काबुल में सुरक्षित घर की बाल्कनी में दिखा, तभी मार गिराया।
प्रमोद जोशी।
अमेरिका ने अल-क़ायदा के नेता अयमान अल-ज़वाहिरी को अफ़ग़ानिस्तान में एक ड्रोन हमले में मार दिया है। ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद से अल-ज़वाहिरी ही इस संगठन को चला रहा था और उसकी मौत के बाद यह भी स्पष्ट है कि उसे अफगानिस्तान में शरण मिली हुई थी। ज़ाहिर है कि अल-क़ायदा का अस्तित्व बना हुआ है, और वह अपनी गतिविधियों को चला भी रहा है। भारत की दृष्टि से अल-ज़वाहिरी की मौत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसके दो वीडियो ऐसे हैं, जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि उसके संगठन की भारत में भले ही बड़ी उपस्थिति नहीं हो, पर उसकी दिलचस्पी भारत में थी।
भारत पर निगाहें
एक वीडियो में उसने भारत में अल-कायदा की शाखा स्थापित करने की घोषणा की थी और दूसरे में कर्नाटक के हिजाब विवाद पर अपनी टिप्पणी की थी। यों 2001 के बाद भारत को लेकर उनकी टिप्पणियों की चर्चा कई बार हुई। उसने अफगानिस्तान, कश्मीर, बोस्निया-हर्जगोविना और चेचन्या में इस्लामिक-युद्ध का कई बार उल्लेख किया। यों बिन लादेन ने भी 1996 में ताजिकिस्तान, बर्मा, कश्मीर, असम, फिलीपाइंस, ओगाडेन, सोमालिया, इरीट्रिया और बोस्निया-हर्जगोविना में मुसलमानों की कथित ‘हत्याओं’ को लेकर अपना गुस्सा व्यक्त किया था।
इस बात को लेकर कयास हैं कि तालिबान को क्या पता था कि अल-ज़वाहिरी उनके देश में है? अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि काबुल के जिस घर में अल-ज़वाहिरी को ड्रोन स्ट्राइक में मारा गया, उसमें बाद में तालिबान के अधिकारी गए और यह छिपाने की कोशिश की कि यहाँ कोई मौजूद नहीं था।
सीआईए का ऑपरेशन
बीबीसी के अनुसार रविवार को अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी यानी सीआईए ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में ऑपरेशन चलाया, जिसमें अल-ज़वाहिरी मारा गया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा है,”ज़वाहिरी के हाथ अमेरिकी नागरिकों के ख़िलाफ़ हत्या और हिंसा के ख़ून से रंगे थे। अब लोगों को इंसाफ़ मिल गया है और यह आतंकवादी नेता अब जीवित नहीं है।” राष्ट्रपति बाइडेन ने ज़वाहिरी को साल 2000 में अदन में अमेरिकी जंगी पोत यूएसस कोल पर आत्मघाती हमले के लिए भी ज़िम्मेदार बताया। इसमें 17 नौसैनिकों की मौत हुई थी। उन्होंने कहा, ”यह मायने नहीं रखता कि उसके सफाए में इतना लंबा समय लगा। यह भी मायने नहीं रखता कि कोई कहाँ छिपा है। अगर आप हमारे नागरिकों के लिए ख़तरा हैं तो अमेरिका छोड़ेगा नहीं। हम अपने राष्ट्र और नागरिकों की सुरक्षा में कभी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।”
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि ज़वाहिरी एक सुरक्षित घर की बाल्कनी में था, तभी ड्रोन के ज़रिए दो मिसाइलें उस पर दागी गईं। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि ज़वाहिरी के परिवार वाले भी घर में थे लेकिन किसी को कोई नुक़सान नहीं हुआ है। 71 वर्षीय साल के अल-क़ायदा नेता के ख़िलाफ़ निर्णायक हमले की मंज़ूरी दी थी। 2011 में ओसामा बिन-लादेन के मारे जाने के बाद अल-क़ायदा की कमान ज़वाहिरी के पास ही थी। माना जाता है कि अमेरिका में 9/11 के हमले की साज़िश लादेन और ज़वाहिरी ने ही रची थी। ज़वाहिरी को मारकर अमेरिका ने साबित किया है कि उसने भले ही अफगानिस्तान को छोड़ दिया है, पर वह दूर से हमला कर सकता है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि तालिबान को पता था कि अल-ज़वाहिरी काबुल में मौजूद हैं। बाइडेन ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान को हम फिर से आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनने देंगे। 2011 में जब ओसामा बिन-लादेन को मारा गया था तब बाइडेन उपराष्ट्रपति थे। अब उन्होंने राष्ट्रपति के तौर पर एक अल-क़ायदा के दूसरे अहम नेता के मारे जाने की घोषणा की है।
कौन था अल-ज़वाहिरी
अयमान अल-ज़वाहिरी मिस्र का एक डॉक्टर था, जो बाद में इस्लामिक चरमपंथ में शामिल हो गया। 1980 के दशक में अल-ज़वाहिरी मिस्र में इस्लामिक उग्रवाद में शामिल होने के कारण जेल में भी रहा था। जेल से छूटने के बाद वह अफ़ग़ानिस्तान में ओसामा बिन-लादेन के साथ आ गया। 2011 में ओसामा बिन-लादेन के मारे जाने के बाद अल-क़ायदा की कमान ज़वाहिरी के पास ही थी।
ज़वाहिरी की पहचान अल-क़ायदा के प्रमुख विचारक के तौर पर भी थी। अल-ज़वाहिरी और ओसामा ने मिलकर अमेरिका के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा की और 2001 में 11 सितंबर के हमले को अंजाम दिया। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि ओसामा बिन लादेन को तमाम घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है, पर ज़वाहिरी की भूमिका ज्यादा बड़ी थी। लादेन की तरह अल-ज़वाहिरी करिश्माई नेता नहीं था और न उसके पास लादेन जैसी विशाल संपत्ति थी। हाल के वर्षों में ज़वाहिरी अल-क़ायदा के प्रमुख प्रवक्ता के तौर पर उभरा था। 2007 में अल-ज़वाहिरी 16 वीडियो और ऑडियो टेप में सामने आए जो कि ओसामा बिन-लादेन से चार गुना ज़्यादा था। अल-क़ायदा ने दुनिया भर के मुसलमानों में कट्टरता और अतिवाद भरने की कोशिश की।
2006 में भी कोशिश
अमेरिका उसकी तलाश में लंबे अरसे से था। जनवरी 2006 में भी अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से लगी पाकिस्तान की सीमा पर मिसाइल से हमला किया था। इस हमले में अल-क़ायदा के चार सदस्य मारे गए थे लेकिन अल-ज़वाहिरी बच गए थे। हमले के दो हफ़्ते बाद अल-ज़वाहिरी एक वीडियो में सामने आया था, और उसने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को धमकी देते हुए कहा था कि दुनिया की सारी शक्तियां उनके पास नहीं हैं।
अल-ज़वाहिरी का जन्म मिस्र की राजधानी काहिरा में 19 जून, 1951 को एक प्रतिष्ठित मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके परिवार में डॉक्टर और स्कॉलर थे। अल-ज़वाहिरी के दादा राबिया अल-ज़वाहिरी मध्य-पूर्व में सुन्नी इस्लामिक अध्ययन केंद्र अल-अज़हर के ग्रैंड इमाम थे। इनके चाचा अरब लीग के पहले महासचिव थे। ज़वाहिरी जब स्कूल में था, तभी इस्लाम की सियासत में शामिल हो गया था। 15 साल की उम्र में उसे ग़ैर-क़ानूनी मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्य होने के कारण गिरफ़्तार किया गया था। मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र का पुराना और बड़ा इस्लामिक संगठन है। अल-ज़वाहिरी की राजनीतिक गतिविधियां काहिरा यूनिवर्सिटी में उनकी मेडिकल की पढ़ाई में बाधा नहीं बनीं। 1974 में वहाँ से मेडिसिन में उन्होंने ग्रेजुएशन किया और यहीं से चार साल बाद सर्जरी में मास्टर की पढ़ाई की। अल-ज़वाहिरी के पिता मोहम्मद की मौत 1995 में हुई थी। वे काहिरा यूनिवर्सिटी में ही फ़ार्माकोलॉजी के प्रोफ़ेसर थे।
अफ़ग़ानिस्तान में आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहा तालिबान
अतिवादी-प्रभाव
ज़वाहिरी ने शुरु में काहिरा में एक क्लीनिक खोला लेकिन जल्दी ही वे अतिवादी इस्लामिक समूहों के प्रभाव में आने लगे। ये समूह मिस्र की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश कर रहे थे। 1973 में मिस्र इस्लामिक जिहाद बना और अल-ज़वाहिरी इसमें शामिल हो गए। 1981 में मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात की एक सैनिक परेड में हत्या कर दी गई थी।
हत्या करने वालों में मिस्र के इस्लामिक जिहाद के लोग थे। ये सैकड़ों की संख्या में सेना की यूनिफॉर्म में थे। इसमें अल-ज़वाहिरी भी शामिल थे। अनवर सादात ने इसराइल के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इसे लेकर इस्लामिक एक्टिविस्ट नाराज़ थे। इससे पहले सादात ने अपने आलोचकों को गिरफ़्तार भी करवाया था।
अनवर सादात की हत्या के बाद अल-ज़वाहिरी को भी अभियुक्तों के नेता के रूप में माना गया। उन्होंने अदालत में कहा था, ”हम मुसलमान हैं और अपने मज़हब में भरोसा रखते हैं। हम एक इस्लामिक मुल्क और समाज बनाने की कोशिश कर रहे हैं।” हालांकि हत्या के मामले में उन्हें बरी कर दिया गया, लेकिन अवैध हथियार रखने के मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया। उन्हें तीन साल की क़ैद मिली। कहा जाता है कि जेल के अनुभव ने उन्हें पूरी तरह से बदल दिया और वह हिंसक इस्लामिक अतिवादी हो गए।
1985 में जेल से रिहा होने के बाद अल-ज़वाहिरी सऊदी अरब चले गए। सऊदी के बाद वह पाकिस्तान के पेशावर शहर गए और फिर अफ़ग़ानिस्तान में। अफ़ग़ानिस्तान में ही उन्होंने मिस्र इस्लामिक जिहाद के एक धड़े को संगठित किया। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन के नियंत्रण के दौरान वह डॉक्टर का काम करते रहे। 1992 में फिर से उभार के बाद ज़वाहिरी ने मिस्र इस्लामिक जिहाद की कमान अपने हाथों में ले ली। मिस्र में सरकार के मंत्रियों और प्रधानमंत्री अतिफ़ सिद्दीक़ी पर हुए हमलों में इस संगठन की भूमिका थी और ज़वाहिरी को मास्टरमाइंड माना गया।
इस ग्रुप के अभियान के कारण ही वहाँ की सरकार गिरी और 1990 के दशक के मध्य में मिस्र इस्लामिक स्टेट बना। इस अभियान में मिस्र में 1200 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई। 1997 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अल-ज़वाहिरी को मिस्र के लक्सर शहर में विदेशी पर्यटकों पर हमले के लिए ज़िम्मेदार बताया। 1997 में वह अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद शहर चला गया। वहीं ओसामा बिन-लादेन का ठिकाना था।
अफ़ग़ानिस्तान से सोवियत यूनियन की वापसी के दौरान माना जाता है कि अल-ज़वाहिरी बुल्गारिया, डेनमार्क और स्विट्ज़रलैंड में रह रहे थे। कई बार फ़र्ज़ी पासपोर्ट के ज़रिए बाल्कन्स, ऑस्ट्रिया, यमन, इराक़ और फिलिपीन्स का भी दौरा किया। ज़वाहिरी दिसंबर, 1996 में छह महीने तक रूसी हिरासत में रहे थे। वह बिना वैध वीज़ा के चेचन्या में पकड़े गए थे। कहा जाता है कि अल-ज़वाहिरी ने ही लिखा था कि रूसी प्रशासन उनका अरबी टेक्स्ट समझने में नाकाम रहा था। वह अपनी पहचान छिपाने में कामयाब रहे थे। माना जाता है कि 1997 में अल-ज़वाहिरी अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद शहर चले गए। वहीं ओसामा बिन-लादेन का ठिकाना था। एक साल बाद मिस्र इस्लामिक जिहाद, पाँच अन्य अतिवादी इस्लामिक समूहों के साथ आ गया। इसमें ओसामा बिन-लादेन का अल-क़ायदा भी शामिल था। इन सभी को मिलाकर वर्ल्ड इस्लामिक फ्रंट बना। इसका मक़सद यहूदियों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ जिहाद था। पहली ही घोषणा में इस संगठन ने अमेरिकी नागरिकों को मारने के लिए फ़तवा जारी किया। छह महीने बाद ही एक साथ कई हमले हुए। केन्या और तंज़ानिया में अमेरिकी दूतावास पर हमला किया और 223 लोगों की मौत हुई।
अल-क़ायदा का हाथ
अल-ज़वाहिरी के सैटेलाइट टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत को सबूत के तौर पर पेश किया जाता है कि बिन-लादेन और अल-क़ायदा हमले के पीछे थे। हमले के दो हफ़्ते बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में इस ग्रुप के ट्रेनिंग सेंटर को तबाह कर दिया था। इसके अगले दिन ज़वाहिरी ने पाकिस्तानी पत्रकार को फ़ोन कर कहा था, ”आप अमेरिका को बता दीजिए कि उनकी बमबारी, धमकी और आक्रामकता से हम डरेंगे नहीं। अभी तो जंग शुरू हुई है।”
2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अल-ज़वाहिरी के पास कुछ बचा नहीं था। कभी-कभार कुछ बयान जारी कर दिए जाते थे। अब सुन्नी मुसलमानों का ज्यादा खतरनाक संगठन इस्लामिक स्टेट है, जिसके सामने अल-क़ायदा की कोई हैसियत नहीं है। अलबत्ता काबुल में अल-ज़वाहिरी के मारे जाने से इस बात का भी अंदाज़ा मिलता है कि अफ़ग़ानिस्तान की अहमियत बनी हुई है। तालिबानी शासन आने से यहाँ इस्लामिक समूहों को सुरक्षित ठिकाना जरूर मिल रहा होगा।
(लेखक ‘डिफेंस मॉनिटर’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से)