देश के उत्तर पश्चिम हिमालयी क्षेत्र में तापमान बढ़ोतरी के कारण बर्फ पिघलने की रफ्तार में तेजी आ गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तेजी से बर्फ पिघलने से कुछ वर्ष तो गंगा, यमुना समेत हिमालयी नदियों में पर्याप्त पानी रहेगा, लेकिन उसके बाद घटना शुरू हो जाएगा। इससे गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है।उत्तरांचल विवि में आयोजित आकाशतत्व संगोष्ठी एवं प्रदर्शनी में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) के वैज्ञानिकों ने जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड हिमालय के सेटेलाइट डाटा के विश्लेषण के आधार पर यह आशंका जताई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 2018 से 2022 के सेटेलाइट डाटा के विश्लेषण से पता चला है कि, हवा में गर्मी बढ़ने के कारण बर्फ पिघलने की गति अत्यधिक तेज हो गई है। अध्ययन के मुताबिक, नवंबर से जनवरी-फरवरी तक हिमालय में 80 फीसदी और मार्च से अप्रैल मई में 20 फीसदी बर्फ ही टिक पा रही है।

बर्फ पानी का सबसे बड़ा भंडार

वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय के निचले इलाकों को सालाना 50 से 60 फीसदी पानी बर्फ पिघलने से, 15 से 16 फीसदी पानी ग्लेशियर, 9 से 10 फीसदी बारिश और महज पांच फीसदी पानी भूजल से मिलता है।

वरिष्ठ वैज्ञानिक वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान डा. मनीष मेहता ने बताया कि हिमालय में स्नो लाइन कवर 5 से 10 मीटर प्रति वर्ष पीछे खिसक रही है। स्नोलाइन कवर जहां सर्दियों में 1900-2000 मीटर क्षेत्र तक आ जाता है। जबकि, गर्मियों में 5000 मीटर से ऊपर तक पहुंच जाती है। इसलिए हिमालय पर बर्फ की मात्रा में कमी आने और नदियों के पानी में कमी से इंकार नहीं किया जा सकता। (एएमएपी)