शर्मीला और फुर्तीला होता है चीता।

#shivcharanchauhanशिवचरण चौहान।

आजादी के 75 साल बाद चीते भारत में दौड़ते नजर आएंगे। भारत सरकार ने इस संबंध में दक्षिण अफ्रीका, नाबीबिया से एक समझौता किया है। पहले बीस यानी दस जोड़ी चीते भारत आएंगे। इन्हें मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के कुनो पालपुर अभ्यारण में रखा जाएगा। फिर 5 साल के अंतराल में पचास चीता और भारत में आएंगे और अपनी वंश वृद्धि करेंगे। इस तरह भारत में 75 साल पहले विलुप्त हो गए चीते भारत में फिर पुनर्जीवित हो जाएंगे।

भारत में सन 1947 में छत्तीसगढ़ में एक चीता मृत पाया गया था। जिसे सरगुजा के महाराजा ने शिकार के दौरान मार डाला था। इसके बाद फिर भारत में चीते नहीं देखे गए। भारत सरकार ने 1952 में चीता को आखिरी बार देखे जाने के बाद भारत से विलुप्त श्रेणी का स्तनपायी जानवर घोषित कर दिया था। अंतर महाद्वीपीय पुनर्वास योजना के तहत चीता को भारत ने बसाया जा रहा है। भारत सरकार मध्य प्रदेश सरकार के साथ मिलकर पहले यह योजना वहीँ चलाएगी क्योंकि चीता के लिए खुले घास के मैदान चाहिए। पहले ईरान सरकार से चीता भारत ने मांगा था किंतु ईरान ने अपना चीता देने के बदले भारत से एशियाई शेर से विनिमय करने की शर्त रख दी तो करार टूट गया था। नवम्बर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने चीता लाने की अनुमति भारत सरकार को दे दी थी किंतु अफ्रीका में कोरोना के चलते चीते लाने में विलम्ब हुआ। यद्यपि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि चीता की वंश वृद्धि बहुत तेजी से होती है इसलिए यह भारत के लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। चीता इतना फुर्तीला जीव है कि वह किसी सीमा में बंध कर नहीं रह सकता।

सामाजिक प्राणी

राजा महाराजाओं के शिकार के कारण चीता भारत से विलुप्त हो चुका है। सिर्फ चिड़ियाघरों में इसे देखा जा सकता है। दुनिया भर में चीता बचाने के प्रयास जारी हैं और भारत में भी इसके दोबारा बसाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। पहले ढाई सौ करोड़ रूपये की योजना बनाई गई थी। अब सरकार ने 75 करोड़ रूपये का बजट अफ्रीकन चीतों के पालने के लिए मंजूर किया गया है।

शिकारी पशुओं में चीता एक सामाजिक प्राणी है। यह शांत स्वभाव का शर्मीला जीव है, जो अपने झुंड ( परिवार) में रहना पसन्द करता है। इसलिए हिंसक जीव होते हुए भी मनुष्यों के साथ यह शीघ्र घुलमिल जाता है। प्रशिक्षण देने पर कुत्ते की तरह गेंद खेलता है और मालिक के इशारे पर शिकार इत्यादि करने लगता है। परन्तु मनुष्य के खून का स्वाद चख लेने पर चीता भयंकर आदमखोर हो इस जाता है।

चीता और तेंदुआ

चीता बहुत तेज धावक है। प्रति घंटा 60 से 115 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ लेता है। बहुत से लोग चीते तथा तेंदुए में अन्तर नहीं कर पाते, जिसका कारण दोनों ही का स्तनपायी एवं मांसभक्षी कुल का एवं स्वभावों में समानता होना है। चीते के बादामी शरीर के ऊपर और बगल के भागों में काले गोल चित्ते से बने रहते हैं, जिस कारण यह ‘चीता’ कहलाता है। और आंख में काली पट्टी होती है। जबकि तेंदुए में काले एवं सफेद गुल होते हैं, और तेंदुए को गुलदार और डग्गर नाम से भी पुकारा जाता है।

चीता, तेंदुए की तरह तुरंत पेड़ पर नहीं चढ़ पाता है। चीता आकार में बाघ से छोटा (करीब तीन से चार फुट तक लम्बा और ढाई फुट तक ऊंचा) होता है।

चीते का सिर तेंदुए की अपेक्षा छोटा, शरीर पतला और छरहरा, निचला हिस्सा सफेद, पैरों में कुते की भांति सख्त गद्दियां एवं पंजा अर्ध संकुचित होता है। इसके बाल कड़े एवं दुम और ऊंचाई तेंदुए की अपेक्षा अधिक होती है, जवकि शरीर की लम्बाई तेंदुए से कम होती है। इसी जाति में बिल्ली, बाघ, तेंदुआ, बिल्ली, मेघ तेंदुआ, सिकमार, शाह (स्नो लेपर्ड) आते हैं।

पेट भरा हो तो भी शिकार करने से नहीं चूकता

चीता बहुत खूंखार होता है और पेट भरे रहने पर भी शिकार करने से नहीं चूकता। खासकर शाम के समय में, झील,तालाबों के पास झाड़ी में शिकार के लिए छिपा बैठा रहता है। शिकार के पहुंचते ही यह छलांग भरकर उसे दबोचता है, | इसलिए दूसरे जानवरों के शिकार के लिए पाला भी जाता है। बादशाह अकबर ने मेहमानों की खातिरदारी में हिरणों के शिकार के लिए, इसे बड़े शौक से पाला था। माकोपोलो के लिखे संस्मरण से ज्ञात होता है कि कुबलई खान ने काराकोरम में एक हजार चीते पाले थे।

चीता एक बहुत चुस्त, फुर्तीला और हिंसक पशु होते हुए भी बेहद शांत व शर्मीली प्रकृति का होता है। यह दक्षिण एशिया और अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है। भारत में भी कभी चीतों की संख्या अच्छी-खासी थी। पाले हुए चीते की मादा 3-4 बच्चे जनती है, परन्तु बंधक बनाकर रखने पर चीता प्रजनन के प्रति उदासीन रहता है। इसलिए इसे प्राकृतिक परिवेश में पाला जाता है। यह मुख्यतः दक्षिणी एशिया और अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है, किन्तु भारत में आज यह विलुप्त हो गया है।

भारत में अंतिम बार 28 मार्च, 1952 की रात तमिलनाडु के चित्तूर जिले में एक चीते को करीब से देखा गया था। आज भारत में चिड़िया घर को छोड़कर कहीं चीते दिखाई नहीं देते। इसीलिए सरकार बाघ अभयारण्य की तरह चीता को भारत में बसाना चाहती है। मध्य प्रदेश ने चिंटू चीता नाम से एक शुभंकर बनवाया है।

(लेखक लोक संस्कृति, लोक जीवन और साहित्य व समाज से जुड़े विषयों के शोधार्थी हैं)