वेदी सिन्हा और पाखी सिन्‍हा कर रहीं निर्गुण की विरासत को बचाने का प्रयास।

एक समय था जब गांव-गांव में निर्गुण बजते थे। बूढ़े-बुजुर्ग समूह में ढ़ोलक, झाल, हरमोनिया लेकर निर्गुण के माध्यम से समाज में एकता और प्रेम का संदेश फैलाते थे। बुजुर्गों के निधन पर निर्गुण गाने वाली टोली घर से लेकर अंतिम संस्कार स्थल तक निर्गुण बजाते चलती थी लेकिन बदलते दौर में डीजे और रीमिक्स के द्विअर्थी कानफोडू संगीत ने ब्रह्मांड के प्रेम के प्रतीक निर्गुण पर धूल की परतें जमा दी। अब गांवों में निर्गुण नहीं बजता है, वहां भी सुबह से शाम रात तक डीजे का शोर मचता रहता है। ”तन के तंबूरे में सांसों के दो तार बोले जय सियाराम-राम” से ब्रह्मांड में आप और आप में ब्रह्मांड की व्याख्या करते रसधारा बहाने वाली निर्गुण गायिकी आज अंतिम सांसे लेने को मजबूर है।ईश्वरीय परम तत्व से जोड़ने के लिए सत्संगी भजन गायकी अब विरासत बनने के कगार पर खड़ी हो गई है। कानफोड़ू संगीत का तामझाम और कर्णप्रिय संगीत की कम होती लय ने सैकड़ों वर्ष पुरानी निर्गुण भजन गायकी की परंपरा को कुछ ही परिवारों की विरासत बनाकर रख दिया है। वीणा की मधुर ध्वनि और मंजीरों की ताल के स्वरों के साथ भजन की रसधार बहाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाले निर्गुण परंपरा के गायक अब बहुत कम बचे हैं।

समय के साथ अब निर्गुण भजन के ना तो जानकार बचे और ना ही इनको सुनने वाले बचे हैं। आधुनिक युग की आपाधापी में वर्षों पुरानी यह विधा अब लुप्त सी होती जा रही है। हालांकि कथित आधुनिकता के इस दौर में जब निर्गुण विलुप्त हो रहा है तो आज की कुछ नई पीढ़ी निर्गुण को गांव गांव तक ले जाने के प्रयास में जुट गई है। ऐसी ही एक टीम बनाई है सीवान की बेटी वेदी सिन्हा ने, वह अपनी बहन पाखी सिन्हा और सुमंत बाल कृष्णा के साथ गांव-गांव जाकर निर्गुण क्या है यह लोगों को बता रही है।

संगीत और कहानियों के माध्यम से निर्गुण की खोज कर रही वेदी सिन्हा के आह्वान की टीम करीब छह वर्ष पूर्व अपनी यात्रा पर निकली और देश के विभिन्न राज्यों में तीन सौ से अधिक जगहों पर जाकर लोगों को निर्गुण की विरासत को बचाने, उसे आत्मसात करने के लिए प्रेरित कर रही है। बाल रंगमंच आर्ट एंड कल्चरल सोसाइटी बीहट में कार्यक्रम प्रस्तुत करने आई वेदी सिन्हा ने बातचीत में बताया कि भक्ति काल के समय कई ऐसे कवि कवियत्री रहे जैसे लालदेव, लाला फकीर, कबीर आदि। जिन्होंने कोशिश किया कि सामाजिक बात हो सके, एक निरंकार इस पृथ्वी को, इस ब्रह्मांड को और प्रेम को अध्यात्म माना जाता है, उस पर बात हो सके।

आज के दुनिया में निर्गुण का क्या मतलब है, इसी पर हम लोग काम करते हैं। कुछ संगीत जिस पर हमने विभिन्न समय में काम किया है, यह सोच कर कि आज के जो जेनरेशन हैं, आज के जो युवा हैं, उनके जीवन में और हमारे जीवन में आज निर्गुण का क्या मतलब है। निर्गुण का इतना ही मतलब है कि हम सब प्रेम के साथ रह सकें और उस प्रेम का रोजमर्रा के जीवन में क्या मतलब है उसी पर बातें करते हैं। कहानी सुनाते हैं, संगीत के माध्यम से उन बातों को जगह-जगह ले जाते हैं। एक निरंकार इस पृथ्वी को, ईश्वर को और प्रेम को अध्यात्म कैसे माना जा सके, इस पर बात करते हैं।

मैं भी इसी जमाने की हूं, आधुनिक युग में डीजे की संगीत के साथ बड़ी हुई हूं, वह भी बहुत खूबसूरत है, उसकी अपनी सुंदरता है। निर्गुण कोई चमत्कार नहीं है, यह आम जिंदगी में एकता, प्यार और समभाव से जीना है। लेकिन निर्गुण भी कोई रॉक में बजा रहा है तो कोई निर्गुण में अलग-अलग शैली सीख रहे हैं। निर्गुण को सभी लोगों को अपने जीवन में उतारना चाहिए, तभी यह विलुप्त नहीं हो सकता है, क्योंकि यह एकता सिखाता है। यह हर जगह, हर समय, हर कण में रहता है, इसलिए खोज जरूरी है।

जब हम बिजी हो जाते हैं, भोजन और आवास के चक्कर में फंस जाते हैं तो इंसानियत के प्रेम की परत पर धूल जम जाती है। हमारा जीवन फास्ट और कॉमर्शियल होता जा रहा है, कैपलिस्टिक फोर्स पूरी दुनिया को जकड़े हुए हैं। इस समय में जरूरी है कि निर्गुण जैसे प्रेम को, बातचीत को, एकता को याद कर सकें, क्योंकि ब्रह्म रूप निर्गुण को हम भूलते जा रहे हैं। सत्ता का दुरुपयोग होने से गलत का बोलबाला बढ़ गया है। आज हम केवल अपनी बात रख रहे हैं, लेकिन सुन नहीं रहे हैं। जबकि, दादा-परदादा से विरासत में मिला निर्गुण ईश्वर की आराधना के सगुण का निर्गुणी मार्ग है। (एएमएपी)