क्या हुआ ’नो एड्स’ का वादा?

बालेन्दु शर्मा दाधीच।

व्हाट्सएप्प के संस्थापकों ने कभी गर्व के साथ कहा था- नो एड्स, नो गेम्स, नो गिमिक्स (न विज्ञापन, न खेल और न करतब)। अर्थ यह कि यह सोशल मैसेजिंग प्लेटफॉर्म सीधा-सादा संदेशों को भेजने और पाने का प्लेटफॉर्म बना रहेगा और मेटा के दूसरे प्लेटफॉर्मों (जैसे फेसबुक और इंस्टाग्राम) की तरह नहीं होगा जहाँ यूजर विज्ञापनों की बाढ़ से परेशान हैं। फेसबुक ने 2014 में व्हाट्सएप्प का अधिग्रहण किया था। तब से वह अपने वायदे पर कायम रहा। लेकिन अब वह वादा टूट गया है क्योंकि व्हाट्सएप्प ने विज्ञापनों की शुरूआत कर दी है।

इस एप्लीकेशन के मूल संस्थापकों ब्रायन एक्टन और जान कूम (Brian Acton and Jan Koum) अपने मंच पर विज्ञापनों के इस हद तक विरोधी थे कि मेटा (तब फेसबुक) के हाथों व्हाट्सएप्प का अधिग्रहण होने के बाद उन्होंने 2018 इसी मुद्दे पर मेटा से इस्तीफा दे दिया था। जब मेटा ने कहा कि वह व्हाट्सएप्प पर विज्ञापन शुरू करना चाहती है तो इन दोनों ने अपने शेयरों के परिपक्व होने (मेटा के शेयर जब दोनों को ट्रांसफर किए जा सकते थे) का भी इंतजार नहीं किया और कंपनी छोड़ दी। जाहिर है कि उन्होंने इस मामले में एक नैतिकतापूर्ण लाइन ली थी। लेकिन सात साल बाद अब वही होने जा रहा है जिसकी उन्हें आशंका थी।

फिलहाल व्हाट्सएप्प के अपडेट नामक टैब पर विज्ञापनों को दिखाने का सिलसिला शुरू होगा। व्हाट्सएप्प में नीचे दिखाए जाने वाले चार टैब्स में चैट्स, अपडेट्स, कम्युनिटीज और कॉल्स होते हैं। अपडेट्स में लोग अपना स्टेटस और चैनल जोड़ सकते हैं। करीब डेढ़ अरब लोग रोजाना इन फीचर्स का इस्तेमाल करते हैं।

यहाँ तीन तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे। पहला है, स्पॉन्सर्ड स्टेटस कंटेंट यानी कि आपके मित्रों के स्टेटस की सूची के बीच-बीच में कुछ विज्ञापन दिखाई देंगे। दूसरा बदलाव यह है कि अब लोग अपने व्हाट्सएप्प चैनल को मॉनिटाइज कर सकेंगे। अगर वे कुछ खास तरह का (प्रीमियम) कंटेंट पेश करते हैं तो लोगों को अपना पेड सबस्क्राइबर बना सकेंगे। इस रकम में मेटा को भी हिस्सा मिलेगा। तीसरा बदलाव है टार्गेटेड विज्ञापनों का, जिसके तहत फेसबुक और इंस्टाग्राम के साथ अपने व्हाट्सएप्प अकाउंट को लिंक करने वाले लोगों को ऐसे विज्ञापन दिखाए जाएंगे जो उनकी दिलचस्पी के अनुरूप हों। वैसे ही, जैसे आप गूगल पर देखते हैं जब आपने किसी खास मुद्दे पर कुछ सर्च किया होता है।

मेटा ने यह फैसला इतने साल बाद अब क्यों लिया? इस सवाल का जवाब है आय बढ़ाने की मजबूरी, खासकर ऐसे मौके पर जबकि कंपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास पर जबरदस्त खर्चा कर रही है। इस साल वह इस मद में 50 अरब डॉलर खर्च करने जा रही है और स्केल एआई नाम के एक एआई स्टार्टअप का अधिग्रहण करने पर 14.3 अरब डॉलर और खर्च कर चुकी है। वैश्विक बाजार में मंदी की आशंका पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। ऐसे में मेटा के लिए, जो दूसरे प्लेटफॉर्मों के जरिए करीब 160 अरब डॉलर का विज्ञापन राजस्व कमाती है, व्हाट्सएप्प के तीन अरब उपभोक्ता एक ऐसी दुधारू गाय जैसे दिखाई दे रहे हैं जिन्हें और अनदेखा नहीं किया जा सकता।

उपभोक्ताओं पर इसका क्या असर होगा और उनकी कैसी प्रतिक्रिया होगी, इसे देखा जाना बाकी है। हो सकता है कि आपको ये विज्ञापन नजर भी न आएँ अगर आप सिर्फ चैट्स को देखने तक सीमित रहते हैं और अपडेट्स वाले टैब पर नहीं जाते। हालाँकि बहुत संभव है कि भविष्य में बात अपडेट्स टैब तक सीमित न रहे। बड़ा अंतर इस बात का पड़ेगा कि अब व्हाट्सएप्प आपका निजी कम्युनिकेशन टूल भर नहीं रह जाएगा। अब वह यूट्यूब और फेसबुक की तरह एक कंटेंट प्लेटफॉर्म जैसा बन जाएगा। खासकर इसलिए क्योंकि मेटा के आश्वासनों के बावजूद अनेक लोगों को आशंका होगी कि अब उनके संदेश और सामग्री की प्राइवेसी पहले जैसी सुरक्षित नहीं रहेगी। डिजिटल माध्यमों पर विज्ञापनों को कस्टमाइज करने के लिए आपके डेटा का इस्तेमाल होता है, इसे अब सब जानते हैं।

बहुत से लोगों के लिए प्राइवेसी की महत्ता कम है, शायद जागरूकता की कमी के कारण। संभव है कि इन बदलावों से व्हाट्सएप्प के टेलीग्राम और सिग्नल जैसे प्रतिद्वंद्वियों के लिए अवसर निकलें, जिन्हें प्राइवेसी के मामले में काफी मजबूत माना जाता है। यह मानने में हर्ज नहीं है कि फिलहाल विज्ञापनों को एक प्रयोग के रूप में, सीमित स्तर पर लाया जा रहा है। आगे जाकर उनकी संख्या, विजिबिलिटी और न्यूसेंस वैल्यू बढ़ेगी। अलबत्ता, यह भी है कि व्हाट्सएप्प के पास एक ठोस बिजनेस मॉडल आ जाता है तो उसके स्थायित्व की गारंटी हो जाए। मुफ्त में कोई कब तक इतने बड़े स्तर पर सेवाएँ दे सकता है, यह सवाल आपको खुद से पूछना है।

(लेखक वरिष्ठ तकनीकविद् हैं)