भारतीय वैज्ञानिकों ने जब आदित्य-एल1 मिशन शुरू किया था तब दुनिया के कई देशों को संदेश था कि यह कैसे सफल होगा, लेकिन न सिर्फ सफलता के साथ इसने अंतरिक्ष में तीन माह सिर्फ पूरे ही नहीं बल्‍कि इसरो ने बताया है कि उपकरण ने सौर पवन आयन, मुख्य रूप से प्रोटॉन और अल्फा कणों को सफलतापूर्वक माप लिया है और यह अपना काम बखूबी कर रहा है।

उल्‍लेखनीय है कि यह मिशन आदित्य-एल1दो सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्चिंग सेंटर से 11:50 बजे सफलता पूर्वक लॉन्च किया गया था। यह भारत का पहला सोलर मिशन है।  इस मिशन को लेकर अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने को बताया है कि आदित्य-एल1 उपग्रह में लगा पेलोड ‘आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट’ ने काम करना शुरू कर दिया है और सामान्य रूप से काम कर रहा है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा, ”सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर (एसडब्ल्यूआईएस), जो एएसपीईएक्स पेलोड का दूसरा उपकरण है, चालू है।” आनेवाले समय में इस सूर्य मिशन के माध्‍यम से इस आकाशीय ग्रह सूरज से जुड़े कई रहस्यों को उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है।

दरअसल, आदित्य-L1 यह पता लगाएगा कि सौर तूफानों के आने की वजह क्या है और सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर पड़ता है। साथ ही यह सूर्य से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी के साथ यहां के वायुमंडल को संपूर्ण रूप से समझने का प्रयास करेगा और इसे जो जानकारी प्राप्‍त होगी उसे इसरो को यह भेजेगा।  इसरो ने बताया है कि आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स) में दो अत्याधुनिक उपकरण सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर (एसडब्ल्यूआईएस) और सुप्राथर्मल एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर (एसटीईपीएस) शामिल हैं। एसटीईपीएस उपकरण 10 सितंबर को शुरू किया गया था। SWIS उपकरण दो नवंबर को सक्रिय हुआ था और इसने शानदार प्रदर्शन किया है। इसरो ने बताया कि उपकरण ने सौर पवन आयन, मुख्य रूप से प्रोटॉन और अल्फा कणों को सफलतापूर्वक मापा है।

यह है एएसपीईएक्स

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, एएसपीईएक्स (ASPEX) में दो उपकरण शामिल हैं, पहला सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर (SWIS) और दूसरा सुप्रा थर्मल एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर (STEPS) है । इसरो ने बताया कि STEPS उपकरण 10 सितंबर, 2023 को चालू हो गए थे, जबकि SWIS आज दो नवंबर 2023 को सक्रिय हो गए हैंऔर इसने श्रेष्‍ठ प्रदर्शन प्रदर्शित किया है। वहीं, इसरो ने एक बयान में यह भी बताया है कि स्‍विस (SWIS)  प्रत्येक 360 डिग्री के उल्लेखनीय क्षेत्र के साथ दो सेंसर इकाइयों का उपयोग करते हुए, एक दूसरे के लंबवत विमानों में काम करता है। उपकरण ने सौर पवन आयनों, मुख्य रूप से फोटॉन और अल्फा कणों को सफलतापूर्वक मापा है।

नवंबर 2023 में दो दिनों में उन सेंसरों में से एक से प्राप्त एक नमूना ऊर्जा हिस्टोग्राम प्रोटॉन (H+) और अल्फा कणों (He2+) की संख्या में भिन्नता को दर्शाता है। इन विविधताओं को एक व्यापक सौर पवन व्यवहार स्नैपशॉट प्रदान करते हुए नाममात्र एकीकरण समय के साथ दर्ज किया गया था। स्‍विस (SWIS) दिशात्मक क्षमताओं में सटीकता सौर पवन प्रोटॉन और अल्फ़ाज़ के सटीक माप की सुविधा प्रदान करती है, जो सौर पवन गुणों, मूलभूत प्रक्रियाओं और पृथ्वी पर उनके प्रभाव के आसपास के स्थायी रहस्यों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

महत्वपूर्ण माना जाता है अल्फा-प्रोटॉन अनुपात

स्‍विस द्वारा देखे गए प्रोटॉन और अल्फा कण अनुपात में परिवर्तन सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज पॉइंट्स (L1) पर कोरोनल मास इजेक्शन के आगमन के बारे में अप्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करने की क्षमता रखता है। बढ़ा हुआ अल्फा-प्रोटॉन अनुपात महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसे एल1 पर इंटरप्लेनेटरी कोरोनल मास इजेक्शन (आईसीएमई) के पारित होने के सबसे संवेदनशील संकेतकों में से एक माना जाता था, और यह अंतरिक्ष मौसम अध्ययन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे शोधकर्ता एकत्रित आंकड़ों में गहराई से उतर रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय उत्सुकता से उस ज्ञान संपदा का इंतजार करते हुए उसके आंकड़ों और नई जानकारियों से अपने ज्ञान में वृद्धि करते हुए इस समय दिखाई दे रहा है, आदित्य एल1 वहीं, एएसपीईएक्स सौर वायु कणों और ग्रह पर उनके प्रभाव के बारे में उजागर करने के लिए लगातार कार्य करते हुए फिलहाल तैयार दिख रहा है।

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ये है भारत का आदित्य अंतरिक्ष मिशन

भारत के तीसरे चंद्र मिशन जिसे चंद्रयान-3 कहा जाता है, के अंतरिक्ष में उतरने के दस दिन बाद, दो सितंबर, 2023 को 11:50 IST पर पीएसएलवी-सी57 के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आदित्य एल1 को लॉन्च किया गया था। इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन प्वाइंट (एल1) के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर स्थित है। इस आदित्य एल1 मिशन के अंतरिक्ष यान में सात प्रकार के पेलोड हैं, जिनमें से चार का उपयोग सूर्य के रिमोट सेंसिंग में और अन्य तीन का उपयोग इन-सीटू अवलोकन के लिए किया जाएगा। पेलोड का निर्माण विभिन्न इसरो केंद्रों के निकट सहयोग से कई प्रयोगशालाओं द्वारा किया गया है। (एएमएपी)