-धीरे एक दिन हमको 1947 से पहले के दौर में ले जाएगी जब मुस्लिम लीग ने आंदोलन चलाया अलग देश के लिए। यह भी याद रखिए कि अलग देश बनाने का आंदोलन उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने शुरू किया था और जिन लोगों ने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया वही पाकिस्तान नहीं गए। क्यों नहीं गए इसके बारे में सोचिएगा। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि योजना के तहत नहीं गए लेकिन आज जो नजर आ रहा है उसके पीछे, मुड़ कर देखने पर लगता है कि वह एक योजना के तहत नहीं गए। जनसंख्या का यह असंतुलन देश को एक नई विभाजन की ओर ले जाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है। अगर आपको अभी भी लगता है कि ऐसा नहीं होगा तो आप शुतुरमुर्ग हैं जो रेत में गर्दन दबाकर सोच रहा है कि तूफान निकल जाएगा और हमको कुछ नहीं होगा। अगर आप अभी भी अपनी इस राय पर कायम हैं तो देश के एक और धार्मिक विभाजन के लिए तैयार रहें। बाकी फैसला आपका है।