शिवचरण चौहान।
वापस जाते हुए बादलों ने इस बार किसानों पर कहर ढा दिया। खरीफ की जो फसल किसी तरह तैयार हो रही थी वह अतिवृष्टि के कारण नष्ट हो गई। धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, उड़द, मूंग, गन्ना और तिल की खेत में खड़ी फसलें तेज हवा के कारण टूट कर खेत में ही गिर गईं। धान की बालियां पानी मिट्टी में मिल गईं। जब धान की फसल पक कर कटने के लिए तैयार थी तभी लौटती बरसात ने बादल फाड़ पानी बरसा दिया। अभी पंजाब, हरियाणा में भी पचास-साठ प्रतिशत किसान ही धान की फसल काट कर मंडी तक ले जा पाए थे कि 12 सितंबर से वापस जा रहे बादलों ने कहर ढा दिया। पितृ पक्ष में भारी बारिश ने किसानों के सारे सपने धो डाले। सारे सपने पानी में बहा दिए।
ज्वार, बाजरा, तिल, मूंग, उड़द तो अधिक बरसात के कारण नष्ट हो चुके हैं। इस लौटते मानसून ने किसानों पर कहर बरपा दिया। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के लाखों एकड़ में खड़ी धान की पकी फसल को तहस नहस कर दिया। करोड़ो अरबों रुपयों का नुकसान किसानों को हो गया। ये भरपाई मुश्किल है। वैसे तो 15 जून से 15 सितंबर तक बरसात का मौसम माना जाता है किंतु इस बार उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, झारखंड सहित करीब 8 राज्यों में औसत से बहुत कम बरसात हुई। इस कारण इन राज्यों में धान की फसल रोपी नहीं जा सकी। कुछ किसानों ने अपने निजी संसाधन से धान, ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द, गन्ना, तिल की फसल तैयार की थी। तेज आंधी पानी के कारण वह नष्ट हो गई।
मौसम का जुआ
सदियों से भारतीय कृषि मौसम का जुआ है। चीन और अमेरिका ने जहां मौसम पर नियंत्रण का प्रयास किया वहां परिणाम उल्टे आए। और अब तो दुनिया भर की जलवायु बदल रही है। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव भारत के किसानों को ही उठाना पड़ता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत हर छोटे किसान से बीमा कम्पनी प्रीमियम के ढाई से तीन हजार रूपए काट लेती है और फसल क्षति होने पर किसी को फूटी कौड़ी भी क्षति पूर्ति नहीं देती। बीमा कंपनियां किसानों के हजारों करोड़ रुपए हजम कर जाती हैं- और सरकार किसानों को साल में छह हजार रूपए देकर अपने को दानवीर कर्ण घोषित कर लेती है। न एसडीएम और न डीएम और न सीडीओ किसी किसान से पूछने जाते हैं कि तुम्हारा कितना नुकसान हुआ? क्षेत्र के विधायक और सांसद भी किसानों का हाल पूछने नहीं आते, सिर्फ वोट पाने के लिए आशीर्वाद यात्राएं निकालते हैं।
गच्चा दे गया मौसम विभाग
सबसे बुरी बात हुई मौसम विभाग का गलत साबित होना। आज मौसम विभाग के पास आधुनिक उपकरण हैं। आसमान में घूम रहे उपग्रह हैं जो मौसम की सटीक भविष्यवाणी कर सकते हैं। इस बार केंद्रीय मौसम विज्ञान केन्द्र ने पूरे देश में समय पर अच्छी बारिश की घोषणा की थी किन्तु आषाढ़ में यानी जुलाई अगस्त में औसत से बहुत कम बरसात हुई। और जब कहा कि अब बरसात का मौसम वापस जा रहा है तभी उतरती बरसात में भयंकर वर्षा हो गई। खेत में धान की फसल गिर जाने से बर्बाद हो गई।
सदियों से किसान अच्छी बरसात के लिए बादलों पर निर्भर रहा है। बादल ठीक बरसे तो ठीक- वरना किसान के भाग्य में रोना और आत्महत्या करना लिखा होता है। ऊपर से बैंक किसानों पर बहुत ऊंची दर पर ब्याज लगाकर चक्रवृद्धि ब्याज वसूलते हैं और किसान की खेती नीलाम कर देते हैं। कोई भी सरकार किसान के खुशहाली के लिए नहीं सोचती। पूंजीपतियों की खुशहाली के लिए सरकार कुछ भी कर देती है जिससे किसान बदहाली की ओर जाकर आत्महत्या कर लेता है। किसानों की आय दो गुनी करने वाली सरकारों ने किसान की आय आधी कर दी।
उत्तर प्रदेश का हाल बेहाल
उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में धान की फसल पकी खड़ी थी कि अचानक मौसम बदला और भारी बारिश के कारण धान खेत में ही गिर कर सड़ गया। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार के कुछ इलाकों के किसान अपनी किस्मत को कोस रहे हैं। इनकी धान की करोड़ों रुपयों की फसल बर्बाद हो गई। किसान अपने माथे पर हाथ रखे इंद्रदेव को कोस रहा है।
घाघ और तुलसीदास
आज भी हमारी भारतीय कृषि घाघ और तुलसीदास पर ही आश्रित है। जब पूरे भारत में कांस फूल गए, सरकंडे फूल गए। खंजन पक्षी गांव में आकर फुदकने लगे। गोह बोलने लगी- बरसात की बिदाई हो गई। ऐसा हुआ लेकिन- फिर भी बादल कहर बन कर बरस गए। मौसम विज्ञानी घाघ ने कभी लिखा था- ‘बोली गोह और फूले कांस। अब बरखा की छोड़ो आस।।’ यानी- कांस फूल गए और रात में गोह बोलने लगी अब बरसात चली गई।
महाकवि तुलसीदास चित्रकूट अयोध्या काशी आदि उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में रहे थे। तुलसीदास का मौसम और ज्योतिष का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने लिखा- ‘उदित अगस्त पंथ जल सोखा। जिमि लोभहि सोख आई सन्तोखा।।’ आसमान में अगस्त्य नक्षत्र यानी अगस्त तारा उदय होने के साथ ही बरसात का अंत माना जाता है। महाकवि तुलसीदास ने मौसम का वर्णन बहुत कलात्मक ढंग से किया है। पूरी रामचरितमानस में अगर कविता का आनन्द लेना है और अपने भव्य रूप में कविता का सौंदर्य देखना है तो किष्किंधा कांड पढ़ना चाहिए- ‘बरखा गत निर्मल ऋतु आई। सुधि न तात सीता कर पाई।।’ उन्होंने यह भी लिखा- कहूं क हुं वृष्टि सारदी थोरी। कोऊ इक पाव भगति जिमि मोरी।। …यानी जब रात में ओस पड़ने लगे तो समझ लेना चाहिए बरसात खत्म और शरद ऋतु का आगमन हो गया है। इन दिनों यही अच्छा है दिन में बहुत कड़ी धूप निकलती है और रात में आसमान से ओस गिरती है अब बरसात गई। अब किसान को नलकूप, नहरों और अपने अन्य साधनों से धान के खेत की सिंचाई करके उसे बचा लेना चाहिए।
खेती तो है ही मानसून का जुआ। बादल फटने से किसान के सपने पानी में बह गए। किसान बर्बाद हो गया तो महगाई तो आयेगी और बिचौलिए मालामाल होंगे। रिजर्व बैंक ने भी चेतावनी दी है कि वापस जाते मानसून से जो नुकसान हुआ है उससे अन्न की महंगाई बढ़ेगी। आज बेरोजगारी और महंगाई से देश के बहुत बुरे हाल हैं। और आज जो हालात हैं तुलसी बाबा पहले ही लिख गए हैं-
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख बलि, बनिज को ना बानिज ना चाकर को चाकरी। जीविका बिहीन लोग सीध मान सोंच बस, कहै एक एकन सो कहां जाई का करी।।
रामचरितमानस पढ़कर ऐसा लगता है कि तुलसीदास को मौसम और ज्योतिष का बहुत अच्छा ज्ञान था। तभी तो 500 साल पहले आज तक का भविष्य लिख गए हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)