#pradepsinghप्रदीप सिंह।

आप सब ने अपने जीवन में इस बात का अनुभव किया होगा कि बच्चा जब संकट में होता है, जब उसपर मुसीबत-परेशानी आती है- तो भागकर मां की गोद में छिप जाता है। इसलिए छिपता है कि उसे लगता है उसके लिए सबसे सुरक्षित जगह यही है। यहां वह किसी से भी मुकाबला कर सकता है। यहां उसको किसी से कोई खतरा नहीं है- मां के आंचल की छांव उसको बचा लेगी। यहां पर वह बड़ी से बड़ी समस्या सामना करने के लिए तैयार है। यहां उसे कोई हरा नहीं सकता- कोई पराजित नहीं कर सकता- कोई चुनौती नहीं दे सकता। यह एहसास बच्चे के मन में होता है जब वहां मां की गोद में आकर छुपता है। कांग्रेस पार्टी की हालत आजकल वैसी ही हो गई है।

कांग्रेस का अतीत बहुत गौरवशाली रहा है। आजादी के आंदोलन की वारिस पार्टी रही है। यह अलग बात है कि आजादी से पहले वह एक राजनीतिक पार्टी नहीं थी। वह एक मंच था जिसमें तमाम अलग अलग विचारधाराओं के लोग शामिल थे। बाद में इसको राजनीतिक लाभ उठाने के लिए पार्टी में बदला गया…  लेकिन वह मुद्दा अलग है। कांग्रेस के अतीत का मुकाबला करने वाली देश में कोई पार्टी नहीं है। कांग्रेस का जो इतिहास रहा- उसके नेताओं का आजादी के आंदोलन में जो योगदान रहा- उन सबका मुकाबला करने वाली कोई पार्टी नहीं है। इसलिए जब कांग्रेस पार्टी के पास वर्तमान की समस्याओं- वर्तमान के सवालों- वर्तमान की चुनौतियों का कोई जवाब नहीं होता तो वह उनसे भागने और छिपने के लिए अतीत की गोद में चली जाती है। ऐसा लगातार हो रहा है क्योंकि जैसे ही वह अतीत से निकलकर वर्तमान में आने की कोशिश करती है उसे हजार वोल्ट, बल्कि उससे भी तेज करंट का झटका लगता है।

आधा कश्मीर पाक के कब्जे में

शुरुआत करते हैं देश के विभाजन और आजादी से। जैसे ही ‘उस वर्तमान’ की बात होती है- उसमें लाखों लोगों का कत्ल हुआ- करोड़ों लोग दरबदर हो गए। यह सब कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व की देखरेख और जानकारी में हुआ- उनके होते हुए हुआ। वे उसको रोकने में नाकाम रहे। यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। इसलिए कांग्रेस कभी उस घटना का जिक्र नहीं करती। कांग्रेस कभी भी आपको अगस्त 1946 के कोलकाता के डायरेक्ट एक्शन या ‘ग्रेट कैलकटा किलिंग्स’ का जिक्र करती हुई नहीं मिलेगी। उसकी तो वह चर्चा ही नहीं करेगी। अब वहां से निकलकर कांग्रेस जरा सा आगे बढ़ती है तो 1947 और 1948 आता है। आधा कश्मीर पाकिस्तान कब्जा कर ले जाता है। पाकिस्तान से बड़ी फौज- पाकिस्तान से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय समर्थन- होते हुए भी कश्मीर के आधा हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में चला गया और उसे हम आज तक वापस नहीं ले पाए। उसका नुकसान हमें जम्मू कश्मीर में जो हो रहा है उसमें दिखाई दे रहा है। उसके अलावा देश का जो नुक्सान गिलगित-बालटिस्तान जाने से हुआ है वह तो अपूरणीय क्षति है। स्ट्रैटजिक मामले में उसने हमको इतना पीछे धकेल दिया कि अगर वह इलाका आज हमारे पास होता तो चीन की कोई हिम्मत ना होती। बहुत कुछ बदल गया होता। उससे आगे कांग्रेस बढ़ती है तो फिर आता है 1962… चीन से युद्ध। हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन का कब्जा हो गया। वः जमीन हम आज तक नहीं छुड़ा पाए। आज तक वह विवाद बना हुआ है और अब वह नासूर बन गया है। लद्दाख में पिछले दो साल से फौजें सीमा पर डटी हुई हैं- सिर्फ इसलिए कि 1962 में हमने वह बड़ा हिस्सा चीन के कब्जे में जाने दिया। उसके लिए दोषी सिर्फ और सिर्फ तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की नीतियां और नीयत थी। उसकी वजह से 1962 का युद्ध हम हारे।

इमरजेंसी का तांडव, सिख नरसंहार

उससे आगे बढ़ती है कांग्रेस और फिर वर्तमान में आने की कोशिश करती है तो फिर 1975 की इमरजेंसी आ जाती है। जब देश में सब के संवैधानिक अधिकार, मौलिक अधिकार, जीने का अधिकार- ये सब सस्पेंड कर दिए गए थे। संविधान को सस्पेंड कर दिया गया था। किसी के पास कोई मौलिक अधिकार नहीं रह गया। जितने विरोधी दल थे उन सब के नेताओं को बिना किसी मुकदमे के जेल में ठूंस दिया गया- बिना किसी बात या बिना किसी एफआईआर के। इमरजेंसी का जो तांडव चला वह देश के लोकतांत्रिक इतिहास में एक काले दिवस के रूप में याद किया जाता है। वह स्थिति कभी ना आए इसकी कोशिश होती रहती हैं। अब उससे आगे हाल देखिए। कांग्रेस जैसे ही उससे निकल कर आगे बढ़ने की कोशिश करती है तो 1984 का सिखों का नरसंहार आ जाता है। दुनिया के किसी भी नरसंहार का आप इतिहास उठाकर देख लीजिए- कहीं भी आपने यह नहीं सुना होगा कि देश की राजधानी और दूसरे प्रदेशों में हजारों लोग मार दिए जाएं- जिंदा जला दिए जाएं – और पुलिस लाठी तक ना उठाए। लाठी चलाना तो दूर है लाठी उठाई भी नहीं। दोषियों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज ना हो और कोई अदालत उसका संज्ञान ना ले- यह कल्पनातीत था जो इस देश में हुआ। जो लोग भी आज 50 साल से ऊपर के हैं उन सब लोगों ने वह दौर अपनी आँखों से देखा है- उस दौर की उन्हें याद है। यही नहीं, इतने बड़े नरसंहार के बाद कांग्रेस पार्टी की हिम्मत देखिए। दिसंबर 1984 के लोकसभा चुनावों में अख़बारों में पूरे-पूरे पेज के विज्ञापन दिए गए। विज्ञापन में दिखाया गया कि एक सिख टैक्सी ड्राइवर है। लोगों से पूछा गया कि- क्या आप इस टैक्सी में जाना सुरक्षित महसूस करते हैं। इस तरह से बंटवारा करने- इस तरह की सांप्रदायिकता चलाने की कोशिश हुई… और कामयाब कोशिश हुई। कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में चार सौ से ज्यादा सीटें मिलीं।

दलाल था जो रिश्तेदार निकला

अब कांग्रेस पार्टी वहां से निकलती है तो किसी दंगे या सांप्रदायिक घटना पर कैसे बोले? लेकिन काग्रेस इस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश में जुटती है। लेकिन यहां तो कुछ और ओह उसका ‘इंतजार’ कर रहा था। भ्रष्टाचार की जो खिचड़ी नेहरू के जमाने से जो पक रही थी- वह तैयार हो जाती है- और बोफोर्स के रूप में सामने आती है। बोफोर्स कांड में पहली बार गांधी परिवार का कोई व्यक्ति घेरे में आया- और सीधे राजीव गांधी पर आरोप लगा। इसके अलावा इस दलाली लेने वाला राजीव गांधी और सोनिया गांधी का रिश्तेदार निकला-  क्वात्रोक्की। वहां से भी निकलना मुश्किल था कांग्रेस के लिए। तो आप देखिए कि वहां से कांग्रेस पार्टी की जो गिरावट शुरू हुई है वह रुकने का नाम नहीं ले रही है। वहां से आगे की बात करें तो फिर हम आप लगभग वर्तमान में आ जाते हैं। दस साल (2004 से 2014) भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के शासन का स्वर्ण काल था। भारत में इतने बड़े पैमाने पर और इतने धड़ल्ले से भ्रष्टाचार कभी नहीं हुआ। उसका नतीजा यह हुआ कि भ्रष्टाचार और कांग्रेस पार्टी दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची बन गए। दोनों में अब लोगों को फर्क नहीं नजर आता। आप भ्रष्टाचार की बात कीजिए तो सामने कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं की छवि आती है। कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं की बात कीजिए तो भ्रष्टाचार की छवि सामने आती है। अब भ्रष्टाचार के खिलाफ जो कार्रवाई हो रही है उससे अंदाजा लगाइए कि कितने बड़े पैमाने पर यह सब चल रहा था- लेकिन आज बात कांग्रेस पार्टी की हो रही है। कांग्रेस पार्टी से जब भी आप वर्तमान का कोई सवाल पूछेंगे तो वह भागकर अतीत में चली जाएगी।

तिरंगे से भी परहेज

आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चलाने की अपील की है। उसके बाद देश के उपराष्ट्रपति के नेतृत्व में सांसदों की एक तिरंगा यात्रा निकलनी थी। हर पार्टी के सांसद को इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया- बुलाया गया। लेकिन कांग्रेस पार्टी उसमें नहीं गई। ‘क्यों नहीं गई’ कागज पार्टी इसका जवाब नहीं देगी। वह कहेगी कि डॉ. हेडगेवार ने तिरंगे को स्वीकार नहीं किया था। उनसे पूछें कि आप तो आजादी के आंदोलन की वारिस पार्टी होने का दावा करते हैं- तो आप आपके मन में यह बात क्यों नहीं आई कि इस तरह की कोई यात्रा होनी चाहिए… हर घर तिरंगा का अभियान होना चाहिए? इसका कोई जवाब उनके पास नहीं है। वे कहेंगे कि आरएसएस ने अपने मुख्यालय 52 साल तक तिरंगा झंडा नहीं फहराया। उनसे सवाल कीजिए कि पहले नेशनल फ्लैग का कोड था उसके मुताबिक 15 अगस्त, 26 जनवरी और 2 अक्टूबर को छोड़कर आप सरकारी संस्थानों के अलावा कहीं भी राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहरा सकते थे। तो जाहिर है कि अन्य संस्थानों में झंडा नहीं फहराया जाएगा। पर इससे वे संतुष्ट नहीं होते। वे कहते हैं कि गुरु गोलवलकर (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक) ने अपनी किताब में तिरंगे के बारे में ‘ऐसा’ लिखा है।

पचास लाख में पांच हजार करोड़ का माल

कभी वर्तमान के सवाल का जवाब कांग्रेस पार्टी नहीं देगी। आज के तारीख में उन से पूछिए कि नेशनल हेराल्ड में इतना बड़ा घोटाला कैसे हो गया? नेशनल हेराल्ड अख़बार को जवाहरलाल नेहरू ने उस समय चलाया जब देश अंग्रेजों से लड़ रहा था। उनहोंने अंग्रेजो के खिलाफ अखबार निकला और चलता रहा। जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में आ गई- पूरे देश का शासन उसके हाथ में आ गया- तो आप क्यों नहीं चला पाए- क्यों उसे बंद करने की नौबत आ गई? अगर अखबार संकट में था तो आपने उसको 90 करोड़ का कर्ज दिया- यह अच्छी बात है। आपको मालूम था कि वह कर्ज लौटा नहीं पाएंगे। ऐसे में अगर अखबार संकट में था और उसको पैसे की जरूरत थी तो आप अखबार चलाने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की संपत्तियों को गिरवी रखकर कर्ज ले सकते थे। वह कर्ज नहीं लिया। क्यों नहीं लिया? क्योंकि उनकी योजना अलग थी। योजना 90 करोड़ का कर्ज देकर नेशनल हेराल्ड की सारी सम्पत्ति हथियाने की थी। तो 90 करोड़ का कर्ज देने के बाद एक नई कंपनी बनाई गई- यंग इंडिया लिमिटेड। नेशनल हेराल्ड ने कह दिया कि 90 करोड़ का कर्ज तो हम लौटा नहीं सकते। तो 90 करोड़ के कर्ज के बदले में नई कंपनी ने नेशनल हेराल्ड के सारे के सारे यानी 100 फीसदी शेयर ले लिए। वे नई कंपनी को ट्रांसफर हो गए। उसमें से 76 फ़ीसदी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नाम हो गए और बचे 24 फीसदी शेयर में 12-12 फीसदी उनके सेवकों मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडिस के नाम हो गए। यानी 100 फ़ीसदी शेयर परिवार के पास आ गए। जब 100 फ़ीसदी शेयर परिवार के पास आ गए तो परिवार ने कहा कि 90 करोड़ का कर्ज माफ कर दिया। यह कर्ज पहले क्यों नहीं माफ किया था? नेशनल हेराल्ड की 2000 करोड़ रूपये से लेकर 5000 करोड़ रूपये तक की सम्पत्ति होने का अनुमान है। पचास लाख रूपये देकर आपने इसे हथिया लिया। जब आप सरकार में थे तो विभिन्न राज्यों में जगह-जगह नेशनल हेराल्ड के नाम पर सस्ती जमीन दी गई। अभी मध्यप्रदेश में जांच शुरू हो गई है। जो जमीन 1981 में सस्ती दरों पर लगभग मुफ्त दी गई थी उस पर दुकानें बन गई हैं- बिक गई हैं- या किराए पर हैं। उसका पैसा कौन लेता है? उसका लैंड यूज कैसे चेंज हो गया? इसके अलावा पंचकूला में ईडी ने नेशनल हेराल्ड की जमीन जब्त की है। इसके अलावा ईडी ने मुंबई में बांद्रा के प्राइम लोकेशन पर हेराल्ड की जमीन जब्त की है। यह जो आजादी के आंदोलन का अखबार था- उसकी कंपनी को आपने रियल स्टेट में बदल दिया- और रियल स्टेट में बदलकर उसको हथिया लिया। दिल्ली में नेशनल हेराल्ड की बिल्डिंग में यंग इंडिया लिमिटेड के ऑफिस को कुछ दिन पहले ईडी ने सील किया है। बिल्डिंग में अलग-अलग कंपनियों के दफ्तर चल रहे हैं, जो किराए पर दिए गए हैं। उसका किराया किसके पास जाता है।

‘यहां’ कोई पैसा आता जाता नहीं

‘परिवार’ का कहना है कि इसमें कोई कैश ट्रांजैक्शन यानी नकदी का लेनदेन नहीं होता है- कोई पैसा आता ही नहीं है- तो यह किराया किसके पास जाता है? यह सारे सवाल जब आप पूछिए तो उसका जवाब नहीं आता। उसका जवाब यह आता है कि आप नेहरू जी का अपमान कर रहे हैं- आप आजादी के आंदोलन की लड़ाई का अपमान कर रहे हैं- जिसको अंग्रेजो के खिलाफ हथियार बनाकर जवाहरलाल नेहरू और उनके साथी लड़े आप उस अखबार की विरासत को गाली दे रहे हैं। वे एक बार भी नहीं बताएंगे कि यह घोटाला क्यों हुआ और कैसे हुआ? हाँ- इसके लिए जिम्मेदार कौन है- यह तो बताया है। उन्होंने कहा कि इस सब के लिए जिम्मेदार थे मोतीलाल वोरा। आप कांग्रेस से एक-एक करके आज की वर्तमान परिस्थितियों के बारे में सवाल पूछिए तो उनके पास किसी सवाल का जवाब नहीं है- सिवाय अतीत का बखान करने के। हालांकि अतीत का बखान करने का अधिकार भी वे खो चुके हैं।

परिवार छोड़ आजादी के सभी नायकों को भुला दिया

आज कांग्रेस पार्टी के जो नेता दिखाई दे रहे हैं उनका आजादी के आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस पार्टी ने गांधी परिवार और महात्मा गांधी को छोड़कर आजादी के आंदोलन के सभी नायकों को भुला दिया। बीजेपी- जिस पर वे सुबह-दोपहर-शाम आरोप लगाते हैं कि इसका आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं है- उसने इन नायकों को अपना लिया। क्यों अपना लिया? इसलिए कि उसने माना ये जो राष्ट्रीय नायक हैं ये किसी एक पार्टी की धरोहर या बपौती नहीं हैं। इन्होंने राष्ट्र के लिए त्याग और बलिदान किया- किसी पार्टी या किसी परिवार के लिए नहीं। तो कांग्रेस पार्टी अब परिवार तक सिमट गई है। मजबूरी में भले वह महात्मा गांधी को छोड़ नहीं पा रही हो लेकिन गांधी की नीतियों को तो आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू के समय में ही कांग्रेस ने छोड़ दिया था। गांधी की सारी नीतियों और विचारधारा को तिलांजलि दे दी थी। हालांकि गांधी का इस्तेमाल जरूर कांग्रेस तब भी करती रही और आज भी कर रही है। लेकिन अब वह गांधी से भी दूर जा रही है। लगता है गांधी को भी बीजेपी ने अपना लिया है। सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, मदन मोहन मालवीय को अपना लिया। आजादी के आंदोलन के नायकों के नाम लेते जाइए- उन सभी की जयंती-पुण्यतिथि मनाने, उनकी नीतियों कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार करने का काम भारतीय जनता पार्टी कर रही है। तो कांग्रेस ने सिर्फ गांधी परिवार को पकड़ रखा है- उसी तरह जैसे बंदर अपने बच्चों को पकड़कर रखता है। आशय यह कि आजादी के आंदोलन में जो कुछ भी त्याग-बलिदान किया गया है वह सब गांधी परिवार ने किया है- उसके अलावा किसी और ने नहीं।

इतने बड़े लड़ाके

आज अगर कांग्रेस पार्टी सड़क पर दिखाई दे रही है तो इसलिए नहीं कि उसे लोकतंत्र, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों की कोई चिंता है। आठ साल से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार चल रही है। इस दौरान कांग्रेस पार्टी इन मुद्दों पर सोशल मीडिया के जरिए सिर्फ आरोप लगाती रही है- जमीन पर कभी नहीं उतरी- सड़क पर कभी नहीं आई। जब संसद का सत्र चलता है तो वहां इन मुद्दों पर सरकार को घेरने के बजाय वह संसद नहीं चलने देती है। जब संसद का सत्र नहीं होता है तब वह सोशल मीडिया पर बयान जारी करती है। वे अभी सड़क पर उतरे हैं क्योंकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी पूछताछ कर रही है। कुल मिलाकर भाव यह है कि हम से पूछताछ करने की हिम्मत कैसे हुई? …और कमिटमेंट का आलम यह है कि 5 अगस्त को दिल्ली में हुए प्रदर्शन का समय जब शुरू हुआ उसी समय पानी बरसने लगा। हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। और अंदर विचार-विमर्श चल रहा था कि अब क्या करें- कैसे बाहर निकलें पानी बरस रहा है… तो ये इतने बड़े लड़ाके हैं। असल में ये सब सुविधाभोगी हैं। आदत हो गई है सुविधा की। जो हालत मछली की पानी से बाहर निकाल देने पर होती है- वही सत्ता और सुविधा से बाहर होने पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं की होती है। राहुल गांधी बहुत जोर जोर से चिल्ला रहे थे और चुनौती दे रहे थे कि मुझे गिरफ्तार कर लें। दरअसल उन्हें मालूम है कि गिरफ्तारी तो होनी ही है। राहुल गांधी गिरफ्तारी से बच नहीं सकते। सवाल यह नहीं है कि वह गिरफ्तार होंगे या नहीं- सवाल सिर्फ इतना है कि कब होंगे, कितने दिन में होंगे- उसके अलावा कोई सवाल नहीं है इस बारे में। सोनिया गांधी के बारे में मैं गिरफ़्तारी की बात बहुत दावे के साथ नहीं कह सकता। इसलिए नहीं कि वह निर्दोष हैं- बल्कि इसलिए कि उनकी बीमारी की वजह से शायद सरकार यह जोखिम न लेना चाहे। अगर उनको ईडी की कस्टडी में या जेल में कुछ हो जाता है- तो उसका उसका राजनीतिक नुकसान हो सकता है। सिर्फ यही कंसीडरेशन (सोच विचार) सोनिया गांधी को जेल जाने से बचा सकता है। अब यह कंसीडरेशन सरकार के सामने रहेगा या नहीं- यह मुझे नहीं मालूम। लेकिन जिस तरह से नेशनल हेराल्ड का केस आगे बढ़ रहा है- अब ईडी को हवाला के कुछ नए मामले मिले हैं- उससे यह पूरी तरह से मनी लॉन्ड्रिंग का केस है। इसमें जिसके खिलाफ सबूत मिल गए- मनी ट्रेल मिल गई- उसके लिए बचना संभव नहीं है। और जिस तरह के जवाब दिए हैं सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने, उसको देखते हुए तो बचने की गुंजाइश और नहीं है। सवाल है कब? होगा- या नहीं होगा- का सवाल नहीं है।

ये बिलबिलाहट, ये बौखलाहट

आज की कांग्रेस पार्टी- जिसे सोनिया कांग्रेस कहा जाना चाहिए- आजादी की विरासत की पार्टी नहीं है। उस विरासत को वह कब का छोड़ चुकी है। वह उसे तभी याद करती है जब उस पर वर्तमान में कोई हमला होता है- कोई चुनौती सामने आती है। उस चुनौती से भागने के लिए वह उसका इस्तेमाल करती है। इसके अलावा आजादी के आंदोलन से और कोई मतलब या लेना देना नहीं है आज की कांग्रेस का। तो राहुल गांधी कि यह बहादुरी उसी दिन खत्म हो जाएगी जिस दिन ईडी उन्हें गिरफ्तार करेगी। उनको आदत नहीं है जेल में रहने की। जेल में जिस दिन रहना पड़ा- तब पता चलेगा। संजय राउत तो राहुल गांधी के मुकाबले बहुत साधारण हैं- उनकी तरह खानदानी रईस नहीं हैं। ईडी की कस्टडी में जाने पर दो दिन में अदालत में शिकायत की कि हमें ऐसे कमरे में रखा है जहां खिड़की नहीं है। ईडी ने कहा कि इनका कमरा एयर कंडीशन है। तो राउत कह रहे हैं कि हमको कई बीमारी हैं, हम एयर कंडीशन में नहीं रह सकते। ईडी ने उनको हवादार कमरा उपलब्ध करा दिया। तो आप देखिए कि इस तरह की शिकायतें हैं।… ये लोग कह रहे हैं कि हम डेमोक्रेसी की लड़ाई लड़ेंगे- हम जनतंत्र को बचाने निकले हैं! अरे ये अपनी सुख-सुविधा को बचाने निकले हैं- उससे ज्यादा कोई मकसद नहीं है। अगर आज सरकार कह दे कि केस खत्म तो उसके बाद सड़क पर कांग्रेस का एक कार्यकर्ता आपको दिखाई नहीं देगा। सच तो यह है कि कानून की यह चक्की देर से पीसती है लेकिन बड़ा महीन पीसती है। तो कानून की चक्की में बहुत से लोगों के पिसने का समय आ गया है इसीलिए ये बिलबिलाहट और बौखलाहट है- जो आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है।