नवेद शिकोह।
ज्यादा देर तक हंसते रहने से आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी का सफर मौत की ट्रेजडी तक पंहुच कर आंसुओं में तब्दील हो गया। हंसते-हंसते आंखों से आंसुओं के निकलने का फलसफा सिद्ध हो गया। कुछ दिन पहले ही मौत के बहाने ने उनके दिल पर हमला किया, दिमाग अचेतन मुद्रा में आ गया, और फिर जिम से वेंटीलेटर तक के संघर्ष के बाद कॉमेडी का ख़ज़ाना लुट गया।
जाने-माने पत्रकार हेमंत शर्मा ने राजू श्रीवास्तव को श्रद्धांजलि देते हुए जो बात कही है वो उनके तमाम प्रशंसकों के जज्बातों की बानगी है। उन्होंने कहा: “मध्यमवर्गीय परिवेश का देशी हास्य चला गया। उनके हास्य में फूहड़ता नहीं संवेदनशीलता थी। मुझे लगता था लौटोगे ज़रूर राजू। राजू का जाना कॉमेडी का ट्रेजेडी होना है।”
रग-रग में कॉमेडी
आम तौर से इंसानी फितरत होती है कि कोई भी पेशेवर सामान्यतः अपनी रूटीन लाइफ से अपने पेशे को दूर रखना चाहता है। राजू श्रीवास्तव इस मामले में अपवाद थे। उनकी रग-रग में कॉमेडी थी। सांसों में कॉमेडी थी। लबों पर चुटकुले थे। हर किस्से से, हर बात में, हर मुलाकात में वो हंसाते थे। वो कॉमेडी स्टार थे। यूपी फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष थे। उनका बड़ा क़द था, लेकिन उनके व्यवहार में एक आम इंसान की झलक मिलती थी। उनकी कॉमेडी के चरित्र भी गांव-देहात के और मिडिल क्लास के होते थे।
संघर्ष रंग लाया
राजू श्रीवास्तव का मूल नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव था। जन्म कानपुर में हुआ। उत्तर प्रदेश की उद्योग नगरी कानपुर से ताल्लुक रखने वाले राजू ने खूब संघर्ष किया लेकिन हर संघर्ष रंग लाया। कानपुर से मुंबई का रुख किया तो कॉमेडी स्टार बन गए और कानपुर से राजधानी लखनऊ की तरफ बढ़े तो मंत्री का दर्जा प्राप्त कर लिया। योगी सरकार में फिल्म विकास की ज़िम्मेदारी मिली। उन्होंने उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी की ज़िद की थी, सपना देखा था, और फिर आखिरकार ये ख्वाब हक़ीक़त की राह की तरफ बढ़ता भी दिखा।
राजू श्रीवास्तव से जो एक बार भी मिल लेता है उन्हें दोस्त मान बैठता था। लखनऊ के पत्रकारों और कलाकारों से वो दोस्ताना तरीके से मिलते थे।
हंसमुख दोस्त
जब वो स्ट्रगल कर रहे थे तब से लेकर अब तक। ऑर्केस्ट्रा से लेकर एक्स्ट्रा कलाकार का सफर हो, कॉमेडी सर्कस से लेकर इंडियन लाफ्टर चैंपियन से बनी उनकी बढ़ती पहचान और बढ़ता कद हो। वो समाजवादी हो गए हों या फिर भाजपाई। और फिर फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बन जाने के बाद फिल्म सिटी की घोषणा तक, हमारी उनसे मुलाकातें होती रहीं। हर मुलाकात में वो हंसमुख दोस्त की तरह पेश आते थे। कई बार तो उनसे गंभीर विषय पर बात करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी।
एक बार की बात है वो फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष बन चुके थे। यूपी में फिल्म सिटी बनने का एलान भी हो चुका था। वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके सरकारी आवास 5kD मिल कर आए थे। क्या बात हुई ! इसके पहले कि ये सवाल पूछा जाता उन्होंने बताया कि विशेषकर योगी जी को सुनाने के लिए एक कॉमेडी पीस तैयार किया था। और मिलते ही सबसे पहले उन्हें ये सुनाया तो वो खूब हंसे।
आखिरी मुलाकात
राजू से आखिरी मुलाकात में उनसे कुछ गंभीर बातें हुई थीं। लखनऊ और यूपी की कला क्षेत्र की तमाम बड़ी हस्तियों को फिल्म सिटी की योजना के परामर्श में शामिल नहीं किया जा रहा जिससे ये स्थानीय हस्तियां नाराज हैं। राजू ने कहा कि उनकी नाराजगी जायज है हम कोशिश करेंगे कि फिल्म सिटी और उसकी योजना से लखनऊ और यूपी की विशिष्ट कलाविदोंं, कलाकारों, लेखकों को जोड़ा जाए।
ये सब बातें अतीत बन गईं। सदियों तक इस कामेडियन की कॉमेडी याद की जाएगी लेकिन राजू अब कुछ नया नहीं गढ़ सकेंगी। मौत ने उनकी क्रिएशन पर विराम लगा दिया है। लेकिन भारत में स्टेंड अप कॉमेडी के इतिहास में राजू श्रीवास्तव का नाम अग्रिम पंक्ति मे होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)