‘इतना काम कर रहा हूं फिर भी आपकी नजरे इनायत नहीं’।
प्रदीप सिंह।
सागर ख़य्यामी की पंक्तियां हैं- ‘पूछेंगे लोग हमसे तो हम क्या बताएंगे/ किस शक्ल का था आदमी फोटो दिखाएंगे।’ इस आलेख में मैं एक नया प्रयोग करने जा रहा हूं। इसमें मैं किसी खबर पर बात नहीं करूंगा बल्कि एक फोटो पर बात करूंगा कि उसमें जो लोग दिख रहे हैं उनके मन में क्या भाव चल रहा होगा- उनके चेहरे पर किस तरह की भाव भंगिमा है- और वो किस तरह का संदेश दे रहा है। मैं जिस फोटो की बात कर रहा हूं उसमें चार लोगों पर फोकस है। वे हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। इस फोटो के जरिये मैं आपको बताने की कोशिश करता हूं कि उनके मन में क्या भाव चल रहा होगा।
कातर भाव से प्रधानमंत्री को देख रहे
फोटो में सबसे पहले ध्यान से नितिन गडकरी को देखिए। बड़े कातर से भाव से प्रधानमंत्री को देख रहे हैं। शायद हड़बड़ी में या किसी और वजह से हाथ जोड़ने का मौका भी नहीं मिला। हो सकता है प्रधानमंत्री अचानक से सामने आ गए हों। गडकरी कह रहे हैं, “क्या साहब, इतना काम कर रहा हूं फिर भी आपकी नजरे इनायत नहीं है। आपकी सरकार को चमका रहा हूं, जो कहते हैं उससे ज्यादा काम कर रहा हूं। पूरे देश-दुनिया में मेरे काम की चर्चा है फिर भी आप नाराज से दिखते हैं। ऐसा तो कोई अपराध किया नहीं है। प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखना तो राजनीति में बड़ी स्वाभाविक बात है। यह सभी के मन में होती है। हमारे एक साथी हैं उनके भी मन में थी- और है। आप उन पर आप मेहरबान हैं लेकिन मेरे साथ सौतेला व्यवहार क्यों?” मुझे लगता है कि नितिन गडकरी के मन में उस समय यह भाव चल रहा होगा।
‘अपना भविष्य पता है मुझे’
उनके मन में और क्या चल रहा होगा?… “मैंने तो मांग कर मंत्रालय लिया था और अच्छा काम कर रहा हूं। यह तो आप भी मानते और स्वीकार करते हैं। आपने मेरे चेले को मुझसे पूछे बिना महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना दिया। ऐसी नौबत तो नहीं आनी चाहिए। मैं स्पष्टवादी हूं। यह अलग बात है कि अपने स्वभाव का फायदा उठाकर मैं राजनीतिक विरोध की भी बात कर लेता हूं- राजनीतिक हमला भी बोल देता हूं- और बचकर निकल भी जाता हूं। मगर आप कहां बचकर निकलने देते हैं। किसी को बचकर निकलने दिया है आपने… जो मुझे निकलने देंगे। मुझे अपना भविष्य पता है। मैं नागपुर का हूं लेकिन नागपुर वाले भी कहां हर समय साथ देते हैं। ऐन मौके पर हाथ खींच लेते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दूसरा कार्यकाल था, उसके लिए तो आपको दोष नहीं दे सकता कि आपका साथ नहीं मिला। उस समय तो नागपुर वालों ने साथ नहीं दिया। जब पार्टी अध्यक्ष के लिए साथ नहीं दिया तो प्रधानमंत्री के लिए क्या साथ देते। मैं जानता हूं जन्नत की हकीकत… लेकिन इसके बावजूद महत्वाकांक्षी होना क्या बुरा है। मुझे ये भी पता है कि मेरी हालत शोले फिल्म के जेलर असरानी जैसी हो गई है। आधे इधर, आधे उधर, बाकी मेरे पीछे। दरअसल, मेरे पीछे कोई नहीं है- लेकिन यह गलतफहमी मुझे बराबर बनी रहती है कि मेरे पीछे बहुत लोग हैं। इसीलिए मैं बोलता रहता हूं। अब आपको तो सब पता है फिर ऐसा क्यों करते हैं।”
‘हर समय नजर आता है शरद पवार का चेहरा’
“आजकल मुझे एक दूसरी तस्वीर नजर आती है। आजकल मुझे हर समय शरद पवार का चेहरा सामने नजर आता है। उनको देखकर लगता है कि जैसे मैं अपने भविष्य की तस्वीर देख रहा हूं। मगर मेरा हौसला, मेरी हिम्मत देखिए कि आपके सामने खड़ा हूं फिर भी मुस्कुरा रहा हूं। अब तो खुशफहम कीजिए।” नितिन गडकरी के मन में ये भाव आ रहा होगा, ऐसा मुझे लगता है। उनका जो राजनीतिक कार्यकलाप है- भाजपा के नेताओं से, प्रधानमंत्री से, संघ से जिस तरह के संबंध हैं- उन सबको देखते हुए ऐसा मुझे लगा। हो सकता है कि ये सच्चाई न हो लेकिन जो मुझे लगा उसकी बात कर रहा हूं। (जारी)