प्रदीप सिंह।आजकल देश में हिंदुत्व की हवा चल रही है। सबको अलग-अलग रूप में हिंदुत्व चाहिए। पिछले आठ साल में यह परिवर्तन आया है। पिछले आठ सालों की राजनीति ने राजनीतिक दलों को, खासकर तथाकथित सेक्युलर पार्टियों को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है कि उनको लग रहा है कि हिंदुत्व की बात किए बिना उनकी बात सुनी ही नहीं जाएगी। कोई कलावा पहन कर फोटो खिंचवा रहा है तो किसी को करेंसी नोट पर लक्ष्मी-गणेश की फोटो चाहिए क्योंकि गुजरात में चुनाव होने जा रहा है। गुजरात में हिंदू मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा है। मुस्लिम मतदाताओं के पास कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के पास जाने के अलावा कोई और तीसरा विकल्प नहीं है। बीजेपी के पास तो वे जाएंगे नहीं। अरविंद केजरीवाल ने जो मांग की है उसको समझिए और इस बात को समझिए कि अगर इस देश में सबसे बड़ा पाखंडी कोई राजनेता है तो उसका नाम है अरविंद केजरीवाल। यह मांग इस रूप में पेश की जा रही है कि वह सनातन धर्म के बड़े आस्थावान और समर्थक हैं। दरअसल, यह सनातन धर्म के विरोध का प्रतीक है और सनातन धर्म पर आस्था रखने वालों की आस्था पर कुठाराघात जैसा है।
मुद्दा वोट, बहाना नोट
केजरीवाल ने इंडोनेशिया का उदाहरण दिया है जो सुनने में तार्किक रूप से बड़ी अच्छी बात लगती है कि अगर इंडोनेशिया जैसा मुस्लिम देश जहां 90 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, उसकी करेंसी पर अगर गणेश जी का चित्र हो सकता है तो भारत जैसे देश में क्यों नहीं जहां करीब 80 फीसदी आबादी हिंदुओं की है। गणेश-लक्ष्मी जी कोई नेता, नायक, अभिनेता या स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं हैं जिनका चित्र लगाया जाए। करेंसी पर महात्मा गांधी का चित्र लगा हुआ है। केजरीवाल ने इतनी मेहरबानी की है और कहा है कि उनका चित्र लगा रहने दीजिए, दूसरी तरफ गणेश-लक्ष्मी जी का लगा दीजिए। जबकि उन्होंने अपने दफ्तर से गांधीजी की फोटो हटा दी है तो फिर करेंसी नोट पर क्यों रहने दीजिए, क्योंकि गुजरात में चुनाव है। गुजरात के अलावा किसी और प्रदेश का चुनाव होता तो शायद गांधीजी की फोटो भी हटाने की बात करते। लेकिन बात यह है कि ऐसा नेता जो जनता के टैक्स के पैसे का 100 करोड़ रुपया वक्फ बोर्ड को दे देता है जो जमीन कब्जा करने की सबसे बड़ी संस्था है। यह पैसा निजी संपत्ति के संरक्षण पर, धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए खर्च होता है। इस पैसे के जरिये मुसलमानों का एक वर्ग लूट मचाता है और अपना घर बनाता है। उसके लिए 100 करोड़ रुपये देते हैं और हिंदुओं के लिए करेंसी नोट पर भगवान की फोटो छाप दीजिए क्योंकि इंडोनेशिया भी ऐसा करता है।
उदाहरण किसका दे रहे हैं
बहुत से राजनेताओं में कॉमन सेंस बहुत अनकॉमन होती है, यही हाल अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों का है। उन्होंने सोचा कि मैंने मास्टर स्ट्रोक चल दिया अब तो बीजेपी फंस गई, बीजेपी को मैंने फंसा लिया। अब हिंदुत्व के प्लान पर बीजेपी कैसे चुनाव लड़ेगी। हिंदुत्व का प्लान बीजेपी से गया और मेरे पास आ गया। इस नासमझी को और क्या कहें। इंडोनेशिया मुस्लिम देश है। वहां के लोग इस्लाम को मानते हैं। जो इस्लाम को मानते हैं वह एक चीज को पक्के तौर पर मानते हैं कि अल्लाह के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है। जो अल्लाह को नहीं मानता और जो मूर्तिपूजक है उसको जीने का अधिकार नहीं है। वह काफिर है। ऐसे देश और ऐसे मजहब को मानने वाले लोगों का उदाहरण अरविंद केजरीवाल दे रहे हैं। उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि इंडोनेशिया की करेंसी पर अगर गणेश जी का चित्र है तो क्या इंडोनेशिया के लोग गणेश जी की पूजा करते हैं, क्या गणेश जी को ईश्वर मानते हैं, क्या उनमें उनकी आस्था है। उन्होंने गणेश जी का चित्र इसलिए लगाया है कि वह मानते हैं कि उनके पूर्वज हिंदू थे जो भारत के मुसलमान नहीं मानते हैं। भारत के मुसलमान मानते हैं कि उनके पूर्वज वे थे जो आक्रांता थे। इंडोनेशिया के लोग अपनी पुरानी सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक के रूप में गणेश जी का इस्तेमाल करते हैं। करेंसी नोट पर उनकी फोटो इसलिए नहीं है कि वे उनकी पूजा करते हैं। जब हम सनातनियों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि अगर कॉपी-किताब को भी गलती से पैर लग जाए तो उसको छूकर प्रणाम करो और माफी मांगो क्योंकि कॉपी-किताब को विद्या की देवी सरस्वती का प्रतीक माना जाता है। कॉपी-किताब को पैर लगाने का मतलब है कि आपने सरस्वती जी का अपमान किया लेकिन नोट के जरिये जो अपमान होगा उसका जिम्मेदार कौन होगा।
पाखंड की राजनीति
दूसरी बात, अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए उन्होंने नया फार्मूला दे दिया कि अगर करेंसी नोट पर लक्ष्मी-गणेश का चित्र लगा देंगे तो अर्थव्यवस्था भी सुधर जाएगी। इस दिमागी दिवालियापन के लिए और क्या कहा जाए। कम से कम तथ्यों की तो जांच कर लेते। इंडोनेशिया की करेंसी का नाम है रुपियाह। एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए डेढ़ हजार रुपियाह देना पड़ता है। गणेश जी की फोटो लगाने पर भी इंडोनेशिया की करेंसी का यह हाल है। अपने यहां एक डॉलर खरीदने के लिए 82-83 रुपया देना पड़ता है तो हाहाकार मचा हुआ है। कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था डूब गई। तो क्या अरविंद केजरीवाल इंडोनेशिया की स्थिति में भारतीय करेंसी को ले जाना चाहते हैं। वह क्या उदाहरण दे रहे हैं और क्या बता रहे हैं। दरअसल, वह कुछ नहीं कह रहे हैं। वह सिर्फ एक बात कह रहे हैं कि किसी भी तरह से हमको चुनाव जीता दो, हमको बीजेपी और मोदी से बड़ा हिंदू मान लो। बड़ा मानने के लिए बड़ा काम भी करना पड़ता है। जो मोदी ने किया उसका शतांश भी अगर आपने किया होता तो शायद आपकी स्थिति दूसरी होती। मोदी ने पिछले आठ साल में जो किया उसी का नतीजा है कि अरविंद केजरीवाल जी आज आप हिंदू धर्म या हिंदुत्व को अपनाने के लिए इतने आतुर दिख रहे हैं। आपका जो पाखंड है वह सामने है। आरटीआई के जरिये जो बात सामने आई है वह यह कि आप लोगों की गाढ़ी कमाई का 100 करोड़ रुपया वक्फ बोर्ड को देते हैं और करेंसी नोट पर लक्ष्मी-गणेश का चित्र चाहते हैं। आप वक्फ बोर्ड के कार्यक्रम में जाते हैं और कहते हैं कि तन मन धन वक्फ बोर्ड को समर्पित है। जब आपका तन मन धन वक्फ बोर्ड को समर्पित हो गया तो फिर हिंदुत्व के लिए क्या बचा है, गणेश जी और लक्ष्मी जी के लिए क्या बचा है।
गुजरात में सारे मुद्दे फ्लॉप हो गए तो…
अब देखिए कि वह गुजरात में किस तरह का खेल करते हैं। बिलकिस बानो के केस में जिन लोगों को सजा हुई थी उनको 15-16 साल की सजा के बाद जो रिहाई मिली है उसका मुद्दा गरम है। कांग्रेस पार्टी इसे उठा रही है लेकिन अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी इस मुद्दे को नहीं उठा रही है। क्या उन्हें मुसलमानों के वोट की जरूरत नहीं है। उन्हें मालूम है कि मुसलमान और कहां जाएंगे, बीजेपी को तो वोट देंगे नहीं इसलिए उनको उधर से चिंता नहीं है। मनीष सिसोदिया से जब पूछा गया कि आप इस मुद्दे पर क्यों नहीं बोल रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हम नहीं चाहते कि चुनाव का मुद्दा शिक्षा और स्वास्थ्य से बिल्कुल हटे। हम उसी पर फोकस करना चाहते हैं, हमारा वही एजेंडा है, हमने वही काम किया है, दिल्ली का हमारा मॉडल है। जब दिल्ली के मॉडल की पोल खुलने लगी कि आपने सात साल में एक भी स्कूल, एक भी अस्पताल नहीं खोला। आपने जो क्लास रूम बनाए उनमें भी घोटाले की जांच हो रही है तो लगा कि अब तो मुद्दा बदलना चाहिए। इसी बीच उनके प्रदेश अध्यक्ष का एक वीडियो सामने आ गया जिनमें वह कह रहे हैं कि मंदिर बड़ी खतरनाक जगह है, वहां महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। फिर उनके एक मंत्री का मामला आ गया जो धर्म परिवर्तन के एक कार्यक्रम में हिंदू देवी-देवताओं को गाली दे रहे थे तो अरविंद केजरीवाल को लगा कि मामला बिगड़ रहा है। पहले उन्होंने गुजरात में फ्री से शुरुआत की थी कि बिजली-पानी फ्री देंगे। जब देखा कि उसका कोई असर नहीं हो रहा है तब अपने शिक्षा और स्वास्थ्य के मॉडल पर आए। वह भी फ्लॉप हो गया तो अब उनको हिंदुत्व का कोई मुद्दा चाहिए।
बस चुनाव के समय याद आते हैं भगवान

रात में सपना देखा और सुबह उठे और कहा कि मिल गया मुद्दा। अब यही मास्टर स्ट्रोक है। जैसे ही हम यह बात करेंगे, प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा करेंगे, गुजरात के सारे हिंदू भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर हमारे साथ आ जाएंगे। ऐसा तो होता नहीं कि किसी की मेहनत की कमाई इतनी आसानी से आप छीन लें। बीजेपी, आरएसएस और नरेंद्र मोदी इस स्थिति तक पहुंचने के लिए दशकों लगाए हैं। मोदी ने पिछले आठ साल में हमारे सांस्कृतिक और आस्था के केंद्र के पुनर्निर्माण के लिए जितना किया है उतना आज तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं दिया। अरविंद केजरीवाल बताएं कि पिछले सात साल में उन्होंने दिल्ली में क्या किया है सनातन धर्म के लिए। किसी मंदिर में या हिंदुओं के किसी पूजा स्थल पर एक भी ईंट रखी है क्या। उनको भगवान और हिंदू धर्म सिर्फ चुनाव के समय याद आते हैं। उनका जो दोमुंहापन है वह लोगों को दिखाई देने लगा है। उनकी तुलना मोदी से हो ही नहीं सकती है। मोदी सिर्फ चुनाव के समय मंदिर नहीं जाते हैं। पहले भी जाते हैं बाद में भी जाते हैं और बीच में भी जाते हैं। देश के बड़े नेताओं में मोदी अकेले ऐसे नेता हैं जो साल के दोनों नवरात्रों में व्रत रखते हैं। उनकी आस्था चुनाव के लिए या राजनीति के लिए नहीं है। उनकी आस्था, धर्म के प्रति उनकी निष्ठा व्यक्तिगत और आध्यात्मिक है। इसलिए अरविंद केजरीवाल जैसे लोग उनके आसपास भी नहीं पहुंच सकते। गुजरात का चुनाव जीतने के लिए उन्होंने यह दांव चला है। उनको लग रहा है कि अब बीजेपी को घेर लिया है। बीजेपी इसका विरोध करेगी तो हिंदू विरोधी हो जाएगी और समर्थन करेगी तो उसका श्रेय मुझे मिलेगा। एकदम सही बात है कि अगर समर्थन करेगी तो श्रेय मिलेगा क्योंकि यह मुद्दा आपने उठाया है। इसी तरह से समझिए कि बीजेपी को उस काम का श्रेय मिलेगा जो अभी तक उसने किया है।
सनातन धर्म की आस्था से खिलवाड़
ये अरविंद केजरीवाल और उनके साथी ही हैं जो अयोध्या में राम मंदिर के अलावा राम जन्मभूमि पर कुछ भी बनवाने को तैयार थे। वहां पर पार्क, स्कूल या अस्पताल बन जाए लेकिन मंदिर न बने। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है- जाके प्रिय न राम वैदेही, ताजिए ताहि कोट बैरी सम जद्यपि परम सनेही। अगर आपका प्रिय भी हो और उसे राम और सीता प्रिय नहीं हैं तो उनको तुरंत त्याग दीजिए। राम का विरोध करने वालों को कभी गले नहीं लगाना चाहिए, वो चाहे जो भी हों। केवल अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं। किसी भी पार्टी या संगठन का हो, किसी तरह का व्यक्ति हो क्योंकि राम इस देश की सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक हैं। राम इस देश की आत्मा है। अब आप विडंबना देखिए कि इस देश में राम का तिरस्कार करने वाले हिंदुओं की बड़ी संख्या है और वहां न्यूयॉर्क में न्ययॉर्क का मेयर कहता है कि अगर आपको घृणा और हिंसा से दूर जाना है तो अपने हृदय में राम को बसा लीजिए। अरविंद केजरीवाल जैसे लोगों को सनातन धर्म की आस्था से खिलवाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। करेंसी नोट पर गणेश जी और लक्ष्मी जी की फोटो लगाने की मांग करना सनातन धर्म का सबसे बड़ा अपमान है। वह करेंसी नोट कहां-कहां किन-किन हाथों में जाएगा यह किसको मालूम है। हम जिनकी पूजा करते हैं और जिन पर हमारी आस्था है उनका अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। यह सब अरविंद केजरीवाल के उतावलेपन का नतीजा है। उनको लग रहा है कि इतनी कोशिश की, इतना पैसा खर्च किया, इतना समय लगाया गुजरात में, कुछ हासिल नहीं हो रहा। कोई नया शिगूफा छोड़ना चाहिए जिससे सब लोग चौंक जाए और ऐसा मुद्दा हो जिसका विरोध कोई न कर पाए।
आठ दिसंबर को पता चल जाएगा
उनको लगता है कि करेंसी नोट पर गणेश-लक्ष्मी जी की फोटो लगे इसका विरोध कौन करेगा। तार्किक रूप से उनकी बाद बड़ी सही लगती है कि जब इंडोनेशिया जैसा इस्लामिक देश ऐसा करता है तो भारत में क्यों नहीं हो सकता। लेकिन दोनों में मौलिक अंतर यह है कि इंडोनेशिया के लोग गणेश जी में आस्था नहीं रखते हैं और भारत के लोग रखते हैं। इसलिए उनकी करेंसी पर गणेश जी की फोटो होना और भारत की करेंसी पर होने में जमीन-आसमान का अंतर है। दोनों में तुलना ही नहीं हो सकती। अपने राजनीतिक फायदे के लिए देवी-देवताओं का अपमान करने का यह जो प्रयास है यह बंद होना चाहिए। जिस तरह से हेट स्पीच पर सजा का प्रावधान है उसी तरह से देवी-देवताओं या किसी भी मजहब, पंथ के प्रतीकों का इस तरह से अपमान करना संज्ञेय अपराध बनना चाहिए। अरविंद केजरीवाल ने जो किया है मुझे नहीं लगता है कि हिंदू धर्म में आस्था रखने वाला कोई व्यक्ति उसका समर्थन करेगा। इसका जवाब आपको 8 दिसंबर को पता चल जाएगा जब गुजरात और हिमाचल के चुनाव नतीजे घोषित होंगे। उस दिन आपको पता चल जाएगा कि आपकी आस्था को लोगों ने जीरो नंबर दिया है। इसलिए इस तरह का शिगूफा छोड़ना बंद कीजिए।
आपको गलतफहमी हो गई है कि 2020 के चुनाव में आप हनुमान चालीसा पढ़ने गए दिल्ली के कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर में गए और उससे आप चुनाव जीत गए। उसके बाद तो आप कभी हनुमान मंदिर जाते हुए दिखाई नहीं दिए लेकिन 2025 आते-आते आप फिर जाएंगे। फिर बताने की कोशिश करेंगे कि आप कितने बड़े हिंदू हैं। दरअसल, आपकी आस्था न किसी धर्म, मजहब और पंथ में है, आपकी आस्था अपने राजनीतिक स्वार्थ में है। लोगों को यह बात अच्छे से समझ में आती है और कई बार देर से समझ में आती है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)



