सुरेंद्र किशोर।

आज देश के कितने नेताओं और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं? …गिनते-गिनते थक जाइएगा! भाजपा विरोधी नेताओं की शिकायत है कि भाजपा नेताओं पर मुकदमे क्यों नहीं चल रहे हैं। …यह शिकायत है या विधवा विलाप? भला कोई सरकार सत्ताधारी पार्टी के नेताओं पर मुकदमा चलाती है? क्या कांग्रेस सरकार ने कभी चलाया? अपवादों की बात और है?

भाजपा नेताओं पर मुकदमे चलाने का अवसर सन 2004 से सन 2014 के बीच मनमोहन सरकार को मिला था। उन्हॉने क्यों नहीं चलाया? क्या अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के किसी मंत्री के खिलाफ कोई आरोप उन्हें नहीं मिला? …या मनमोहन सरकार व कांग्रेस पार्टी की यह रणनीति थी कि ‘‘हम सत्ता में आएंगे तो तुम्हारे भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करेंगे। तुम सत्ता में आना तो हमारे खिलाफ लग रहे आरोपों को नजरअंदाज कर देना।’’

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने बोफोर्स केस को रफा -दफा करवा दिया था। पर, अटल बिहारी और नरेंद्र मोदी में भारी फर्क है। मोदी ने कहा है कि भले तुम मेरी जान ले लो, किंतु हम भ्रष्टाचारियों को छोड़ेंगे नहीं।

स्वामी ने दिखा दी है राह

अब मुकदमे झेल रहे गैर भाजपा दलों के नेताओं के समक्ष क्या उपाय है? डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी वाला उपाय तो उपलब्ध ही है। स्वामी ने जयललिता पर केस करके उन्हें सजा दिलवा दी। याद रहे कि जयललिता पर किसी सरकार ने केस नहीं किया था। टू जी घोटाले का मामला भी स्वामी ही कोर्ट में लेकर गए थे। टू जी मामला अब भी दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है। चारा घोटाला मामले में भी किसी सरकार ने केस नहीं किया था। जनहित याचिका पर पटना हाईकोर्ट ने सी.बी.आई. जांच का आदेश दिया। कोर्ट इस केस में सजा दे रही है।

किसी आम नागरिक को भी जब किसी बड़े से बड़े नेता के भ्रष्टाचार को लेकर कोर्ट जाने की कानूनी सुविधा उपलब्ध है तो गैर भाजपा नेतागण विधवा विलाप करने के बदले भाजपा के भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कोर्ट क्यों नहीं जा रहे हैं? क्या इसलिए नहीं जा रहे हैं क्योंकि किसी भाजपा नेता के खिलाफ किसी घाटाले का कोई सबूत उनके पास उपलब्ध नहीं है ?

और अंत में… कांग्रेस के दांव

सन 1979 में ‘‘मिलीजुली’’ यानी बाहर से समर्थन से चलने वाली सरकार चरण सिंह की बनी थी। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी। इंदिरा जी की ओर से चरण सिंह को संदेश गया- संजय गांधी पर से मुकदमा उठवा लीजिए। चौधरी साहब ने ‘ना’ कह दी। फिर क्या था…? चौधरी जी तुरंत भूतपूर्व बन गए।

ग्यारह साल बाद फिर वही इतिहास दोहराया गया। कांग्रेस के समर्थन से सन 1990 में चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस से उन्हें संदेश मिला- बोफोर्स केस को रफा दफा कर दीजिए। चंद्रशेखर ने ‘ना’ कह दी। उनकी भी सरकार चली गई।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख सोशल मीडिया से)