आदित्य एल 1 कामयाबी के साथ तीसरी छलांग लगा चुका है।  यह 296 किमी के घेरे में 71767 किमी पर चक्कल लगा रहा है।  सूर्य अध्ययन के लिए भेजे गये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पहले सौर खोजी मिशन आदित्य-एल1 ने सफलतापूर्वक तीसरे कक्ष में प्रवेश पर वैज्ञानिकों समेत देश भर में आमनागरिकों के बीच प्रसन्‍नता देखी जा रही है।इससे पहले पांच सितंबर को दूसरी छलांग में इसे  282 किमी x 40225 किमी की कक्षा में पहुंचाया गया था। तीसरी छलांग की प्रक्रिया को ISTRAC बेंगलुरु द्वारा सफलता से अंजाम दिया गया। इस दौरान मारिशस, और पोर्ट ब्लेयर के ग्राउंड स्टेशन ने रिकॉर्ड किया. अब 15 सितंबर को अगली कक्षा में पहुंचाने के लिए छलांग लगाई जाएगी। इसरो ने आज यहां बताया कि रविवार तड़के 0230 बजे इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) ने आदित्य एल 1 सफलतापूर्वक अगली कक्ष में पहुंचाया।

अभियान के दौरान मॉरीशस, बेंगलुरु, एसडीएससी-शार और पोर्ट ब्लेयर में इसरो के ग्राउंड स्टेशनों ने उपग्रह पर नजर बनाये रखी गई। यानी इसरो का ‘सोलर यान’ अब पृथ्वी से सबसे निकटतम 296 किलोमीटर और सबसे अधिकतम 71,767 किलोमीटर की दूरी पर है।  इसरो ने रविवार को एक्स पर लिखा,  “रविवार का ऑपरेशन 2.30 बजे पूरा हुआ. मॉरीशस, बेंगलुरु, एसडीएससी-शार (श्रीहरिकोटा) और पोर्ट ब्लेयर के ग्राउंड स्टेशनों ने इस ऑपरेशन के दौरान उपग्रह को ट्रैक किया.”

उन्होंने बताया कि नयी कक्ष 296 किमी गुणा 71767 किलोमीटर है। अगली चौथी कक्ष में प्रवेश के लिए 15 सितंबर तड़के दो का समय निर्धारित किया गया है। इसके बाद आदित्य एल1 को एक और बार कक्षा बदलना पड़ेगा।  इसके बाद उपग्रह ट्रांस-लैंग्रेजियन1 कक्षा में चला जाएगा।  18 सितंबर को आदित्य एल1 धरती के स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस से बाहर चला जाएगा, इस प्वाइंट को धरती का एग्जिट प्वाइंट कहा जाता है, क्योंकि यहां के बाद धरती के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव काफी कम हो जाएगा।

उल्लेखनीय है कि भारत ने दो सितम्बर को अपने पहले सूर्य मिशन आदित्य एल1 को सूर्य और अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए प्रक्षेपित किया था। यह सूर्य मिशन पृथ्वी के सबसे नज़दीक इस तारे की निगरानी करेगी और सोलर विंड जैसे अंतरिक्ष के मौसम की विशेषताओं का अध्ययन करेगा। यह आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है।

एल1 बिंदु तक पहुँचने में इसे लगभग 125 दिन लगेंगे। एस्ट्रोसैट (AstroSat- वर्ष 2015) के बाद आदित्य-एल1 भी इसरो का दूसरा खगोल विज्ञान वेधशाला-श्रेणी मिशन है। इस मिशन की यात्रा भारत के पिछले मार्स ऑर्बिटर मिशन, मंगलयान की तुलना में काफी छोटी है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है।

इस मिशन का उद्देश्य सौर कोरोना, प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सौर पवन के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करना है। वहीं, आदित्य-एल1 का प्राथमिक उद्देश्य सूर्य के विकिरण, ऊष्मा, कण प्रवाह तथा चुंबकीय क्षेत्र सहित सूर्य के व्यवहार और वे पृथ्वी को कैसे प्रभावित करते हैं, के संबंध में गहरी समझ हासिल करना है।(एएमएपी)