यह फिल्म नहीं सिनेमेटिक न्यूक्लियर बम।

मालिनी अवस्थी।
‘धुरंधर’ को रिलीज हुए एक सप्ताह से ऊपर हो गया लेकिन फिल्म पर ऐसा तूफान बरपा है जो थमने का नाम नहीं ले रहा। धुरंधर क्या रिलीज हुई, गोया एक फिल्म नहीं सिनेमेटिक न्यूक्लियर बम फूट पड़ा है जिसकी ज़द में लाखों लोग आ चुके हैं, जहां बम जहां फूटा है वहां प्रभाव कैसा और किस स्तर का है इसका आकलन करने में शायद बहुत समय लगेगा, लेकिन नुकसान होते देख जहां जहां से आवाज़ें कराहें चीखें निकल रही हैं उसे देख समझ में आ रहा है यह बम सही जगह गिरा है। एक तयशुदा सिस्टम जो आपके लिए तय करता आ रहा है कि आप क्या देखें क्या सुने क्या पढ़ें, उस अहंकारी  इकोसिस्टम के अंत के लिए धुरंधर जैसी फिल्मी बहुत जरूरी हैं। यह विनाश ज़रूरी है क्योंकि उसी विनाश की आहुति पर नए सृजन की प्रतिलिपि लिखी जाएगी।

फिल्म सफल हो चुकी है, निर्देशन अभिनय पटकथा संगीत सभी मोर्चों पर धुरंधर की चारों ओर से प्रशंसा हो रही है, आम तौर पर प्रतिक्रिया न देने वाले अभिनेताओं निर्देशकों को भी दिल खोल कर प्रशंसा करनी पड़ी है।

फिल्म असाधारण है, असाधारण अभिनय, असाधारण निर्देशन, अभिनय पटकथा, संगीत सब कुछ असाधारण लेकिन यहां लिखने के पीछे उद्देश्य यह है कि क्यों धुरंधर जैसी फिल्म हमारे समय की कई ऐसी कड़वी हकीकत को बयां करने का साहस दिखती है जो सार्वजनिक हैं, सबकी जानकारी में हैं लेकिन जिस पर हमारे यहां कोई बात नहीं करना चाहता, कोई पत्रकार इस पर लिखता नहीं, कोई इस पर पॉडकास्ट नहीं करता, कोई इस पर खुल कर कुछ नहीं कहता।

26 11 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी आक्रमण को 17 वर्ष बीत गए हैं,आज की पीढ़ी क्या जानती है इस आतंकवादी हमले के विषय में। जब लश्करे तैयबा के हमलावरों ने नाव के रास्ते मुंबई पहुंचकर मुम्बई की शान होटल ताज, होटल ओबेरॉय, कामा हॉस्पिटल, शिवाजी टर्मिनल स्टेशन नरीमन हाउस को निशाना बनाया और डेढ़ सौ से अधिक लोगों की हत्या कर डाली।नरीमन हाउस चबाड़ लुबाविच सेंटर के नाम से भी जाना जाता है वह यहूदियों की मदद करने के लिए बनाया गया जहाँ यहूदी पर्यटक भी अक्सर ठहरते थे। धुरंधर में आई एस आई चीफ कहते हुए दिखाया गया है कि हिन्दू यहूदी कोई भी मिलें किसी को मत छोड़ना,

Courtesy: Pritika Chowdhry

उसी में एक दृश्य में पाकिस्तान में बैठा ISI चीफ मेजर इकबाल उस समय टीवी पर आतंकवादी हमले को लाइव देखते हुए एक जगह कहता है आपके यहां बहुत अच्छे से दिखाया जा रहा है। न्यूज चैनल पर लाइव दिखाई जा रही फुटेज की मदद से पाकिस्तान बैठे हैंडलर भारतीय पुलिस/कमांडो/सेना की लोकेशन बताते हुए अपने आतंकवादियों को बचा रहे थे। पूरे हमले का लाइव टेलीकास्ट,और भारतीय सेना की कार्यवाही का भी लाइव टेलीकास्ट! यह सीधे सीधे भारतीय सेना को कमजोर करना और पाकिस्तान की मदद थी!

ऐसे संवेदनशील समय में ऐसी गैरजिम्मेदाराना थी हमारे यहां की पत्रकारिता। धुरंधर में उस समय का यह पूरा दृश्य बहुत बहुत महत्वपूर्ण है , खासतौर पर रेड स्क्रीन कर आतंकवादियों और उनके हैंडलर के बीच की ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनाते हुए आदित्य धर ने जो कमाल किया है, इसके लिए उन्हें प्रणाम है। यह सब आज की पीढ़ी के लिए जानना बहुत जरूरी है, इतिहास जानना समझना और उससे सीखना बहुत जरूरी है।

धुरंधर देखते हुए एक और बहुत महत्वपूर्ण घटना दिखाई गई है, किस तरह भारत के एक वित्त मंत्री ने लंदन की उसी फर्म को भारतीय रुपए छापने का ठेका दिया जो पाकिस्तान के लिए भी करेंसी छाप रहा था। इस ब्रिटिश कंपनी का नाम था De La Rue ! यह कोई संयोग तो नहीं ही था! यह पाकिस्तान को नकली भारतीय नोटों की छपाई के लिए जानकारी और संसाधन मिलने का घातक षड्यंत्र था ! माधवन फिल्म में एक जगह कहते हैं, हमारा दुश्मन तो हमारे ही लोग हैं, पाकिस्तान तो दूसरे नंबर पर आता है! जान की बाजी पर खेलते हुए दुश्मन के अगले क़दम की सूचना पर महत्वपूर्ण पद पर बैठे हुए लोगों का ढुलमुल रवैया सब कुछ ही दिखाया गया है।

भारतीय फिल्मों ने हमेशा स्वस्थ मनोरंजन दिया है, यादगार गाने दिए हैं, याद रह जाने वाली कहानियां दी हैं, मानवीयता के गुण जगाने वाली कहानियां, देश भक्ति जगाने वाली कहानियां और फंतासी कहानियां भी… लेकिन हमारे यहां दिक्कत यह है कि 60 के दशक में इयान फ्लेमिंग की ईजाद जेम्स बॉन्ड की तर्ज पर आज 2025 में भी जासूस खूबसूरत नायिका के साथ इश्क फरमा रहा है, नाच रहा है, भारत पाकिस्तान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर काल्पनिक कथाओं से दिल बहला रहा है। हॉलीवुड में सियान कॉनरी रोजर मूर की करिश्माई छवि को तोड़कर वहां का जेम्स बॉन्ड डेनियल क्रीग आज बदल चुका है, उनकी कहानियां चुनौतियां बदल चुकी लेकिन यहां आज भी वहीं तमाशा चालू है। और तो और, कई पिक्चरों में भारतीय जासूस पाकिस्तानी ISI के जासूस (जो प्रायः नायिका भी होती है) के साथ मिलकर आतंकवादियों को खत्म करता दिखाया जा रहा है, हद है, एजेंडे को परोसने की हद रही हैं ऐसी फिल्में! असली जासूस कैसे होते हैं क्या है उनकी जिंदगी, धुरंधर उसका शानदार उदाहरण है।

Courtesy: Navbharat Times

धुरंधर ने रणवीर सिंह के किरदार को ऐसी कहानी का जामा दिया है जो पाकिस्तान के बहाने तत्कालीन भारतीय राजनीतिक वास्तविकताओं को भी उजागर करती चलती है, यह फिल्म बहुतों को बेचैन कर रही है क्योंकि सत्य स्वीकार करना कब सरल रहा है ।

फिल्म की एक तथाकथित बड़ी फिल्म समीक्षक द्वारा रिलीज के दिन ही फिल्म को खारिज कर देना उसी इको सिस्टम का अहंकार है जो तय करता है क्या देखना चाहिए क्या नहीं! इन्हीं ने कुछ साल पहले संदीप वांगा की फिल्म एनिमल को खारिज किया था लेकिन आज मीडिया के लोकतांत्रिकरण के युग में दर्शक स्वयं तय कर रहे है उन्हें क्या देखना है और क्या नहीं!

ऐसे बहुत समीक्षकों की समीक्षाएं सुनते हुए मैने और बहुत से कलाकारों ने संगीत जगत में अपनी जगह बनाई है जो तय करते आए थे कि क्या बेहतर संगीत है और कौन श्रेष्ठ गायक है! एक अरबी गीत का भारत में छा जाना, भारत की उसी रुचि का प्रतीक है जहां संगीत की कोई भाषा नहीं लेकिन देश की है, वंदे मातरम्! जिसे बोलने से पहले ही कंधार में आतंकवादी गोली मारने का इशारा कर देता है।

IC 814 कंधार हाइजैक घटना! फिल्म की शुरुआत यहीं से है। इस घटना की बहुत आलोचना होती है क्योंकि कंधार में छोड़े गए आतंकवादियों ने आने वाले कई दशकों तक भारत का खून बहाया। शुरुआत में अपहर्ताओं ने भारत में बंद 36 आतंकवादियों की मांग की थी। आठ दिन के निगोशिएशन के बाद तीन आतंकवादी मुश्ताक अहमद जरगर, अहमद उमर सईद शेख और मौलाना मसूद अजहर छोड़ दिए गए थे। ये वही मसूद अजहर है, जिसने बाद में जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन बनाया. यही संगठन ने 2019 पुलवामा हमलों में शामिल था।

Courtesy: Shri Rawatpura Times

मैं अब जो कहने जा रही हूं शायद कुछ लोगों को अखरेगा, कंधार घटना से एक तरह का अपरोक्ष जुड़ाव हमारा भी है लेकिन वह बात फिर कभी। अभी धुरंधर के परिप्रेक्ष्य में… कंधार हाइजैक में एक सौ अस्सी बंधकों के बदले तीन आतंकवादियों को छोड़ने के इस निर्णय की बहुत आलोचनाएं होती हैं लेकिन एक बात जो आज पुराने लोगों को याद होगी, लेकिन शायद नई पीढ़ी को जानकारी नहीं होगी कि कंधार विमान हाईजैक के आठ दिन के निगोशिएशन के समय पूरे आठ दिन मीडिया टीवी चैनलों ने बंधकों के दुखी परिवार जनों के इंटरव्यू लेकर, पूरे देश में ऐसा माहौल बनाया, ऐसा माहौल बनाया जिसके कारण सरकार दबाव में आ गई। जिसका बेटा बहन पति मित्र विमान में बंधक हो और मृत्यु सर पर मंडरा रही हो, ज़ाहिर है परिवार जन कैमरे पर रो रहे थे, सरकार से मदद की गुहार लगा रहे थे, टीवी चैनलों की टी आर पी आ रही थी, लेकिन उस समय देश के लिए क्या ज्यादा जरूरी था, भावना या कर्तव्य? पत्रकारिता का धर्म देश नहीं? यह जिम्मेदारी टीवी चैनलों को निभानी चाहिए थी और परिवार जनों को भी! कंधार में आतंकवादी छोड़े गए और रुपिन कत्याल को छोड़कर सभी बंधक सकुशल अपने घर लौटे।

कुर्स्क पनडुब्बी दुर्घटना याद होगी। विशाल रूसी पनडुब्बी का उद्देश्य गोपनीय था और पनडुब्बी डूब गई।तारपीडो की गड़बड़ी के कारण पनडुब्बी अपने सैनिकों को लिए डूब गई.. 23 सैनिक बचे जिन्हें बचाना भी जोखिम था, परिवार जनों ने गुहार लगाई,अमेरिका और कई देशों ने मदद की पेशकश की लेकिन रूस नहीं चाहता था कि पनडुब्बी तक कोई देश पहुंचे, वह अडिग रहा। अपना अपना नज़रिया है लेकिन युद्ध में सदा राष्ट्र प्रथम! धुरंधर उन सभी “अननोन गनमैन” अदृश्य योद्धाओं को कृतज्ञ प्रणाम है जिन्हें हम और आप कभी नहीं जान पाएंगे।
(लेखिका जानी मानी लोकगायिका हैं। आलेख उनकी सोशल मीडिया वॉल से साभार)