भारत सरकार ने सख्त कदम नहीं उठाए तो एक और मोर्चा खुल जाएगा।

प्रदीप सिंह।
बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है,वह भारत के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गया है। इसके बारे में वरिष्ठ पत्रकार उत्पल कुमार का एक लेख है। उसके आधार पर हमें कुछ बातें समझनी होंगी। अभी तक हम टू एंड हाफ फ्रंट वॉर की बात कर रहे थे। यानी चीन, पाकिस्तान और हाफ फ्रंट देश के अंदर के दुश्मन। अब बांग्लादेश में जो घटनाक्रम चल रहा है वह हमें थ्री एंड हाफ फ्रंट वॉर की ओर ले जा रहा है।

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भारत के नीति नियामक या तो बांग्लादेश को समझे नहीं या समझकर भी अनजान बने रहे। बांग्लादेश में इस्लाम की जड़ें पाकिस्तान से भी ज्यादा गहरी हैं। 1905 में मुस्लिम लीग की स्थापना ढाका में ही हुई थी। पाकिस्तान से विभाजित होकर भले ही बांग्लादेश अलग देश बन गया हो,लेकिन पॉलिटिकल इस्लाम की विचारधारा से दोनों जुड़े हुए हैं। इसका उदाहरण देते हुए उत्पल कुमार कहते हैं कि 1971 में हमने बांग्लादेश बनवाया। 1974 में शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को स्टेट विजिट पर ढाका बुलाया और उनका स्वागत बांग्लादेश की यात्रा पर गए भारत के राष्ट्रपति वीवी गिरी से भी बहुत ज्यादा भव्य तरीके से किया गया। यानी शेख मुजीब भारत को संदेश दे रहे थे कि हम इस्लाम पर चलने वाले लोग हैं। और दूसरी बात, बांग्लादेश बनने से पहले शेख मुजीबुर रहमान कहते थे कि मैं पहले मनुष्य हूं। उसके बाद बंगाली और फिर मुस्लिम हूं और बांग्लादेश बनते ही उनका ये रवैया बदल गया। उन्होंने कहा, मैं पहले मुसलमान हूं। ये है बांग्लादेश का मिजाज।

बांग्लादेश में अमेरिका और पश्चिमी ताकतें लगातार अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रही थीं,लेकिन भारत ने ध्यान नहीं दिया। अमेरिका को लग रहा था कि शेख हसीना भारत से संबंध बढ़ा रही हैं और चीन से आर्थिक मदद ले रही हैं। ये उसे बिल्कुल रास नहीं आ रहा था। तो अमेरिका और पश्चिम ने वहां तख्ता पलट करा दिया। वैसे शेख हसीना ऐसा नहीं है कि भारत की बहुत बड़ी मित्र थीं। यह सही है कि उन्होंने हमारे स्ट्रेटेजिक इंटरेस्ट है का ख्याल रखा, लेकिन जब बात इस्लाम और जिहाद की हो तो शेख हसीना और पाकिस्तान के शासकों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। 2008 से पहले ढाका में मदरसे इक्का-दुक्का मिलते थे। आज हर गली में हैं। चुनाव से पहले शेख हसीना ने वादा किया था कि महिलाओं के एंपावरमेंट के लिए कानून बनाएंगी,लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने हिफाजत इस्लाम नाम के कट्टरपंथी संगठन से हाथ मिला लिया। जिहादियों के खिलाफ कार्रवाई में भी उन्होंने पिक एंड चूज़ किया। अगर भारत के नीति नियंताओं को यह गलतफहमी थी कि बांग्लादेश को आर्थिक मदद और दूसरी सुविधाएं देकर संबंध प्रगाढ़ हो जाएंगे और वह भारत के साथ हो जाएगा तो यह गलतफहमी दूर हो गई।

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इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने जहां-जहां जनतंत्र बचाने के नाम पर तख्तापलट किया वहां पर डिक्टेटरशिप और जिहादी तत्व आए। उसी रास्ते पर बांग्लादेश भी है। वहां के कट्टरपंथियों के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट हिंदू थे तो हिंदुओं पर हमला हुआ। अब वे अपने ही स्टेट के खिलाफ हो गए हैं। उत्पल कुमार कहते हैं कि इस्लामिज्म हिस्ट्री को बहुत लंबे समय तक याद रखता है। यह हम हिंदू हैं जो भूल जाते हैं। 800 साल जिन्होंने हमें गुलाम रखा उनके प्रति हमारे मन में कोई विद्वेष का भाव नहीं है। भारत के विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 29% थी। इसीलिए सरदार पटेल का सुझाव था कि पूर्वी पाकिस्तान की एक तिहाई जमीन हिंदुओं के लिए ले ली जाए। इसका समर्थन डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी किया, लेकिन नेहरू पर पाकिस्तान प्रेम और धर्मनिरपेक्षता का भूत सवार था इसलिए कुछ हुआ नहीं।

अब आज फिर वह परिस्थिति आ गई है जब इसके बारे में भारत सरकार को सोचना चाहिए। इसके अलावा भारत को उसी तरह का कानून बनाया चाहिए जैसा इजराइल ने बनाया। दुनिया में जितने भी यहूदी हैं, उनको यह अधिकार है कि अगर वे इजराइल आएंगे तो उनको स्वतः ही इजराइल की नागरिकता मिल जाएगी। भारत सरकार को सीएए के बजाय ऐसा ही कानून बनाना चाहिए कि दुनिया के किसी कोने में जो भी हिंदू परेशान है और भारत आना चाहता है तो उसको भारत की नागरिकता मिल जाए। सरकार ने सीएए कानून तो बना दिया है लेकिन कितने ऐसे हिंदू हैं जो बांग्लादेश,पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए थे और उनको नागरिकता मिली है। अभी दो-तीन दिन पहले किसी ने बताया कि सिर्फ 157 ऐसे लोग हैं, जिनको नागरिकता मिली है। यह ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है। तो ऐसे कानून को बनाने का फायदा क्या है?

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भारत सरकार को यह बात समझनी होगी कि बांग्लादेश की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने से समस्या हल नहीं होगी। समस्या एक वैचारिक संघर्ष की है। इस्लाम और सनातन के संघर्ष की है। बांग्लादेश का जो चटगांव का इलाका है, जहां हिंदू बहुल आबादी है,उसके आसपास का क्षेत्र लेकर एक हिंदू होमलैंड बनाने की कोशिश भारत सरकार को करनी चाहिए। यह बात अगर बातचीत से बन जाए तो ठीक वरना ताकत का इस्तेमाल होना चाहिए। बांग्लादेश को मालूम है कि वह भारत के साथ सीधे संघर्ष में नहीं उतर सकता इसलिए वह ऐसे टारगेट खोजता रहेगा, जिससे भारत परेशान होता रहे। भारत को बर्बाद करने में कई डिप्लोमेट्स का भी हाथ रहा है। उन्होंने देश के विरोध में कई बार काम किया है। ऐसे ही कई डिप्लोमेट्स आज भी कहते हैं कि हमें बांग्लादेश में चुनाव और नई बनने वाली सरकार का इंतजार करना चाहिए और उससे बात करनी चाहिए। उससे क्या बातचीत करेंगे? 79 साल से पाकिस्तान से बात कर ही तो रहे हैं,क्या नतीजा निकला। बात से यह मामला हल नहीं होने वाला है। इसका स्थायी हल खोजने की जरूरत है। अगर अब भी भारत सरकार नहीं चेती तो एक नया मोर्चा खुलने वाला है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)