आपका अखबार ब्यूरो।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा प्रकाशित कुमाउं की अनूठी रामलीला पर आधारित पुस्तक “ओपेरामा कुमाउंनी रामलीला” का लोकार्पण कला केंद्र के समवेत सभागार में बुधवार, 29 अक्तूबर को किया गया। इंडियन ओशन बैंड से जुड़े रहे प्रसिद्ध गायक हिमांशु जोशी द्वारा संकलित और लिखित इस पुस्तक का लोकार्पण प्रसिद्ध लेखक-अध्यापक प्रो. पुष्पेश पंत, कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, कला केंद्र के सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, कला केंद्र के आदि दृश्य के विभागाध्यक्ष डॉ. रमाकर पंत और जनपद संपदा विभाग के अध्यक्ष डॉ. के. अनिल कुमार ने किया। 10 दिनों तक चलने वाली कुमाउंनी रामलीला की खासियत है कि यह संसार की सबसे लंबी ओपेरा प्रस्तुतियों में से एक है। यह उत्तराखंड की अनूठी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है।

पुस्तक का परिचय श्रोताओं को देते हुए डॉ. रमाकर पंत ने कहा कि 2007 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के जनपद संपदा विभाग द्वारा प्रादेशिक रामकथाओं की जीवंत परम्पराओं को डॉक्यूमेंट करने और उनके अध्ययन का विस्तृत कार्य शुरू किया गया था। इसके अंतर्गत 30 से अधिक जीवंत परम्पराओं को डॉक्यूमेंट किया गया। “ओपेरामा कुमाउंनी रामलीला” इस जीवंत शृंखला की पहली वृहत् परियोजना थी। उन्होंने कहा कि इसके प्रकाशन में 14 वर्ष का लंबा समय लग गया, लेकिन यह भी सत्य है कि इस तरह के कार्य कालजयी होते हैं और नूतन भी होते हैं। इस रामलीला में संगीत की मधुरता और भारतीय पारसी नाट्यशैलियों का सुंदर चित्रण है।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि 14 वर्ष की अवधि के बाद इस पुस्तक को पूर्णता प्राप्त हुई, इस बात की बहुत खुशी है। किसी भी पुस्तक में शब्दों को साथ भाव भी समाहित होते हैं। यह पुस्तक हमारे भावों को स्पंदित कर पाए, इसलिए इसे पोथी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कुमाउंनी रामलीला गोस्वामी तुलसीदास की “रामचरितमानस” से प्रेरित है। साथ ही, यह उस क्षेत्र की संस्कृति का सुंदर रूप भी प्रस्तुत करती है। डॉ. जोशी ने युवाओं को यह भी संदेश दिया कि जब तक हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों से नहीं जुड़ेंगे, अपनी भावभूमि से नहीं जुड़ेंगे, तब तक कोई भी उन्नति, कोई भी प्रगति सार्थक नहीं होगी।

कुमाउंनी रामलीला के बारे में बताते हुए लेखक व गायक हिमांशु जोशी ने कहा, “1842 में अल्मोड़ा के बद्रीश्वर मोहल्ले में इसका पहला भव्य आयोजन हुआ था। लेकिन मेरा मानना है कि इतनी बड़ी कृति को बनाना आसान नहीं था। इसको संकलित करने में कम से कम 30-40 से 50 साल लगे होंगे।” उन्होंने कहा कि इसकी खासियत है कि यह कुमाउंनी भाषा में नहीं है। इस कृति में मूल रचनाएं गोस्वामी तुलसीदास कृत “रामचरितमानस” से ली गई हैं। लेकिन बहुत से बुद्धिजीवियों, संगीतप्रेमियों ने इसमें समय-समय पर योगदान दिया। इसे लिखा, कम्पोज किया और इस कृति को इतना सुंदर रूप दे दिया कि आजतक ये कृति जीवित है और बहुत खूबसूरत तरीके से इसका प्रदर्शन होता है। इसमें बहुत मुश्किल बंदिशे हैं, लेकिन कुमाउं को लोग इसे बहुत सहजता से कर देते हैं। ये उनके लिए उतना ही सहज है, जितना हमारे आपके लिए सांस लेना। इसमें हिन्दी, ब्रज, अवधी और उर्दू भाषा के शब्द भी खूब शामिल हैं। इस रामलीला के अभ्यास को ‘तालीम’ कहा जाता है। इसका अभ्यास वहां दो से तीन महीने तक किया जाता है, तालीम ली जाती है। यह सिर्फ अल्मोड़ा में स्थित नहीं है, पिथौरागढ़ का अपना रंग अलग है, नैनीताल का रंग अलग है। बाकी जगहों का अपना अलग रंग है। ये निकला अल्मोड़ा से है, लेकिन पिथौरागढ़ वालों ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं। मजेदार बात यह है कि इसमें जो रचनाएं कंपोज की गई हैं, उसमें पहाड़ के राग बहुत कम हैं। यहां से जो लोग बाहर गए और वहां से जो राग सुनकर आए, उसका प्रयोग इसमें किया।

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. पुष्पेश पंत ने कहा कि कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो आपके हाड़-मांस में होती हैं। कुमाउंनी रामलीला वहां के लोगों के लिए ऐसी ही परम्परा है। प्रो. पंत ने पुस्तक के लेखक और गायक हिमांशु जोशी की प्रशंसा करते हुए कहा कि कुमाउंनी रामलीला पर ऐसी पुस्तक का काम उनके अलावा और कोई नहीं कर सकता था, जिनका कंठ सुरीला है और जिसने अपनी विरासत में बहुत कुछ पाया है और विरासत को संभाल कर रखा है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रामबहादुर राय ने की और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. के. अनिल कुमार ने किया।

अंत में श्री हिमांशु जोशी ने भगवान राम की स्तुति “श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणं” और कुमाऊंनी रामलीला की कुछ रचनाएं गाकर सुनाईं और श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।