apka akhbar-ajayvidyutलेखक अमीश त्रिपाठी से अजय विद्युत की बातचीत

शिव-त्रयी से दुनिया में विख्यात लेखक अमीष  त्रिपाठी अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनने से अभिभूत हैं। भगवान राम पर आधारित पांच पुस्तकों की श्रृंखला की राम, सीता और रावण पर आधारित तीन पुस्तकें आ चुकी हैं जिन्हें दुनिया के कई देशों में पाठकों ने हाथो-हाथ लिया है। कहते हैं, भले भारी कीमत चुकानी पड़ी हो पर श्रीराम ने देश और समाज को सबल व उन्नत बनाने के लिए हर नियम का पालन किया। व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और दुनिया के सामने मौजूद खतरों को हम मर्यादा और नियमों की पुनर्स्थापना कर ही टाल सकते हैं। यह हम सभी के लिए भगवान राम की बहुमूल्य सीख है।


कुछ लोग भगवान राम का विरोध भी करते हैं। कोई उन्हें स्त्री-विरोधी बताता है, तो कोई अपने परिवार के प्रति अत्याचारी। क्या आपको भी कभी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा?

बात थोड़ी लम्बी हो जाएगी। एक बार मैं वाकई थोड़ा दुखी हो गया था। एक कार्यक्रम में हिन्दुत्व के दर्शन की व्याख्या के दौरान मैंने भगवान राम का उल्लेख किया था। कार्यक्रम के बाद एक महिला ने, काफी कड़ी टिप्पणी की। जहां तक मैं जानता हूं, वह कोई ‘अतिवादी धर्मनिरपेक्ष’ नहीं थी। ये वे लोग होते हैं जो धर्म से दूरी बनाकर रहते हैं, खासकर अपने धर्म से। वह धार्मिक और स्वतंत्र विचारों की महिला है। उसका कहना था कि मैं राम के प्रति भगवान जैसे आदरसूचक शब्द का प्रयोग क्यों करता हूं। मैंने कहा कि मैं उनका सम्मान करता हूं, उनकी पूजा करता हूं, इसलिए मैं उनको भगवान ही कहूंगा। उसने कहा कि वह मुझे खुले विचारों वाले व्यक्ति के रूप में देखती है जो अपने परिवार की महिलाओं का सम्मान करता है। ऐसे में मैं भगवान राम का सम्मान कैसे कर सकता हूं जिन्होंने अपनी पत्नी के साथ इतना बुरा बर्ताव किया। उसके बाद उसने भगवान के बारे में कुछ कड़ी टिप्पणियां कीं, जिनसे मैं बहुत क्षुब्ध हुआ।

दुख की बात है कि खुले विचारों के नाम पर भगवान राम की आलोचना करने का फैशन सा बन गया है। हिन्दू धर्म में मन में आई शंकाएं या प्रश्न पूछने को हमेशा प्रोत्साहित किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भगवद्गीता में इसे बहुत स्पष्टता से कहते हैं। हमें सभी दर्शनों और यहां तक कि ईश्वर के बारे में भी, अपना मत व्यक्त करने को कहा गया है। लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि हम अपना मन बनाने से पहले उस विषय में सभी पक्षों का गहन मनन और परीक्षण करें। लेकिन जब हम भगवान राम के संबंध में अपना मत व्यक्त करते हैं तो संभवत: हम ऐसा नहीं करते।

चूक कहां हुई है?

-आम तौर पर भगवान राम का उल्लेख ‘आइडियल मैन’(आदर्श पुरुष) के रूप में किया जाता है, जो संभवत: संस्कृत की उक्ति ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’का अंग्रेजी अनुवाद है। लेकिन संस्कृत की सामान्य समझ रखने वाला भी आपसे कहेगा कि यह अनुवाद अपूर्ण है। अंग्रेजी के ‘आइडियल मैन’ का समानार्थी शब्द ‘पुरुषोत्तम’ है। लेकिन आपने ‘मर्यादा’ को तो छोड़ ही दिया। मर्यादा का अर्थ हुआ नियमों और प्रचलित परंपराओं, रीति-रिवाजों का सम्मान। तो अगर आप पुरुषोत्तम के साथ मर्यादा को जोड़ दें, तो अंग्रेजी में सही अनुवाद क्या होगा? वह ‘आदर्श पुरुष’ नहीं बल्कि ‘नियमों का आदर्श अनुयायी’ (आइडियल फॉलोअर आफ रूल्स) होगा।

अब जरा हिन्दू धर्मग्रंथों में रामायण और महाभारत की भूमिका पर तनिक विचार करें। ये दोनों महाकाव्य वेदों और उपनिषदों की तरह श्रुति पर आधारित नहीं हैं। रामायण और महाभारत हमारा इतिहास हैं जो कहानियों में हमें बताते हैं कि उस काल क्या कुछ हुआ था। हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। वहां भगवान राम आदिरूप में नियमों के आदर्श अनुयायी के रूप में हैं।

जब हम गहरी समझ के साथ समग्रता से देखते हैं तो बुद्ध और महात्मा गांधी से भी प्रेम ही कर सकते हैं, श्रद्धा ही कर सकते हैं। कारण यह कि उन्होंने अपने स्वयं के जीवन का बलिदान इसलिए किया ताकि हम बेहतर जीवन जी सकें। हो सकता है कि अगर हम उनके परिवार में होते तो हमें उनसे शिकायत की कई वजहें होतीं। आप बताइए, आप भगवान राम के बारे में क्या सोचते हैं। मैं तो अपने मत में बिल्कुल स्पष्ट हूं, मेरे लिए वे भगवान राम हैं।

भगवान राम का यह स्वरूप हमारे लिए क्या प्रेरणा लेकर आता है?

वे नियमों के आदर्श अनुयायी क्यों बने, ताकि संपूर्ण जगत बेहतर बने। उन्होंने ऐसी स्थितियां बनाई जहां लोग खुशहाल और संपन्न रहें, जीवन में कोई बड़ा मकसद हो। इसीलिए तो उसे ‘रामराज्य’ कहा गया।

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लेकिन उनके परिजनों को जो दुख झेलना पड़ा?

हां, सबका जीवन सुखी बनाने की मशक्कत में ऐसे लोगों का परिवार अच्छा जीवन नहीं बिता पाता। बल्कि उनका अपना जीवन भी दुखों से भरा रहता है। भगवान राम द्वारा त्याग दिए जाने के बाद माता सीता का जीवन कितने दुखों से भरा रहा वह हम सब जानते हैं। मैं उनके दुखों की अनदेखी नहीं कर सकता। निश्चय ही, उनके प्रति श्रीराम का व्यवहार अनुचित था। वह अपने बच्चों के प्रति भी उचित नहीं लगते, जिनका बालपन पिता के बिना बीता। लेकिन हममें से कितने जानते हैं कि भगवान राम ने भी कुछ कम दुख नहीं झेला। उन्होंने फिर पुनर्विवाह नहीं किया। उन्होंने जलसमाधि लेकर जीवनलीला समाप्त की। कहा तो यहां तक गया है कि शरीर त्याग के पूर्व अंतिम क्षणों में सरयू नदी में प्रवेश के समय वे सीता के नाम का जाप कर रहे थे। इतिहास से लेकर अभी थोड़ा पीछे तक देखें तो बुद्ध और गांधी का पारिवारिक जीवन भी ऐसा ही रहा है।

लेकिन जब हम गहरी समझ के साथ समग्रता से देखते हैं तो बुद्ध और महात्मा गांधी से भी प्रेम ही कर सकते हैं, श्रद्धा ही कर सकते हैं। कारण यह कि उन्होंने अपने स्वयं के जीवन का बलिदान इसलिए किया ताकि हम बेहतर जीवन जी सकें। हो सकता है कि अगर हम उनके परिवार में होते तो हमें उनसे शिकायत की कई वजहें होतीं। आप बताइए, आप भगवान राम के बारे में क्या सोचते हैं। मैं तो अपने मत में बिल्कुल स्पष्ट हूं, मेरे लिए वे भगवान राम हैं।


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