#pradepsinghप्रदीप सिंह।
19 जुलाई को मैंने अपने यूट्यूब वीडियो में एक बात कही थी कि लगता है ममता बनर्जी और बीजेपी में कोई डील या समझौता हो गया है। ममता बनर्जी अचानक भारतीय जनता पार्टी के प्रति नरम हो गई हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=zhgXaccDByY
अब देखिए ममता बनर्जी ने किस तरह से राष्ट्रपति चुनाव में अपना स्टैंड बदला और पीछे हटीं। यशवंत सिन्हा उन्हीं के सुझाए हुए कैंडिडेट थे। लेकिन जिस बैठक में विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उनके नाम की घोषणा होनी थी, उस बैठक में वह नहीं गईं। यशवंत सिन्हा को चुनाव प्रचार के लिए अपने प्रदेश में आने नहीं दिया। उसके बाद जब विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन हो रहा था, उस बैठक में वह नहीं गईं- अपने किसी प्रतिनिधि को नहीं भेजा। शरद पवार ने फोन किया तो उनका फोन नहीं उठाया। ये तो रहीं वे बातें जो हो चुकी हैं।

दार्जिलिंग की मीटिंग

उसके बाद जो बात हुई वह यह कि- ममता बनर्जी, एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ और असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वशर्मा- इन तीनों की दार्जिलिंग में मीटिंग हुई। उस मीटिंग के बाद यह अटकल शुरू हुई कि टीएमसी और बीजेपी में कोई समझौता हुआ है। क्या हुआ है… जब इसके बारे में दार्जिलिंग में पत्रकारों ने ममता बनर्जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं 21 जुलाई को बताऊंगी। हालांकि उन्होंने 21 जुलाई को खुद तो कुछ नहीं बताया लेकिन उनकी पार्टी के संसदीय दल की बैठक चल रही थी। बैठक के बीच ही ममता बनर्जी के भतीजे और लोकसभा सदस्य अभिषेक बनर्जी बाहर निकल कर आए और उन्होंने जो घोषणा की वह निश्चित तौर पर राजनीतिक रूप से चौंकाने वाली थी। उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस वोट नहीं करेगी और चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी। इससे क्या समझें? यानी विपक्ष से नाता तोड़ लिया है ममता बनर्जी ने। उनहोंने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया है- शरद पवार से नाता तोड़ लिया है।

बीजेपी की मदद

ममता बनर्जी उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन तो नहीं कर रही हैं, लेकिन पिछले ढाई साल में उनके पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से जैसे संबंध रहे हैं- उनके बीच जितना संघर्ष चला है- ऐसे में धनखड़ का विरोध करना ममता बनर्जी के लिए बहुत स्वाभाविक सी बात थी। लेकिन उन्होंने विरोध नहीं किया। उपराष्ट्रपति चुनाव से एब्सटेन करने का फैसला किया। एब्सटेन कर के वह एक तरह से उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी की मदद कर रही हैं। यह संदेश दे रही हैं कि हम बीजेपी के करीब आने के लिए तैयार हैं- अगर बीजेपी हमारा साथ दे।

पटनायक, रेड्डी और स्टालिन के साथ ममता भी…

 दरअसल केंद्र राज्य संबंधों की जो राजनीति में अब बदलाव आ रहा है। लगता है कि इस बारे में उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का मॉडल और भी मुख्यमंत्री अपनाना चाहते हैं। नवीन पटनायक मॉडल यह है कि केंद्र में जिसकी भी सरकार हो उससे संबंध बनाकर रखो- दोनों राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी रखो। केंद्र सरकार से दुश्मनी या झगड़ा मत करो। अपने राज्य का हित देखो और अपनी राजनीति पर अपने राज्य के हित को कुर्बान मत करो। इस रास्ते पर चलते हुए दिख रहे हैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन… आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी पहले से ही इस रास्ते पर चल रहे हैं। एक सज्जन जो पहले इसी रास्ते पर चल रहे थे लेकिन अब विपरीत दिशा में चले गए हैं वह हैं- तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव। अब ममता बनर्जी भी नवीन पटनायक, जगन मोहन रेड्डी और एम के स्टालिन के खेमे में शामिल होती हुई दिखाई दे रही हैं।

रणनीति बदली या ईडी का प्रेशर

यानी वह मान रही हैं कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों से समान दूरी बना कर रखना है- और बीजेपी से झगड़ा बंद। सवाल यह कि इसका संदेश पश्चिम बंगाल के उन भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए क्या है जो 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा के शिकार हुए। वहां भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई- घर जलाए गए- महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ- और उन्हें पलायन पर मजबूर होना पड़ा… इन घटनाओं की सीबीआई जांच चल रही है। उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर टीएमसी के स्टैंड में हमें जो ताजा और बड़ा बदलाव देखने को मिला है उसका कारण क्या है? ममता बनर्जी ने अपनी राजनीतिक रणनीति बदली है- या फिर यह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का प्रेशर है जो उनसे ऐसा करवा रहा है- यह आने वाले समय में पता चलेगा।