बिहार की राजधानी पटना में शुक्रवार को सियासी हलचल तेज रही। नीतीश कुमार की अगुवाई में यह बैठक हुई। ऐसे में नीतीश कुमार को यह उम्मीद रही होगी कि पटना में आयोजित इस महाबैठक के बाद यह तमाम भाजपा विरोधी नेता बिहार के बढ़िया आमों (दिग्घा के विशेष दूधिया मालदा) का स्वाद चखेंगे। लेकिन दो प्रमुख चेहरों, अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने थोड़ी जल्दी में घर जाने का फैसला किया। वे बिहार के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में विपक्षी नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल नहीं हुए।

 

विपक्ष की बड़ी बैठक खत्म होने के कुछ देर बाद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने कांग्रेस पर बम फोड़ दिया। सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ एक कड़े बयान में, आप ने धमकी दी कि अगर वे राज्यसभा में दिल्ली अध्यादेश को रोकने के लिए प्रतिबद्ध होने से इनकार करते हैं तो वे किसी भी कांग्रेस-समावेशी गठबंधन से दूर रहेंगे।

जब तक विपक्षी नेता – नीतीश कुमार से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे और ममता बनर्जी तक – दावा कर रहे थे कि विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को केंद्र से हटाने के लिए एक साथ आ रहे हैं, तब तक आप ने पहले ही कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि आप और कांग्रेस के बीच दरार की मुख्य वजह क्या थी?

किस वजह से हुई आप-कांग्रेस में दरार?

इस मेगा विपक्षी बैठक से कुछ दिन पहले, केजरीवाल ने स्पष्ट कर दिया था कि दिल्ली सेवा अध्यादेश पटना में विपक्षी नेताओं के बीच चर्चा की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इससे पहले गुरुवार को आप ने संकेत दिया कि अगर कांग्रेस इस मुद्दे पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताती है तो वह बैठक का बहिष्कार करेगी। जैसी कि उम्मीद थी, केजरीवाल ने बैठक में यह मुद्दा उठाया। बैठक में मौजूद सूत्रों ने आजतक को पुष्टि की कि आप प्रमुख ने दिल्ली सेवा अध्यादेश पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहकर कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है।

‘जल्दबाजी में थी आप’

बैठक में मौजूद एक विपक्षी दल के प्रमुख ने कहा, ‘आप थोड़ी जल्दी में दिख रही थी।’ उन्होंने आगे कहा, ‘कोई भी पार्टी इस तरह से किसी मुद्दे पर प्रतिबद्ध होने की स्थिति में नहीं रहना चाहेगी। संभवतः, इसीलिए कांग्रेस ने कहा कि जब भी यह (अध्यादेश) संसद में आएगा, वह इस मामले को उठाएगी।’

एक अन्य विपक्षी नेता ने बताया, कि केजरीवाल द्वारा दिल्ली अध्यादेश पर कांग्रेस के रुख को गलत समझा गया है। उन्होंने कहा, हमें उम्मीद है कि वे अगली बैठक तक अपने मतभेदों को दूर करने में सक्षम होंगे। बता दें कि शिमला में कांग्रेस द्वारा इस बैठक के अगले चरण की मेजबानी की जाएगी। इस बैठक में मौजूद 15 में से लगभग 11 विपक्षी दलों ने केंद्र के उस अध्यादेश का विरोध करने के लिए केजरीवाल का समर्थन किया है। उन्होंने इसे भाजपा सरकार द्वारा एक असंवैधानिक कदम बताया है।

‘अंसवैधानिक है केंद्र का अध्यादेश’

सीपीआई-एमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने आजतक को बताया, ‘आज की बैठक सकारात्मक रही। पंद्रह राजनीतिक दलों की आम सहमति थी कि उन्हें 2024 का लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ना चाहिए। क्योंकि यह भारत के लोकतंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण चुनाव है। आरएलडी इस बैठक में मौजूद नहीं थी। लेकिन इस विपक्षी दल का मानना है कि दिल्ली अध्यादेश असंवैधानिक है और इसलिए इसका विरोध किया जाना चाहिए।’

आप को सता रहा इस बात का डर

इस बीच, कांग्रेस के खिलाफ जारी आप के धमकी भरे बयान का बचाव करते हुए पार्टी प्रवक्ता जैस्मिन शाह ने कहा, ‘आज की बैठक में सिर्फ आप ही नहीं, सभी विपक्षी दलों ने कांग्रेस से अपना रुख स्पष्ट करने का आग्रह किया। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।’ शाह ने विपक्षी एकता को तोड़ने की कोशिश के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, यह आप नहीं कांग्रेस ही है जो विपक्षी एकता को तोड़ने की कोशिश कर रही है। जबकि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व केंद्र के इस अध्यादेश मुद्दे पर चुप है। जबकि कांग्रेस की पंजाब और दिल्ली इकाई कह रही है कि वह अध्यादेश पर भाजपा का समर्थन करेगी।’ दरअसल आम आदमी पार्टी को यह डर है कि जब केंद्र द्वारा लाया गया दिल्ली सेवा विधेयक राज्यसभा में लाया जाएगा तो कांग्रेस वोटिंग से वॉकआउट कर सकती है।

क्या आप की रणनीति पड़ी उल्टी?

गुरुवार को, आप सूत्रों ने संकेत दिया था कि अगर कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश मुद्दे पर गैर-प्रतिबद्ध रही तो वह पटना विपक्ष की बैठक से बाहर निकल सकती है। बाद में, इसकी मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने दावा किया कि इस अध्यादेश को संसद में पारित कराने के लिए भाजपा-कांग्रेस के बीच समझौता हो गया है। इस रणनीति का उद्देश्य विपक्ष की विशाल बैठक से पहले कांग्रेस पार्टी पर दबाव बनाना था। हालांकि, दबाव की रणनीति संभवतः विफल हो गई। यहां तककि आप के वरिष्ठ नेताओं ने भी इसे स्वीकार कर लिया।

आप के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘साम-दाम-दंड-भेद दूसरी पार्टी को अपनी मांगों के लिए प्रतिबद्ध करने के विभिन्न तरीके हैं। दंड (सजा) एकमात्र माध्यम नहीं हो सकता है। संभवतः, कांग्रेस पर दबाव बनाने की हमारी रणनीति इस मामले में विफल रही। लेकिन आप नेता ने कहा कि वह दिल्ली अध्यादेश के इर्द-गिर्द बैठक का माहौल तैयार करने में सफल रहे। वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘सकारात्मक पक्ष यह है कि अगर हमने इन युक्तियों का सहारा नहीं लिया होता, तो दिल्ली अध्यादेश बैठक का एजेंडा नहीं होता।’ हालांकि, पटना बैठक खत्म होने के कुछ ही देर बाद जारी किया गया कड़े शब्दों वाला बयान विपक्षी नेताओं को पसंद नहीं आया।

बैठक में मौजूद एक वरिष्ठ विपक्ष ने आप-कांग्रेस टकराव के बारे में कहा, ‘अब जब आप ने पहले ही दिल्ली से एक बयान जारी कर दिया है, तो बैठक में मौजूद कांग्रेस और आप नेताओं की शारीरिक भाषा के बारे में बोलने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह का बयान दिल्ली से जारी किया गया है। वे जल्दबाजी में हैं। कांग्रेस के रुख को गलत समझा गया और इसे पहले सुलझाया जाना चाहिए था।’

क्या बिना केजरीवाल के बनेगा महागठबंधन?

विपक्षी दलों या बनने वाले गठबंधन की अगली बैठक शिमला में कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित की जाएगी। ऐसे में जैस्मीन शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक कि कांग्रेस संसद में केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ मतदान करने के लिए सहमत नहीं हो जाती तब तक आप किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है।

इसका एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि केजरीवाल के बिना ही महागठबंधन की स्थिति बनेगी। पटना विपक्ष की बैठक का हिस्सा रहे सूत्रों ने आजतक को बताया, ‘आप-केजरीवाल के बिना महागठबंधन पूरा नहीं होगा।’ उन्होंने कहा, ‘पवार साहब ने कांग्रेस और आप से अतीत के मतभेदों को भुलाने के लिए कहते हुए अपनी पार्टी के शिवसेना के साथ पुराने संबंधों का जिक्र किया था। लेकिन अब वे एक साथ हैं।’

इसके अलावा राजद-जदयू का उदाहरण भी रखा गया। जहां दोनों दल पिछले दो दशकों से बड़े पैमाने पर आमने-सामने हैं। लेकिन वे एक साथ आने में कामयाब रहे हैं। बिहार में वाम दलों ने अतीत में अपने वर्तमान एमजीबी सहयोगियों का विरोध किया है। लेकिन भाजपा को रोकने के लिए, बिहार के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हमने अपने मतभेद भुला दिए हैं।’ जहां आम आदमी पार्टी कांग्रेस पार्टी पर और दबाव बनाने के लिए खुद को तैयार कर रही है, वहीं आज की बैठक में शामिल विपक्षी नेता उम्मीद कर रहे हैं कि दोनों शिमला बैठक से पहले अपने मतभेदों को दूर कर लेंगे।(एएमएपी)