बिहार में लुकाछिपी का खेल

#pradepsinghप्रदीप सिंह।
बिहार की राजनीति में आजकल लुकाछिपी का खेल चल रहा है। वहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की गठबंधन सरकार है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से हर संभव कोशिश हो रही है कि किसी तरह बीजेपी से छुटकारा मिले और वह एक बार फिर से अपने बड़े भाई लालू प्रसाद यादव के खेमे (राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी) में जाएं। उधर बीजेपी हर संभव प्रयास कर रही है कि इसके रास्ते में रोड़ा अटका दिया जाए। वह नीतीश कुमार को विकल्प हीनता की स्थिति में रखना चाहती है और नीतीश कुमार विकल्प की तलाश में लगे हुए हैं।

अब शिकंजा लालू के ‘हनुमान’ पर

नीतीश कुमार की आरजेडी के पास जाने की कोशिश में बार-बार रोड़े अटकाए जा रहे हैं। इसी साल मई में नीतीश कुमार ने पहली बार कोशिश की थी और सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव के 17 ठिकानों पर छापा मारा था और उनकी पत्नी व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से पूछताछ भी हुई थी। अब नीतीश कुमार ने फिर से यह कोशिश तेज की है तो लालू प्रसाद के सबसे करीबी माने जाने वाले भोला यादव- जिनको लालू प्रसाद यादव का ‘हनुमान’ भी कहा जाता रहा है- के घर पर सीबीआई ने छापेमारी की है और उनको गिरफ्तार कर लिया है। उन पर दो मामले हैं एक आईआरसीटीसी का घोटाला जिसमें तेजस्वी यादव का भी नाम है। उसके अलावा दूसरा मामला है नौकरी के बदले जमीन का मामला। जब लालू प्रसाद यादव केंद्र में रेल मंत्री थे तो बिहार से जिन लोगों को उन्होंने रेलवे में नौकरी दिलाई उसके बदले में अपने परिवार और रिश्तेदारों के नाम उनसे जमीन लिखवा ली। अब वे सब लोग, जिन्होंने नौकरी के बदले अपनी जमीन दी थी- सारी बातें बोलने के लिए तैयार हैं। वे हलफनामा देने और प्रमाण देने के लिए भी तैयार हैं।

नीतीश की फितरत

सीबीआई इस मामले की जांच लंबे समय से कर रही है। इसकी शुरुआत 2017 में हुई थी, जब नीतीश कुमार ने किसी को मुद्दा बनाकर आरजेडी से नाता तोड़ा था। उनका कहना था कि तेजस्वी यादव इस मामले पर सार्वजनिक रूप से सफाई दें। तेजस्वी यादव इस पर कुछ बोलने को तैयार नहीं थे। आखिर में नीतीश कुमार ने इसी बात को बहाना बनाया और आरजेडी से जदयू का गठबंधन तोड़ दिया। नीतीश कुमार जब भी किसी से गठबंधन तोड़ते हैं तो उसके लिए पहले वह एक बहाना तैयार करते हैं। तो इस मुद्दे को उन्होंने गठबंधन तोड़ने का बहाना बनाया।

कॉमेडी ट्रेजेडी सीरियल

अब मुश्किल यह है कि अगर जांच शुरू होती है और जांच आगे बढ़ती है- तेजस्वी यादव से पूछताछ होती है- लालू परिवार के दूसरे लोगों से पूछताछ होती है- तो ऐसे में नीतीश कुमार के लिए भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे लोगों के साथ जाना इतना आसान नहीं होगा। हालांकि नीतीश कुमार जिस तरह के डिस्परेशन में हैं- वह कर कुछ भी सकते हैं… फिर भी उनका इस समय, ऐसे माहौल में जाना मुश्किल होगा। आपको याद होगा पाकिस्तान टीवी पर एक सीरियल आता था ‘बकरा किस्तों पे’। ‘बकरा किस्तों पे’ एक कॉमेडी सीरियल था। लेकिन बिहार की राजनीति में जो चल रहा है वह कॉमेडी ट्रेजेडी सीरियल है जिसमें बीजेपी किस्तों में इस काम को कर रही है। जब-जब नीतीश कुमार के अंदर छटपटाहट होती है बीजेपी के चंगुल से निकलने की- या कहें कि भाजपा को जब-जब लगता है कि नीतीश कुमार छोड़कर भागने वाले हैं… तब तक वह उनको रोकने के लिए इस मुद्दे को थोड़ा और तेज कर देती है- गरमा देती है।

और तेज  होगा भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान

लेकिन जिस तरह से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के बारे में बुधवार 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है उसके बाद ईडी की ताकत और बढ़ेगी। हालांकि ईडी के पास जो अधिकार थे वही रहेंगे- लेकिन अभी तक एक तलवार लटकी हुई थी कि शायद सुप्रीम कोर्ट ईडी के अधिकारों में कटौती कर दे- ऐसा हुआ नहीं। उसके बाद केंद्र सरकार का भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान और तेज होने वाला है। इसका मतलब बिहार के संदर्भ में कहें तो लालू प्रसाद यादव के परिवार के लिए मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। और यह केवल लालू प्रसाद यादव या राबड़ी देवी तक सीमित मामला नहीं है- बल्कि उनकी दूसरी पीढ़ी का मामला है। उनकी दूसरी पीढ़ी भी इस मामले में आरोपों के घेरे में है। ऐसे में नीतीश कुमार का रास्ता बंद करने के लिए सीबीआई का कदम काफी कारगर साबित हो सकता है। जब भ्रष्टाचार का यह मामला पीक पर पहुंचता है और उस समय नीतीश कुमार भाजपा को छोड़कर राजद में जाते हैं तो भ्रष्टाचार के विरोध का जो हथियार वह निकालते दिखाते रहे हैं वह उनके हाथ से चला जाएगा। यह अलग बात है कि वह हथियार- और उनकी जो सुशासन बाबू की छवि बनी थी वह भी- धूल धूसरित हो चुके हैं। लेकिन इस सबके बावजूद मुश्किल तो निश्चित रूप से होगी। क्या नीतीश कुमार इस मुद्दे पर कुछ बोलते हैं, अपना मुंह खोलते हैं- देखना दिलचस्प होगा।

समझो इशारे

पिछले कई महीनों से नीतीश कुमार यह संकेत दे रहे हैं कि वह बीजेपी से दूर जा रहे हैं। केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में- जहां संवैधानिक रूप से उनका शामिल होना जरूरी है- वहां भी वह शामिल नहीं हो रहे हैं। इस तरह वह लगातार इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि जनता में यह संदेश जाए कि हमारे और भाजपा के बीच में दूरी बढ़ रही है। इस तरह के संकेत देते हुए वह किसी ऐसे बहाने या मुद्दे की तलाश में हैं जिसके आधार पर गठबंधन तोड़ सकें- भाजपा को छोड़कर जा सकें। पर सवाल यह है कि क्या वह जा पाएंगे? क्या बीजेपी उनको जाने देगी? क्योंकि बीजेपी के सामने भी कोई विकल्प नहीं है। उसे मालूम है कि बिहार न तो महाराष्ट्र है, ना गोवा या मणिपुर है! बिहार में बीजेपी के लिए सरकार बनाना संभव नहीं है। सरकार बनाने के लिए जेडीयू और आरजेडी में से किसी पार्टी को तोडना होगा जो भाजपा के लिए संभव नहीं है। कांग्रेस पार्टी अलबत्ता टूट सकती है- लेकिन गणित ऐसा है कि कांग्रेस को जोड़कर भी सरकार बननेवाली नहीं। इसलिए जब तक भाजपा की तैयारी पूरी नहीं हो जाती वह चाहेगी कि आरजेडी सत्ता में ना आने पाए। भाजपा को समस्या नीतीश कुमार के जाने से नहीं है- बल्कि आरजेडी के फिर से सत्ता में आ जाने से समस्या है। उस समस्या का समाधान बीजेपी खोज रही है। अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है। जब तक भारतीय जनता पार्टी को यह विश्वास नहीं हो जाएगा कि वह अपने दम पर चुनाव लड़ कर सत्ता में आ सकती है- आए चाहे ना आए, लेकिन ‘आ सकती है’ यह भरोसा जब तक नहीं होगा- तब तक वह चाहेगी कि यह व्यवस्था चलती रहे।