रोहित देवेंद्र।
ब्रह्मास्त्र फिल्म की आलोचना नहीं करनी चाहिए। आलोचना, एक क्रिएटिव चीज होती है, इसे बचाकर रखा जाना चाहिए। इस फिल्म का मजाक उड़ाया जाना चाहिए। मजाक उड़ाने में कोई असुविधा ना हो इसके लिए जरुरी है कि आप फिल्म के बारे में कुछ जान-समझ लें।
फिल्म में पिज्जा के आकार का कोई यंत्र है जिसे बार-बार ब्रह्मास्त्र कहा गया है। उसके कुछ टुकड़े हैं। वह सभी टुकड़े आपस में मिल ना जाएं इसे रोकने के लिए रणबीर कपूर, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, नागार्जुन, आलिया भट्ट आदि जी जान से लगे हैं। अमिताभ ने सबसे बता रखा है कि इनके जुड़ जाने से प्रलय आ जाएगी। वह खुद हिमाचल प्रदेश में एक फॉर्महाउस नुमा घर में रहते हैं। उनके पास एक चाकू है जिसे वह मौका पड़ने पर नीली लपटों वाली तलवार में बदल लेते हैं। पुराने आदमी हैं सबके बारे में कुछ न कुछ जानते हैं।
काले कपड़े पहने एक लड़की, तीन और बार बाउंसरों जैसी देह वाले युवकों के साथ पिज्जा के बचे हुए टुकड़े पाने के लिए संघर्ष कर रही है। उसके एक बॉस हैं। जो बहुत विशाल और काले हैं। ऊंचे रसूख वाले हैं पर शायद मर गए हैं। फिर भी पेट, आंख, कंधे आदि में उनके अंदर लाल बत्तियां जलती-बुझती रहती हैं। वह बोलते कुछ नहीं है पर हर कुछ उन्हीं की देखरेख में होता है। मौका पड़ने पर वह वरदान भी देते हैं।
काले कपड़े पहने वह लड़की बहुत गुस्से में रहती है। पर है वह बहुत मेहनती। इसलिए उसे पिज्जा के बचे टुकड़े मिल जाते हैं। पिज़्ज़ा के ये टुकड़े कभी कार की बोनट में रखे होते हैं तो कभी जीन्स की जेब में। इस बीच दर्शकों को यह बता दिया जाता है कि रणबीर कपूर आग का प्रतीक हैं। यानी आग्नेयास्त्र हैं। मुंबई में रहते हैं और बहुत गरीब हैं। आलिया भट्ट बहुत अमीर हैं। गरीब और अनाथ वाला ये एंगेल बॉलीवुड में विलुप्त होने को ही था कि तभी अयान मुखर्जी की उस पर नजर पड़ गई। यह भी आपको पता हो कि आग रणबीर कपूर को जलाती नहीं है लेकिन वह खुद आग पैदा नहीं कर पाते। इसके लिए अमिताभ बच्चन एक लाइटर लिए रहते हैं।
बाद में यह भी मालूम पड़ता है कि आलिया भट्ट ही रणबीर कपूर की आग हैं। एक सीन में रणबीर, आलिया को आग का लाइड साउंड म्यूजिकल शो भी दिखाकर मनोरंजन करते हैं। तब तक अमिताभ, रणबीर को जलती आग को अपने हाथ से खींच लेने और उसे किसी के भी ऊपर उछाल देने की ट्रिक सिखा चुके होते हैं। क्लाइमेक्स में पिज्जा के वह सभी हिस्से मिल जाते हैं। इसके मिलने से बहुत तेज धूल भरी हवाएं चलने लगती हैं। जिस पहाड़ पर रणबीर और आलिया बैठे हैं वह बीच से टूट जाता है और रणबीर कूद कर आलिया वाले हिस्से की तरफ बैठ जाते हैं। रणबीर की शर्ट पीछे से काली होकर फट जाती है। आलिया की टीशर्ट जिससे क्लीवेज दिखने की पूरी संभावना है वह भी इस प्रलय में थोड़ी गंदी हो जाती है। इसी हबड-तबड़ के बीच में आलिया रणबीर से कहती हैं कि हम अभी तो मर जाएंगे लेकिन अगले जन्म में फिर मिलेंगे।
बाद में वह तूफान शांत हो जाता है और अमिताभ बच्चन भरे गले से कहते हैं कि प्रेम की जीत हुई। वह तबाही ना होने का श्रेय मिसेज और मिस्टर कपूर को दे देते हैं। तभी पर्दे पर लिखा आता है कि इस फिल्म का दूसरा हिस्सा भी आएगा। जिसका नाम ब्रहमदेव होगा। यानी कुछ सालों बाद हमें एक बार फिर दर्द से गुजरना होगा।
फिल्म के संवादों का स्तर ऐसा है कि जैसे राम और रावण के बीच का एक सीन हो। राम कहे “कि कट ले तू नहीं यही लंका में डंका बजा दूंगा। और रावण उत्तर में कहे कि नहीं दूंगा तेरी लुगाई और करुंगा सबकी ठुकाई”।
ब्रहमास्त्र फिल्म बेहद बचकानी और बेतुकी है। आपकी नजर से बचकानापन छिप जाए इसलिए उस पर महंगे वीएफएक्स की पॉलिश कर दी गई है। उसे स्टारों के बोझ से दबा दिया गया है। बहुत बड़े सेट में भव्य तरीके से गाने फिल्माया दिए गए हैं।
इन दिनों फिल्म के अच्छे होने का नहीं फिल्म को विजुअली अच्छी दिखाने का चलन शुरू हुआ है। बॉलीवुड में यह चलन दक्षिण का सिनेमा लेकर आया। पुष्पा, आरआरआर या केजीएफ जैसी बेहद सफल फिल्मों से कैमरा वर्क और वीएफएक्स को छीन लिया जाए तो यह बिलो एवरेज फिल्म लगने लगेंगी। ब्रहमास्त्र, साउथ सिनेमा की इसी लीक को पकड़कर चलने वाली फिल्म है। वह अपने वीएफएक्स पर बहुत पैसा खर्च करके अपनी सारी कमियों पर ध्यान हटाने की कोशिश करती है। वीएफएक्स को हटा दें तो फिल्म के पास एक सीन ऐसा नहीं है जो अपने संवादों या फिल्माकंन की वजह से आपको याद रह जाए।
दशकों से बन रही इस फिल्म के कच्चेपन को देखकर दया भी आती है और गुस्सा भी। बॉलीवुड को ठहरकर ये बात सोचनी चाहिए कि उनकी फिल्मों के लगातार पिटने की वजह उनका खोखलापन है या अहंकार। बायकॉट गैंग को अपनी ऊर्जा इस फिल्म में नहीं खर्च करनी चाहिए। फिर इस फिल्म में तो भगवान भी जरुरत से ज्यादा हैं…
Top 5 में ब्रह्मास्त्र का नाम नहीं है
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख उनकी वॉल से)