अपना अखबार ब्यूरो

लोगों के बीच अक्सर चर्चा रहती है कि गंगा गंगोत्री से निकलती है या गोमुख से निकलती है। या फिर… और चमत्कार तो देखो, गंगाजल लंबे समय तक एकदम ठीक कैसे रहता है- कीड़े वीड़े कुछ नहीं पड़ते उसमें!


 

गंभीरता से देखें तो यह सवाल ही गलत है क्योंकि गंगा कहीं से नहीं निकलती। गंगा नदी बनती है कई नदियों के मेल से। गंगा नदी बनने की यात्रा कम दिलचस्प नहीं है।

उत्तराखंड के पंच प्रयाग

उत्तराखंड के दो भाग हैं गढ़वाल और कुमायूं। गढ़वाल में बहुत से बड़े बड़े हिमानी (ग्लेशियर) हैं। बर्फ के पहाड़ों को ग्लेशियर कहते हैं और यही ग्लेशियर नदियों का उद्गम स्रोत होता है। बद्रीनाथ में एक जगह है संतोपत हिमानी। संतोपत हिमानी से एक नदी निकलती है विष्णु गंगा और वहीं एक तरफ से आती है धौली गंगा। ये दोनों नदियां आकर विष्णु प्रयाग में मिल जाती हैं।

विष्णु प्रयाग

प्रयाग का अर्थ होता है मिलन स्थल। विष्णु प्रयाग में विष्णु गंगा और धौली गंगा दोनों नदियों की गहराई लगभग बराबर हो जाती है। जब दो नदियों के मिलने के समय उनकी गहराई बराबर हो तो उनके नाम बदल दिए जाते हैं। यदि मिलने के स्थान पर एक नदी की गहराई ज्यादा है और दूसरी की कम है तो गहरी वाली नदी के ही नाम से नदी आगे बढ़ती है। विष्णु प्रयाग से धौली गंगा और विष्णु गंगा नए नाम अलकनंद नदी के रूप में आगे बढ़ती हैं।

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नंद प्रयाग और कर्ण प्रयाग

आगे चलकर अलकनंदा में एक नदी आकर मिलती है नंदाकिनी नदी। चूंकि नंदाकिनी अलकनंदा से कम गहरी है इसलिए नंदाकिनी वहीं समाप्त हो जाती है। आगे की यात्रा अलकनंदा नाम से जारी रहती है। यह स्थान दो नदियों का मिलन स्थल होने से मिलन स्थल को प्रयाग कहते हैं। चूंकि यहां नंदाकिनी नदी मिली है इसलिए इसे कहते हैं नंद प्रयाग। नंद प्रयाग से अलकनंदा आगे बढ़ती है और इस यात्रा में एक और नदी उसमें आकर मिलती है जिसका नाम है पिंडार नदी। यह स्थान कहलाता है कर्ण प्रयाग। पिंडार नदी भी कम गहरी है इसलिए वह कर्णप्रयाग में ही समाप्त हो जाती है। अलकनंदा आगे बढ़ती है।

रुद्र प्रयाग में मंदाकनी से मिलन

बद्रीनाथ के अलावा एक नदी केदारनाथ से निकलती है- मंदाकनी नदी। यह भी अलकनंदा में आकर मिलती है। वह स्थान कहलाया रुद्र प्रयाग। मंदाकिनी से बहुत गहरी है अलकनंदा इसलिए मंदाकनी की यात्रा रुद्र प्रयाग में समाप्त हो जाती है और अलकनंदा आगे की यात्रा पर निकलती है।

भागीरथी, अलकनंदा को गंगा बनाता देव प्रयाग

एक स्थान हुआ बद्रीनाथ जहां से विष्णुगंगा निकली, दूसरा उद्गम स्थल हुआ केदारनाथ जहां से मंदाकनी निकली। और तीसरा उद्गम स्थल है उत्तरकाशी में गंगोत्री के पास गोमुख। यहां से भागीरथी नदी निकलती है। यह बहुत बड़ी नदी है। उत्तराखंड और कुछ अन्य स्थानों के लोग भागीरथी को ही गंगा मानते हैं और अन्य को सहायक नदियां समझते हैं। भागीरथी नदी जब निकलती है तो रास्ते में उससे भीलांगना नदी आकर मिलती है। भीलांगना छोटी सी नदी है। भागीरथी भीलांगना को साथ लेकर आगे बढ़् जाती है। भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है देव प्रयाग में। देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी की गहराई लगभग बराबर हो जाती है इसलिए नदी का नाम हो जाता है- गंगा।

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तो देव प्रयाग से गंगा नदी की यात्रा शुरु होती है। पंच प्रयागों की यात्रा हिंदुओं के शास्त्रों के अनुसार कई कई तीर्थांे के पुण्यफल के बराबर है। ये पंच प्रयाग विष्णु भगवान से जुड़े हैं। विष्णु जी के नाम पर विष्णु प्रयाग। विष्णु भगवान ने कृष्ण का अवतार लिया बचपन में नंद के लाला या नंदलाल कहलाए… तो नंद प्रयाग। कृष्ण भगवान कान में बाली पहनते थे। इस पर बना कर्ण प्रयाग। उनके गले में रुद्राक्ष की माला रहती थी। इससे हुआ रुद्र प्रयाग। और महाभारत में योगेश्वर रूप में वह देव कहलाए। भगवान के इसी स्वरूप पर आधारित है देव प्रयाग।

लंबे समय तक साफ और कीटाणुरहित कैसे रहता है गंगाजल

गंगा को नदी बनाने वाली तमाम नदियां जहां से निकलती हैं एक तो वह ऊंचा पहाड़ी क्षेत्र है हिमालय का, इसलिए प्रदूषण नहीं है। दूसरा- वहां मानव बस्तियां भी अत्यंत कम हैं, इसलिए नदी का पानी मनुष्य गंदा नहीं करता। फिर इन नदियों के जल में एक बैक्टीरियो फेज पाया जाता है। बैक्टीरियो फेज हानिकारक जीवाणुओं और विषाणुओं को मारकर खा जाता है। इस बैक्टीरियो फेज की वजह से गंगा के जल में कीटाणु आदि नहीं लगते हैं।

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