इस तरह की ट्रेनें कैसे काम करती हैं? इस बारे में बताते हुए एक अधिकारी ने कहा कि जैसे ही ट्रेन स्पीड के साथ किसी मोड़ पर मुड़ती है, इसके फिसलने का खतरा रहता है। इससे ट्रेन के भीतर चीजें फिसल सकती हैं। इससे ट्रेन में बैठने वाले यात्री आर्मरेस्ट से कुचला हुआ महसूस करते हैं और अपना संतुलन खो देते हैं।
उन्होंने कहा- झुकने वाली ट्रेनें हमें इस स्थिति से बचाती हैं। भारतीय रेलवे ने ऐसी ट्रेनों के संबंध में अतीत में विभिन्न विकल्पों की खोज की है, लेकिन कभी भी किसी भी डिटेल्स को अंतिम रूप से नहीं दिया गया है। रेलवे ने इस तकनीक के लिए लिए स्पेनिश निर्माता टैल्गो के साथ-साथ स्विट्जरलैंड सरकार के साथ भी चर्चा की है।
भारत ट्रेनों का प्रमुख निर्यातक बनने की ओर
रेलवे 2025-26 तक यूरोप, दक्षिण अमेरिका और पूर्वी एशिया के बाजारों में वंदे भारत ट्रेनों का प्रमुख निर्यातक बनने की ओर बढ़ रहा है। एक अधिकारी ने कहा कि स्लीपर कोच वाली स्वदेशी ट्रेनों का नवीनतम संस्करण 2024 की पहली तिमाही तक चालू हो जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे अगले कुछ वर्षों में 75 वंदे भारत ट्रेनों पर 10-12 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने की योजना बना रहा है, ताकि इन्हें निर्यात के लिए तैयार किया जा सके। उन्होंने कहा, ट्रेनों के निर्यात के लिए पारिस्थितिकी तंत्र अगले दो से तीन वर्षों में तैयार किया जाना है। हम अगले तीन वर्षों में 475 वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण करने की राह पर हैं। (एएमएपी)