सुरेंद्र किशोर।

राहुल गांधी ने शुक्रवार को कहा कि “इस देश में लोकतंत्र की मौत हो रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि “केंद्र सरकार ने संसद से लेकर न्यायपालिका तक सारे संस्थानों पर कब्जा कर लिया है।” लोकतंत्र की मौत हो रही होती तो राहुल गांधी यह नहीं कह पाते कि “चौकीदार चोर है।” लोकतंत्र की हत्या तो सन 1975-77 में उनकी दादी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। उसके कुछ नमूने यहां प्रस्तुत हैं।

इमर्जेंसी में बयान कौन कहे,प्रतिपक्षी नेताओं के नाम तक अखबारों में नहीं छपते थे। जेपी (जयप्रकाश नारायण) की तस्वीर की बात कौन कहे, विनोबा भावे के अनशन तक की खबर नहीं छपने दी गई थी असली इमर्जेंसी में। जबकि, विनोबा जी ने दमनकारी आपातकाल को “अनुशासन पर्व” कह कर उसका समर्थन किया था।

भाजपा से कम आपस में ज्यादा लड़ रहा विपक्ष

ऐसे कुचला मीडिया को

कुलदीप नैयर से लेकर गौर किशोर घोष तक देश के करीब 200 पत्रकार आपातकाल में गिरफ्तार कर लिए गए थे। देश के अधिकतर प्रतिपक्षी नेता और कार्यकर्ता जेलों में डाल दिए गए थे। इमरजेंसी में इंदिरा गांधी सरकार के प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) से समय -समय पर मीडिया को कड़े आदेशात्मक निर्देश दिए जाते रहते थे। उन निर्देशों के कुछ ही नमूने यहां दिए जा रहे हैं। देश का समाचार जगत उसी के अनुरूप काम करने को बाध्य था।

(1) 25 और 26 जून 1975 के बीच की रात में देश में इमर्जेंसी लगी। जेपी सहित हजारों नेताओं, कार्यकर्ताओं को पकड़कर जेलों में बंद कर दिया गया। पर, जेपी तक का चित्र अखबारों में नहीं छपने दिया गया।

(2) तुर्कमान गेट की घटना की खबर नहीं छपी। वहां अनेक लोगों को पुलिस ने गोलियों से भून दिया था।

(3) मई, 1976 में एक मशहूर भारतीय अभिनेत्री की लंदन में गिरफ्तारी हुई। वह डिपार्टमेंटल स्टोर से सामान चुराते पकड़ी गई थी। उस खबर को भी यहां छपने से भारत सरकार ने रोक दिया था। अभिनेत्री सत्ता की करीबी थी।

(4) गो हत्या पर प्रतिबंध की मांग पर जोर डालने के लिए विनोबा भावे 11 सितंबर, 1976 से आमरण अनशन करने वाले थे। शासन के आदेश से इस संबंध में कोई खबर नहीं छपी।

(5) पटना गोलीकांड पर खबर नहीं छपने दी गई।

(6) 16 जुलाई, 1976 को पी.आई.बी.से अखबारों को यह निदेश मिला कि जयप्रकाश नारायण के कहीं आने -जाने का समाचार न छापा जाए।

(7) बड़ौदा डायनामाइट केस में कोर्ट में जार्ज फर्नांडिस ने बयान दिया था। उसे भी छपने से रोक दिया गया। लेकिन उसी केस के मुखबिर का अदालती बयान अखबारों के पहले पेज पर छपा।

(8) जो कुछ लोग जब यह कहते हैं कि आज देश में इमर्जेंसी वाली स्थिति है और लोकतंत्र समाप्त है तो उन्हें यह सब पढ़कर फिर अपनी टिप्पणी देनी चाहिए।

(9) 26 जून 1975: समाचार एजेंसियों के टेलीप्रिंटरों से सभी नेताओं की गिरफ्तारी के समाचार हटा दिए गए। जेपी भी गिरफ्तार हुए थे, उनका फोटो तक किसी अखबार में नहीं छपने दिया गया।

(10) 19 अगस्त 1975: पी.आई.बी.का निर्देश था कि गुजरात में राष्ट्रपति शासन हटाने और कांग्रेस सरकार के गठन से संबधित समाचार-टिप्पणी न छापें।

(11) 27 अगस्त 1975: संसद के बारे में प्रधानमंत्री का वक्तव्य प्रकाशित नहीं किया जाए।

(12) 15 सितंबर 1975: कुलदीप नैयर की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय नहीं छापें।

(13 ) 22 नवंबर: जेल से रिहा जेपी की बंबई यात्रा संबंधी रिपोर्ट सेंसर अधिकारी की स्वीकृति के बाद ही छापें। जेपी के किसी फोटोग्राफ का इस्तेमाल नहीं करें।

यहां उल्लेखित अधिकतर सूचनाएं मैंने वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त की चर्चित पुस्तक ‘इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर’ से ली हैं। करीब पौने पांच सौ पेज की यह किताब प्रभात प्रकाशन ने छापी है। (साभार)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)