#WorldPumpkinday
शिवचरण चौहान।
नवरात्र के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा आराधना की जाती है। श्रीश्री रविशंकर कहते हैं “कूष्माण्डा माने क्या? कूष्माण्डा का अर्थ है कद्दू। आयुर्वेद में कूष्माण्ड रसायन का प्रचलन है। बुद्धि, मेधा शक्ति को बढ़ाने, प्रखर बनाने के लिए कूष्माण्ड रसायन लेते हैं। हम इतना ही जानते हैं कि कूष्माण्ड माने कद्दू। कूष्मा माने प्राणशक्ति… जिसमें प्राणशक्ति भरा हुआ है उसे कूष्माण्डा बोलते हैं। हम कद्दू के रूप में उसी प्राणेश्वरी देवी का आराधन करते हैं।” संयोग से आज 29 सितम्बर को चौथा नवरात्र है- हर तरफ माँ कूष्माण्डा की आराधना हो रही है…. लेकिन आज ही कूष्माण्ड से जुड़ा हुआ एक और विशेष दिन भी है।
इहां कुम्हड़ बतियां कोउ नाहीं
अवधी भाषा में एक बन कहावत है- खाओ तो कद्दू से, ना खाओ तो कद्दू से। यानी कद्दू (Pumpkin) इतना सर्व सुलभ फल है कि इसे अमीर-गरीब हर कोई खा सकता है। सब्जी के रूप में- मिठाई के रूप में- और सुबह नाश्ते में कद्दू के बीजों की नमकीन के रूप में।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है: ‘इहां कुम्हड़ बतियां कोउ नाहीं जे तर्जनी देख मर जाही।।’ कद्दू और कुम्हड़ा एक ही वंश की बेल है। हाथ की छोटी उंगली देखकर ही कुम्हड़े की बतिया मर जाती है सूख जाती है। यानी कद्दू और कुम्हडा बहूत कोमल होते हैं। सूरदास ने भी गोपी उधो प्रसंग भ्रमरगीत में कहा है: ‘आए जोग सिखावन पांडे। सूरदास तीनों नहिं उपजत धनिया, धान, कुम्हाडे।।’
उन्होंने इस प्रकार कुम्हड़े का उल्लेख किया है।
कद्दू- यानी सीताफल- यानी रामकोला- यानी काशीफल… पूरी दुनिया में अंटार्कटिका महाद्वीप को छोड़कर सभी जगह पाया जाता है। भारत और चीन कद्दू के सबसे बड़े पैदावार करने वाले देश हैं जबकि अमेरिका कनाडा और मेक्सिको में कद्दू विभिन्न रूपों में खाने में प्रयोग आता है। कनाडा ,मेक्सिको और अमेरिका में कद्दू की लालटेन बनाकर सजाई जाती है। कद्दू महोत्सव बनाया जाता है इसमें कद्दू के फलों की प्रतियोगिता कराई जाती है। पीले और नारंगी रंग के कद्दू में केरोटीन की मात्रा अधिक होती है। कद्दू के बीज भी आयरन, जिंक, पोटेशियम और मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं। दुनिया भर में इस्तेमाल होने के कारण ही २९ सितंबर को ‘वर्ल्ड पंपकिन डे’ (World Pumpkin day) के रूप में मनाया जाता है। हर साल 31 अक्टूबर को हैलोविन पर्व यूरोप और अमेरिका में मनाया जाता है। जिसमें कद्दू में डिजाइन करके लालटेन बनाई जाती है।
मूल रूप से भारतीय
कद्दू मूल रूप से भारतीय फल है जो जमीन में फैलने वाली लता पर लगता है। अगर कद्दू कहीं बरगद के पेड़ पर लटकता तो फिर कोई बरगद के नीचे नहीं जाता। कद्दू का उल्लेख भारत के प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है किंतु भारत में कभी नहीं कहा गया कि कद्दू हमारे देश की ही मूल उपज है। अमेरिका और मेक्सिको के लोगों का कहना है कि कद्दू उनके देश ईसवी सन से 7500 वर्ष पहले पाया जाता था। प्रकृति जलवायु के अनुसार पेड़ पौधे फल और लताएं उत्पन्न करती है- किसी देश ,धर्म और जाति को देखकर नहीं। भारत में कद्दू गर्मियों में उगाया जाता है तो अमेरिका कनाडा मैक्सिको में सर्दियों का फल है। वहां यह नारंगी रंग का होता है जबकि भारत में इसका रंग पहले हरा और बाद में पकने पर पीला नारंगी हो जाता है। कद्दू का फल 6 महीने खराब नहीं होता इसलिए इसके अनेक व्यंजन बनाकर डिब्बाबंद बेचे जाते हैं।
कद्दू, कुम्हड़ा, लौकी, तरोई , तरबूज, खरबूजा- लता में लगने वाले फल हैं जो एक ही कुल के सदस्य हैं। विदेशी देशों में कहा जाता है कि कद्दू की बेल ईसा से 7500 साल पहले कनाडा और मेक्सिको तथा दक्षिण अमेरिका में फूलती फैलती पाई गई थी।
कद्दू को संस्कृत में कूष्माण्ड, बृहत फल, वल्ली फल, वल्लरी फल कहा जाता है। लैटिन भाषा में कद्दू को वेनिन कासा हिंपिडा कहा गया है। अंग्रेजी में कद्दू का नाम पम्पकिन राउंड गार्ड है। हैलोविन फेस्टिवल पम्प पिन फेस्टिवल ही है जिसमें लालटेन भी कद्दू में बनाई जाती है।
अमीर गरीब दोनों में लोकप्रिय
भारत में कद्दू की सब्जी गांव और शहर सब जगह मिलती है। कद्दू गरीबों और अमीरों में समान रूप से लोकप्रिय है किंतु कद्दू को वह महत्ता भारत में नहीं मिली जो उसको मिलनी चाहिए। भारत में कद्दू दिवस अथवा कद्दू महोत्सव कहीं नहीं मनाया जाता। अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, कनाडा मेक्सिको और यूरोप के कई देशों में कद्दू दिवस और कद्दू महोत्सव मनाए जाते हैं। 29 सितंबर को वर्ल्ड पम्पकिन डे यानी विश्व कददू दिवस मनाया जाता है। जबकि भारत में कद्दू दिवस के बारे में लोग जानते/सोचते तक नहीं।
कद्दू से सब्जी फूल और पत्तों से बेसन के पकोड़े बनाए जाते हैं। कद्दू की खीर, कद्दू की बर्फी, कद्दू का रायता, कद्दू का अचार आदि न जाने क्या-क्या चीजें कद्दू से बनाई जाती हैं। पशुओं का आहार र मुर्गी का दाना भी कद्दू से बनाकर विदेशों में बेचा जाता है। विदेशों में डिब्बा बंद कद्दू बिकता है।
सेहत का खजाना
भारत में आयुर्वेद में कद्दू से अनेक दवाइयां बनाई जाती हैं तो फार्मेसी कंपनियों ने भी कद्दू से शुगर और कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए दवाइयां विकसित की है। लौकी और कद्दू पर लगातार वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं। भारतीय कद्दू के खाने से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग नियंत्रित रहते हैं। गुर्दे और मूत्र संबंधी रोग में कद्दू खाने से लाभ होता है। कद्दू की सब्जी खाने से गरिष्ठ खाना बहुत जल्दी पच जाता है इसलिए भारत में तेल की पूड़ी कचौड़ी के साथ कद्दू की सब्जी परोसी जाती है- ताकि पाचन तंत्र सही रहे। वैज्ञानिकों के अनुसार 100 ग्राम कद्दू में पर्याप्त कैलोरी यानी उर्जा पाई जाती है। कैल्शियम 21 ग्राम, लोहा 0.85 ग्राम, फास्फोरस 44 ग्राम और सोडियम पोटेशियम भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। पानी 91.6 ग्राम पाया जाता है। 100 ग्राम कद्दू में कार्बोहाइड्रेट 6.5 ग्राम, शर्करा 2.75 ग्राम, प्रोटीन 1 ग्राम पाया जाता है। विटामिन ई, विटामिन बी और विटामिन 6 कद्दू में पाया जाता है। इसके अलावा कद्दू में बीटा कैटरीन पाया जाता है। कद्दू की सब्जी कैंसर रोधी भी है।
अभी भी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में महिलाएं कद्दू नहीं काटती हैं। कद्दू का फल काटने के लिए पुरुष को बुलाया जाता है। कद्दू के साथ कोई अन्य फल रखकर काटा जा सकता है। कहीं कहीं ऐसी मान्यता है कि महिलाओं के लिए कद्दू काटना वर्जित है क्योंकि कद्दू काटना अपना बेटा काटना माना जाता है। प्राचीन काल में कहा जाता था की जीव की बलि नहीं देनी चाहिए। जीव की बलि ना देने के लिए कद्दू और कुम्हड़ा की बलि दी जाती थी। यह अहिंसा का उदाहरण था।
दुनिया भर की लोक कथाओं में कद्दू का उल्लेख मिलता है। कद्दू की गाड़ी और कद्दू की लालटेन मशहूर विदेशी कहानियां हैं। भारतीय लोक गीतों में भी अवधी, बुंदेली, ब्रज और भोजपुरी गीतों में कद्दू के गीत गाए गए हैं। कहावतों में भी कद्दू का उल्लेख आता है। कद्दू की नाव से नदी पार करने का भी रिकॉर्ड बनाया गया है। कद्दू महोत्सव में कद्दू की बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताएं होती हैं। जर्मनी में 35 किलो का कद्दू उपजाया गया था। आज भी कद्दू 3 किलो से लेकर 15 किलो तक के अक्सर पाए जाते हैं। कहीं-कहीं 50 किलो तक के कद्दू भी उगाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने कद्दू के संकर बीज भी तैयार किए हैं। कद्दू की नई-नई किस्में भी उगाई जाने लगी हैं। कद्दू की पैदावार में आज भी भारत और चीन का दुनिया में दबदबा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)