एनसीपीसीआर और एससीपीसीआर ने की संयुक्त कार्रवाई
राम-राम कहने से रोका, बाईबिल पढ़ना और ईशू प्रार्थना थी अनिवार्य
एक बच्ची के साथ हुआ गलत, आयोग के अधिकारियों से कहा- पॉक्सो में दर्ज करें मामला
डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
केंद्र व राज्य दोनों आयोगों ने की संयुक्त कार्रवाई
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग( एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो एवं राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) के अध्यक्ष द्रविंद्र मोरे ने जब बच्चों से एक-एक कर और सामूहिक तौर पर बातचीत की तो सामने आया कि कैसे इन बच्चों को राम-राम कहने से रोका जाता है और ईशू की प्रार्थना करवाई जाती है। साक्ष्य के तौर पर आयोग की टीम ने इन बच्चों के वीडियो भी बताए हैं, जिसमें यह नन्हें मुन्ने बालक सहज रूप से बता रहे हैं कि वह सुबह प्रार्थना भी ईशू की करते हैं और दिन में जब भी यहां के प्राचार्य या अन्य फादर-नन द्वारा कुछ उन्हें बताया जाता है तो ईसाई मत से संबंधित ही बातों के संबंध में बताया जाता है।
आयोग की टीम आते ही जलाए गए गौपनीय दस्तावेज
बाल आयोग को पूरे परिसर से तमाम पुस्तकें एवं अन्य साहित्य मिला जो सीधे ईसाई मत की बालपन को प्रैक्टिस कराती हुई साफ नजर आ रही हैं। इस दौरान परिसर में एक जगह पर जले हुए कागजात भी बरामद हुए, जिसकी कि आग भी बुझ नहीं पाई थी, ऐसा लग रहा था कि आयोग की टीम के आने के बाद जब वह बच्चों के साथ बातचीत कर रही थी, तभी किसी ने चुपके से जाकर जरूरी और गोपनीय कागजातों को नष्ट करने का प्रयास यहां किया हो।
राष्ट्रीय बाल आयोग ने पॉक्सों में मामला दर्ज करने के लिए कहा
यहां निरीक्षण के दौरान छात्रों से चर्चा के समय एक बालिका से कुछ दिन पूर्व हुई घटना में एक बच्ची के साथ गलत होना भी पाया गया, जिसके लिए एनसीपीसीआर अध्यक्ष कानूनगो और एससीपीसीआर अध्यक्ष मोरे ने शिक्षा एवं पुलिस अधिकारियों को पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज करने के निर्देशित दिए हैं । इस दौरान यह भी सामने आया कि कैसे मिशनरी द्वारा संचालित यह सीएफआई मॉडल स्कूल प्रबंधन बालिका से जुड़े इस मामले को दबाने का दबाव उसके परिजनों पर बना रहा था।
इस संबंध में मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष द्रविन्द्र मोरे ने बताया कि भोपाल में शहर से कई किलोमीटर दूरी पर सीएफआई मॉडल स्कूल अमोनी में बना हुआ है। बताया गया कि संस्थान के पास 100 एकड़ जमीन है और उस पर यह फसल पैदा करते हैं, साथ ही इस स्कूल का संचालन भी इनके द्वारा किया जाता है। यहां निरीक्षण के दौरान आयोग को कई खामियां मिली है। एक मामले में पॉक्सो के अंतर्गत मामला दर्ज कराने के निर्देश अधिकारियों को दिए गए हैं। साथ ही स्कूल में ईसाई धर्म की प्रार्थना जबरन कराने का विषय भी ध्यान में आया है, जबकि यहां अधिकांश गैर ईसाई बच्चे पढ़ रहे हैं।
हिन्दू देवी-देवताओं को मानने से मना कर ईसाई धर्म अपनाने का दिया जाता है प्रलोभन
उन्होंने बताया कि ये निरीक्षण 13 जनवरी 2024 को राष्ट्रीय बाल आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कान्नूगों के साथ मिलकर संयुक्त रूप से किया गया था। स्कूल काफी दूर सुनसान जंगल में बनाया गया है । यहां से ईसाई धर्म अनुसार पढ़ाई जानेवाली धार्मिक पुस्तकें भी प्राप्त हुई हैं। बच्चों को ये स्कूल द्वारा मुहैया कराई गई थीं। संस्था केम्पस में रहने वाले एक व्यक्ति द्वारा बताया गया कि इस स्कूल में उन्हें हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं को मानने से मना कर ईसाई धर्म अपनाने का प्रलोभन दिया जाता है।
मान्यता एमपीबोर्ड की, प्रचार प्रसार सी.बी.एस.ई. बोर्ड द्वारा संचालित बताकर किया जा रहा
राज्य बाल आयोग अध्यक्ष मोरे ने यह भी बताया कि संस्था द्वारा स्वयं को सी.बी.एस.ई. बोर्ड द्वारा संचालित बताकर प्रचार प्रसार किया जाता है लेकिन हकीकत में इन सभी बच्चों को एम.पी. बोर्ड पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है। आयोग सभी बिन्दुओं पर गहराई से पड़ताल करने के निर्देश संबंधित विभाग को देगा।
प्रदेश में हर जिले से आ रहे मतान्तरण कराए जाने और शिक्षा दिए जाने के मामले, हर बार हिन्दू बच्चे टार्गेट में
इस संबंध में राज्य बाल आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा का कहना है कि मप्र में मुरैना, डबरा, ग्वालियर, विदिशा, झाबुआ, अलीराजपुर, इंदौर, दमोह, भोपाल, शिवपुरी, गुना, दतिया, समेत आज शायद ही कोई जिला ऐसा शेष हो, जहां से मतान्तरण कराए जाने के मामले सामने नहीं आ रहे हों ! हर जिले में जहां भी आयोग सामान्य जानकारी लेने पहुंचता है तो वहीं इस प्रकार के प्रकरण प्रकाश में आ जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले साल आए एक निजि संस्थान के सर्वे ने भी इस बात की पुष्टी की है और हम सभी को चिंता में डाल दिया है कि मध्यप्रदेश से सबसे ज्यादा बच्चे विशेषकर उनमें बच्चियां और महिलाएं गायब हैं, ऐसे में इन सभी ईसाई या अन्य संस्थाओं के औचक निरीक्षण में पकड़ी जा रही बालिकाओं और बालकों को देखकर जिनमें से कई अन्य राज्यों से लाकर यहां रखे गए हैं अनेक प्रश्न खड़े करता है और संदेह पैदा करता है कि कहीं इसी प्रकार मप्र के बच्चे तो अन्य राज्यों में ले जाकर गुपचुप तरीके से ये तमाम संस्थान तो नहीं रख रहे? जिनका कि कोई लेखा-जोड़ा पुलिस या प्रशासन के पास भी मौजूद नहीं है। यह गंभीरता से जांच करने का विषय है।
किया जा रहा है अबोध मन का माइण्ड वॉश
दूसरी ओर इस संपूर्ण मामले पर प्रकाश डालते हुए एमपी चाइल्ड राइट प्रोटेक्शन कमीशन की सदस्य सोनम निनामा का कहना है कि राज्य में कई जगह सह सामने आ चुका है कि कैसे ये ईसाई संस्थान कन्वर्जन कराने का काम कर रहे हैं, जबकि भारतीय संविधान ऐसा करने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं देता है। बहुत से बच्चे जोकि धर्म से गैर ईसाई हैं उन्हें सिर्फ चर्च की प्रार्थना करना साफ बता रहा है कि उनके मन को भोले पन में ही बदलने का प्रयास हो रहा है। यह माइण्ड वॉश किया जाकर भविष्य का ईसाई इन्हें बनाया जा रहा है । यह संविधान के अनुच्छेद 28(3) का उल्लंघन है। जिसमें कि दूसरे धर्मों की क्रिया कलापों में भाग लेने की अनुमति उनके अभिभावकों से लेना जरूरी है, जबकि इन स्कूलों में कई बच्चे बिना माता-पिता की अनुमति लिए इस तरह की प्रैक्टिस कर रहे हैं।
उन्होंने साथ में यह भी कहा कि मिशनरी स्कूल बच्चों को पढ़ाएं, अच्छी शिक्षा दें, कौन मना कर रहा है, लेकिन उनके धार्मिक विश्वास को क्यों बदलना चाहते हैं ये समझ के बाहर है। ऐसा वे ना करें। भारत में हर किसी को अपने मत, पंथ, मजहब, रिलीजन और धर्म के साथ जीवन जीने का अधिकार भारतीय संविधान देता है, उसे लालच या भय दिखाकर बदलना जुर्म है और यह जुर्म व कानून को नहीं मामने की मानसिकता समाप्त होनी चाहिए ।(एएमएपी)