बेहद असुरक्षित, खतरनाक और कटु अनुभवों से भरा है सोशल मीडिया -तस्लीमा नसरीन
अजय विद्युत
सोशल मीडिया पर गुंडातत्वों का आसान शिकार हैं महिलाएं। कोई भी कभी भी उन पर हमला कर सकता है और वह भी बिना किसी रोकटोक के। लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस सबका बड़ी बहादुरी से सामना किया है लेकिन सोशल मीडिया पर मौजूद हर लड़की तस्लीमा नसरीन नहीं है।
सोशल मीडिया को लेकर उनकी सोच को जानना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये उनके लंबे अनुभवों से निकले निष्कर्ष हैं, ‘सोशल मीडिया पर अपनी लंबी सक्रियता के बाद मैं दो निष्कर्षों पर पहुंची हूं। एक- सोशल मीडिया के खुलेपन और इसकी व्यापकता के बावजूद इस पर कट्टरवादी सोच का वर्चस्व है। और दूसरा- महिलाओं के लिए यह मीडिया बेहद असुरक्षित, खतरनाक और कटु अनुभवों से भरा है।’
सोशल मीडिया पर तमाम सतर्कता बरतने के बावजूद आप अनजाने लोगों को अपने खिलाफ अवांछित गतिविधियों से नहीं रोक सकते। ऐसा तस्लीमा के साथ भी हुआ, ‘फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी करने का अधिकार मैंने सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया है, जो मेरे मित्र हैं। इसके बावजूद जब-तब अनजाने लोग मेरी निजी जिंदगी में घुस आते हैं और मुझे अशालीन ढंग से निशाना बनाने लगते हैं।’
यहां मुझे घेरना आसान है
लगभग सभी समाजों में महिलाएं लंबे समय से गैर-बराबरी की शिकार रही हैं। उनके साथ ज्यादतियों का सैकड़ों साल का इतिहास है। फिर सोशल मीडिया के आने से क्या फर्क पड़ा। तस्लीमा बिना किसी लाग लपेट के इसे रेखांकित करती हैं, ‘फेसबुक और ट्विटर पर मुझे अक्सर बेहद कुत्सित भाषा में निशाना बनाया जाता रहा है। समय की घड़ी को थोड़ा पीछे कर देखें तो बीती सदी के आठवें-नौवें दशक में हाट-बाजार, उत्सव, मेले आदि में मेरे खिलाफ अभियान चलाया जाता था। यह वह दौर था जब मैं अपने आलोचकों की पहुंच में नहीं होती थी। इसलिए वे भीड़ में मेरे खिलाफ अभीयान चलाते थे, ताकि समाज में मेरा बहिष्कार किया जा सके। लेकिन आज सोशल मीडिया के आने से फेसबुक और ट्विटर पर मैं वैसे आलोचकों की पहुंच में हूं। इसलिए सोशल मीडिया में मुझे घेरना, मुझे गालियां देना मेरे आलोचकों के लिए बहुत आसान हो गया है। अब मैं उनसे मात्र एक क्लिक की दूरी पर हूं।’
अनजाने लोग- अशालीन रंग ढंग
सोशल मीडिया पर तमाम सतर्कता बरतने के बावजूद आप अनजाने लोगों को अपने खिलाफ अवांछित गतिविधियों से नहीं रोक सकते। ऐसा तस्लीमा के साथ भी हुआ, ‘फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी करने का अधिकार मैंने सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया है, जो मेरे मित्र हैं। इसके बावजूद जब-तब अनजाने लोग मेरी निजी जिंदगी में घुस आते हैं और मुझे अशालीन ढंग से निशाना बनाने लगते हैं।’
सारी औरतें तो मेरी तरह नहीं
स्कूल-र्कालेज जाने वाली, आफिस में जिम्मेदारी संभाल रही, कलाकार सभी प्रकार की महिलाएं सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। उन्हें लगातार भय रहता है किसी की कुत्सित भावनाओं का शिकार बनने का, अपनी निजता के हनन का। तस्लीमा नसरीन के विचार में, ‘मेरी बात इस मायने में अलग है कि मैंने बहुत कम उम्र से ही नारीविद्वेषी कट्टर लोगों की आलोचनाएं झेलकर खुद को इस्पात जैसा बना लिया है, लेकिन जमाने की सारी औरतें तो मेरी तरह नहीं हैं। वे इस तरह के वार नहीं झेल सकतीं। उनके लिए रोज-रोज पुरुषवर्चस्ववादी समाज की आलोचनाएं सहना इतना आसान नहीं है। इससे वे टूट जाती हैं, सोशल मीडिया से दूरी बना लेती हैं या पुरुष समाज के बारे में उनके विचार बेहद नकारात्मक हो जाते हैं।’
मेरा कसूर क्या है
समाज में महिलाओं के विरुद्ध कम अपराध नहीं हो रहे- इस तर्क के साथ सोशल मीडिया पर महिलाओं के प्रति अश्लील टिप्पणियों, चित्रों के साथ हमला करने वालों के लिए बचाव का रास्ता निकालने वाले विश्लेषक भी कम नहीं हैं। लेकिन जो महिलाएं सोशल मीडिया पर सक्रिय आपराधिक तत्वों का निशाना बनती हैं आखिर उनकी अपराध क्या है? तमाम महिलाओं का यह सवाल तस्लीमा नसरीन के लिए भी सवाल ही है, ‘पहले सिर्फ बांग्लादेश के कट्टर लोग ही मुझे निशाना बनाते थे। लेकिन फेसबुक और ट्विटर पर मेरा विरोध करने वाले सिर्फ बांग्लादेश के नहीं हैं, वे दूसरे देशों के भी हैं। नितांत अभद्र भाषा में वे मुझ पर हमले करते हैं, मुझे अश्लील बताते हैं और मेरा बलात्कार करने की धमकी देते हैं। आखिर मेरा अपराध क्या है? यही कि मैं उदारता की बात करती हूं, मैं महिलाओं की स्वतंत्रता, उनके अधिकारों की बात करती हूं।’