आपका अख़बार ब्यूरो।
“कोई भी भाषा किसी व्यक्ति की मातृभाषा की जगह नहीं ले सकती। हम अपनी मातृभाषा में सोचते हैं और उस पर हमारा स्वाभाविक अधिकार होता है। मातृभाषा में सोचने और बोलने से अभिव्यक्ति में आसानी होती है और हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है।” यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने गुवाहाटी में 24 सितंबर को आयोजित एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता असम विधानसभा के प्रधान सचिव हेमेन दास ने की।
असम में मीडिया के 175 वर्ष से अधिक पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन ‘महाबाहू’ संस्थान एवं मल्टीकल्चरल एजुकेशनल डेवलेपमेंट ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम में एलिजाबेथ डब्ल्यू ब्राउन द्वारा लिखित पुस्तक ‘द होल वर्ल्ड किन: ए पायनियर एक्सपीरियंस अमंग रिमोट ट्राइब्स, एंड अदर लेबर्स ऑफ नाथन ब्राउन’ के रिप्रिंटेड वर्जन का विमोचन किया गया। इस अवसर पर असम की पहली मासिक समाचार पत्रिका ‘ओरुनोदोई’ का डिजिटल संस्करण भी लॉन्च किया गया।
सांस्कृतिक विविधता और विरासत
समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा, “लोग कई भाषाएं सीख सकते हैं, लेकिन उनकी एक ही मातृभाषा हो सकती है जिसमें वे सोचते हैं, सपने देखते हैं और भावनाओं को महसूस करते हैं। अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मातृभाषा सबसे शक्तिशाली उपकरण है।” सांस्कृतिक विविधता और विरासत के संरक्षण में मातृभाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि “गुवाहाटी में घूमते हुए उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कई दुकानों के साइनबोर्ड असमिया के बजाय अंग्रेजी भाषा में लिखे गए थे। अगर हम चाहें तो ये साइनबोर्ड अंग्रेजी और असमिया, दोनों भाषाओं में हो सकते हैं।” प्रो. द्विवेदी ने कहा कि असम में मीडिया के 175 वर्ष से अधिक पूर्ण होने का अवसर असमिया साहित्य और पत्रकारिता के उन दिग्गजों के बलिदान को याद करने का अवसर है, जिन्होंने असम में मीडिया की नींव रखी। ऐसी महान हस्तियों के कारण ही असम, न सिर्फ पूर्वोत्तर भारत के प्रहरी के रूप में स्थापित हुआ, बल्कि साहित्य, संस्कृति और आध्यात्म के क्षेत्र में भी उसने अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने कहा कि असम की पत्रकारिता को अब अगले 25 वर्षों का लक्ष्य तय करना करना चाहिए। उसे नए विचारों पर काम करना चाहिए और समाज की समस्याओं का समाधान कर नई उपलब्धियां हासिल करनी चाहिए।
इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत राजगुरु ने कहा, “भाषा हमारा प्रतिनिधित्व करती है और इसे किसी भी परिस्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।” पूर्व राज्यसभा सांसद कुमार दीपक दास, वरिष्ठ पत्रकार बेदब्रत मिश्रा, अमल गोस्वामी और एडवोकेट सत्येन सरमा और डॉ. रेजाउल करीम ने भी कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त किए।