धरती का औसत तापमान 1.1 डिग्री अभी तक बढ़ चुका है। तापमान बढ़ोतरी का दौर जारी है जिसके आगे खतरे और भयावह हैं। जो खतरे अभी हमारे सामने हैं, उनसे मुकाबले के लिए भी दुनिया को भारी धनराशि की जरूरत है। उपलब्धता उसके मुकाबले बहुत कम है। ऐसे में दुनिया के सामने यह चुनौती बहुत बड़ी होती जा रही है।संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया को जलवायु खतरों से लड़ने के लिए 2030 तक प्रतिवर्ष 160-340 अरब डॉलर की जरूरत होगी। यह रिपोर्ट इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि तमाम प्रयासों के बावजूद विश्व इस काम के लिए 100 अरब डॉलर भी नहीं जुटा पा रहा है।
फिलहाल जलवायु अनुकूलन के लिए जितनी राशि की जरूरत है, उससे 5 से 10 गुना तक कम उपलब्ध है। अनुकूलन से तात्पर्य है कि जो खतरे प्रत्यक्ष महसूस हो रहे हैं, उनके दुष्प्रभावों को न्यूनतम करना। 2020 में सिर्फ 29 अरब डॉलर की राशि अनुकूलन के लिए उपलब्ध थी। जलवायु खतरों से निपटने के लिए बने वैश्विक हरित कोष में 100 अरब डॉलरजुटाने में भी सफलता नहीं मिली है जबकि इस कोष का आकार बढ़ाने की मांग उठ रही है।
2020 में इस कोष में 83 अरब डॉलर ही जमा हुए थे। पिछले साल हुए ग्लास्गो पैक्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि 2025 तक जलवायु खतरों से निपटने के लिए धनराशि दोगुनी करनी होगी। वर्ष 2030 तक सिर्फ अनुकूलन के लिए 160-340 अरब डॉलर प्रतिवर्ष और 2050 तक 315-565 अरब डॉलर की जरूरत पड़ेगी। (एएमएपी)