-अरुण कुमार, आरएसएस के प्रचार प्रमुख ।

संसद के दोनों सदनों में पारित संविधान संशोधन के जरिए पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 विदा हुआ। वहां के लोगों को विकास और अधिकारों से वंचित रखने में इसकी बड़ी भूमिका थी। इसके जाने से जम्मू कश्मीर के लोगों को भारत के अन्य नागरिकों के समान विकास के अवसर और अधिकार मिले। 370 के कारण वे उनसे वंचित रखे गए थे। जम्मू कश्मीर में भारत का संविधान पूरी तरह लागू हुआ। जम्मू कश्मीर की आम जनता से लेकर दुनियाभर के नेताओं ने 370 हटाने के फैसले को मील का पत्थर बताया। वहीं कुछ विरोधी दलों और संगठनों ने इसे जम्मू कश्मीर के साथ विश्वासघात करार दिया। क्या यह वाकई विश्वासघात था… इसकी पड़ताल करते हैं।


 

‘जम्मू कश्मीर से विश्वासघात’ को लेकर वे तथ्यों और कानूनी दस्तावेजों के जरिये अपनी बात रख सकते हैं- पर वे ऐसा नहीं करते क्योंकि फिर सारी उंगलियां उन्हीं की ओर उठती हैं। संविधान विशेषज्ञ होने का दावा करने वाले चिदंबरम जी से लेकर एजी नूरानी तक के साथ दिक्कत यह है कि वे कानूनी दस्तावेजों को छोड़कर बाकी तमाम बातों पर चर्चा करते हैं। वे पत्रों, भाषणों को भी दस्तावेज मानते हैं। 370 हटाये जाने का ऐतिहासिक फैसले से जम्मू कश्मीर के आम लोग बहुत खुश हैं। वहीं कुछ मुट्ठी भर तत्व इस कुप्रचार में जुटे हैं कि जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ धोखा या विश्वासघात हुआ है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि यह विश्वासघात कब-कब हुआ है।

कश्मीर से ज्यादा अहम थे शेख अब्दुल्ला… क्यों?

पहला विश्वासघात तब हुआ जब जम्मू कश्मीर के महाराजा बार बार विलय के लिए कह रहे थे और हम विलय कर नहीं रहे थे। किस किसने विश्वासघात किया है देश के अकादमिक लोगों को सारे दस्तावेज उपलब्ध हैं। उन्हें उन दस्तावेजों को पढ़ना चाहिए और लोगों को सच्चाई बताना चाहिए। 21 अक्टूबर 1947 को भी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गृह मंत्री सरदार पटेल से कहा, ‘मेरे लिए शेख अब्दुल्ला को सत्ता सौंपना विलय से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ यह लिखित दस्तावेज है। तो विश्वासघात किसका है? जम्मू कश्मीर के साथ पहला विश्वासघात लार्ड माउंटबैटन और उस समय कांग्रेस के सर्वाेच्च नेता आदि लोगों ने किया है।

जवाहरलाल नेहरू के साथ शेख अब्दुल्ला

जम्मू कश्मीर के महाराजा ने कहा कि ‘आपको कश्मीर का विलय करने में देरी हो रही है, पाकिस्तान आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है, हमारे पास हथियार कम हैं आप हथियार दे दीजिए।’ सरदार पटेल ने 2 अक्टूबर 1947 को कैबिनेट की डिफेंस कमेटी की मीटिंग बुलाई। मीटिंग में प्रस्ताव पारित हुआ कि जम्मू कश्मीर को तुरंत हथियार भेजे जाएं। उस समय के सेनाध्यक्ष (भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ) बूचर को आदेश दिया गया कि आप इतने हथियार भेज दीजिए। 26 अक्टूबर को दोबारा चर्चा हुई कि हथियार पहुंचे या नहीं। बूचर ने कहा कि आचिनलेक (भारत-पाकिस्तान में ब्रिटिश सेना के कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल सर क्लाउड आचिनलेक) ने मना कर दिया था।

दुर्भाग्य से उस समय सेना के सेनापति (कमांडर इन चीफ) का पद तीन प्रकार का था। भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ, पाकिस्तानी सेना के कमांडर इन चीफ और भारत और पाकिस्तान में ब्रिटिश फौजों के कमांडर इन चीफ- जो दोनों देशों के सेनापति के ऊपर थे। तीनों पदों पर अंग्रेज थे। दुनिया के इतिहास में ऐसा कभी नहीं देखा होगा कि दो देश आपस में लड़ रहे हैं और उन दोनों देशों के सेनापति तीसरे देश के हों। और उनके ऊपर भी एक और सेनापति हो। तो विश्वासघात किसने किया है और विश्वासघात की कहानी कहां से शुरू की जाए। जम्मू कश्मीर के साथ पहला विश्वासघात तो 1947 में ही होना प्रारंभ हो गया।

50 हजार लोगों की हत्या का जिम्मेदार कौन

दूसरा विश्वासघात 11 नवंबर 1947 के बाद हुआ। जम्मू कश्मीर में लोग लड़ रहे थे। शेखर गुप्ता का एक लेख पढ़ रहा था जिसमें कहा गया कि मौसम बड़ा खराब हो गया था। सेनाएं जा नहीं सकती थीं। 11 नवंबर को हमने उड़ी जीत लिया था। मीरपुर में 40 हजार हिंदू, सिख इकट्ठे हो गए थे। उनमें से 32 हजार लोग मारे गए। ये 32 हजार लोग 25 नवंबर से 25 दिसंबर 1947 के बीच यानी एक माह के भीतर मारे गए। जम्मू से सड़क मार्ग से मीरपुर केवल दो घंटे का रास्ता है। हमारी सेनाओं को आदेश नहीं दिया गया, वरना मीरपुर, कोटली ये सारे क्षेत्र हमारे पास होते। ये कोई मौसम की बात नहीं थी। शेख अब्दुल्ला की नीयत नहीं थी कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर हमारे पास आए।

जम्मू कश्मीर का विलय हो गया तो अंग्रेजों ने तुरंत एक प्रक्रिया शुरू कर दी कि जम्मू कश्मीर तो नहीं रहेगा लेकिन कम से कम मीरपुर, मुजफ्फराबाद, गिलगित, बाल्टिस्तान तो पाकिस्तान के पास रहे। मार्च-अप्रैल 1948 में माउंट बैटन दस पंद्रह दिन के लिए अपने देश ब्रिटेन गए। वहां उनके भांजे की शादी थी। उसी बीच हमारे सेनापति थिमैया ने आदेश दिया और हमने पुंछ और राजौरी को आजाद करा लिया। लौटने पर जब माउंट बैटन को इस बात का पता चला तो वह बहुत नाराज हुए। यह  22 मार्च से 11 अप्रैल 1948 के बीच आजाद कराया गया। आज पाक कब्जे वाला कश्मीर हमारे पास नहीं है। उस समय मीरपुर, मुजफ्फराबाद, राजौरी के क्षेत्रों में 50 हजार लोगों की हत्याएं हुर्इं- जम्मू कश्मीर के साथ किए गए इस विश्वासघात का जिम्मेदार कौन है?

20 जून 1949 को जिस महाराजा ने जम्मू कश्मीर का भारत में विलय किया, उनको राज्य से बाहर कर दिया गया। वह जम्मू कश्मीर के साथ तीसरा विश्वासघात था। किसी राजा के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया गया। महाराजा के पत्र हैं कि शेख अब्दुल्ला मेरी कोई बात मानने को तैयार नहीं है और आप बार बार मुझे ही बलि का बकरा बना रहे हैं। यह जम्मू कश्मीर के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात था, जब उनके महाराजा को राज्य के बाहर किया गया।

महाराजा के साथ ऐसा बुरा बर्ताव

20 जून 1949 को जिस महाराजा ने जम्मू कश्मीर का भारत में विलय किया, उनको राज्य से बाहर कर दिया गया। वह जम्मू कश्मीर के साथ तीसरा विश्वासघात था। किसी राजा के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया गया। महाराजा के पत्र हैं कि शेख अब्दुल्ला मेरी कोई बात मानने को तैयार नहीं है और आप बार बार मुझे ही बलि का बकरा बना रहे हैं। यह जम्मू कश्मीर के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात था, जब उनके महाराजा को राज्य के बाहर किया गया।

How Maharaja Hari Singh was Exiled and Betrayed by Nehru & Sheikh Abdullah  - HinduPost

शेख के सामने नेहरू ने घुटने टेके

शेख अब्दुल्ला के सामने नेहरू ने घुटने टेके यह चौथा विश्वासघात था जम्मू कश्मीर के साथ। 1951 में जम्मू कश्मीर में संविधान सभा का चुनाव हुआ। प्रजा परिषद के 51 उम्मीदवार थे, सबके नामांकन रद्द कर दिए गए। 75 में से 73 सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए। लोग नेहरू जी के पास गए कि आप कैसे लोकतंत्र की बात कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर में संविधान सभा के चुनाव में यह क्या हो रहा है। और जिस दिन शेख अब्दुल्ला के 75 विधायक हो गए, उनकी भाषा बदल गई। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि संविधान सभा हमारी संप्रभु संस्था है। उसी समय ये बातें शुरू हुर्इं कि जम्मू कश्मीर का अलग संविधान, अलग झंडा होगा। यह पहले नहीं था।

नेहरू जी को शेख अब्दुल्ला की असलियत तब मालूम पड़ी, जब 1951 में संविधान सभा के चुनाव में 75 के 75 एमएलए शेख अब्दुल्ला के पास हो गए। अब शेख को समझ में आ गया कि मुर्गी की गर्दन मेरे हाथ में है क्योंकि मुझे रेडिफिकेशन करना है। जवाहरलाल जी बार बार कहें कि रेडिफिकेशन तो करो, विलय का अनुमोदन तो करो, लेकिन शेख अब्दुल्ला तैयार ही नहीं हैं। उनका कहना है मेरी शर्तंे मानो पहले। जम्मू कश्मीर के साथ यह सबसे बड़ा विश्वासघात या षडयंत्र हुआ। नेहरू जी ने घोषणा की थी कि हम जम्मू कश्मीर को ये-ये अधिकार देने जा रहे हैं जैसे वहां देश के लोग बस नहीं सकेंगे, उनका झंडा होगा अलग, संविधान अलग। 67 साल बाद 2019 में पांच अगस्त का दिन आया जब जम्मू कश्मीर में भारत का संविधान पूरी तरह लागू हुआ।

संविधान की धज्जियां उड़ा दीं- यह है विश्वासघात

जब हम विश्वासघात की बात करते हैं तो विश्वासघात तब होता है जब 1954 में अनुच्छेद 370 के अंतर्गत आदेश किया गया। कांस्टीट्यूशन आर्डर 44 ने भारत के संविधान की धज्जियां उड़ा दीं। भारत में संसद सर्वाेच्च है। आपने आर्डर कर दिया कि अनु. 368 में संसद द्वारा संविधान में कोई भी संशोधन जम्मू कश्मीर में तब लागू होगा जब वहां की सरकार उसे सहमति देगी। यानी जम्मू कश्मीर की कार्यपालिका देश की संसद से ऊपर है।

आप किसी देश में शपथ लेने का प्रारूप बदल सकते हैं क्या? जम्मू कश्मीर में उसे बदल दिया गया। जम्मू कश्मीर का गवर्नर, हाईकोर्ट के जज, मुख्यमंत्री, मंत्री- ये सब भारत के संविधान की शपथ नहीं लेते थे। ये जम्मू कश्मीर के संविधान की शपथ लेते थे।

 

संविधान का अनुच्छेद 35 मूल अधिकारों के संरक्षण के लिए है। आपने 35 ए जोड़ दिया जो भारत के लोगों के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। आपने भारत के लोगों को दो हिस्सों में बांट दिया। एक- भारत के वे नागरिक जो जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी हैं और दूसरा- भारत के वे नागरिक जो जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी नहीं हैं। क्या हम भारत के लोगों को बांटा जा सकता था। जम्मू कश्मीर के अंदर सबसे बड़ा विश्वासघात भारत के साथ हुआ, भारत के संविधान के साथ हुआ।

स्वाधीन देश में हिंदू समाज का विस्थापन

अगला विश्वासघात हुआ 1990 में जब वहां परिस्थितियां ऐसी बनीं कि कश्मीरी हिंदू समाज का वहां से विस्थापन हो गया। 1947 में देश का विभाजन हुआ। दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां थीं। लेकिन 1990 में तो देश स्वाधीन था। तब देश के एक हिस्से से -भारतमाता की जय और राष्टÑ की बात करने, अपनी हजारों सालों की संस्कृति का गौरव रखने वाले लोगों को- जम्मू कश्मीर से विस्थापित होना पड़ा। यह भी देश के साथ विश्वासघात ही था।

एक अज्ञात फोटोग्राफर द्वारा 1890 के दशक की इस तस्वीर में तीन हिंदू पुजारियों को जम्मू और कश्मीर की रियासत में धार्मिक ग्रंथ लिखते हुए दिखाया गया है। छवि क्रेडिट: विकिमीडिया कॉमन्स / द ब्रिटिश लाइब्रेरी वेब साइट

काम वही, पर नीयत में फर्क

पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से 370 हटाना  विश्वासघात नहीं था। जैसा कि कुछ लोगों ने कहा कि यह तो संविधान विरोधी काम हो गया। संविधान के अनुच्छेद 370 में इससे पहले दो संशोधन हो चुके थे, 2019 में तीसरा संशोधन हुआ। पहला संशोधन 1952 में हुआ था। आपने महाराजा को बदलकर सदरे रियासत कर दिया। अनु. 370 में दूसरा संशोधन हुआ 1965 में जब सदरे रियासत को बदलकर गवर्नर कर दिया। तो हमें तो यह आप ने ही बताया कि अनु. 370 में संशोधन केवल अनु. 370 के माध्यम से ही हो सकता है। हम तो आपके सिखाए हुए रास्ते पर ही चले हैं। आपने 370 को माध्यम बना कर 1954 में आर्डर किया। हमने भी उसी 370 के जरिए 2019 में आर्डर किया। फर्क इतना ही है कि आपने यह संविधान रोकने के लिए किया और हमने संविधान लागू करने के लिए किया।

जम्मू कश्मीर में यह सब बहुत अच्छे से किया गया और इसकी तैयारी की गई कि लोगों को कोई परेशानी न हो। यहां तक कि पुलिस को भी कहा गया कि आप बंदूक लेकर मत चलिए। मोटे तौर पर जम्मू कश्मीर में लोगों के आने-जाने, घूमने पर कोई रोक नहीं है। लोग टीवी देख रहे हैं, डिबेट देख रहे हैं।


 

 ये भी पढ़ें

“खिलजी मरते तक न भूला…” और आप भूल गए

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments