अमित सिंघल । 

केंद्र और राज्य सरकारें सरकारी मशीनरी को चुस्त दुरुस्त और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए कमर कस चुकी हैं। खासकर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में जिस प्रकार तत्परता दिखाई है उस पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। योगी सरकार ने सरकारी कामकाज को आमजन के लिए अधिक बेहतर, जिम्मेदारीपूर्ण और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के लिए कुछ फैसले लिए हैं। एक- समूह ‘ख’ व ‘ग’ की  सरकारी नौकरियों में पहले पांच साल संविदा के आधार काम करना होगा। हर छह माह में कर्मचारो का मूल्यांकन होगा। साल में साठ फीसदी से कम अंक पानेवाले कर्मचारी सेवा से बाहर कर दिए जाएंगे। पांच साल बाद कर्मचारी नियमित होंगे। इस दौरान उन्हें सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले कई लाभ नहीं मिलेंगे। और दूसरा- पचास साल से अधिक आयु के कर्मचारियों के काम की समीक्षा करना।  इसमें दायित्व निर्वहन में शिथिल या भ्रष्टाचार में संलिप्त कर्मचारियों को जबरन रिटायर करने का प्रस्ताव है। मुख्य सचिव आरके तिवारी की ओर से जारी आदेश के अनुसार सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों और सचिवों को 50 वर्ष से ऊपर आयु के कर्मचारियों के कामकाज की समीक्षा करने को कहा गया है। 

माना जा रहा है कि जो अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उन्हीं पर कार्रवाई होगी। लेकिन दिक्कत यह है कि यह बात कर्मचारियों तक नहीं पहुँच पा रही है की किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। विपक्ष इसे कर्मचारियों को निकालने का योगी फार्मूला प्रचारित कर रहा है। क्या है सच्चाई अमित सिंघल अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। 


 

सिविल सर्विस परीक्षा के पहले ही अटेम्प्ट में मेरा सेलेक्शन हो गया था तथा भारतीय सूचना सेवा अलॉट कर दी गयी थी। द्वितीय अटेम्प्ट देने के पहले वी पी सिंह ने आरक्षण 50% कर दिया; सामान्य वर्ग के लोगों के लिए आयु सीमा 26 से बढ़ाकर 28 वर्ष तथा 3 की जगह 4 अटेम्प्ट अलाउ कर दिया। यह समाचार सुनते ही मेरा दिल बैठ गया था लेकिन फिर भी दिल कड़ा करके मैंने सीधे-सीधे 50% सीट को अपने मन से निकाल दिया और अपना प्रयास बाकी की सीटों के लिए करना शुरू कर दिया।

पढ़ाई हिंदी माध्यम… परीक्षा अंग्रेजी में

सिविल सेवा परीक्षा देने के पहले मेरी पढ़ाई हिंदी माध्यम में थी। लेकिन परीक्षा अंग्रेजी में लिख रहा था; इंटरव्यू भी अंग्रेजी में दिया। अतः मेरी सोच थी कि द्वितीय अटेम्प्ट में बेहतर परिणाम निकलेगा। ऐसा हुआ भी।  लेकिन उस समय चिदंबरम का नियम लागू था कि कि अगर आपने पूर्व अटेम्प्ट का ऑफर स्वीकार कर लिया है तो अगले अटेम्प्ट में आप ग्रुप ए से ग्रुप ए में सर्विस नहीं बदल सकते। अगला अटेम्प्ट केवल आईएएस, आईपीएस और आईएफएस के लिए होगा।

बहुत अच्छी रैंक आने के बावजूद भी (जिसमें निश्चित रूप से मुझे इनकम टैक्स मिलता ही मिलता और अगर वी पी सिंह आरक्षण ना होता तो शायद आईपीएस)  द्वितीय अटेम्प्ट बेकार हो गया और टूटे हुए दिल के साथ मैंने ट्रेनिंग का फाऊंडेशनल कोर्स ज्वाइन कर लिया।

ऊपर की आमदनी

मुझे फाउंडेशन कोर्स के लिए नागपुर स्थित नेशनल अकैडमी आफ डायरेक्ट टैक्सेस, जिसमें इनकम टैक्स के अधिकारियों को ट्रेन किया जाता है, भेजा गया।  मेरे अधिकतर सहयोगी आयकर अधिकारी थे जो आज चीफ कमिश्नर होने वाले है।

सहयोगियों ने उसी दौरान मुझे आभास करा दिया कि भारतीय सूचना सेवा “कमाऊ” नहीं है, यानी कि ऊपर की आमदनी नहीं है।  इनकम टैक्स वाले कुछ मित्रों ने बताया कि उनकी  महत्वाकांक्षा प्रथम पोस्टिंग में ही प्रतिदिन 1000 रुपये कमाने की है।  यानी कि माह में तीस हज़ार रुपये ।  यह महत्वाकांक्षा उस समय की थी जब हमारा वेतन ही 4200 रुपये हुआ करता था। खैर ट्रेनिंग समाप्त होते ही मुझे राजनीति कारणों से कटक भेज दिया।

टारगेट पार कर लिया 6 महीने में

6 महीने बाद मुझे दिल्ली टूर पे आने का अवसर मिला। मैं एक आयकर अधिकारी मित्र के घर में ठहरा। उन्होंने मेरी आवभगत की और बड़े गर्व से बतलाया कि उन्होंने अपना टारगेट – यानी कि 1000 रुपये प्रतिदिन कमाने की महत्वाकांक्षा – 6 महीने के अंदर ही पार कर लिया और अब वह “आय” दोगुनी हो गई है।

मैंने उनको बधाई देकर निकम्मेपन के बोझ से अपनी आंखें झुका ली। ना केवल मेरी ऊपर की आय एक पैसे की नहीं थी, बल्कि कटक में मेरा जीवनयापन कहीं से भी उनके मुकाबले नहीं ठहर सकता था। मैं अपना भोजन स्वयं बनाता था, बर्तन, टॉयलेट और घर साफ करता था तथा रिक्शे में सफर किया करता था। मेरी हीन भावना वास्तविक थी।

फिर डेढ़ वर्ष बाद मैं दिल्ली आ गया।  दिल्ली में भी ऊपर की कमाई एक पैसे की नहीं थी।  आखिरकार कैसे हो सकती थी जब भारतीय सूचना सेवा में आपको पत्रकारों से डील करना है, दूरदर्शन और रेडियो में समाचार बनाना है।

कुछ वर्ष तक ऊपर की कमाई ना होने का एक परिणाम यह हुआ कि मेरी कार्यपद्धती ही बदल गई। मैंने अपने वेतन – तथा बाद में पत्नी के वेतन – में अच्छी तरह से रहना सीख लिया।

दावा नहीं करता मैं ईमानदार था

मैं यह दावा नहीं करना चाहता कि मैं उस समय ईमानदार था।  अगर कोई “कमाऊ” सेवा मुझे मिल गई होती तो शायद मैं भी उसी “महत्वाकांक्षा” को पूरा करने में व्यस्त हो जाता।  चूंकि मेरी ऊपर की आमदनी नहीं थी और कार्यपद्धती बिल्कुल बदल गई थी (किसी अफसर की चापलूसी नहीं करनी; समय से घर वापस आ जाना, इत्यादि), अतः मैंने भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर दिया। तब मैंने संयुक्त राष्ट्र के लिए अप्लाई करना शुरू किया तथा जब भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए निमंत्रण आता उस में भाग लेता।

अंततः मेरा सेलेक्शन संयुक्त राष्ट्र के लिए हो गया।  शुरू के वर्ष दुरूह ड्यूटी स्टेशन में गुजरे। बाद में मुख्यालय में चुनाव हो गया। पहले 6 वर्ष टेम्पररी कॉन्ट्रैक्ट पर सेवा की। यानी कि केवल 15 दिन की नोटिस पर मुझे नौकरी से निकाला जा सकता था।

रगड़ के काम करता हूं

लेकिन टेंपरेरी कॉन्ट्रैक्ट पर होने के कारण मैं कहीं ना कहीं अप्लाई करता रहता था और हर बार अंतिम समय में मुझे कहीं और नौकरी का ऑफर मिल जाता था। अगर मेरे पास टेंपरेरी कॉन्ट्रैक्ट ना होता तो शायद मैं मुख्यालय ना बैठा होता क्योंकि मैं सदैव प्रयास करता रहता था। मुख्यालय में भी कई वर्षों तक टेंपरेरी कॉन्ट्रैक्ट में रहा; दो बार व्यवस्था और कार्यपद्धति में बदलाव के कारण मेरी नौकरी समाप्त करने की सूचना दे दी गई थी।

कमाऊ नौकरी ना मिलने के कारण तथा बाद में अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट पे होने के कारण मेरी कार्यपद्धती किसी भी तरह से प्राइवेट सेक्टर से कम नहीं है। अब स्थायी कॉन्ट्रैक्ट पे होने के बावजूद रगड़ के काम करता हूं और उसी तरह काम लेता हूं।  एक भी पैसे का लालच नहीं और ना ही वेतन के अतिरिक्त एक भी पैसा चाहिए।

योगी सरकार की सोच

कुछ संवेदनशील पदों पर भी मैंने कार्य किया है और एकाध बार कुछ ऐसे ऑफर भी आए जिसे अनुचित कहा जा सकता था और जिसे मैंने मना कर दिया। उल्टे मैं कई बार राजनयिकों को, तथा कार्य से संबंधित मीटिंग में अन्य लोगों को अपनी जेब से कॉफ़ी, लंच, डिनर, खिलाता हूँ।

योगी सरकार द्वारा नियुक्ति के पहले 5 वर्ष कर्मचारियों को अस्थाई कॉन्ट्रैक्ट पर रखने के पीछे यही सोच काम कर रही है। उनकी आशा है कि 5 वर्षों में ईमानदारी से काम करके कदाचित हमारे युवाओं और युवतियों की मानसिकता और “महत्वाकांक्षा” दोनों ही बदल जाए और शायद वह नए भारत के निर्माण की तरफ अपना सार्थक योगदान दे सकेंगे।

भ्रष्ट अभिजात वर्ग और भ्रष्टाचारी मानसिकता का रचनात्मक विनाश किए बिना हम नए भारत का निर्माण नहीं कर सकते।  प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम यही कर रही है। इसका स्वागत होना चाहिए।


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