नई दिल्ली । करवाचौथ का व्रत पति-पत्नी के बीच प्यार,स्नेह और विश्वास के प्रतीक का पर्व है।रामचरितमानस के लंकाकांड के अनुसार इस व्रत का एक पक्ष यह भी है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं,चन्द्रमा की किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचाती हैं,इसलिए करवा चौथ के दिन चन्द्रमा की पूजा कर महिलाएं ये कामना करती हैं कि किसी भी कारण से उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े। सुहागन महिलाएं इस दिन देवी पार्वती के स्वरूप चौथ माता,भगवान शिव और कार्तिकेय के साथ-साथ श्री गणेशजी की पूजा करती हैं।
पूजाविधि
इस दिन सुहागिन स्त्रियां सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लेती हैं और सास द्वारा दी गई सरगी का सेवन करती हैं। सरगी में मिठाई,फल,सैंवई,पूड़ी और साज-श्रृंगार का सामान दिया जाता है। इसके बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरू हो जाता है,जो महिलांए निर्जल व्रत ना कर सके वह फल,दूध,दही,जूस,नारियल पानी ले सकती हैं। व्रत के दिन शाम को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं,इस पर भगवान शिव,माता पार्वती,कार्तिकेय,गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर दें अन्यथा शिव परिवार की तस्वीर भी रख सकते हैं। एक लोटे में जल भरकर उसके ऊपर श्रीफल रखकर कलावा बांध दें व दूसरा मिट्टी का टोंटीदार कुल्लड़(करवा) लेकर उसमें जल भरकर व ढक्कन में शक्कर भर दें,उसके ऊपर दक्षिणा रखें,रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद धूप,दीप,अक्षत व पुष्प चढाकर भगवान का पूजन करें,पूजा के उपरांत भक्तिपूर्वक हाथ में गेहूं के दाने लेकर चौथमाता की कथा का श्रवण या वाचन करें। तत्पश्चात् रात्रि में चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रदेव को अर्ध्य देकर बड़ों का आशीर्वाद लें।
करवा चौथ 2022: तिथि और शुभ मुहूर्त
तिथि: चतुर्थी
पक्ष: कृष्ण पक्ष
माह: कार्तिक
दिन: गुरुवार
करवा चौथ पूजा मुहूर्त: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 05 बजकर 54 मिनट से 07 बजकर 03 मिनट तक
अवधि: 1 घंटा 09 मिनट
चंद्रोदय: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 08 बजकर 10 मिनट पर
व्रत की कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्ध्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी। साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुःख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम अर्ध्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखों, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्ध्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा-बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विध्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आर्शीवाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की की श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया। इस प्रकार यदि कोई भी छल-कपट, अंहकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्ति भाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
पति पत्नी के प्यार के अटूट बंधन का पर्व करवाचौथ
(करवाचौथ विशेष)
लेखिका-निवेदिता सक्सेना
भारत में कई व्रत त्योहार रिश्तों में प्रगाढ़ता के साथ जीवन मे उत्साह ,ऊर्जा व उमंग का संचार उत्पन्न करते हैं। कहते है ब्रह्माण्ड में जिस बात या विचार को हम बार बार अपने मन मस्तिष्क में लाते हैं व कर्म में उसका समावेश कर देते हैं साथ ही उनसे जुड़ी पॉजिटिव एनर्जी या नेगेटिव एनर्जी हमारे विचार को संपादित करती हैं और हमारे समक्ष परिणामो को फलीभूत करती है। निश्चित तौर पर ये हमारे आभा मंडल से को सुद्रढ़ करती हैं औऱ हम भारतीय हर सप्ताह माह में कोई न कोई पर्व या व्रत से इन समस्त आध्यात्मिक शक्तियों से जुड़ एक पॉजिटिव लेवल अपने संसारिक जीवन मे लाने की भरपूर प्रयास आनन्द व उत्साह के साथ करते रहते है। इन सभी मे पंचतत्वों का बड़ा योगदान रहता आकाश, वायु ,अग्नि ,जल ,पृथ्वी हम सभी इन्ही पर आधारित रहकर जीवन का निर्माण करते है।हिन्दू मान्यताओ के अनुसार ये ही प्रकृति में निमित्त होकर सृष्टि की सुंदर रचना निर्मित करते है ।हमारे सौर मंडल में सूर्य व चन्द्रमा इन गृहों की प्रकृति अनुसार इनमें पाई जाने वाली अपार ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए अधिकतर भारतीय सूर्य पूजन व हर मास की कृष्ण पक्ष की सँकष्ट चतुर्थी को गणेश जी के पूजन द्वारा व्रत कर अर्ध्य देते है ।जहाँ सूर्य सभी गृहों का स्वामी होकर ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत है वही चन्द्र अपने स्वभाव अनुकूल शांत व निर्णय क्षमता को प्रबल करता हैं ।हाल ही में हम गौर करे की नवदुर्गा की पूजा साधना नवरात्रि में हुई इन सभी मे महिलाओं का एक महत्वपूर्ण स्थान होता हैं क्योंकि नारी एक परिवार न्यूक्लियस के समान है सारा सिस्टम उसके आस पास उसी की डोर से सम्हला रहता हैं। परिवार में कई उतार चढ़ाव आते है उस समय महिलाएं या कहे पत्नी अपने पति के साथ महत्वपूर्ण जिम्मेदारी किसी रूप में निभाती है औऱ अपने पति को एक बल प्रदान करती हैं ।
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यही कारण है कि पति पत्नी को गाड़ी के दो पहिये माना जाता है और भारतीय परिवारों में सुद्रढ़ता ,सम्पन्नता व स्वास्थ्य व शांति को बनाये रखता है। भारत मे कई परम्पराए इन्ही बातों को ध्यान में रखकर पूर्वजो द्वारा निर्मित की गई है इन्ही में से एक है कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष में आई करवा चौथ जिसमे पत्नी विवाह उपरांत संकल्प लेते हुए ये व्रत धारण करती हैं जिसमे पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं । क्योंकि हमने सिर्फ यही तक सुना लेकिन वास्तव में ससुराल के वृद्धजनों का महत्व व देवी देवता की की आराधना भी इनमें शामिल है । कुलमिलाकर ये एक ऐसा महत्वपूर्ण वृत है जो एक स्त्री अपनी आंतरिक समस्त शक्तियों को अपने पति को आराध्य मानते हुए पूर्ण निर्जला व्रत के साथ चंद्रदर्शन अर्ध्य व पूजन से व्रत खोलती है ।लेकिन वर्तमान में इस व्रत का उपहास या विरोध या गलत मान्यता स्वरूप लोगो मे प्रचार प्रसार मीडिया या फिल्मी कलाकारों द्वारा किया जाता रहा है जिनके आधे अधूरे ज्ञान से ना केवल व्रत के महत्व को समझा गया ना भारतीय होते हुए उनके वैज्ञानिक पहलुओं को। कुछ समय पूर्व भारत मे स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हुए नसीरुद्दीन शाह की पत्नी रत्ना पाठक शाह का विवादास्पद बयान करवा चौथ को लेकर दिया गया जिसमें उन्होंने भारतीय उन महिलाओं को अंधविश्वासी व रूढ़िवादी कहा जो करवाचौथ का व्रत रखती हैं ।बात ये भी नही कि उन्हीने ऐसा कहा तो महिलाएं व्रत नही रखेगी विचारणीय है कि इतनी आसानी से उन्होंने सुरक्षित भारत मे ये बात यहाँ की महिलाओं के इस महत्वपूर्ण त्योहार को व उनकी भावनाओं का उपहास उड़ाते हुए कही ।
वर्तमान में ये भी देखने मे आया कि सैकड़ो कुँवारी लडकिया अपने बॉयफ्रेंड के लिए भूखे रहकर व्रत रख रही वही कई अन्य समुदाय भी इसकी महत्ता को ना समझ सिर्फ़ भूखे रहंकर व्रत रखना पति से उपहार लेना व चलनी में दिया रख पूजन करना ।वही कई विरोधियों ने इसे व्यापार में परिवर्तित कर दिया ।उसका पूर्णतः समर्थन करते विज्ञापन चाहे प्रिंट मीडिया हो या चैनल घरों का उपहार , सोने चांदी के बडे ब्रांड,गहने, साड़ियों ने एक नई मानसिकता को जन्म दिया। शुरुआत हुई फिल्मों व सीरियल से जहा पत्नी को जब तक उपहार न मिले वह व्रत को सम्पूर्ण मानने से इनकार कर रुठ जाती हैं परिणामस्वरुप कई मध्यम वर्गीय परिवारों में इस एक गलत धारणा से पति पत्नी के पवित्र रिश्ते को उपहारों से बाध्य कर आहत किया है। एक दूसरे के प्रति सम्मान व श्रद्धा का भाव होना आवश्यक है न कि बाध्य किये उपहार की आकांक्षा कि आप मुझे इस बार अच्छा गिफ्ट देना जिसे में सोसाइटी में सबको दिखा सकू।
हालांकि मे भी इस व्रत से जुड़ी हु । मैं मायके व ससुराल दोनों में उत्तर प्रदेशीय व्रत त्योहार की परम्पराओ को ध्यान में रख मनाया जाता हैं ।वही करवाचौथ दशहरा से गाय के गोबर से पूजन स्थल के पास दीवाल पर लीप कर चौकोर आक्रति की करवाचौथ बनाई जाती हैं जिसे गौबर से लीपने के बाद उसे चावल को पीसकर बनाये गए ऐपन से उसमे चोक के साथ सूर्य चन्द्रमा ,शिव पार्वती का परिवार गणेश जी भाई बहन , करवाचौथ की कथा अनुसार सात डुकरिया , ससूराल देवरानी जेठानी जेठ तुलसी का क्यारा आदि को सुंदर आकृतियो से सुशोभित किया जाता है हालांकि इसमें ऐपन से मांडने का काम बहुत बारीकी से किया जाता हैं व करवाचौथ के दिन इसे पूर्ण कर इसी स्थान पर जमीन पर ऐपन को हल्दी के साथ पन्थवारी पूजन हेतु अलग तैयार किया जाता है तदोपरांत मिट्टी के करवो में बांस की सींख या दुर्वा के साथ बेसन के फ़रों व पूड़ियों से पूजन सम्पन्न किया जाता है वही महिलाये सोलह श्रृंगार व आलते ,मेहँदी से सुषोभित होकर चंद्रोदय पूर्व गणेश पूजन के साथ करवमाता की कथा सुनती या कहती हैं चंद्रोदय होने पर पति के समक्ष चन्द्रदेव को अर्ध्य देते हुए कहती हैं।
रानी जैसा राज देना ,गौरा सा सुहाग देना।
अर्ध्य तुम्हारा ,अहिवात हमारा ।।